एक और विभाजन की तैयारी

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राजीव गुप्ता

यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से

बाकी अभी तलक है नमो-निसा हमारा !

कुछ बात है ऐसी कि मिटती नहीं हस्ती हमारी

सदियों रहा है दुश्मन दौरें जहां हमारा !!

भारत में इन पंक्तियों को भला किसने नहीं सुना होगा ? इतिहास साक्षी है कि भारत ने बहुतेरे आताताइयों के आक्रमणों का न केवल झेला है अपितु समय समय पर उसका मुहतोड़ जबाब भी दिया है ! लेकिन ये आताताई कभी भी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए ! उन्होंने हमें मजहब, ऊँच-नीच, भेदभाव , रीतिरिवाज , आदि के नाम पर आपस में खूब लड़ाने की कोशिश की परन्तु बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाए ! क्योंकि अगर हमारे समाज ने उनका प्रतिकार किया तो उसका मूल कारण यह था कि हमारे यहाँ मतभेद तो था परन्तु कभी मनभेद नहीं रहा ! यही भारतीय संस्कृति की परिणीति रही है ! समय – समय पर शासकों की भौगोलिक सीमायें जरूर बदलती गयी परन्तु व्यक्ति कभी अपनी मूल भावना से नहीं भटका ! देश में एकता रहे इसलिए आद्य गुरु शंकराचार्य जी ने अपनी दूरदर्शिता से देश में चार धामों की स्थापना की ! और तो और महात्मा गांधी ने भी देश की एकता बनाये रखने के लिए भारत-पाकिस्तान के बटवारे के समय यहाँ तक कह दिया था कि दो मुल्कों का बटवारा मेरी लाश पर होगा ! तात्पर्य यह है कि भारत के मनीषियों ने , सामाजिक चिंतकों ने हर संभव कोशिश की कि देश की एकता बनी रहे ! परन्तु वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार यूं .पी. ए. – 2 ने भारत को खंडित करने की लगभग पूरी तैयारी कर ली है ! इस मानसून सत्र में एक ऐसा विधेयक लाने जा रही है जो सामाजिक वैमनस्य के साथ समाज में विभेद तो पैदा करेगी ही साथ ही दिलो को भी बाट देगी जिससे कि समुदायों के बीच दूरियां बढ़ना लगभग तय हैं ! इस विधेयक का नाम है “सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011” ! पास होने के बाद यह अपने आप में एक ऐसा अभूतपूर्व कानून होगा जो देश के संविधान को भी ताक पर रख देगा , देश की एकता खतरे में पड़ जायेगी , और तो और यह भारत के संघीय ढांचे को ही नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन , असंतोष व रोष पैदा कर देगा। शुरू में तो विधेयक का प्रारूप देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के प्रयास के तौर पर नजर आता है, किंतु इसका असली उद्देश्य इसके उलट है। राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष के लेख के अनुसार बिल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है ‘समूह’ की परिभाषा। समूह से तात्पर्य पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जाति व जनजाति को भी शामिल किया जा सकता है। मसौदे के तहत दूसरे अध्याय में नए अपराधों का एक पूरा व्यौरा दिया गया है। सांप्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध कानून एवं व्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या होते हैं जो कि राज्यों के कार्यक्षेत्र में आता है। केंद्र को कानून एवं व्यवस्था के सवाल पर राज्य सरकार के कामकाज में दखलंदाजी का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार का न्यायाधिकरण इसे सलाह, निर्देश देने और धारा 356 के तहत यह राय प्रकट करने तक सीमित करता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम रही है या नहीं। यदि प्रस्तावित बिल कानून बन जाता है तो केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़प लेगी ! इस विधेयक के द्वारा न केवल बहुसंख्यकों अर्थात हिंदुओं को आक्रामक और अपराधी वर्ग में ला खड़ा करने, बल्कि हिंदू-मुस्लिमों के बीच शत्रुता पैदा कर हर गली-कस्बे में दंगे करवाने की साजिश है। अगर यह बाबर जैसा आतातातायी और औरंगजेबी फरमान जैसा कानून की शक्ल लेता है तो किसी भी बहुसंख्यक (हिंदू) पर कोई भी अल्पसंख्यक ( मुस्लिम, ईसाई या अन्य ) नफरत फैलाने, हमला करने, साजिश करने अथवा नफरत फैलाने के लिए आर्थिक मदद देने या शत्रुता का भाव फैलाने के नाम पर मुकदमा दर्ज करवा सकेगा और उस बेचारे बहुसंख्यक (हिंदू) को इस कानून के तहत कभी शिकायतकर्ता अल्पसंख्यक ( मुस्लिम, ईसाई या अन्य ) की पहचान तक का हक नहीं होगा। इसमें शिकायतकर्ता के नाम और पते की जानकारी उस व्यक्ति को नहीं दी जाएगी जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है। इसके साथ ही शिकायतकर्ता अल्पसंख्यक ( मुस्लिम, ईसाई या अन्य ) अपने घर बैठे शिकायत दर्ज करवा सकेगा। इसी प्रकार यौन शोषण व यौन अपराध के मामले भी केवल और केवल अल्पसंख्यक ( मुस्लिम, ईसाई या अन्य ) बहुसंख्यक (हिंदू) के विरुद्ध दर्ज करवा सकेगा और ये सभी मामले अनुसूचित जाति और जनजाति पर किए जाने वाले अपराधों के साथ समानांतर चलाए जाएंगे। इसका मतलब है कि संबंधित बहुसंख्यक (हिंदू) व्यक्ति को कभी यह नहीं बताया जाएगा कि उसके खिलाफ शिकायत किसने दर्ज कराई है? इसके अलावा उसे एक ही तथाकथित अपराध के लिए दो बार दो अलग-अलग कानूनों के तहत दंडित किया जाएगा। यही नहीं, यह विधेयक पुलिस और सैनिक अफसरों के विरुद्ध उसी तरह बर्ताव करता है जिस तरह से कश्मीरी आतंकवादी और आइएसआइ उनके खिलाफ रुख अपनाते हैं। विधेयक में ‘समूह’ यानी अल्पसंख्यक ( मुस्लिम, ईसाई या अन्य ) के विरुद्ध किसी भी हमले या दंगे के समय यदि पुलिस, अ‌र्द्धसैनिक बल अथवा सेना तुरंत और प्रभावी ढंग से स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त नहीं करती तो उस बल के नियंत्रणकर्ता अथवा प्रमुख के विरुद्ध आपराधिक धाराओं में मुकदमे चलाए जाएंगे। कुल मिलाकर हर स्थिति में पुलिस या अ‌र्द्धसैनिक बल के अफसरों को कठघरे में खड़ा होना होगा, क्योंकि स्थिति पर नियंत्रण जैसी परिस्थिति किसी भी ढंग से परिभाषित की जा सकती है। इस विधेयक की धाराएं किसी भी सभ्य, समान अधिकार संपन्न एवं भेदभावरहित गणतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ! इस विधेयक को बनाने वालों ने सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए जिस सात सदस्यीय समिति के गठन की सिफारिश की है, उसमें चार सदस्य मजहबी अल्पसंख्यक होंगे। विधेयक मानकर चलता है कि यदि समिति में अल्पसंख्यकों का बहुमत नहीं होगा तो समिति न्याय नहीं कर सकेगी। दंगो के दौरान होने वाले जान और माल के नुकसान पर मुआवजे के हक़दार सिर्फ अल्पसंख्यक ही होंगे। किसी बहुसंख्यक का भले ही दंगों में पूरा परिवार और संपत्ति नष्ट हो जाए उसे किसी तरह का मुआवजा नहीं मिलेगा। वह भीख मांग कर जीवन काट सकता है। हो सकता है सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का दोषी सिद्ध कर उसके लिए जेल की कोठरी में व्यवस्था कर दी जाए।

