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    भारत में धार्मिक पर्यटन छू रहा नित नई ऊचाईयां

    हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही तिरुपति बालाजी, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं।

    जेफरीज नामक एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज कम्पनी ने बताया है कि अयोध्या में निर्मित प्रभु श्रीराम के मंदिर से भारत की आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने जा रही है। दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में सम्पन्न हुए प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद स्थानीय कारोबारी अपना उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बनाने जा रहा है तथा अब अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। जेफरीज के अनुसार अयोध्या में प्रति वर्ष 5 करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं। अभी अयोध्या में केवल 17 बड़े होटल हैं इनमें कुल मिलाकर 590 कमरे उपलब्ध हैं। लेकिन, अब 73 नए होटलों का निर्माण किया जा रहा है।  इनमें से 40 होटलों का निर्माण कार्य प्रारम्भ भी हो चुका है। अभी तक नए एयरपोर्ट, रेल्वे स्टेशन, टाउनशिप और रोड कनेक्टिविटी में सुधार जैसे कामों पर 85,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। इस निवेश का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर दिखाई देने जा रहा है। शीघ्र ही अयोध्या वैश्विक स्तर पर धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में उभरेगा। इससे होटल, एयरलाईन, हॉस्पिटलिटी, ट्रैवल, सिमेंट जैसे क्षेत्रों को बहुत बड़ा फायदा होने जा रहा है। भारत के विभिन्न शहरों से 1000 के आसपास नई रेल अयोध्या के लिए चलाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पूरे देश से दिनांक 23 जनवरी 2024 के बाद से प्रतिदिन भारी संख्या में धार्मिक पर्यटक अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह हर्ष का विषय है कि पहिले दिन ही 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रभु श्रीराम के दर्शन किये हैं।

    विश्व के कई अन्य देश भी धार्मिक पर्यटन के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाएं सफलतापूर्वक मजबूत कर रहे हैं। सऊदी अरब धार्मिक पर्यटन से प्रति वर्ष 22,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्जित करता है। सऊदी अरब इस आय को आगे आने वाले समय में 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाना चाहता है। मक्का में प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं, जबकि मक्का में गैर मुस्लिम के पहुंचने पर पाबंदी है। इसी प्रकार, वेटिकन सिटी में प्रतिवर्ष 90 लाख लोग पहुंचते हैं। इस धार्मिक पर्यटन से अकेले वेटेकन सिटी को प्रतिवर्ष लगभग 32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय होती है, और अकेले मक्का शहर को 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है। अयोध्या में तो किसी भी धर्म, मत, पंथ मानने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी। अतः अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 से 10 करोड़ तक प्रतिवर्ष जा सकती है। फिर अकेले अयोध्या नगर को होने वाली आय का अनुमान तो सहज रूप से लगाया जा सकता है। अभी अयोध्या आने वाले श्रद्धालु अयोध्या में रूकते नहीं थे प्रात: अयोध्या पहुंचकर प्रभु श्रीराम के दर्शन कर शाम तक वापिस चले जाते थे परंतु अब अयोध्या को इतना आकर्षक रूप से विकसित किया गया है कि श्रद्धालु 3 से 4 दिन रुकने का प्रयास करेंगे। एक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक पर्यटक लगभग 6 लोगों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। इस संख्या के हिसाब से तो लाखों नए रोजगार के अवसर अयोध्या में उत्पन्न होने जा रहे हैं। अयोध्या के आसपास विकास का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब अयोध्या के रूप में वेटिकन एवं मक्का का जवाब भारत में खड़ा होने जा रहा है।

    धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भी धरातल पर बहुत कार्य सम्पन्न किया है। साथ ही, अब इसके अंतर्गत एक रामायण सर्किट रूट को भी विकसित किया जा रहा है। इस रूट पर विशेष रेलगाड़ियां भी चलाए जाने की योजना बनाई गई है। यह विशेष रेलगाड़ी 18 दिनों में 8000 किलो मीटर की यात्रा सम्पन्न करेगी, इस विशेष रेलगाड़ी के इस रेलमार्ग पर 18 स्टॉप होंगे। यह विशेष रेलमार्ग प्रभु श्रीराम से जुड़े ऐतिहासिक नगरों अयोध्या, चित्रकूट एवं छतीसगढ़ को जोड़ेगा। अयोध्या में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर वैश्विक पटल पर इस रूट को भी  रखेगा।

    केंद्र सरकार द्वारा भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगातार किए जा रहे प्रयासों का परिणाम भी अब दिखाई देने लगा है। “मेक माई ट्रिप इंडिया ट्रैवल ट्रेंड्स रिपोर्ट” के अनुसार, भारत के नागरिक अब पहले के मुकाबले अधिक यात्रा कर रहे हैं। भारत के नागरिकों द्वारा विशेष रूप से अयोध्या, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे आध्यात्मिक स्थलों के बारे में अधिक जानकारी हासिल की जा रही है। उक्त जानकारी  “मेक माई ट्रिप” के प्लेटफार्म के 10 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं से प्राप्त जानकारी के आधार पर सामने आई है। वर्ष 2019 के बाद से भारत में एक वर्ष में तीन से अधिक यात्राएं करने वाले लोगों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। उक्त रिपोर्ट के अनुसार, आध्यात्मिक पर्यटन सम्बंधी जानकारी हासिल करने की गतिविधियों में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2023 में 97 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से अयोध्या के सम्बंध में जानकारी हासिल करने सम्बंधी गतिविधियों में वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 585 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज हुई है। इसी प्रकार, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों के सम्बंध में भी जानकारी हासिल करने वाले नागरिकों की संख्या में क्रमशः 359 प्रतिशत और 343 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। भारत में अब पारिवारिक यात्रा की बुकिंग भी बहुत तेज गति से बढ़ रही है। इसमें वर्ष 2022 के तुलना में वर्ष 2023 में 64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी अवधि में एकल यात्रा की बुकिंग में केवल 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

    उक्त जानकारी को भारत के नागरिक विमानन मंत्रालय द्वारा जारी एक जानकारी से भी बल मिलता है कि भारत में घरेलू हवाई यातायात अब एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। दिनांक 21 अप्रेल 2024 (रविवार) को रिकार्ड 471,751 यात्रियों ने 6,128 उड़ानों के माध्यम से, भारत में हवाई सफर किया है। इसके पूर्व हवाई यातायात करने वाले नागरिकों की औसत संख्या, कोरोना महामारी के पूर्व के खंडकाल में, 398,579 यात्रियों की थी। इसमें 14 प्रतिशत  वृद्धि दर्ज की गई है।

    देश में धार्मिक पर्यटन में हो रही भारी वृद्धि के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में भी तेजी दिखाई देने लगी है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने भारत सहित विश्व के समस्त आर्थिक विश्लेशकों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत में सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है जबकि प्रथम तिमाही के दौरान वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत एवं द्वितीय तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की रही थी। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही थी। जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। इसी प्रकार, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा ने 6.5 प्रतिशत, एशिया विकास बैंक एवं बार्कलेस एवं प्राइस वॉटर कूपर्स ने 6.7 प्रतिशत, डेलाईट इंडिया ने 7 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। परंतु, समस्त विदेशी संस्थानों के अनुमानों के झुठलाते हुए भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 8 प्रतिशत की रही है। यह सब देश में लगातार बढ़ते धार्मिक पर्यटन एवं विभिन त्यौहारों तथा शादी जैसे समारोहों पर भारतीय नागरिकों द्वारा दिल खोलकर पैसा खर्च करने के चलते सम्भव हो पा रहा है। इससे त्यौहारों एवं शादी के मौसम में व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। जैसे दीपावली त्यौहार के समय भारत में नागरिकों के बीच विभिन्न नए उत्पादों की खरीद के लिए जैसे आपस में होड़ सी लग जाती है। भारत में लाखों करोड़ रुपए का व्यापार दीपावली त्यौहार के समय में होता है। इसी प्रकार की स्थिति शादियों के मौसम में भी पाई जाती है। संभवत: विदेशी वित्तीय संस्थान भारत में हो रहे इस तरह के उक्त वर्णित परिवर्तनों को समझ नहीं पा रहे हैं एवं केवल पारंपरिक विधि से ही सकल घरेलू उत्पाद को आंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए भारत की विकास दर के संबंच में विभिन्न विदेशी संस्थानों के अनुमान गलत साबित हो रहे हैं।    

    प्रहलाद सबनानी

    विरासत टैक्स एवं निजी सम्पत्ति सर्वे पर संकट में घिरी कांग्रेस

    – ललित गर्ग –

    लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जनता के बीच जिस तरह के मुद्दों को लेकर चर्चा में हैं, उनमें देश विकास से अधिक मुक्त की रेवड़िया बांटने या अतिश्योक्तिपूर्ण सुविधा देने की बातें हैं तो ‘विरासत टैक्स’ के नाम पर जनता की गाड़ी कमाई को हड़पने के सुझाव है। ऐसी विरोधीभासी सोच एवं योजनाएं कांग्रेस की अपरिपक्व एवं स्वार्थप्रेरित राजनीति को ही उजागर करती है। इंडिया ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राहुल गांधी के विश्वस्त सलाहकार सैम पित्रोदा ने चुनावी समर में अपने ताजा बयान में विरासत टैक्स की वकालत की है। उन्होंने अमेरिका में लागू इस टैक्स की पैरवी करते हुए भारत के लिये उपयोगी बताया। सैम ने अपने बयान पर विवाद बढ़ता देख सफाई दी है, तो कांग्रेस ने इस बयान से खुद को अलग कर लिया है। लेकिन राजनीति की इन कुचालों एवं ऐसे बयानों में कांग्रेस का इरादा जनता की मेहनत की कमाई की संगठित लूट और वैध लूट ही नजर आता है। सैम पित्रोदा के बयान में कांग्रेस की सोच एवं संकल्प ही नहीं दिखा बल्कि कांग्रेस की भावी योजनाओं की परतें भी खुली है। भले ही इस बयान ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हो, लेकिन जनता को मूर्ख समझ हर बार हंगामा खड़ा करना कांग्रेस की नीति एवं नियत रही है। सैम ऐसे ही विवादास्पद बयानों से पूर्व में भी चर्चा में रहे हैं।
    अमेरिका में विरासत टैक्स जैसी अनेक स्थितियां एवं कानून हैं जो भारत में नहीं है क्योंकि हर देश की अपनी स्थितियां होती है। सैम के इस बयान ने इसलिए तूल पकड़ लिया, क्योंकि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लोगों की संपत्ति के सर्वे का वादा किया है। इसकी व्याख्या भाजपा पहले से ही इस रूप में कर रही है कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति का आकलन करके संपन्न-सक्षम लोगों की संपदा का एक हिस्सा लेने का इरादा रखती है। चूंकि सैम पित्रोदा का कथन कुछ इसी ओर संकेत करता दिख रहा था, इसलिए भाजपा ने नए सिरे से उनके बयान को मुद्दा बना दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो कहा जब तक आप जीवित रहेंगे, तब तक कांग्रेस आपको ज्यादा टैक्स से मारेगी और जब जीवित नहीं रहेंगे, तब आप पर विरासत का बोझ लाद देगी।’ कांग्रेस की लूट जिन्दगी के साथ भी और जिन्दगी के बाद भी कह कर मोदी ने कांग्रेस को निशाने पर लिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने भी यह कह दिया कि यदि कांग्रेस वैसा कुछ करने का नहीं सोच रही है, जैसा सैम पित्रोदा कह रहे हैं तो वह अपने घोषणा पत्र से संपत्ति के सर्वेक्षण वाली बात हटाए।’ निश्चित ही कांग्रेस की संपत्ति के सर्वेक्षण की बात में गहरे अर्थ, संदेह एवं शंकाएं निहित हैं। राजननेताओं के बयानों पर राजनीति होना लोकतंत्र का एक हिस्सा है, लेकिन जनता के हितों पर आघात करना दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतन्त्र में सतत् रूप से अमीर-गरीब का विमर्श चलता रहता है, गरीबों के हित की बात करके अधिसंख्य मतदाताओं को लुभाना राजनीतिक चतुराई है, लेकिन जनता को बांटना एवं अलग-अलग खेमों में खड़ा करना, लोकतंत्र को कमजोर करता है। मगर भारत का मतदाता अब इतना सुविज्ञ एवं समझदार हैं कि वे राजनेताओं की मंशा को समझकर उस समय आगे बढ़कर नेतृत्व खुद संभाल लेते हैं जब नेतागण अपना पथ भूल जाते हैं। भारत के चुनावों का इतिहास इसका गवाह रहा है। इसलिए राजनैतिक विमर्श चाहे जितना गर्त में चला जाये मगर मतदाता की सूझबूझ, जागरूकता एवं विवेक कभी मंद नहीं पड़ती।
    भले ही सैम पित्रोदा अमेरिका का उदाहरण देकर उस पर भारत में बहस की जरूरत जता रहे थे, लेकिन उन्हें गलत समय ऐसा उदाहरण नहीं देना चाहिए था, जो तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह भारत की परिस्थितियों के लिये सही न हो और जिसके विवाद का विषय बनने की भरी-पूरी संभावनाएं हो। यह तो कांग्रेस ही जाने कि वह संपत्ति के सर्वे के जरिये क्या हासिल करना चाहती है, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि देश में आर्थिक असमानता कम करने की आवश्यकता है। इसके बाद भी इस आवश्यकता की पूर्ति न तो वामपंथी सोच वाले तौर-तरीकों से की जा सकती है और न ही उन उपायों से, जो समाज में विभाजन पैदा करें। जो भी निर्धन-वंचित हैं या सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछडे़ हैं, उनके उत्थान की अतिरिक्त चिंता की जानी चाहिए, लेकिन बिना उनका जाति, मजहब देखे, बिना विभाजन की राजनीति को किये।
    सैम पित्रोदा, राजनीति की दुनिया में यह नाम कोई नया नहीं है, कांग्रेस के शासन में तकनीकी एवं आधुनिक विकास के वे पुरोध रहे हैं। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के सलाहकार रह चुके पित्रोदा इस समय राहुल के खास लोगों में से एक हैं। पित्रोदा अपने काम से कम अपने बयानों के चलते ज्यादा चर्चे में रहते हैं। उनके बयान अक्सर कांग्रेस के लिए भी सरदर्द बनते रहे हैं। पित्रोदा के अनेक बयान पहले भी विवाद एवं कांग्रेस के सिरदर्द की वजह बन चुके हैं। साल 2019 में ही उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि मिडिल क्लास को स्वार्थी नहीं होना चाहिए। उन्हें अधिक से अधिक टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। मध्यमवर्गीय परिवार को रोजगार और अधिक अवसर मिलेंगे। इस बयान ने भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाई थीं और पार्टी को डैमेज कंट्रोल करना पड़ा था। पित्रोदा यहीं नहीं रुके, उन्होंने 2019 के ही पुलवामा हमले पर कहा था कि ऐसे हमले तो होते रहते हैं, मुंबई में भी हमला हुआ था। निश्चित ही कांग्रेस के शासन में ऐसे हमले एवं साम्प्रदायिक दंगे होते ही रहते थे। उन्होंने बालाकोट एयरस्ट्राइक ऑपरेशन पर सबूत मांगे थे।
    सैम पित्रोदा के बयान एवं कांग्रेस के घोषणा पत्र के निजी सम्पत्ति सर्वे की बात में अवश्य ही रिश्ता है, जिसने पूरे देश के सामने कांग्रेस का मकसद स्पष्ट कर दिया है कि निजी संपत्ति का सर्वे कर निजी संपत्ति को सरकारी खजाने में डालकर वह इस धन को अपने वोट बैंक में बांटना चाहती है। ऐसी योजना यूपीए सरकार में तय भी हुई थी कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यक और उसमें भी सबसे अधिक मुस्लिमों का है, उस प्रकार से कांग्रेस की यह मुसलमानों को लुभाने एवं उन्हें लाभ पहुंचाने की अघोषित चुनावी घोषणा है, इस तरह की घोषणाएं लोकतंत्र में सुशासन एवं राजनीति मूल्यों को धुंधलाने की कुचेष्टा ही कही जायेगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता बादशाह नहीं होता बल्कि साधारण मतदाता बादशाह होता है क्योंकि उसके ही एक वोट से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। मतदाता को जो मूर्ख समझते हैं उनसे बड़ा मूर्ख दूसरा नहीं होता। ऐसे तथाकथित बयानों से भारत में संसदीय प्रणाली का लोकतंत्र कभी भी प्रभावित नहीं होगा, वह सफल रहा है और रहेगा क्योंकि भारत के लोग अनपढ़ व गरीब हो सकते हैं मगर वे अज्ञानी या मूर्ख नहीं है। उनका व्यावहारिक ज्ञान बहुत मजबूत होता है और वे राजनीतिक दलों के भ्रम में नहीं आने वाले, गुमराह नहीं होने वाले। यह सच है कि जब से भारत में जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी, वर्गवादी व सम्प्रदायवादी राजनीति का बोलबाला हुआ है तभी से राजनीति के विमर्श में गिरावट आनी शुरू हुई है, लेकिन इस गिरावट को संभालने के लिये मतदाता को अधिक परिवक्व एवं समझदार होने की अपेक्षा है।

    मक्खी मरी नही, तो गई कहाँ?

                                    आत्माराम यादव पीव

           नन्हें-नन्हें पंखों वाली नन्ही सी सुंदर काया वाली मक्खी ओर मक्खा यत्र तत्र सर्वत्र निवास करते है। सबसे ज्यादा नटखट, फुर्तीली यह मक्खी सभी जगह घट-घट में मिल जाएगी, दुनिया का ऐसा कोई स्थान नहीं जो मक्खी से अछूता हो। दिन हो या रात मक्खी बिना आलस किए काम करती है। मरघट हो, मुर्दा हो, मिठाई हो, खटाई हो, नाला हो नाली हो, सड़ा गला हो, खाना हो अथवा पाखाना हर जगह मक्खी की मौजूदगी होती है ओर यह मक्खी हर अच्छी- बुरी जगह पर बैठने का एकाधिकार रखती है। अमृतमयी मिठास हो या गंदा बदबूदार स्वाद हो मक्खी  इन सारे स्वादों का अनुभव इंसान के कान के पास जाकर भिनभिना कर सुनाती है ओर जो नहीं सुनते उनकी नाक कान में दम कर उसके शरीर के किसी भी भाग मे उछलकूद कर उसे छोड़ जाती है। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन का भी एक मक्खी से पाला पड़ गया था जिसे लेकर मैं आज भी अचंभित हूँ की जिस मक्खी से उनका सामना हुआ आखिर वह मक्खी मरी नही तो कहा गई? अमिताभ बच्चन का में बचपन से प्रशंसक रहा हूँ ओर उनकी स्टाइल व डिजाइन किए कपड़े विशेषकर बेलवाटम तथा हेयरस्टाइल की दीवानगी मेरे मित्रो पर सवार थी वे  तो पहन लिया करते थे किन्तु तब गरीबी के कारण मेरे लिए बेलवाटम पहनना एक सपना था, क्योकि तब मुझे पिताजी के रिजैक्ट किए गए कपड़ों को आल्टर कराकर संतुष्ट होना पड़ता था। बात मक्खी की है इसमें अन्य बातें अनुपयोगी है, अमिताभ बच्चन ओर उनके द्वारा मक्खी मारा जाना उपयोगी है।

           नमक हलाल फिल्म के मुख्य किरदार अमिताभ बच्चन के मालिक शशि कपूर साहब कुछ रईस सेठों के साथ भोजन करने को तैयार है तभी एक प्लेट पर मक्खी के बैठने ओर अपने मालिक के एतराज की मुझे मक्खियों से सख्त नफरत है कहे जाने के बाद अमिताभ बच्चन ने उस मक्खी का पीछा किया ओर पूरी सतर्कता के साथ जैसे अर्जुन का ध्यान मछली पर था, अमिताभ का ध्यान मक्खी पर था ओर वे लक्ष्य साधकर टेबल पर बैठे अमीरों का आश्रय लेने वाली मक्खी का पीछा करते रहे, लेकिन आखिर तक मक्खी को मार नहीं सके ओर मक्खी खुद उनकी नाक पर जा बैठी जिसे उनके सेठ ने घूसा मारकर मारना चाहा पर वह मरी नहीं, तभी से यह बात मेरे जेहन में थी की आखिर मेरे हीरो को तंग करने वाली वह मक्खी कहां गई? मक्खी का पता नहीं पर अमिताभ बच्चन ने मक्खी मारने का काम कर जबरदस्त वाहवाही लूटी तभी से मक्खी की लोकप्रियता का ग्राफ पूरी दुनिया में छा गया था। अमिताभ की फिल्म रीलीज़ होने के बाद अनेक जगह उनके प्रशंसकों में मक्खी मारने की होड लग गई थी, एक बार लगा की ये सभी इस धरती की सारी मक्खी मारकर धरती को मक्खीविहीन कर देंगे,किन्तु इसी बीच मक्खी नाम की फिल्म आ गई जिसमे मक्खी की आत्मा का आतंक फैलाकर लोगो को डराने  का काम इस मक्खी  फिल्म ने किया, बस लोग अपने सुपरस्टार अमिताभ के पदचिन्हों पर चलकर मक्खी मारना भूल गए ओर मक्खी फिल्म का खौफ से सभी मक्खीमार गायब हो गए ओर मक्खी की प्रजाति विलुप्त होने से रह गई । मक्खीचूस की बात जरूर निकली जो अपनी कंजूसी के रहते चाय की प्याली मे मक्खी गिरने पर समझता था की इसने चाय पीकर प्याली की चाय कम कर दी तब वह मक्खी उठाकर उसे चूस कर अपनी चाय की नुकसानी की भरपाई मक्खी से करता था।    

           आप सभी मक्खी को बेहतर जानते है ओर यह भी तय है की आप भी मक्खी से आए दिन परेशान होते रहे है? जब भी मक्खियों ने आपको तंग किया होगा तो आपने उन्हे मारने का प्रयास किया होगा किन्तु नटखट तेजतर्रार मक्खी आपकी पकड़ से नौ –दो ग्यारह होने से खुद को बचाती रही ओर आप एक मक्खी भी न मार सके तब आप मक्खी से हार मान ग़ुस्से से लाल पीले हुये होकर रह जाते है।  मक्खी हर तरह की गंदगी पर बैठती है ओर अपने पैरों के माध्यम से वह आपके, मेरे, सभी के घरों में किचन से लेकर डायनिग टेबल तक में रखी खाने की वस्तुओं पर बैठकर बीमारी फैलाती है ताकि इस बीमारी से तबाही फैले ओर आप सहित दुनिया में लोग हैजा, प्लेग, शीतला आदि प्राणघातक बीमारी के शिकार हो मर खप सको। आप मक्खी को तबाह करना चाहते है जबकि मक्खी गंदी मैली रहकर मल आदि अपने परों ओर पैरों मे लेकर उडती हुई सभी  ओर उछलकूद कर जी भरकर हमे ओर आपको सुरधाम पहुचाने के लिए दिन रात जुटी है। आप भोजन करते हो तब दर्जनों बार यही गंदली मक्खी आपके भोजन ही नही आपके मुह, नाक, कान, गाल सहित अन्य अंगों पर मुह मार चुकती है ओर आप हाथ से उसे भगाने में अपनी ताकत खराब करते हो। आपके जागते, काम करते, पुजा पाठ करते सहित आराम में खलल डालकर सोते समय यही मक्खी आपको दिक्कत में डालकर परेशान करती है , जितना भी उसे भगाने की कोशिस करोगे उड़कर यही मक्खी एक जिद्दी की तरह आपके सामने होगी। आप मक्खी की शरारत ओर नटखटपन से गुस्से में उसे भगा कर थकने के बाद मारने जुट जाते हो ओर भूल जाते हो की आप आम आदमी नहीं जो मक्खी मारे, फिर भी आप उच्च पदों पर उच्च शिक्षित होते हुए बेचारी निम्न मक्खी को मारने मोर्चा संभाल लेते हो ठीक वैसे ही जैसे वीर बहादुर अमिताभ बच्चन ने फिल्म में संभाला था ओर मक्खी मारने में सफल न होकर हसी के पात्र बने थे।   