एक संगठन ने इस मसले पर एक लेख निकाला है ! उस लेख के अनुसार इस कानून के कुछ बिदुओं को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है यह दुर्भावना, पक्षपात एवं दुराग्रह से ग्रसित है ! समाज के बहुसंख्यक वर्ग को इसके माध्यम से न केवल प्रताड़ना और अत्याचार का शिकार बनाया जा सकता है अपितु दोयम दर्जे के डरे हुए वातावरण में रहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा ! अतः समाज के लोगों को यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि वर्तमान सरकार अपने इस मसौदे से उन्हें क्या देना चाहती है ?

अधिनियम का प्रभाव क्षेत्र – इस अधिनियम की धारा 1 की उपधारा 2 के अनुसार इसका प्रभाव क्षेत्र सम्पूर्ण भारतवर्ष होगा ! जम्मू-कश्मीर में राज्य की सहमति से इसे विस्तारित किया जायेगा ! यह अधिनियम पारित किये जाने की तारिख से एक वर्ष के भीतर लागू होगा तथा एसे अपराध जो भारत के बाहर किये गए है उन पर भी इस अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत उसी प्रकार कार्यवाही होगी जैसे वह भारत के भीतर किया गया हो ! एक वर्ष के भीतर लागू किये जाने की बाध्यता को रखकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार समिति की वर्तमान अध्यक्षा के रहते ही यह कानूनी अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाय !

समूह – अधिनियम की धारा 3 ( f ) के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के अनुसार भारत संघ के किसी राज्य में कोई धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक या भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 खंड 24 -25 के अंतर्गत अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जान जातियां समूह के अंतर्गत आती है और इन्ही समूह पर किये गए अपराध के लिए यह कानून प्रभावी होता है ! एक ज्वलंत उदाहरण से इसको समझने का प्रयास करते है कि वर्तमान एक राज्य गुजरात जिसकी विकास दर भारत के सभी राज्यों से सबसे अधिक है वहा कभी दो समुदायों के बीच एक दंगा होता है , जो कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा शुरू किया गया था इसके साक्षी हममे से बहुत लोग होंगे ! अब प्रश्न यह उठता है कि समूह के अंतर्गत समाविष्ट किये गए धार्मिक अल्पसंख्यक क्या सांप्रदायिक या लक्षित हिंसा में सम्मिलित नहीं होते ? इस कानून की तो यही मान्यता है ! इस कानून के अनुसार इस सुनियोजित कुकृत्य में संलिप्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जो समूह के अंतर्गत आते है अपराधी नहीं है , परन्तु इस घटना की स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया में सम्मिलित बहुसंख्यक ( हिन्दू ) लोग अपराधी है ! दूसरा प्रश्न यह उठता है कि यदि दो समूहों के बीच ही अगर सांप्रदायिक हिंसा हो जाय तो यह कानून किस प्रकार प्रभावी होगा ?

सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा – इस अधिनियम की धारा 3 ( c ) के अनुसार जानबूझ कर किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी समूह की सदस्यता के आधार पर ऐसा कोई कार्य या कार्यों की श्रंखला जो चाहे सहज हो या योजनाबद्ध जिसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति या सम्पति को क्षति या हानि पहुंचती हो !

किसी समूह के विरुद्ध शत्रुता का वातावरण – अधिनियम की धारा 3 (G ) के अनुसार अधिनियम में परिभाषित समूह के किसी व्यक्ति का समूह की सदयस्ता के आधार पर व्यापर या कारोबार का बहिष्कार या जीविका अर्जन करने में उसके लिए अन्यथा कठिनाई पैदा करना , तिरस्कार पूर्ण कार्य करना चाहे वह इसद अधिनियम के अधीन अपराध हो या ना हो परन्तु जिसका प्रयोजन एवं प्रभाव भयपूर्ण शत्रुता या आपराधिक वातावरण उत्पन्न करना हो ! यह ऐसे विषय है जिनको निश्चित कर सकना अत्यंत कठिन है ! कोई व्यक्ति किस बात से अपने आपको शर्मिंदा अनुभव करेगा या उसे कौन सा कार्य भयपूर्ण लग सकता है यह निर्धारित कर पाना अत्यंत कठिन है ! समूह के अतिरिक्त यदि किसी बहुसंख्यक को धर्म के नाम पर अपमानित किया जाता है या उसे व्यापार में अवरोध उत्पन्न किया जाता है तो समूह का व्यक्ति अपराधी नहीं मना जायेगा !

पीड़ित – इस अधिनियम के अनुसार पीड़ित वही व्यक्ति है जो किसी समूह का सदस्य है ! समूह के बाहर किसी बहुसंख्यक की महिला से अगर दुराचार किया जाता है या अपमानित किया जाता है या जान-माल की हानि या क्षति पहुचाई जाती है तो भी बहुसंख्यक पुरुष या महिला पीड़ित नहीं माने जायेगे ! परन्तु धारा 3 ( J ) के अनुसार अपराध के फलस्वरूप किसी समूह का कोई व्यक्ति शारीरिक, मानसिक मनोवैज्ञानिक या आर्थिक हानि उठाता है तो न केवल वह अपितु उसके रिश्ते-नातेदार , विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी पीड़ित माने जायेगे ! मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक हानि कि मापने पा पैमाना क्या होगा यह स्पष्ट नहीं किया गया !

घृणा या दुष्प्रचार – अधिनियम की धारा 8 के अनुसार शब्दों द्वारा या बोले गए या लिखे गए या चित्रण किये गए किसी दृश्य को प्रकाशित, संप्रेषित या प्रचारित करना, जिससे किसी समूह या समूह के व्यक्तियों के विरुद्ध समानताय या विशिष्टतया हिंसा का खतरा होता है या कोई व्यक्ति इसी सूचना का प्रसारण या प्रचार करता है या कोई ऐसा विज्ञापन व सूचना प्रकाशित करता है जिसका अर्थ यह लगाया जा सकता हो कि इसमें घृणा को बढ़ावा देने या फ़ैलाने का आशय निहित है ! उस समूह के व्यक्तियों के प्रति इसी घृणा उत्पन्न होने की सम्भावना के आधार पर वह व्यक्ति दुष्प्रचार का दोषी है ! ऐसी प्रस्थिति में यदि कोई समाचार – पत्र आतंकवादियों के उन्माद भरे बयानों प्रकाशित करता है तो उसका प्रकाशक अपराधी मना जायेगा ! अर्थात फासी की सजा काट रहे आतंकवादियों का नाम प्रकाशित करने पर भी पाबंदी होगी ! आतंकवाद के खिलाफ परिचर्चा, राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन करना भी अपराध माना जायेगा जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार को भी बाधित करेगा !

संगम, सभा, या परिषद् – अधिनियम की धारा 3 (B) के अनुसार व्यक्तियों का ऐसा संगठन या समुच्चय जो पंजीकृत या निगमित हो या न हो !