           सवाल उठता है कि हम एक से एक आधुनिक मशीनों को ईजाद कर चुके है, मक्खी मच्छर मारने के लिए जिस जहर का इस्तेमाल कर रहे है उससे खुद का स्वास्थ्य भी खराब कर रहे है, पर खुद की दम पर हम एक मक्खी तक नहीं मार सकते है, तब क्या मरी मक्खी का पंख उखाड़ने को अपनी वीरता समझ अपना सीना 56 इंच का बतलाकर फूले नही समाते हो ? समाज मे कुछ लोग जो कुछ भी न करने पर विश्वास रखते है पर ढींग हाँकते है की मक्खी मार रहे है। मक्खी मारना वैसे भी उनके लिए प्रयोग है जो कुछ भी नहीं करते या बेकार का काम करते है। आज सारे देश में युवाओ के पास डिग्री है पर काम नहीं होने से वे बेरोजगार है, उनसे पूंछे कि क्या कर रहे हो तो वे तपाक से कहते है आजकल मक्खियाँ मार रहा हूँ, मतलब कुछ नही कर रहे है।  यही हाल राजनीति में हो गया है, नेता एक बार राजनीति में किस्मत प्रयोग कर विधायक, सांसद या स्थानीय नेता चुने जाने के बाद उसे कौन से हीरे जवाहरात की खदान मिल जाती है की वह शून्य से शिखर पर पहुँच जाता है ओर उसके पैर जमीन पर नहीं होते, पर जैसे ही कुर्सी से नीचे पटक दिये जाए तब भी वे क्या कर रहे हो के सबाल का जबाव आजकल जनसेवा कर रहा हूँ अर्थात बेकार हूँ मक्खी मार रहा हूँ होता है। काश राजनेताओं जैसा भाग्य देश के इन युवा बेरोजगारों का क्यो नही होता, उन्हे भी सरकार अपने नेताओं की तरह मक्खी मारने का काम दे देवे तो कम से कम वे आत्मनिर्भर होकर परिवार की ज़िम्मेदारी में शामिल हो सके। देश में जनता ही नहीं सरकार भी गंदगी फैलाती है ताकि उसपर मक्खी बैठे ओर लोगों को मक्खी मारने का काम मिल सके, भले हकीकत में एक भी मक्खी न मर सके पर सरकारी आंकड़ों में मक्खियों को टनों से मरा साबित करेंगे ताकि अधिक मक्खी होने पर आगे मक्खी मारने का धंधा चला सकें?

    जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे

    – ललित गर्ग –

    शांति के तमाम उपायों के बीच दुनियाभर में सैन्य खर्च, शस्त्रीकरण एवं घातक हथियारों की होड़ किसी खतरे की घंटी से कम नहीं। शस्त्रीकरण के भयावह दुष्परिणामाअें से समूचा विश्व भयाक्रांत है, हर पल आणविक हथियारों के प्र्रयोग को लेकर दुनिया डर के साये में जी रही है। इसीलिये आज अयुद्ध, निशस्त्रीकरण एवं शांति की आवाज चारों ओर से उठ रही है। शक्ति संतुलन के लिये शस्त्र-निर्माण एवं शस्त्र संग्रह की बात से किसी भी परिस्थिति में सहमत नहीं हुआ जा सकता। क्योंकि इससे अपव्यय हो होता ही है, साथ ही किसी भी गलत हाथों से दुरुपयोग होने की बहुत संभावनाएं रहती है। ताजा घटनाक्रम को देखें तो एक ओर रूस और यूक्रेन आमने-सामने हैं, वहीं दूसरी तरफ इजरायल और ईरान के बीच तल्खी भी चरम पर है। चीन और ताइवान के बीच भी रह-रह कर युद्ध के बदल मंडरा रहे हैं। ऐसे माहौल में यह सवाल भी गूंजना स्वाभाविक है कि क्या सचमुच दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ते हुए घातक हथियारों के उपयोग की प्रयोगभूमि बन रही है? सवाल दूसरे ओर भी हैं। स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की हथियारों पर आयी ताजा रिपोर्ट ऐसे ही सवाल खड़े कर रही है। इसका संतोषजनक जवाब शायद ही मिले क्योंकि दुनिया सीधे-सीधे दो खेमों में बंट गई है।
    स्टॉकहोम की रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले ही नहीं, डराने वाले हैं। शांति के तमाम उपायों के बीच दुनियाभर में सैन्य खर्च का बढ़ना एवं नये-नये हथियारों का बाजार गरम होना, चिन्ताजनक है। रिपोर्ट में खास बात यह है कि दुनिया में र्स्वाधिक सैन्य खर्च करने वाले देशों में भारत चौथे नंबर पर बरकरार है। शांति एवं अहिंसा की भूमि पर हथियारों का जमावड़ा उसकी कथनी एवं करनी के भेद को उजागर कर रहा है। ये सवाल स्वाभाविक है कि जब प्रत्येक देश शाांति बनाए रखने की वकालत करता है फिर हथियारों की होड़ लगातार क्यों बढ़ रही है? भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार ‎‎आयातक देश बन चुका है। स्टॉकहोम की ओर से जारी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। भारत ने बीते पांच साल में दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदे हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोप का हथियार आयात 2014-18 की तुलना में 2019-23 में लगभग दोगुना बढ़ा है, जिसके पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध बड़ा कारण माना जा रहा है। वहीं, इसके अलावा पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा हथियार एशियाई देशों ने खरीदे हैं। इस लिस्ट में रूस-यूक्रेन का युद्ध देश के रक्षा निर्यात को काफी प्रभावित किया है। इस कारण से पहली बार रूस हथियार निर्यात में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। तो वहीं, अमेरिका पहले और फ्रांस दूसरे नंबर पर है।
    पिछले 25 सालों में पहली बार, संयुक्त राज्य अमेरिका एशिया और ओशिनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा। अमेरिका की हथियारों की होड़ एवं तकनीकीकरण की दौड़ पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। अब तो दुनिया के साथ-साथ अमेरिका स्वयं ही इन हथियारों एवं हिंसक मानसिकता का शिकार है। अमेेरिका दुनिया पर आधिपत्य स्थापित करने एवं अपने शस्त्र कारोबार को पनपाने के लिये जिस अपसंस्कृति को उसने दुनिया में फैलाया है, उससे पूरी मानवता कराह रही है, पीड़ित है। अमेरिका ने नई विश्व व्यवस्था (न्यू वर्ल्ड आर्डर) की बात की है, खुलेपन की बात की है लगता है ”विश्वमानव“ का दम घुट रहा है और घुटन से बाहर आना चाहता है। विडम्बना देखिये कि अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक शक्तिशाली और सुरक्षित देश है लेकिन उसके नागरिक सबसे अधिक असुरक्षित और भयभीत नागरिक हैं। वहां की जेलों में आज जितने कैदी हैं, दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। ऐसे कई वाकये हो चुके हैं कि किसी रेस्तरां, होटल या फिर जमावड़े पर अचानक किसी सिरफिरे ने गोलीबारी शुरू कर दी और बड़ी तादाद में लोग मारे गए। 2014 में अमेरिका में हत्या के कुल दर्ज करीब सवा चौदह हजार मामलों में अड़सठ फीसद में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था।
    एक तरफ अमरीका और उसके सहयोगी नाटो देश हैं तो दूसरी तरफ रूस-चीन का गठजोड़ है। तटस्थ रहने वाले देश भी गाहे-बगाहे अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी खेमे की तरफ झुकाव प्रदर्शित करते रहे हैं। ऐसे में आखिरी उम्मीद संयुक्त राष्ट्र ही रह जाता है। जबकि संयुक्त राष्ट्र की शक्तियां एवं उद्देश्य कोरे दिखावे के हैं, समूची दुनिया इससे वाकिफ है। वह ऐसे किसी भी संकट में शांति प्रस्ताव पारित कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर पला झाड़ लेता है। वह न तो रूस-यूक्रेन के संघर्ष में और न ही इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष रोकने में कोई सार्थक भूमिका अदा कर पा रहा है। उसके कड़े से कड़े फैसले भी आखिर में महाशक्तियों के वीटो के सामने हथियार डाल देते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अस्तित्व में आया संयुक्त राष्ट्र कहने को तो दुनिया के देशों का सबसे बड़ा मंच है पर युद्धों को रोकने में उसकी भूमिका नगण्य है। ऐसे में दुनिया में बढ़ते हथियारों की होड़ एवं युद्ध की संभावनाओं को आखिर कौन-कैसे-किसको रोके? जाहिर है, ऐसी परिस्थितियों में तो हथियारों की होड़ बढ़ेगी ही। अमरीका एक तरफ युद्ध की तरफ बढ़ रहे देशों से शांति की अपील करने में सबसे आगे रहता है। लेकिन दूसरी तरफ अमरीकी हथियार कंपनियां तमाम देशों को खरबों रुपए के हथियार बेच रहीं है। इन कंपनियों के लिए तो युद्धकाल ही स्वर्णकाल होता है। ऐसे दौर में जब अधिकांश देश शिक्षा, रोजगार व सेहत के मोर्चे पर संकटों का सामना कर रहे हैं, हथियारों की इस होड़ को रोका ही जाना चाहिए।
    रूस एवं यूक्रेन के बीच लम्बे समय से चल रहा युद्ध भीषणतम तबाही एवं सर्वनाश का कारण बनता दिख रहा है। रूस द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल किये जाने एवं यूक्रेन के द्वारा ‘डर्टी बम’ का इस्तेमाल किये जाने की धमकियां, दुनिया के लिये डर का कारण बन रही है। भयंकर विनाश की आशंकाओं के बीच समूची दुनिया सहमी हुई है। यदि परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो यह मानवता के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा एवं दुनिया को अशांति की ओर अग्रसर करने वाला होगा। अब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा इसलिए बढ़ गया है कि यूक्रेन को इतने लंबे समय से झुकता न देख रूस का अहं चोट खा रहा है। हालांकि परमाणु हथियारों के दुष्परिणामों से दोनों देश अनजान नहीं हैं। इस युद्ध को चलते लंबा वक्त हो गया। इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनेगा।
    यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये भारत ने लगातार शांति प्रयास किये हैं। लेकिन प्रश्न है कि दुनिया को अहिंसा, अयुद्ध एवं शांति का सन्देश देने वाला भारत क्यों हथियारों की दोड़ में शामिल है? मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध एवं हथियारों की विभीषिका से मुक्ति दिलाना आवश्यक है। युद्धरत देशों में शांति स्थापित कर, उन्हें अभय बनाकर, युद्ध-विराम करके विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन रूस ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास एक गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिये कराया है। इस युद्ध से होने वाली तबाही रूस-यूक्रेन की नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा, जो दुनिया की बड़ी चिन्ता का सबब है। बड़े शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को इस युद्ध को विराम देने के प्रयास करने चाहिए। लेकिन प्रश्न है कि जो देश हथियारों के निर्माता है, वे क्यों चाहेंगे कि युद्ध विराम हो। जब तक शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों की शस्त्रों के निर्माण एवं निर्यात की भूख शांत नहीं होती तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में तैरती रहेगी, इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे।

    जानिए क्यों बढ़ती गर्मी हेमंत की दुनिया उजाड़ रही है

    दीपमाला पाण्डेय

    अप्रैल के महीने में पहले कभी इतनी गर्मी का एहसास नहीं हुआ जितना इस साल हो रहा है। पिछला साल धरती के इतिहास का सबसे गरम साल था। इस महीने की गर्मी महसूस करते हुए लग रहा है ये साल भी उसी दिशा में बढ़ रहा है।

    आप और हम तो शायद अपने आप को इस भीषण गर्मी से बचाने के लिए कुछ उपाय कर लें। लेकिन हेमंत ऐसा कुछ नहीं कर पाएगा। साल दर साल, ये बढ़ती गर्मी उसकी ज़िंदगी कठिन बना रही है।

    हेमंत ऑटिज़्म से पीड़ित है। ऑटिज़्म मतलब स्वलीनता या आत्मकेंद्रित होना। इस शारीरिक परिस्थिति का असर कुछ ऐसा होता है कि अब जब साल दर साल पारा चढ़ता जा रहा है, तब हेमंत की दुनिया धुंधली होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के लगातार हमले से उनकी चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं।

    दुख कि बात ये है कि हेमंत अकेला नहीं हैं। दुनिया भर में, उसके जैसे ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान के खिलाफ एक कठिन लड़ाई का सामना कर रहे हैं। उनकी अद्वितीय संवेदी संवेदनाएं उन्हें विशेष रूप से अत्यधिक गर्मी के प्रति संवेदनशील बनाती हैं, तापमान को नियंत्रित करने की उनकी क्षमता को बाधित करती हैं और उन्हें असुविधा और संकट के बवंडर में डुबो देती हैं।

    जी हाँ। हेमंत की स्थिति समझने के लिए कल्पना कीजिये कि गर्मी का एहसास केवल आपकी त्वचा पर नहीं, बल्कि आपके अस्तित्व के हर तंतु पर हो। उस पीड़ा की कल्पना कीजिये कि वो गर्मी आपकी इंद्रियों पर तब तक हावी हो रही है जब तक आपको ऐसा महसूस न हो कि आप किसी असुविधा के समुद्र में डूब रहे हों। हेमंत और उसके जैसे अनगिनत लोगों के लिए यह रोजमर्रा की वास्तविकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन हमारे ग्रह पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। और इसके चलते सर्दी, गर्मी, बारिश, और हर मौसमी घटना की तीव्रता बढ़ती जा रही है।

    बात वापस हेमंत जैसों की करें तो बढ़ते तापमान के कारण ऑटिस्टिक व्यक्तियों को केवल शारीरिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। भावनात्मक और व्यवहारिक प्रभाव भी उतना ही गहरा हो सकता है। तेजी से मूड में बदलाव, संचार संबंधी चुनौतियाँ, और बढ़ी हुई चिंता पाठ्यक्रम के बराबर हो जाती है, जो बचपन के लापरवाह दिनों पर काली छाया डालती है।

    चीन में, उच्च तापमान वाले दिनों में दो-तिहाई ऑटिस्टिक बच्चों की अनुपस्थिति उनके जीवन पर जलवायु परिवर्तन के गहरे प्रभाव की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है। हीटवेव के दौरान बाधित स्वास्थ्य देखभाल और शुरुआती हस्तक्षेप से उनके विकास के पटरी से उतरने का खतरा है, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य संघर्षों के लिए मंच तैयार हो रहा है जो आने वाले वर्षों तक उन्हें परेशान कर सकता है।

    इसके अलावा, ऑटिस्टिक बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का विकासात्मक प्रभाव अत्यधिक गर्मी की तात्कालिक चुनौतियों से कहीं अधिक है। अध्ययनों ने जन्मपूर्व गर्मी, वायु प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय तनावों के संपर्क और बच्चों में ऑटिज़्म और विकासात्मक देरी के बढ़ते जोखिम के बीच संबंधों की ओर इशारा किया है। जैसे-जैसे हमारा ग्रह गर्म होता जा रहा है, हम नए ऑटिज्म निदानों में चिंताजनक वृद्धि देख सकते हैं, जो समग्र दृष्टिकोण से जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने की तात्कालिकता को रेखांकित करता है।

    इन चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए, हमें समावेशिता और लचीलेपन की मानसिकता अपनानी होगी जो किसी को भी पीछे न छोड़े। यह जलवायु आपदा से बचे रहने से कहीं अधिक के बारे में है; यह संज्ञानात्मक या शारीरिक भिन्नता की परवाह किए बिना, हर जीवन की समृद्धि सुनिश्चित करने के बारे में है।

    इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो वैश्विक मंच से लेकर हमारे अपने समुदायों तक फैला हो। हमें सत्ता के गलियारों में विविध आवाजों और जीवंत अनुभवों को बढ़ाना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में ऑटिस्टिक व्यक्तियों की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं किया जाए। उनकी अनूठी कमजोरियों और प्रभावी शमन रणनीतियों पर मजबूत शोध भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जो अधिक समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए आधार तैयार करता है।

    व्यक्तिगत स्तर पर, हम सभी अपने समुदायों के भीतर लचीलापन बनाने में भूमिका निभा सकते हैं। घरेलू इन्सुलेशन बढ़ाने से लेकर मदद देने वाले नेटवर्क से जुड़ने और समावेशी नीतियों की वकालत करने तक, बदलते माहौल में ऑटिस्टिक व्यक्तियों की भलाई की रक्षा करने की लड़ाई में हर कार्रवाई मायने रखती है।

    आज जब हम एक गर्म हो रही दुनिया के चौराहे पर खड़े हैं, हेमंत और उसके जैसे अनगिनत बच्चों की दुर्दशा हमारे सामने एक भयावह तस्वीर बना रही है। अब एक साथ आने का समय है। न केवल पर्यावरणविदों या कार्यकर्ताओं के रूप में, बल्कि इंसानों के रूप में साथ आने की ज़रूरत है। अपने बीच के सबसे कमजोर लोगों की रक्षा के लिए हमारी प्रतिबद्धता में एकजुट होने का समय है। केवल तभी हम एक ऐसे भविष्य के निर्माण की उम्मीद कर सकते हैं जहां हर बच्चा, न्यूरोटाइप की परवाह किए बिना, एक ऐसी दुनिया में पनप सके जो सदाबहार और संभावनाओं से भरी हो।

    हिन्दुत्व के ग्लोबल ब्राण्ड एम्बेसडर  प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी

    ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल 

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्तमान में विश्व के सबसे लोकप्रिय राजनेता के रूप में ख्यातिलब्ध हो चुके हैं । भारतीय राजनीति से लेकर वैश्विक राजनीति में उनके विचारों एवं निर्णयों की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है‌। यह सब इसलिए सम्भव हो पा रहा है क्योंकि वे भारत के ‘स्व’ के अधिष्ठान को अपना ध्येय बनाकर सतत् गतिमान हैं। भारत का यह  ‘स्व’ –  सनातन हिन्दुत्व के वे मानबिन्दु एवं चिरकालिक शाश्वत मूल्य बोध हैं जिन्हें उन्होंने प्रखरता के साथ अपनी कार्यशैली से प्रकट किया है। वर्ष 2014 में प्रथम बार सांसद एवं प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित होते ही संसद प्रवेश के समय प्रवेश द्वार पर साष्टांग दंडवत प्रणाम से ही उन्होंने  नए संकेत दे दिए थे। वे थे हिन्दू अस्मिता और हिन्दुत्व के प्रति अनन्य निष्ठा के भाव। आगे चलकर विश्व इतिहास में रेखांकित की जाने वाली तारीख 5 अगस्त 2020 को मोदी का एक नया रूप देखने को मिला। उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के भूमि-पूजन के साथ ही पुनश्च एक नया शंखनाद किया‌ । जोकि आगे चलकर पौष शुक्ल द्वादशी तदनुसार 22 जनवरी 2024 को रामलला के नूतन विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही नूतन शक्ति संचार के रूप में दर्ज हो गया। इस अवसर के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्णरूपेण वैदिक विधान के साथ 11 दिवसीय कठोर व्रत  का पालन करते हुए अपने तपस्वी साधक रुप का परिचय दिया था। उक्त अवसर पर उनके उद्बोधन का यह अंश उनके उसी भाव विचार को प्रकट करता है —

    “ 22 जनवरी, 2024, ये कैलेंडर पर लिखी एक तारीख नहीं। ये एक नए कालचक्र का उद्गम है। राम मंदिर के भूमिपूजन के बाद से प्रतिदिन पूरे देश में उमंग और उत्साह बढ़ता ही जा रहा था। निर्माण कार्य देख, देशवासियों में हर दिन एक नया विश्वास पैदा हो रहा था। आज हमें सदियों के उस धैर्य की धरोहर मिली है, आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेता हुआ राष्ट्र, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। आज से हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। और ये कितनी बड़ी रामकृपा है कि हम इस पल को जी रहे हैं, इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। आज दिन-दिशाएँ… दिग-दिगंत… सब दिव्यता से परिपूर्ण हैं। ये समय, सामान्य समय नहीं है। ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रहीं अमिट स्मृति रेखाएँ हैं। ”

    साथ आगे अपने अखंड संकल्प को व्जियक्त करते हुए कहते हैं — 

    “हमें अपनी चेतना को देव से देश, राम से राष्ट्र – देवता से राष्ट्र तक विस्तारित करना है। यह भव्य मंदिर वैभवशाली भारत के उत्कर्ष और उदय का गवाह बनेगा। यह भारत का समय है और हम आगे बढ़ रहे हैं।”

    मोदी जिस ढंग से हिन्दुत्व के नायक के रूप में अपने कार्य वैशिष्ट्य के साथ गतिमान है। वह स्वर्णिम भारत के भविष्य की आधारशिला के रूप में इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज होता चला जा रहा। एक राजनेता जब साधक एवं तपस्वी के रूप में राष्ट्र जीवन को दिशा देता है तो निश्चय ही उसके सुफल पुण्यता का पथ प्रशस्त करने वाले होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस प्रकार से राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए एक श्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। ठीक उसी प्रकार से वे अपनी हिन्दुत्व के प्रति आदर-श्रध्दा – भक्ति एवं 

    निष्ठा के लिए भी जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली एवं विचार निष्ठा से एक भारतीय राजनीति में हिन्दुत्व की अपरिहार्यता की नई लकीर खींच दी है‌ । इसी के कारण स्वतंत्रता के बाद से भारतीय राजनीति में ‘हिन्दू व हिन्दुत्व की अस्मिता के विरुद्ध रोपी गई सेकुलरिज्म की विषबेल समाप्ति की ओर है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी वेशभूषा, खान-पान एवं कार्य-व्यवहार में जिस ढंग से हिन्दुत्व के मूल्यों को आत्मसात करते हुए सार्वजनिक रूप से प्रकट किया है। उसका लोहा समूचा विश्व मानने लगा है‌ ।  वर्षों तक हिन्दुत्व के प्रति दुराग्रह एवं घ्रणा का जो षड्यंत्र सत्तालोलुपों ने तुष्टिकरण के चलते रचा। उसे नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आते ही क्रमशः ध्वस्त कर दिया।  प्रधानमंत्री अपने निजी जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन में हिन्दू परम्पराओं के अनुसार आचरण करते हुए निरंतर दिखते हैं।वे शक्ति के उपासना पर्व ‘नवरात्रि’ में निराहार व्रत रहते हैं‌। माथे पर चंदन, रुद्राक्ष की माला, भगवा वस्त्र और पूजन अर्चन के समस्त विधि विधानों का नि: संकोच पालन करते हैं‌। अपनी आस्था के प्रति इस प्रकार की निष्ठा ने उन कई सारी भ्रान्तियों को भी तोड़ा है जो इन परम्पराओं पर लगातार कुठाराघात करते थे। 