अपराध के लिए संगम, सभा, या परिषद् के वरिष्ठ अधिकारीयों का उत्तरदायित्व – धारा 15 (1) के अनुसार किसी संगम का कोई कार्यकर्त्ता या वरिष्ठतम अधिकारी या पद धारी अपनी कमान के नियंत्रण पर्यवेक्षक के अधीन अधीनस्थों के ऊपर नियंत्रण रखने में असफल रहता है तो इस अधिनियम के अधीन यदि कोई अपराध किया जाता है तो वह अपने अधीनस्थों द्वारा किये गए अपराध का दोषी होगा ! अर्थात किसी संगठन का सामान्य से सामान्य कार्यकर्त्ता भी इस अधिनियम के आधार पर यदि अपराधी सिद्ध होता है तो शीर्ष नेतृत्व भी अपराधी माना जायेगा !

सांप्रदायिक सामंजस्य , न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए राष्ट्रीय प्राधिकरण – केंद्र सरकार इस अधिनियम के अधीन इसमें दी गयी शक्तियों का प्रयोग एवं कृत्यों का पालन करने हेतु ‘सांप्रदायिक सामंजस्य, न्याय और हानिपूर्ति राष्ट्रीय प्राधिकरण’ का गठन करेगी, जिसमे एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पांच अन्य सदस्य होंगे ! यह प्राधिकरण स्वयं अपने आप में एक सांप्रदायिक निकाय होगा क्योंकि अधिनियम की धारा 21 ( 3 ) के अनुसार प्राधिकरण में अधिनियम में परिभाषित समूह के चार सदस्य अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सहित अनिवार्य रूप से होंगे ! अतः समूह के सदस्य सदैव बहुमत में रहेंगे !

मुझे इतिहास में पढाया गया था कि भारत का विभाजन 1947 में धर्म के आधार पर हुआ था जिसकी बुनियाद कई वर्ष पहले ही बाहर से आये हमारे ऊपर हुकूमत करने वालों अंग्रेजों द्वारा फूट डालो और शासन करो के रूप में रखी जा चुकी थी ! दो सम्प्रदायों के बीच इतनी कडवाहट घोल दी गयी थी कि ट्रेने लाशों से भरी हुई इधर-उधर आ जा रही थी ! इससे लगभग हम सभी भालिभाँती विदित है ! तो क्या इस मौजूदा सरकार ने भी एक और विभाजन की तैयारी मनभेद पैदा कर शुरू कर दी है ऐसा मान लिया जाय ?

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  1. प्रस्तावित विधेयक- “साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम ( न्याय एवं क्षतिपूर्ति) २०११ ” भारत को हिंसा की आग में झोंक देने की पृष्ठ भूमि है . अल्प संख्यकों के हित की आड़ में पूरे देश को कई वर्गों में बाँट देने का षड्यंत्र हमें समझना होगा. यदि यह क़ानून बनता है तो इसके दूरगामी परिणाम भारत को खंडित करने वाले होंगे . धर्म के आधार पर एक बार खंडित हो चुके भारत के इतिहास ने पूरे विश्व को यह सन्देश दे दिया है कि भारत को आसानी से खंडित किया जा सकता है . एक पांचवी पास रोमन कैथोलिक महिला स्वतन्त्र भारत में भारतीयों के द्वारा ही भारत का सर्वनाश करने का बीजारोपण कर रही है और हमारा विपक्ष तमाशा देख रहा है . निश्चित ही इस विध्वंसक क़ानून के बनने के बाद देश में एक भयानक साम्प्रदायिक और जातीय आग भड़केगी ………..एक ऐसी भीषण आग जो ज़ल्दी बुझाए नहीं बुझेगी. एक ऐसी अराजकता उत्पन्न होने वाली है जो बहुसंख्य भारतीयों के मौलिक अधिकारों को निगल जायेगी . जातीय भेदभाव, जो बहुत सीमा तक वर्त्तमान भारत से समाप्त हो चुका है, को पुनः लादने का षड़यंत्र किया जा रहा है. “दुश्मन का दुश्मन अपना मित्र ” के सिद्धांत के आधार पर सारे अल्प संख्यकों का अभूतपूर्व ध्रुवीकरण धर्मांतरण के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा.

    भारतीय समाज को “समूह “नाम की एक और नयी जाति में बाँट देने का षड्यंत्र किया जा रहा है जो निश्चित ही स्वयं को धर्मांतरण के लिए स्वस्फूर्त गति से प्रस्तुत करेगी. मैं जानना चाहता हूँ कि आज शालाओं से लेकर महाविद्यालयों तक और निजी या सरकारी विभिन्न संस्थानों से ले कर सामाजिक संस्थाओं तक में सरकारी “आरक्षणवाद” को छोड़कर और कहीं भी जातीय भेदभाव का कोई भी लक्षण दिखाई दे रहा है क्या ? आज जब अंतरजातीय और अंतर्धर्मीय विवाह तक होने लगे हैं तब इस विधेयक का औचित्य क्या है ? यह विधेयक एक पक्ष को किसी काल्पनिक न्याय दिलाने के नाम पर दूसरे पक्ष के सारे मौलिक अधिकारों का हनन कर उसके साथ घोर अन्याय करने की घोषणा करता है.

    हम पांचवी पास रोमन कैथोलिक महिला और उसके भक्तों से जानना चाहते हैं कि क्या अभी तक इस प्रस्तावित क़ानून के अभाव में इन अल्प संख्यकों के साथ अन्याय होता रहा है ? क्या देश का वर्त्तमान क़ानून उनकी रक्षा करने में असमर्थ है ? क्या हमारे पास अभी तक कोई समदर्शी क़ानून नहीं था जो इस एकांगी क़ानून की आवश्यकता पड़ गयी …..जो सिर्फ और सिर्फ एक वर्ग विशेष के काल्पनिक हितों की चिंता करेगा ? जब आज़ादी के बाद अभी तक भारतीय राजनेता, जो संसद में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं भारतीयों की चिंता नहीं कर सके तो एक विदेशी मूल की महिला उनके बारे में कितना निष्पक्ष सोच सकेगी ?

    प्रिय बंधुओ ! आपके पास इन सबका केवल एक ही न्यायपूर्ण उत्तर है जो इन सारे कुत्सित इरादों पर पानी फेर सकता है …और वह है आपका वोट. समय आने पर इसका सही प्रयोग करने से मत चूकिएगा.

  2. प्रभावी लेख है .बहुत कृति की आवश्यकता है . यह फेस बुक चर्चित होना चाहिए
    आनंद भरद्वाज

  3. हिन्दुवो में एकता कि बहुत कमी है.| हम विभिन्न विभिन्न गुटों में बटे हुए है| हमारे में उंच नीच का भेद भाव भी बहुत है| हमारे में एक विशाल राष्ट्रीय भावना न होकर
    एक संकीर्ण सामाजिक भावना घर कर गई है| अपने इसी कमजोरियों के कारण, हम करीब १००० साल तक गुलाम बने रहे – पहले मुसलमानों के और फिर बाद में
    अंग्रेजो के और अभी भी नेताओ के गुलाम बने हुए है| हमारे यहाँ जैचंद जैसे पैसो और सम्पत्ति लालची भी बहुत हो गये है|

    हमारे में आज एकता होती जैसे कि मुसलमानों और ईसाईयों में है, तो किसी माई के लाल में हिम्मत न होती, हिन्दुओ को दुत्कारने की| यह कम्यूनल वायोलेंस बिल हिन्दुओ को दुत्कारना और ठोकर मारना ही है| जब तक हम बटे रहेंगे, ठोकरे खाते ही रहेंगे|

    हिन्दुओ को उठाना है तो यह मेल भेज कर संभव नहीं है| हिंदू संघटनो को गांव गांव और शहर शहर जाकर पहले हमें अपना भेदभाव भूलकर और उंच नीच का विचार छोड़कर एक दूसरे के लिये जीना और मरना-मारना सीखना और सिखाना होगा|
    एक को भी छेड़ा जाय तो समस्त हिन्दुओ को उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकार आना होगा| तभी देश का कल्याण है वरना देश के दुश्मन बाहरी तत्वों के साजिश से भारत को
    हर तरह से नष्ट करने का षड़यंत्र खेलकर और हम सब भारतीयों को आपस में ही लडाकर उलझा देंगे और देश
    का धन लूटकर विदेशो में जमा करते रहेंगे|

    तो साथियों, पहले संघटित हो फिर हमारी हुंकार कारगर ढंग से गूजेंगी|

    • मुझे ये समझ नहीं आता की क्या एकता की परिभाषा है?दुसरे मजहब को नीच दिखाना या फिर लोगो के मन में कटुता भरना?या फिर देश के नाम पर मजहब के नाम पर लोगो को लड़ना और गंदगी फैलाना.पहले इंसान बनना जरूरी है बाकि कुछ जरूरी नहीं,क्या संस्कृति ये कहती है की वर्चस्य सँभालने के लिए दूसो के खिलाफ साजिश करने लगें.या दंगे करे ताकि कुछ दूसी जाती के लोग कम हो जाये.या संविधान को आग लगा दी जाये..

  4. यह विधेयक किस उद्देश्य से लाया गया है यह जानने के लिए इसके प्रस्तोताओं का परिचय तथा उनके अब से पहले के कार्य कलाप का विवरण जानना आवश्यक है.प्रस्तोता संस्थान तीन चार विभाग वाला गठबंधन है. जिस के शीर्ष पर एन एसी (राष्ट्रीय सलाहकार परिषद्) है जिसकी अध्यक्ष इतालवी मूल की रोमन कैथोलिक सोनिया गाँधी हैं . इस परिषद का काम केंद्रीय मंत्रिमंडल के कार्य की समीक्षा करना तथा उसे दिशा निर्देश देना है. इस असंवैधनिक परिषद् को यह अधिकार कहाँ से प्राप्त हुए इसका एक ही स्पष्ट उत्तर है –सोनिया गाँधी का देश की सत्ता पर एकछत्र अधिकार.
    एन ए सी में सोनिया जी द्वारा चयनित १४ सदस्य हैं जिनमे कम से कम चार ऐसे हैं जो नरेन्द्र मोदी विरोधी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके है दूसरे स्टर पर कार्य दल हैं जिस karya दल ने इस विधेयक को जन्म दिया उसके पांच सदस्यों में
    चार नरेन्द्र मोदी अभियान में अग्रगामी रहे हैं.
    कार्यदल ka भी एक परामर्श दाता दल है जिसके १९ सदस्यों में ७ मुस्लमान तथा कुछ अन्य घोर हिन्दू द्रोही इसाई ,तथा वामपंथी हैं. ऐसे लोगों से किसी rashtrahit पालक विधेयक की आशा रखना व्यर्थ है