    आज विदेशी  राजनेता और राजनयिक हमारी सम्बोधन पध्दति के शब्द ‘नमस्ते’ को बड़े ही आदर के साथ अपनाते हैं और उसका प्रयोग करते हैं‌। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों के चलते ही 21 जून 2015 को ‘अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस ‘ के रूप में मान्यता मिली। साथ ही यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की ही छाप है कि — आज विश्व के विभिन्न देशों में भारतीय दर्शन एवं ज्ञान परम्पराओं  जुड़े हुए धर्मग्रंथों – वेद, उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण एवं महाभारत के मूल्यों पर खुलकर चर्चा की जा रही है। उन्हें अपनाने पर जोर दिया जा रहा है । वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूएई की यात्रा के दौरान ही वहां की सरकार ने राजधानी आबू धाबी में मंदिर निर्माण की स्वीकृति एवं जमीन देने की घोषणा की थी।यूएई के उसी पहले हिन्दू मंदिर का विधिवत उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने 14 फरवरी 2024 को किया। यह अपने आप में ऐतिहासिक एवं अनुपमेय था। इसी प्रकार भारत को जी 20 की अध्यक्षता मिलने के पश्चात भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए विविध पहलुओं से जी 20 देश परिचित हुए। इसके अतिरिक्त नई दिल्ली में सम्पन्न हुए जी 20 शिखर सम्मेलन 2023 से भी मोदी की उसी दूरदर्शिता की झलक दिखाई दी। चाहे बात ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की थीम की हो याकि बात भारत मंडपम् के बाहर लगी हुई ‘नटराज’ की 27 फीट ऊंची प्रतिमा हो। AI एआई वाली श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से जीवन से जुड़े हुए प्रश्नों को गीता के श्लोकों के द्वारा उत्तर देने का नवाचार हो। इसके साथ ही 13 वीं सदी में बने कोणार्क के सूर्य मंदिर को दर्शाना हो। याकि विश्व को ज्ञान कोष से समृद्ध करने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के ध्वंसावशेषों की स्मृतियों को विश्व समुदाय के ध्यान में लाना हो।  ‘वाॅल ऑफ डेमोक्रेसी’ के द्वारा भारत की सनातनी लोकतान्त्रिक प्रणाली एवं आदर्शों से भी साक्षात्कार करवाया।  जब वे संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ अर्थात् लोकतन्त्र की जननी के रूप में विभिन्न उदाहरण देते हुए परिभाषित करते हैं तो इससे एक अमिट चिन्ह बनते हैं। वर्तमान में विश्व समुदाय भारत व भारतीय संस्कृति अर्थात् हिन्दू संस्कृति – हिन्दुत्व के प्रति बड़ी ही आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। आज विश्व भारत के बारे में पूर्व की कूटरचित दुराग्रही धारणाओं से मुक्त होकर — नए ढंग से मूल भारत को देखने- जानने -समझने और आत्मसात करने की ओर अग्रसर हुआ है। इसमें निश्चय ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हिन्दुत्व के ग्लोबल ब्राण्ड एम्बेसडर के रूप में महनीय भूमिका है।

    प्रधानमंत्री के रूप में सत्तारूढ़ होने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी ने एक राजनेता से कहीं आगे बढ़कर वीतरागी  ‘राजर्षि’ के रूप में राष्ट्र संस्कृति – हिन्दू संस्कृति के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है। उन्होंने भारत की पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण समस्त सीमाओं के तीर्थक्षेत्रों, धार्मिक आस्था के मानबिन्दुओं के संरक्षण एवं सम्वर्धन के लिए स्पष्ट नीति रखी। नीतियों को साकार रूप में ढाला और एक नए सांस्कृतिक उन्मेष की ओर कदम बढ़ाए। वे ‘सर्वपंथ समादर’ की भावना को आत्मसात कर आगे बढ़ते हैं और राष्ट्रोन्नति के संकल्प को चरितार्थ करते हैं। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर से लेकर उज्जैन के महाकाल लोक के विकास  और केदारनाथ धाम में आदिशंकराचार्य जी की प्रतिमा का अनावरण किया। काशी तमिल संगमम को एक नए ढंग से प्रकट किया।  

    चारधाम तीर्थ क्षेत्र परियोजना को मूर्तरूप देने से लेकर मध्यप्रदेश के सागर के बड़तूमा में भव्य  संत रविदास मंदिर एवं स्मारक की नींव रखी। इसके अतिरिक्त वे भारत को सांस्कृतिक रूप से जोड़ने वाले प्रत्येक आस्था एवं श्रद्धा केन्द्रों और मानबिन्दुओं के संरक्षण के लिए अनेकानेक कार्य करते आ रहे हैं। देश के नवीन संसद भवन में संतों की उपस्थिति में सत्य एवं न्यायपूर्ण शासन तन्त्र के प्रतीक धर्मदण्ड  — ‘सेंगोल’ की स्थापना में हिन्दुत्वनिष्ठा ही सन्निहित है। इसी प्रकार गणेश चतुर्थी की तिथि ( 19 सितम्बर 2023 ) से संसद की कार्यवाही का शुभारम्भ अपने आप में एक नई गाथा कह रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से शिक्षा प्रणाली को भारतीय पध्दति एवं दर्शन पर आधारित करने की नीति भी उसी दिशा की स्पष्ट परिचायक है । गर्व से कहो हम हिन्दू हैं हिन्दुस्थान हमारा है‌ । यह नारा अब देश ही नहीं बल्कि विदेशों ने भी स्वीकार कर लिया है। अब समूचा विश्व समुदाय हिन्दू व हिन्दुत्व के प्रति आदर एवं श्रध्दा के साथ भाव प्रकट करता है‌ । यह सब इसीलिए सम्भव हुआ है क्योंकि वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व के संवाहक के रूप में अपनी स्पष्ट रीति नीति को रखा है। उनकी स्पष्ट दूरदर्शी – स्व आधारित हिन्दुत्वनिष्ठ नीति उन्हें सबसे विरला बनाती है। और वर्तमान भारतीय राजनीति ही नहीं अपितु वैश्विक परिदृश्य के श्रेष्ठ यशस्वी लोकनायक की छवि को उकेरती है।

    ~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल 

     मध्यप्रदेश में हुआ कम मतदान भाजपा को झटका

    प्रमोद भार्गव

                    मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में हुए छह सीटों पर कम मतदान के चलते भाजपा को झटका लग सकता है। जबकि अच्छे मतदान के लिए भाजपा ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर सूक्ष्म प्रबंधन के दावे किए थे। कार्यकर्ताओं को जुटाकर अमित शाह तक ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने के गुर सिखाए थे। उधर जिला प्रशासन भी अधिक मतदान के लिए उन सब टोने-टोटकों को आजमाता रहा है, जिन्हें मतदान बढ़ाने का परंपरागत फार्मूला माना गया है। हालांकि इन टोटकों में ज्यादा कुछ असरकारी कभी दिखाई नहीं दिया। प्रशासन की हुंकार पर सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों, आंगनवाड़ी महिला कार्यकर्ताओं और स्व-सहायता समूह की महिलाओं को इकट्ठा करके मानव श्रृंखला बनाकर और कुछ नारे लगाकर इन टोटकों की इतिश्री न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश में कर ली जाती है। जिसके नतीजे लगभग षून्य होते हैं। मध्यप्रदेश में मतदान का एक बड़ा कारण मुख्यमंत्री मोहन यादव की छवि भी रही है। उनका जनता को न तो भाषण  सुहा रहा है और न ही कार्यशैली। पिछले चार माह में वे कोई ऐसी नीति लागू करने में भी असफल रहे हैं, जो मौलिकता के साथ जनता के लिए लाभदायक लगी हो ?

                    बहरहाल भाजपा संगठन इस तैयारी में लगा रहा था कि मतदान लगभग 10 प्रतिशत  तक बढ़ जाए। परंतु हुआ इसका उल्टा, पहले चरण की छह सीटों पर 10 से 12 प्रतिशत  तक मत-प्रतिशत  कम हो गया। साफ है, वोट बढ़ाने का फार्मूला कारगर साबित नहीं हुआ है। 26 अप्रैल और 7 मई को होने वाले दूसरे और तीसरे चरण के मतदान में भी कमोबेश यही स्थिति रहने वाला है ? भाजपा ने विधानसभा चुनाव में युद्ध स्तर पर मतदान केंद्रों तक मतदाता को पहुंचाने की जिम्मेदारी लेते हुए वोट-प्रतिशत 48.55 प्रतिशत तक पहुंचा दिया था। इसी का नतीजा रहा कि 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 163 सीटों पर विजय प्राप्त कर ली थी। भाजपा के इस केंद्र प्रबंधन की तारीफ भाजपा के राष्ट्रीय  अधिवेशन  में भी हुई। अतएव इसी फार्मूले को लोकसभा चुनाव में भी अजमाने के प्रबंध किए गए। बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को कार्यशालाएं लगाकर प्रशिक्षित भी किया गया। लेकिन मत-प्रतिशत  बढ़ने की बजाय घट गया। कार्यकर्ता और मतदाता के उदासीन होने के कारणों में विधानसभा चुनाव परिणाम में स्पष्ट बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्री के चयन में उम्मीद से ज्यादा देरी और फिर मंत्रीमंडल के गठन में भी इसी देरी को दोहराना प्रमुख कारण रहे हैं। इस उदासीनता के पीछे एक बड़ा कारण शिवराज सिंह चैहान को हाशिए पर डालना भी रहा है। जबकि विधानसभा चुनाव में जीत का प्रमुख आधार उनकी लाडली लक्ष्मियां और बहनें रही हैं। शिवराज की लोक-लुभावन भाषण  कला भी इस बड़ी जीत का एक राज रही है। जबकि मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक उनका करिश्माई नेतृत्व किसी भी क्षेत्र में देखने में नहीं आया है।

                    19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव में सीधी में मतदान का प्रतिशत 56.50 रहा, जबकि 2019 में 69.50 था। इसी तरह षडबल में 2024 में 64.68, जबकि 2019 में 74.73 था। जबलपुर में 61.00 रहा, जबकि 2019 में 69.43 प्रतिशत था। मंडला में 2024 में 72.84 प्रतिशत  रहा, जबकि 2019 में 77.76 था। बालाघाठ में 2024 में 73.50 प्रतिशत  रहा, जब 2019 में 77.61 प्रतिशत  था। प्रदेश की चर्चित और भाजपा की जीत के लिए चुनौती बनी सीट छिंदवाड़ा में इस बार 2024 में 79.83 प्रतिशत  मतदान रहा, जबकि 2019 में यह 82.39 प्रतिशत  था। छिंदवाड़ा में अर्से से भाजपा वे सब हथकंडे अपनाने में लगी हैं, जो कमलनाथ और उनके लोकसभा प्रत्याषी पुत्र नकुलनाथ की हार का कारण बन जाएं ? इस रणनीति के तहत छिंदवाड़ा में दल-बदल का भी खूब खेल खेला गया। मतदान के 18 दिन पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए छिंदवाड़ा के महापौर विक्रम अहाके एकाएक अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस के पाले में लौट आए। उन्होंने इंटरनेट पर एक वीडियो जारी करके नकुलनाथ के लिए भरपूर मत एवं समर्थन भी मतदाताओं से मांगा। इस वीडियो में उन्होंने कहा है कि मैंने कुछ दिन पहले किसी राजनीतिक दल को ज्वाइन किया था। उसी दिन से मुझे घुटन महसूस हो रही थी। लग रहा था कि मैं उस इंसान (कमलनाथ) के साथ गलत कर रहा हूं, जिसने छिंदवाड़ा का भरपुर विकास किया और यहां के लोगों की दुख-दर्द में मदद की।

                    विक्रम अहाके ने 1 अप्रैल को भोपाल में मोहन यादव, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के समक्ष भाजपा की सदस्यता ली थी। पूर्व कांग्रेस नेता सैयद जाफर उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाने मुख्यमंत्री निवास ले गए थे। लेकिन उनकी अंतरात्मा में कमलनाथ के साथ अन्याय करने की हूक उठी और उन्होंने अपने राजनीतिक गुरू कमलनाथ का दामन फिर से थाम लिया। याद रहे वे कमलनाथ ही थे, जिन्होंने अहाके को केटरिंग कार्याकर्ता से आगे बढ़ाकर छिंदवाड़ा नगर निगम का महापौर बनवाया था। हालांकि अहाके का भाजपा में शामिल होने की पृष्ठ भूमि में बड़ा कारण 14 पार्षदों का भाजपा में शामिल होना रहा है। इस कारण परिषद अल्पमत में आ गई थी और अविश्वास  प्रस्ताव का डर अहाके को सताने लगा था। इस कारण महापौर पद से पदच्युत होने का डर बैठ गया और वे भाजपा में शामिल हो गए। अब कमलनाथ के पाले में आने के बाद अहाके कह रहे हैं कि ‘मैंने अपनी भूल का प्रायश्चित कर लिया है। मुझे अब पद से हट जाने का भय नहीं रह गया है। अब मैं किसी दबाव में नहीं आऊंगा और अपने नेता कमलनाथ को नहीं छोडूंगा।‘ छिंदवाड़ा में कमलनाथ के करीबी रहे विधायक दीपक सक्सेना, कमलेश  शाह भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ चुके हैं। लेकिन दोनों में से किसी ने भी कमलनाथ के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है। बल्कि दीपक ने कहा है कि यदि कमलनाथ चुनाव लड़ते हैं तो मैं उन्हीं का साथ दूंगा। साफ है, छिंदवाड़ा में अभी भी कमलनाथ का जलवा बरकरार है और उनके पुत्र की जीत लगभग तय है।

                    मध्यप्रदेश में कम मतदान की झलक यह जता रही है कि प्रदेश में कांग्रेस शून्य  नहीं हो रही है। पांच-छह सीटों पर कड़े मुकाबले के चलते वह जीत दर्ज करा सकती है। इनमें पहली सीट छिंदवाड़ा है, जहां से नकुल नाथ जीत की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वििजय सिंह जीत की ओर बढ़ रहे हैं। मुरैना में कांग्रेस उम्मीदवार नीटू सिकरवार भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। कमोबेष यही स्थिति चंबल-अंचल की सीट भिंड में दिख रही है। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार फूलसिंह बरैया और भाजपा की सांसद संध्या राय को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। रतलाम से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया, भाजपा के कमलेष्वर भील को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इसी तरह मंडला में भाजपा उम्मीदवार फग्गन सिंह कुलस्ते की हालत ठीक नहीं बताई जा रही है। यहां से कांग्रेस उम्म्ीदवार शिवराज शाह अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। कुलस्ते 2023 में विधानसभा का चुनाव भी हार गए थे। भाजपा के साथ नया संकट यह पैदा हो रहा है कि वह एक धु्रव पर केंद्रित होती दिखाई देने लगी है। नतीजतन भाजपा कार्यकर्ता और आम मतदाता में उदासीनता बढ़ रही है।

    प्रमोद भार्गव

    क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन में कर्नाटक और गुजरात सबसे आगे: रिपोर्ट 

    कर्नाटक और गुजरात ने एक बार फिर क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन की दिशा में अपना नेतृत्व प्रदर्शित किया है। इस बात का खुलासा हुआ इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) और एम्बर की एक संयुक्त रिपोर्ट में।  

    इस दिशा में यह मूल्यांकन का दूसरा साल है जिसमें अब कुल 21 राज्य शामिल हैं, जो पिछले सात वित्तीय वर्षों में भारत की लगभग 95% वार्षिक बिजली मांग का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

    रिपोर्ट में कर्नाटक और गुजरात के निरंतर मजबूत प्रदर्शन को सामने रखा गया है। दोनों ही राज्य अपने बिजली क्षेत्रों में रिन्यूबल एनेर्जी स्रोतों को एकीकृत करने में सफल रहे हैं। इसके चलते इन राज्यों में विद्युत उत्पादन क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है। साथ ही, यह रिपोर्ट झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रगति की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है, जहां एनेर्जी ट्रांज़िशन की गति तुलनात्मक रूप से धीमी रही है। 

    भारत भर में तापमान बढ़ने और विद्युत मंत्रालय द्वारा 260 गीगावॉट की चरम बिजली मांग का अनुमान लगाने के साथ, राज्यों के लिए सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन की सख्त जरूरत है। IEEFA की दक्षिण एशिया निदेशक विभूति गर्ग ने उप-राष्ट्रीय प्रगति की बारीकी से निगरानी करने के महत्व पर बल दिया, क्योंकि राज्य-स्तरीय पेचीदगियां देश के विद्युत परिवर्तन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। 

    एम्बर के एशिया कार्यक्रम निदेशक आदित्य लोला का कहना है कि कि जहां कुछ राज्यों ने क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन की दिशा में प्रगतिशील कदम उठाए हैं, वहीं कई अन्य राज्य अभी भी शुरुआती चरण में हैं। उन्होंने इन राज्यों से क्लीन एनेर्जी के लाभों को प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया। 

    रिपोर्ट उन राज्यों की भी पहचान करती है जो एनेर्जी ट्रांज़िशन को अपनाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें विशिष्ट आयामों में सुधार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली बिजली क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने के लिए तैयार दिखता है, जबकि ओडिशा के पास मजबूत बाजार सक्षमकर्ता हैं, फिर भी दोनों राज्य अपनी क्षमताओं का वास्तविक विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की प्रगति के साथ पूरी तरह से मिलान नहीं कर पाए हैं। 

    इसके अलावा, रिपोर्ट राज्य-स्तरीय विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए बिजली पारिस्थितिकी तंत्र और बाजार समर्थकों को मजबूत करने के महत्व पर बल देती है। यह प्रत्येक राज्य द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने के लिए सिली नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव देता है। 

    IEEFA में भारत के क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए ऊर्जा विशेषज्ञ सलोनी सचदेवा माइकल ने अनुपालन और विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य-स्तरीय नियामक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। 

    अंत में यह रिपोर्ट राष्ट्रीय-स्तर से राज्य-स्तर के अध्ययनों की ओर स्थानांतरण का आह्वान करती है ताकि एनेर्जी ट्रांज़िशन की बारीकियों को व्यापक रूप से समझा जा सके। राज्य स्तर पर प्रगति को ट्रैक करके और लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करके, भारत क्लीन एनेर्जी कि ओर अपनी यात्रा को प्रभावी ढंग से तेज कर सकता है। 

    एशिया पर रहा जलवायु, मौसमी आपदाओं का सबसे अधिक प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र

    संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में एशिया ने मौसम, जलवायु, और पानी से संबंधित खतरों का ऐसा खामियाजा भुगता कि यह दुनिया का सबसे अधिक आपदा प्रभावित क्षेत्र बन गया।
    विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एशिया में जलवायु स्थिति – 2023 रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ बाढ़ और तूफान के कारण सबसे अधिक संख्या में लोग हताहत हुए, आर्थिक नुकसान हुआ, और हीटवेव का प्रभाव तेज हो गया। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर भी पहुंच गया और यहां तक कि आर्कटिक महासागर में भी समुद्री गर्मी का अनुभव हुआ।
    डब्ल्यूएमओ के महासचिव सेलेस्टे सौलो ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इस क्षेत्र के कई देशों ने 2023 में अपने सबसे गर्म वर्ष का अनुभव किया, साथ ही सूखे और हीटवेव से लेकर बाढ़ और तूफान तक की चरम स्थितियों का सामना किया। जलवायु परिवर्तन ने इसकी आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा दिया है।” उन्होने आगे कहा, “इस तरह की घटनाएं समाज, अर्थव्यवस्था और सबसे महत्वपूर्ण रूप से मानव जीवन और जिस पर्यावरण में हम रहते हैं, उस पर गहरा प्रभाव डालती हैं।”
    आपातकालीन घटनाओं के डेटाबेस का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में एशिया में जल-मौसम संबंधी खतरों से जुड़ी 79 आपदाएँ आईं, जिनमें 80 प्रतिशत से अधिक घटनाएं बाढ़ और तूफान के कारण हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 2,000 से अधिक मौतें हुईं और नौ मिलियन लोग प्रभावित हुए। 2023 में एशिया में सतह के निकट वार्षिक औसत तापमान रिकॉर्ड पर दूसरा सबसे अधिक था, 1991-2020 के औसत से 0.91 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1961-1990 के औसत से 1.87 डिग्री अधिक था। जापान और कजाकिस्तान में से प्रत्येक में रिकॉर्ड गर्म वर्ष थे।
    मीडिया रिपोर्टों कि मानें तो भारत में, अप्रैल और जून में भीषण हीटवेव के कारण हीटस्ट्रोक के कारण लगभग 110 मौतें हुईं। अप्रैल और मई में एक बड़ी और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहर ने दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश हिस्से को प्रभावित किया, जो पश्चिम में बांग्लादेश और पूर्वी भारत तक और उत्तर से दक्षिणी चीन तक फैला हुआ था, जहां रिकॉर्ड तोड़ तापमान था।
    तुरान तराई के हिस्से (तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान); हिंदू कुश (अफगानिस्तान, पाकिस्तान); हिमालय; गंगा के आसपास और ब्रह्मपुत्र नदियों के निचले हिस्से (भारत और बांग्लादेश); अराकान पर्वत (म्यांमार); और मेकांग नदी के निचले हिस्से में सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई। दक्षिण-पश्चिम चीन सूखे से पीड़ित रहा, 2023 में लगभग हर महीने सामान्य से कम वर्षा हुई और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून से जुड़ी बारिश औसत से कम रही। जून, जुलाई और अगस्त में, कई बाढ़ और तूफान की घटनाओं के परिणामस्वरूप भारत, पाकिस्तान और नेपाल में 600 से अधिक मौतें हुईं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई। अगस्त और सितंबर की शुरुआत में, रूसी संघ के सुदूर पूर्वी हिस्से में हाल के दशकों में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक में विनाशकारी बाढ़ आई, जिससे लगभग 40,000 हेक्टेयर ग्रामीण भूमि प्रभावित हुई। हाई-माउंटेन एशिया क्षेत्र तिब्बती पठार पर केंद्रित उच्च-ऊंचाई वाला क्षेत्र है और इसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर बर्फ की सबसे बड़ी मात्रा होती है, जिसमें ग्लेशियर लगभग 1,00,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करते हैं। पिछले कई दशकों में, इनमें से अधिकांश ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं और इसकी गति भी तेज़ हो गई है। हाई-माउंटेन एशिया क्षेत्र में देखे गए 22 ग्लेशियरों में से 20 में लगातार बड़े पैमाने पर नुकसान देखा गया। पूर्वी हिमालय और अधिकांश टीएन शान में रिकॉर्ड तोड़ने वाले उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों ने अधिकांश ग्लेशियरों के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान को बढ़ा दिया। 2022-2023 की अवधि के दौरान, पूर्वी टीएन शान में उरुमकी ग्लेशियर नंबर 1 ने 1959 में माप शुरू होने के बाद से अपना दूसरा सबसे बड़ा नकारात्मक द्रव्यमान संतुलन दर्ज किया। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि ऊपरी महासागर (0-700 मीटर) की वार्मिंग विशेष रूप से उत्तर में मजबूत है। पश्चिमी अरब सागर, फिलीपीन सागर और जापान के पूर्व के समुद्र, वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक तेज़ हैं। समुद्री ऊष्मा तरंगें – लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी जो समुद्र को प्रभावित करती है – आर्कटिक महासागर, पूर्वी अरब सागर और उत्तरी प्रशांत के एक बड़े क्षेत्र में उत्पन्न हुई, और तीन से पांच महीने तक चली। 2023 में, पश्चिमी उत्तर प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर के ऊपर 17 नामित उष्णकटिबंधीय चक्रवात बने। यह औसत से कम था लेकिन चीन, जापान, फिलीपींस और कोरिया गणराज्य सहित देशों में अभी भी बड़े प्रभाव और रिकॉर्ड-तोड़ बारिश हुई। उत्तरी हिंद महासागर बेसिन में, अत्यंत भीषण चक्रवाती तूफान मोचा ने 14 मई को म्यांमार के रखाइन तट पर दस्तक दी, जिससे व्यापक विनाश हुआ और 156 लोगों की मौत हो गई।

    तपती गर्मी में खारा पानी की सज़ा

    आरती लूणकरणसर, बीकानेर
    राजस्थान

    “जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है गांव में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है. जो स्रोत उपलब्ध हैं उसमें इतना खारा पानी आता है कि हम लोगों से पिया भी नहीं जाता है. यदि मजबूरीवश पी लिया तो पेट में दर्द और दस्त होने लगते हैं. पिता जी और गाँव वाले मिलकर पानी का टैंकर मँगवाते हैं, जिससे हमें पीने का पानी उपलब्ध होता है. लेकिन स्कूल में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहां हमें यही खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है. इसलिए स्कूल भी जाने का दिल नहीं करता है.” यह कहना है 9वीं कक्षा की छात्रा 15 वर्षीय किशोरी पूजा राजपूत का, जो राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के कालू गांव की रहने वाली है. पूजा के साथ खड़ी उसकी हमउम्र दोस्त कविता कहती है कि घर पर टैंकर के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध हो जाता है, परंतु स्कूल में इतना अधिक खारा पानी आता है कि उसे पीने के बाद बच्चों की तबीयत खराब हो जाती है. जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है पानी की आवश्यकता भी बढ़ेगी, ऐसे में हमें स्कूल में वही खारा पानी पीना पड़ेगा.”