  5. हिन्दू समाज को प्रताड़ित करने और हिन्दू- मुस्किम दंगों को बढाने के लिए बनाए जा रहे इस कानून के बारे में किसी प्रकार का भ्रम पालने की ज़रूरत नहीं है. अल्प संख्यक कोण को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया हुआ है जो की भाषा या प्रान्त के आधार पर नहीं है.यह विभाजन सम्प्रदायों और जातियों के अधर पर है. अतः एक सम्माननीय पाठक जो कह रहे हैं की ये मराठी-बिहारी दंगों के विरुद्ध कान आयेगा तो यह पूरी तरह गलत निष्कर्ष है. … सामने तो है सारी सच्चाई . जिहादी आतंकियों को जवाईयों की तरह सुरक्षा, सुविधाएं देकर हिन्दू समाज के मनो बल को तोदसने के स्पष्ट प्रयास दिखाई तो दे रहे है. राष्ट्रीय शत्रुओं को मृत्यु दंड नहीं मिलाने दे रहे. होता ऐसा किसी अन्य देश में ? हिन्दू संतों-साध्वियों को मर्मान्तक यातना दी जाती है, फिर चाहे उनका पराध साबित न भी हुआ हो. … इसके बाद भी किसी प्रमाण की आवश्यकता है कियाः बिल केवल हिन्दुओं की कमर तोड़ने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है. … सोनिया माईनो जी की अध्यक्षता में इस बिल की निर्माता जुंडली की सूचि पढ़ कर और भी स्पष्ट हो जाता है की ये बिल निश्चित रूप से हिन्दू समाज के विरुद्ध लाया जा रहा है. सोनिया जी की इतिहास की सही जानकारे प्राप्त कर के पढ़ ली जाए तो यह भी समझ आजायेगा की मुस्लिम समाज को बलि का बकरा बना कर हिन्दुओं से भिडाने की आजमाई तकनीक का प्रयोग किया जाना है. उसके बाद अमेरीका के तर्ज़ पर आतंकी बतला कर जिहादियों को ठिकाने लगाना है और इस ईसाईयों के इस पुराने शत्रु को निपटा कर ईसाईकरण के मार्ग को साफ करना है. किसी भ्रम में न रहें की पोप की एजेंट सोनिया मुस्लिमों की मित्र है. यह तो बलि के बकरे को पालने वाला यूरोप-अमेरिका के ईसाईयों का चतुर व्यवहार है जिसे भोला मुस्लिम समाज १०० साल में भी नहीं समझ पाया तो अब क्या समझेगा. पर आजकल के हिन्दू भी तो इस कुटिल चाल को नहीं समझ पा रहे. ” समझ जाओ ऐ हिन्दुस्तान वालो, वरना दास्तान तक न होगी दास्तानों में ” … एक ब्रह्मास्त्र है आप लोगों के पास, उसका प्रयोग करो इन देश व हिन्दू समाज के शत्रुओं पर. उसका नाम है ”’वोट”’. सही समय पर सही निशाने पर प्रहार करिए.

  6. प्रिय राजीव जी,
    हमारी शुभकामनाये आपके साथ है.
    हम इस काले कानून का विरोध करते है ……

  7. बड़ा ही जहरीला विधयेक बनने जा रहा है. देखते है कैसे बनेगा. इस बिल को बनाने वाली पार्टी में से कोई वोट मांगने के लिए मेरे घर में तो आकर तो देखे. धन्यवाद राजीव जी.

  8. इस ओजस्वी लेख में माध्यम से जनता को अवगत कराने के लिए इस युवा देशभक्त और नेतृत्वकर्ता राजीव जी की जितनी तारीफ की जाय वो कम है ! इश्वर इन्हें सफलता दे. हम सबकी दुआ इनके साथ है !
    अगर यह कानून बन गया तो देश पर कला धब्बा होगा , आम जनता का जीना दूभर हो जायेगा !
    कांग्रेस का चरित्र यही है जो अब भ्रष्टाचार के बाद अब देश को तोड़ने के लिए कोशिश कर रही है….हम ऐसा नहीं होने देंगे !
    !! वन्देमातरम !!