    वास्तव में, राजस्थान में जैसे जैसे गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे कालू गाँव और उसके जैसे अन्य गांवों में पीने के पानी की समस्या भी विकराल होती जा रही है. ब्लॉक मुख्यालय से 20 किमी और जिला मुख्यालय बीकानेर से 92 किमी दूर आबाद कालू गाँव की जनसंख्या लगभग 10334 है. अनुसूचित जाति बहुल इस गाँव के लोगों के लिए सितम यह है कि प्रचंड गर्मी के साथ साथ उन्हें पीने के साफ पानी की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है. गाँव में कुछ स्थानों पर पानी के जो स्रोत उपलब्ध हैं, इनमें फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक है कि वह पानी खारा हो चुका है जो पीने के लायक नहीं होता है. इतना ही नहीं, पूरे गाँव में समान रूप से सभी घरों में पीने का पानी भी नहीं आता है. दरअसल गाँव की बसावट कुछ इस प्रकार है कि कुछ घर ऊंचाई पर हैं और कुछ घर नीचे की तरफ ढलान पर आबाद हैं. गांव में पानी ट्यूबवेल के माध्यम से आता है. सभी घरो में पाईप लाईन लगी हुई है. ऐसे में, जिनके घर ढलान (नीचे की तरफ) पर हैं उनके घरों में तो पानी आसानी से पहुंच जाता है. लेकिन जिनके घर ऊंचाई पर स्थित हैं वहां पानी पहुंचने में समस्या आती है.

    इस संबंध में 45 वर्षीय जगदीप कहते हैं कि “जैसे जैसे राज्य में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है, वैसे वैसे पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है. पहले गाँव में बावड़ी समेत पानी के बहुत सारे प्राकृतिक स्रोत हुआ करते थे. लेकिन बेहतर रखरखाव नहीं होने के कारण धीरे धीरे या तो सभी सूख चुके हैं या उनमें इतना खारा पानी होता है कि उसे हम अपने मवेशियों को भी नहीं पिला सकते हैं. वर्तमान में गाँव में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आता है, लेकिन हमारे घर जो ऊंचाई पर स्थित हैं, वहां ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आने में समस्या आती है. ऐसे में हमें या तो कहीं स्रोत ढूंढ कर पानी लाना होता है अथवा पैसे देकर टैंकर मंगवानी पड़ती है. जो बहुत ही महंगा पड़ता है. एक बार में टैंकर मंगवाने पर 1500 रुपए तक का खर्च आता है. हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम बार बार पानी का टैंकर मंगवा सकें. जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तो टैंकर भी हमें कई बार समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसे में फिर मटके से ही पानी भरकर लाना पड़ता है, वह भी बहुत दूर दूर से.”

    खारे पानी की समस्या से परेशान गांव की एक महिला कमला देवी का कहना है कि “गर्मी के दिनों में ट्यूबवेल से बहुत कम समय के लिए पानी आता है. ऐसे में हम बहुत मुश्किल से दूसरी जगहों से पीने का पानी इकठ्ठा करते हैं. कभी कभी तो एक दिन में 5 से 6 बार पानी लेने जाना पड़ता है. पानी के लिए हम महिलाओं को तपते रेगिस्तान में मीलों चलना पड़ता है. यही कारण है कि हम कपड़े भी दो या तीन दिनों में एक बार धोते हैं.” जब मनुष्यों के लिए मुश्किल से पानी इकठ्ठा होता है तो पशुओं विशेषकर मवेशियों के लिए कितनी बड़ी समस्या होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. कमला देवी कहती हैं कि “हमें अपने साथ साथ अपने मवेशियों के लिए भी पानी की चिंता करनी होती है. लेकिन जब हमें इतनी मुश्किल से पानी उपलब्ध होता है तो हम अपने मवेशियों के लिए कहां से प्रबंध कर सकते हैं? ऐसे में उन्हें वर्षा का इकठ्ठा किया हुआ पानी पिलाते हैं जो अक्सर दूषित होता है. इसे पीकर कई बार हमारे पशु बीमार भी पड़ जाते हैं. फ्लोराइड युक्त खारा पानी पीने से हमारी हड्डियां भी कमजोर होने लगी हैं. जिसकी वजह से चलने में बहुत थकान लगती है और कमजोरी भी महसूस होती है.”

    वही गांव की एक अन्य महिला शारदा का कहना है कि “हमें पीने के पानी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. गर्मी बढ़ने के साथ ही ट्यूबवेल से आने वाले पानी की समस्या भी बढ़ जाती है. हमारे घरों में सप्ताह में सात दिनों में केवल तीन दिन ही पानी आता है. वह भी कभी कभी इतना खारा होता है कि उससे पानी भर के केवल कपड़े ही धोने में इस्तेमाल किया जा सकता है. पीने का पानी हमें दूर दूर से लाना पड़ता है. पशुओं को पानी पिलाने के लिए घरों से दूर लेकर जाना पड़ता है.” वह बताती हैं कि “यहां के पानी में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है जिसके कारण हमें जोड़ों के दर्द की समस्या होने लगी है, थकावट जल्दी लगने लगती है. कम उम्र में ही युवा पीढ़ी भी बुजुर्ग जैसे दिखने लगी है. वह अक्सर बीमार रहते हैं. हमारे पशुओं को भी खारे पानी से बहुत दिक्कत होती है. इसकी वजह से असमय ही कई मवेशियों की मौत हो जाती है. जबकि वही हमारी आय का एक प्रमुख साधन होते हैं. गाँव के युवा अपनी पढ़ाई छोड़कर ऊंटों के साथ दिन भर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं.”

    इस संबंध में गांव की सरपंच सुगनी देवी का कहना है कि “गांव में खारे पानी की समस्या को दूर करने के लिए 3 ट्यूबवेल लगवाए हैं, जिसमें पीने योग्य पानी आता है. हालांकि इतनी बड़ी आबादी के लिए यह तीनों ट्यूबवेल कम हैं. इसलिए पंचायत ने सर्वसम्मति से ब्लॉक अधिकारी के पास अभी एक और बोरवेल लगाने का प्रस्ताव भेजा है. इसे जल्द पूरा करवाने के लिए तहसील कार्यालय में बात चल रही है. यदि चौथा ट्यूबवेल भी लग जाता है तो गाँव में पानी की समस्या लगभग दूर हो जाएगी और इस गर्मी में भी गांव वालों को पानी के लिए दर-दर भटकने की जरूरत नहीं होगी.” सरपंच इस बात को स्वीकार करती हैं कि गाँव में कुछ स्थानों पर खारा पानी आता है. वह कहती हैं कि “हमने पानी की जांच करवाई है. कुछ जगहों पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है, लेकिन इतना भी नहीं है कि वह शरीर के लिए नुकसानदायक हो.”

    बहरहाल, जैसे जैसे तापमान चढ़ेगा कालू गाँव के लोगों के लिए पानी की समस्या भी बढ़ती जाएगी. ऐसे में राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि इंसान और पशुओं सभी के लिए समान रूप से पानी उपलब्ध हो जाए. विशेषकर स्कूलों में इसका विशेष प्रबंध किया जाए. प्रशासन को इस बात को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कम से कम जहां पानी उपलब्ध है वह पीने योग्य हो ताकि कालू गाँव की महिलाओं और किशोरियों को तपते रेगिस्तान में पानी के लिए मीलों चलना न पड़े. (

    शिवराज की जीत का कीर्तिमान बनाएंगी लाडली बहनें 

    प्रमोद भार्गव

                    मध्य प्रदेश लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  को लाडली बहनाओं का साथ मिल गया तो, वे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले प्रत्याशी हो सकते हैं ? वैसे भी मतदान में इस आधी आबादी की लगभग बराबर की हिस्सेदारी है। प्रदेश में 2,73,87,122 महिला मतदाता हैं, जो कुल मतदाताओं की 47.75 फीसदी हैं। इनमें से एक करोड़ 29 लाख से अधिक लाडली बहनाओं को 1250 रुपए प्रतिमाह मिल रहे हैं। उज्जवला योजना की 80 लाख और पात्र लाडली बहनों को 450 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर मिल रहा है। महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान मुख्यमंत्री शिवराज के कार्यकाल में ही हुआ है। महिला स्व-सहायता समूह की 62 लाख सदस्यों में से 15 लाख लखपति दीदी हैं। विषेश पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया जनजाति की 2 लाख 33 हजार महिलाओं को पोषाहार भत्ता का प्रावधान शिवराज के समय ही हुआ था। इसीलिए हम देख रहे हैं कि विदिशा संसदीय क्षेत्र से शिवराज के प्रत्याषी घोत होने के बाद शिवराज भैया को चुनाव लड़ने के लिए धन दे रही हैं। विदिशा को शिवराज का गढ़ माना जाता है। 19 साल बाद शिवराज इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जनता ने उनसे भाई और मामा का रिश्ता बना हुआ है। भांजे-भांजी उनके लिए गुल्लक में पैसे इकट्ठे करके दे रहे हैं। एक मोची ने शिवराज  को 10 रुपए का चंदा दिया। यहां धनराशि को छोटी या बड़ी राशि के रूप में देखने की बजाय उसे शिवराज की लोकप्रियता के रूप में देखने की जरूरत है।  

    2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2023 में 1.52 प्रतिशत मतदान अधिक हुआ था। इसे लाडली बहनों का करिश्मा  बताया गया है। शहर से कहीं ज्यादा ग्रामीण मतदाता की मतदान के प्रति जागरूकता दिखी है। इसीलिए ग्रामों में महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखने में आईं थीं। साफ है, जिस उत्साह से मतदाता घर से बाहर निकला उससे उसका लोकतंत्र के प्रति दायित्व बोध झलका ही, वराज के प्रति विश्वास भी नजर आया था। यही करिश्मा  विदिशा लोकसभा सीट पर दिखाई देगा। इस बहुचर्चित विदिशा संसदीय क्षेत्र में 7 मई को मतदान होना है। यह सीट वैसे भी जनसंघ और भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर सुषमा स्वराज भी लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं। स्वयं वराज इस सीट से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। यहां से कांग्रेस ने प्रताप भानु शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। शर्मा सातवीं और आठवीं लोकसभा में विदिशा से सांसद रह चुके हैं। वे कोई ज्यादा दमखम दिखा पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा है। इसलिए शिवराज का पलड़ा ही भारी दिख रहा है।

    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की उदार कार्यशैली का परिणाम ही रहा था कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को 166 सीटों पर बड़ी जीत मिली थी। शिवराज सिंह चैहान के नवाचार निरंतर देखने में आते रहे हैं। बालिकाओं की संख्या कम होना किसी भी विकासशील समाज के लिए बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती से तभी निपटा जा सकता है, जब स्त्री की आर्थिक हैसियत तय हो और समाज में समानता की स्थितियां निर्मित हों ? इस नजरिए से मध्यप्रदेश में ‘लाडली लक्ष्मी योजना‘ एक कारगर औजार साबित हुई और इसीलिए इसे देख के नवाचारी मॉडल के रूप में मान्यता मिली। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब ने ही नहीं पूरे देश ने इस योजना का अनुसरण किया और बेटी बचाने के लिए जुट गए। क्योंकि बेटी बचेगी, तभी बेटे बचेंगे और सृष्टि की निरंतरता बनी रहेगी। जैविक तंत्र से जुड़े इस सिद्धांत को हमारे ऋषि -मुनियों ने भलि-भांति आज से हजारों साल पहले समझ लिया था, इसीलिए भगवान शिव-पार्वती के रूप में अर्धनारीश्वर के प्रतीक स्वरूप मंदिरों में मूर्तियां गढ़ी गईं, जिससे पुरुश संदेश  लेता रहे कि नारी से ही पुरुष  का अस्तित्व अक्षुण है। किंतु हमने शिव-पार्वती की पूजा तो की, परंतु उनके एकरूप में अंतर्निहित अर्धनारीश्वर के प्रतीक को आत्मसात नहीं किया।