  9. राजीव जी ,धन्यवाद .बिल का जो प्रारूप आपने भेजा है ,उससे एक झलक तो मिलती है,पर विस्तृत विवरण के लिए जब मैं अगले लिंक पर गया तो कुछ और जानकारी मिली हालाकि उससे भी कोई बात नहीं बनी.अब मेरा प्रश्न यह है की क्या यह बिल हिन्दू मुस्लिम के बीच झगड़े तक ही सिमित रहेगा,या जहां भी आंचलिक आधार पर लोगों को तंग किया जायगा ,वहाँ भी इस बिल के आधार पर कार्रवाई की जा सकेगी?.उदाहरण स्वरूप ,अगर मुंबई केवल महाराष्ट्रियों के लिए या आसाम केवल आसामियों के लिए इत्यादि का नारा देकर अन्य राज्यों से आये हुए लोगों को तंग किया जाता है या खदेड़ा जाता है वहां भी इस बिल के आधार पर कार्रवाई हो सकेगी.अगर ऐसा है तो क्या आप लोगों को नहीं लगता की भारत की एकता और अखंडता को कायम रखने के लिए ऐसे एक क़ानून की सख्त आवश्यकता है.उसमे निश्चय हीं अल्पसंख्यकों ,जिसमें मुस्लिमों के अलावा क्रिस्तान ,सिख ,कश्मीर में हिन्दू इत्यादि शामिल हैं के अतिरिक्त ऐसे लोगों या समुदाय के विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई करने का प्रावधान होना चाहिए जो भाषा के नाम पर,या किसी अंचल विशेष के नाम पर भारतीयों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर देतेहैं.अगर प्रस्तावित बिल में इन सबका समावेश है तो मेरे विचार से यह बिल देश को तोड़ने नहीं ,बल्कि जोड़ने वाला साबित होगा.रह गयी बात इस तरह के बिल को प्रस्तावित करने का अधिकार तो अगर मैं अन्ना हजारे समूह द्वारा लाये गये जन लोकपाल बिल का समर्थक हूँ तो मेरे जैसे लोगों को दूसरे किसी समूह द्वारा प्रस्तावित बिल को केवल इस आधार पर की वह एक समिति द्वारा प्रस्तावित है विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है.

  10. वर्षो तक वन में घूम घूम बाधा विघ्नों को चूम चूम
    सह धुप ग़म पानी पत्थरपांडव आये कुछ और निखार
    सौभाग्य ना सब दिन सोता हे
    देखे आगे क्या होता हे
    मैत्री की राह दिखाने को सब को सुमार्ग पे लाने को
    दुर्योधन को समझाने को भीषण विध्वंस बचाने को
    भगवान हस्तिनापुर आये पांडव का संदेसा लाये
    दो न्याय अगर तो आधा दो
    पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे
    दो केवल पाच ग्राम
    रखो अपनी धरती तमाम
    हम वही ख़ुशी से खायेंगे
    परिजन पे असी ना उठाएंगे..
    दुर्योधन वोः भी दे ना सका आशीष समाज की ले ना सका
    उल्टे हरी को बांधने चला जो था असाध्य साधने चला
    जब नाश मनुज पर छाता हे पहले विवेक मर जाता हे
    हरी ने भीषण हुंकार किया अपना स्वरुप विस्तार किया
    डगमग डगमग दिग्गज डोले भगवान कुपित होकर बोले
    जंजीर बाधा अब साध मुझे हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
    यह देख गगन मुझमे लय है यह देख पवन मुझमे लय है
    मुझमे विलीन झंकार सकल मुझ मे लय है संसार सकल
    अमरत्व फूलता है मुह मे संहार झूलता है मुझ मे
    उदयाचल मेरे दीप्त भालभू -मंडल वक्ष -स्थल विशालभुज
    परिधि बन्ध को घेरे हैं मैनाक मेरु पग मेरे हैं
    दीप्ते जो गृह नक्षत्र निकर सब हैं मेरे मुख के अन्दर दृग
    हो तो दृश्य अखंड देख मुझ मे सारा ब्रह्माण्ड देख
    चर-अचर जीव , जग क्षर अक्षरनश्वर मनुष्य
    सुरजाति अमरसत कोटि सूर्य , सत कोटि चन्द्रसत कोटि सरित
    सर सिन्धु मंद्र सत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेशसत कोटि
    जल्पति जिष्णु धनेशसत कोटि रुद्र ,
    सत कोटि कालसत कोटि दंड धर लोकपाल जंजीर बाधा कर साध इन्हें
    हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें भूतल अटल पातळ देखगत और अनागत काल देख
    यह देख जगत का आदि सृजन यह देख महाभारत का रणमृतकों से पति हुई भू है
    पहचान कहाँ इसमें तू है?अम्बर का कुंतल जाल देखपड़ के निचे पातळ देख
    मुट्ठी मैं तीनो काल देख मेरा स्वरुप विकराल देख सब जन्म मुझी से पाते हैं
    फिर लौट मुझी मैं आते हैं जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन
    साँसों से पाता जन्म पवन पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर हंसने लगती है सृष्टि उधर
    मैं जभी मूंदता हूँ लोचन छा जाता चारो और मरण
    बाँधने मुझे तो आया है जंजीर बड़ी क्या लाया है? यदि मुझे बांधना चाहे मन्न
    पहले तू बाँध अनंत गगन सुने को साध ना सकता है वो मुझे बाँध कब सकता है?
    हित वचन नहीं तुने माना मैत्री का मूल्य ना पहचाना तो ले अब मैं भी जाता हूँ
    अंतिम संकल्प सुनाता हूँ याचना नहीं अब रण होगा
    जीवन जय या की मरण होगा टकरायेंगे नक्षत्र निकर बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
    फन शेषनाग का डोलेगा विकराल काल मुंह खोलेगा
    दुर्योधन रण ऐसा होगा फिर कभी नहीं जैसा होगा
    भाई पर भाई टूटेंगे विष -बाण बूँद -से छुटेंगे
    सौभाग्य मनुज के फूटेंगे वयास शृगाल सुख लूटेंगे
    आखिर तू भूशायी होगा हिंसा का पर्दायी होगा
    थी सभा सन्न , सब लोग डरे चुप थे या थे बेहोश पड़े’
    केवल दो नर ना अघाते थे ध्रिश्त्राष्ट्र -विदुर सुख पाते थे
    कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय दोनों पुकारते थे जय -जय ..