    मुख्यमंत्री चैहान की करीब 18 साल के नेतृत्व की सार्वजनिक यात्रा का अवलोकन करें तो यह साफ देखने में आता है कि उनकी कार्य संस्कृति अन्य मुख्यमंत्रियों से भिन्न रही है। वे प्रकृति, कृषि व किसान प्रेमी हैं और युवाओं को कौशल दक्ष बनाने की प्रखर इच्छा रखते हैं। इसीलिए प्रदेश  में अनेक प्रकार की छात्रवृत्तियां हैं, जिससे छात्र को आर्थिक बाधा का सामना न करना पड़े। गांव से यदि पाठशाला कुछ दूरी पर है तो बालिका को आने-जाने में व्यवधान न हो, इस हेतु साइकिल है। होनहार छात्रों को पढ़ाई में बाधा नहीं आए, इस नाते विद्यार्थियों को मोबाइल और लैपटाॅप दिए। ये योजनाएं मुख्यमंत्री के अंतर्मन में आलोड़ित संवेदनशीलता को रेखांकित करती हैं। शिवराज कविता तो नहीं लिखते, लेकिन दूरांचल वनवासी-बहुल जिले झाबुआ में परंपरागत ‘आदिवासी गुड़िया हस्तशिल्प‘ कला को संरक्षित करने और इसे आजीविका से जोड़ने का उपाय जरूर करते हैं। फलस्वरूप अब स्थानीय लोगों के नाजुक हाथों द्वारा निर्मित यह कपड़े की गुड़िया मध्य-प्रदेश  सरकार के ‘एक जिला, एक उत्पाद‘ योजना के अंतर्गत व्यापारिक उड़ान भरकर जर्मनी और आस्ट्रेलिया के बच्चों का खिलौना बन गई है। सामाजिक सरोकार से इस संरचना की महिमा वही नवाचारी समझ सकता है, जो कल्पनाशील होने के साथ अपने दायित्वों के प्रति उदार और जनता के प्रति संवेदनशील हो। शिवराज के ये नवाचारी काम ऐसे हैं, जो उनकी जीत की आश्वस्ति प्रदान करते हैं। तय है, विदिशा संसदीय क्षेत्र में महिलाओं का धु्रवीकृत शिवराज के पक्ष में मतदान उनकी मप्र में सबसे बड़ी जीत का आधार बन सकता है।

    प्रमोद भार्गव

    उन्नत जीवन का आधार है हनुमान भक्ति

    हनुमान जयन्ती- 23 अप्रैल 2024 पर विशेष
    – ललित गर्ग –

    भगवान हनुमानजी को हिन्दू देवताआंे में सबसे शक्तिशाली माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवंे रूद्र अवतार थे जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। उनको बजरंग बलि, मारुतिनंदन, पवनपुत्र, केशरीनंदन आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनका एक नाम वायुपुत्र भी है, उन्हें वातात्मज भी कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला। इन्हें सात चिरंजीवियो में से एक माना जाता है। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। वीरो में वीर, बुद्धिजीवियांे में सबसे विद्वान। इन्होंने अपने पराक्रम और विद्या से अनेकों कार्य चुटकीभर समय में पूर्ण कर दिए है। वे शौर्य, साहस और नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। समर्पण एवं भक्ति उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गुण है। रामभक्त हनुमान बल, बुद्धि और विद्या के सागर तो थे ही, अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के दाता और ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। वे उन्नत जीवन के आधार है। उनसे सफल एवं सार्थक जीवन के प्रबंधन की शिक्षा मिलती है। वे हर युग में अपने भक्तों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं और उनके दुःखों कोे हरतेे हैं। वे मंगलकर्त्ता एवं विघ्नहर्त्ता हैं।
    मंगलवार को हनुमानजी का जन्म हुआ, ऐसा माना जाता है। भिन्न-भिन्न लोगों ने इस महान् आत्मा का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से किया है। हनुमान का चरित्र एक लोकनायक का चरित्र है और उनके इसी चरित्र ने उन्हें सार्वभौमिक लोकप्रियता प्रदान की है। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में मात्र हनुमान ही ऐसे हैं जिनकी आधुनिक युग में सर्वाधिक पूजा की जाती है और जन-जन के वे आस्था के केन्द्र हैं। उनके चरित्र ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया हैै। हनुमान का चरित्र बहुआयामी हैं क्योंकि उन्होंने संसार और संन्यास दोनों को जीया। वे एक महान् योगी एवं तपस्वी हैं और इससे भी आगे वे रामभक्त हैंे। हनुमान-भक्ति भोगवादी मनोवृत्ति के विरुद्ध एक प्रेरणा है संयम की, पवित्रता की। यह भक्ति एक बदलाव की प्रक्रिया है। यह भक्ति प्रदर्शन नहीं, आत्मा के अभ्युदय का उपक्रम है। इससे अहं नहीं, निर्दोष शिशुभाव जागता है। क्रोध नहीं, क्षमा शोभती है। कष्टों में मन का विचलन नहीं, सहने का धैर्य रहता है।
    उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हनुमान पूर्ण मानव थे। कहते हैं कि ब्रह्मा ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि उन्हें यह अनुभूत हुआ कि उनके द्वारा सृष्ट मानव ईश्वर का साक्षात्कार करने में समर्थ है। मानव न केवल संपूर्ण प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, प्रत्युत वह अपनी साधना के द्वारा ब्रह्मपद को भी प्राप्त कर सकता है। त्रेतायुग के सर्वाधिक शक्तिशाली मानव हनुमान जिन्हें भ्रमवश अनेक देशी-विदेशी विद्वान पेड़ों पर उछल-कूद करनेवाला साधारण वानर मानते रहे हैं, अपने अलौकिक गुणों और आश्चर्यजनक कार्यों के बल पर कोटि-कोटि लोगों के आराध्य बन गये।
    भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में किसी ऐसे मानव का उल्लेख नहीं मिलता, जिसमें शारीरिक बल और मानसिक शक्ति का एक साथ इतना अधिक विकास हुआ हो जितना हनुमान में हुआ था। प्राचीन भारत में ब्रह्मतेज से युक्त अनेक महामानव हुए। इसी प्रकार इस पावनभूमि में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी हुए जो शारीरिक बल में बहुत बलशाली थे, परन्तु ब्रह्मतेज के साथ-साथ शास्त्र-बल का जो आश्चर्यजनक योग हनुमान में प्रकट हुआ, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। शुद्ध आचार, विचार और व्यवहार से जुड़ी हनुमान की ऐसी अनेक चारित्रिक व्याख्याएं हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है।
    हनुमान को बुद्धिमानों में अग्रगण्य माना जाता है। ऋग्वेद में उनके लिए ‘विश्ववेदसम्’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्रेत अर्थ है- विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ। हनुमान अपने युग के विद्वानों में अग्रगण्य थे। उनकी गणना सामान्य विद्वानों में नहीं, बल्कि विशिष्ट विद्वानों में की जाती थी। वाल्मीकि रामायण में हनुमान को महाबलशाली घोषित करते हुए ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ कहना पूर्ण युक्ति संगत है। ‘रामचरितमानस’ में भी उनके लिए ‘अतुलित बलधामं’ तथा ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रह्मचारी हनुमानजी महान् संगीतज्ञ और गायक भी थे। इनके मधुर गायन को सुनकर पशु-पक्षी एवं सृष्टि का कण-कण मुग्ध हो जाता था।
    हनुमान की विद्वता के साथ-साथ तर्क-शक्ति अत्यंत उच्च कोटि की थी। ऐसे अनेक प्रसंग है जब हनुमान ने अपनी तर्क-शक्ति से अनेक जटिल स्थितियों को सहज बना दिया। उनकी अलौकिक साधना एवं नैसर्गिक दिव्यता का ही परिणाम था कि वे  भय और आशंका से भरे वातावरण में भी निःशंक और निर्भीक बने रहते थे। संकट की घड़ी में भी शांतचित्त होकर अपने आसन्न कर्तव्य का निश्चय करना उत्तम प्रज्ञा का प्रमाण है। हनुमान इस सर्वोत्कृष्ट प्रज्ञा से युक्त थे।
    प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत और व्याकरण पर हनुमान का असाधारण अधिकार था। हनुमान ने सूत्र, वृत्ति, वार्तिक, महाभाष्य तथा संग्रह का भली-भांति अध्ययन किया था। अन्यान्य ग्रंथों तथा छंद-शास्त्र के ज्ञान में भी उनकी समानता करनेवाला कोई नहीं था। संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान में उनकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति से की गयी है। महर्षि अगस्त्य के अनुसार हनुमान नवों व्याकरणों के अधिकारी विद्वान थे। नोबेल पुरस्कार विजेता आक्टाभियो पाज का भी यह सुनिश्चित मत है कि हनुमान ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।
    मारुति नंदन, परमवीर, श्रीराम भक्त हनुमानजी की पवित्र मन से की गयी साधना और भक्ति चमत्कारपूर्ण परिणाम देने वाली है। हनुमानजी शिव के अवतार माने जाते हैं और ग्यारहवें रुद्र के रूप में इनकी मान्यता है। कहते हैै-मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सार्वकालिक सेवा करने एवं रावण-वध में उनका सहयोग करने के लिए भगवान राम का अवतार लेने से पूर्व ही त्रेतायुग में शिवजी ने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतार लिया था। वह ‘हनुमानजी’ के पवित्र लोकोपकारी नाम से विख्यात हुए। महादेव का हनुमान के रूप में अवतरण लेने के सन्दर्भ में कहा जाता है कि भगवान विष्णु महादेव के इष्ट देव हैं। वे उनके श्रीचरणों के शाश्वत पुजारी हैं। त्रेतायुग में रावणादि राक्षसों का सकुल संहार करके उनका उद्धार करने के लिए ही भगवान विष्णु अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां अपनी सोलह कलाओं सहित पुत्र रूप में अवतरित हुए। अतः उनकी सेवा करने के लिए महादेव ने हनुमान के रूप में अवतार लिया।
    तंत्र शास्त्र के आदि देवता और प्रवर्तक भगवान शिव हैं। इस प्रकार से हनुमानजी स्वयं भी तंत्र शास्त्र के महान पंडित हैं। समस्त देवताओं में वे शाश्वत देव हैं। परम विद्वान एवं अजर-अमर देवता हैं। वे अपने भक्तों का सदैव ध्यान रखते हैं। उनकी तंत्र-साधना, वीर-साधना है। वे रुद्रावतार और बल-वीरता एवं अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। अतः उनकी उपासना के लिए साधक को सदाचारी होना अनिवार्य है। उसे मिताहारी, जितेन्द्रिय होना चाहिए। हनुमान साधना करने के लिए हर व्यक्ति उसका पालन नहीं कर सकता, इसलिए इस चेतावनी का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हनुमानजी को सिद्ध करने का प्रयास भौतिक सुखों की प्राप्ति या चमत्कार प्रदर्शन के लिए कभी नहीं करना चाहिए। उनकी भक्ति के माध्यम से भगवान राम के दर्शन तथा उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह भक्ति हृदय की पवित्रता से ही संभव है और इसी से व्यक्ति घर और मन्दिर दोनों में एक-सा होता है। कहा जाता है की श्री हनुमानजी का जन्म ही राम भक्ति और उनके कार्यो को पूर्ण करने के लिए हुआ है। उनकी सांस-सांस में, उनके कण-कण में और खून के कतरे-कतरे में राम बसे हैं। एक प्रसंग में विभीषण के ताना मारने पर हनुमानजी ने सीना चिरकर भरी सभा में राम और जानकी के दर्शन अपने सीने में करा दिए थे।
    हनुमान की भक्ति या उनको पाने के लिये इंसान को इंसान बनना जरूरी है। जब तक भक्ति की धारा बाहर की ओर प्रवाहित रहेगी तब तक भगवान अलग रहेंगे और भक्त अलग रहेगा। हनुमान भक्ति के लिये जरूरी है उनके जीवन से दिशाबोध ग्रहण करो और अपने में डूबकर उसे प्राप्त करो। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’- यही है सच्ची हनुमान भक्ति की भूमिका। भक्ति का असली रूप पहचानना जरूरी है, तभी मंजिल पर पहुंचेंगे, अन्यथा संसार की मरुभूमि में ही भटकते रह जायेंगे।