  11. यह बिल तो हिन्दू संस्कृति को ख़तम करने की साजिश हैं और बात रही सोनिया मैनो की यह मुसलमानों से ज्यादा ईसाईयों की हमदर्द हैं यह , वेह vatican City में बेठें अपने आकाओ के संपर्क में हैं, उनको खुश करने के लिया यह सब हरकतें करती रहती हैं !

  12. “सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011″

    इस विधेयक को जानने के लिए कृपया लिंक देखें:-

    https://nac.nic.in/communal/com_bill.htm

  13. राजीव जी ,
    मैंने इस क़ानून का विस्तृत मसौदा नहीं देखा है.मेरे जैसे अन्य लोग भी होंगे जिन्होंने इसका मसौदा नहीं देखा होगा.ऐसे इस मसौदे की बडाई करते हुए भी एक लेख मैंने किसी प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक, ,शायद इंडियन एक्सप्रेस, में देखा था,अतः मैं नहीं कह सकता की कौन सही है कौन गलत.अच्छा होता की आप में से कोई या प्रवक्ता सम्पादक स्वयं इस क़ानून के प्रारूप की कापी प्रवक्ता पाठकों के लिए यहाँ प्रकाशित कर देते.उसके बाद इसपर विस्तृत विवेचना करना आसान हो जाता.

  14. यह कानून शायद आजाद भारत का सबसे काला कानून होगा, अगर यह कानून के रूप में पास हो गया तो.जिस ढंग से टीवी पर परिचर्चा में इस कानून के रचयिता हर्ष मंदर द्वारा इसको सही ठहराने का प्रयास किया जा रहा था उससे ऐसा लग रहा था की जैसे वो तो ये मान कर बैठे हैं की संसद में सब बेवकूफ बैठे हैं और केवल उन्हें ही कानून की जानकारी है. वैसे ये सवाल भी अपनी जगह है की लोकपाल बिल के बारे में चर्चा करते समय ये कहा जाता है की कानून बनाने का हक़ केवल संसद और उससे जुडी संस्थाओं को ही है. तो क्या कोई ये बता सकेगा कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् किस कानून या संवेधानिक अधिकार के तहत कानून बनाने का काम कर रही है? ये एक्स्ट्रा संवेधानिक पावर इस्तेमाल करके सत्ता का भारी दुरूपयोग किया जा रहा है.इस कानून के विभन्न काले पहलुओं के विषय में लोगों के बीच में व्यापक चर्चा करने की आवश्यकता है.

  15. सोनिया जी के इस इस खतरनाक षड्यंत्र के प्रति पाठकों को जागरूक करने के लियी आभार. सोनिया जी की एन.ए.सी.कोई सरकारी एजेंसी नहीं और न ही जनता द्वारा चुनी गयी है. फिर भी इसके निर्णय देश पर थोंपे जाने की तैयारी हो चुकी है. इस कानून के द्वारा देश के हिन्दुओं को कुचलने की ईसाई सोनिया की नीयत खुल कर सामने आ गयी है. इस कानून के लागू होते ही प्रवक्ता पर मेरी लिखी इस एक टिपण्णी के कारणमुझ से पहले प्रवक्ता के सम्पादक जेल में होगे. इसी प्रकार देश भर में हर पग पर होगा. इतनी खतरनाक जुन्दाली को सत्ता में सहन करना है क्या ?

  16. अब हिन्दू समाज जाग गया है. यह 1947 नहीं जब हिन्दुओ ने गाँधी पे भरोसा किया था और मुंह की खायी थी. अब देश को बाँटने वालो को ही इस देश से निकला जायेगा. अब हिन्दू अपनी ताकत पहचानने लगे है. कोई कानून भारत को मिटा नहीं सकता.

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