इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक दिन

बिपिन किशोर सिन्‍हा 

Allahabad High Court_0दिनांक १९-६-१३, समय दिन के साढ़े बारह बजे। पावर कारपोरेशन के स्टैन्डिंग कौन्सिल का फोन आता है – दिनांक २१-६-१३ को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमुना कोल्ड स्टोरेज बनाम उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के मामले में अध्यक्ष सह प्रबन्ध निदेशक, उत्तर प्रदेश ट्रान्समिशन कारपोरेशन, प्रबन्ध निदेशक ट्रान्समिशन कारपोरेशन, प्रबन्ध निदेशक पूर्वान्चल एवं प्रबन्ध निदेशक पश्चिमान्चल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड को व्यक्तिगत सुनवाई हेतु तलब किया है। रिट की कापी और कोर्ट का आदेश न वकील के पास उपलब्ध होता है और न हाई कोर्ट के वेब साइट पर। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, वाराणसी के मुख्यालय में अफ़रातफ़री मच जाती है। ला आफिसर और लीगल सेल के अधीक्षण अभियन्ता को तलब किया जाता है। उनके पास भी केस का कोई विवरण प्राप्त नहीं होता है। दोनों डांट खाकर आई.ए.एस. प्रबन्ध निदेशक के कमरे से बाहर आ जाते हैं। अन्तिम समाधान के लिए मुख्य अभियन्ता(प्रशासन) यानि मुझे बुलाया जाता है और आदेश दिया जाता है –

“आपके ला आफिसर और एस.ई. किसी काम के नहीं हैं। इन्हें केस की कोई जानकारी नहीं है। इनके कारण परसों मुझे हाई कोर्ट में पर्सनल अपियरेन्स के लिये हाज़िर होना पड़ेगा। कभी आप हाई कोर्ट में पर्सनल अपियरेन्स में गए हैं? नहीं न। वहां भीड़ के बीच दिन भर खड़े रहना पड़ता है। बैठने की जगह भी नहीं मिलती है। आपलोगों के कारण यह जलालत मुझे झेलनी है। जाइये, रिट की कापी, कोर्ट का आर्डर, सरकार की इण्डस्ट्रियल पालिसी, सप्लाई शिड्यूल, सप्लाई आवर्स और संबन्धित आदेशों के साथ एक घंटे के अन्दर उपस्थित होइये। पूरी फाइल मेरी मेज़ पर होनी चाहिए।”

ला आफिसर और लीगल सेल ने हाथ खड़े कर दिए। रिट की सूचना उन्हें कुछ ही मिनट पहले मिली थी। वाकई उनके पास कोई पेपर नहीं था। वकील से संपर्क स्थापित करने की कोशिश की गई। वे किसी अन्य केस के सिलसिले में बहस कर रहे थे। बात नहीं हो पाई। प्रबन्ध निदेशक की नाराज़गी बढ़ती जा रही थी। दो घंटे का समय गुजर गया। हाथ में एक भी पेपर नहीं था। मुख्य अभियन्ता, इलाहाबाद से संपर्क किया गया। उन्होंने अपने कोर्ट क्लर्क को वकील के पास भेजकर रिट की कापी मंगवाई। ई-मेल के माध्यम से उसे प्राप्त किया गया। संदर्भित आदेशों और इन्डस्ट्रियल पालिसी को वेब-साइट से डाउनलोड किया गया। पूरी फाईल दिन के पांच बजे तक तैयार हुई। न लन्च करने का मौका मिला, न चाय पीने का। हर आधे घंटे के बाद मिली डांट से ही पेट भरना पड़ा। ७० पेज का रिट और सौ पेज के अन्य आदेश। फाईल पुट अप करने के पहले अध्ययन भी करना पड़ा। एब्स्ट्रैक्ट भी बनाना पड़ा। प्रबन्ध निदेशक महोदय अन्दर से प्रसन्न हुए लेकिन बातों से ज़ाहिर नहीं होने दिया। एक आदेश जड़ दिया अलग से –

“कल आप इलाहाबाद जाकर वकील से मिलकर जवाब तैयार कराइये। अपना जवाब चीफ स्टैन्डिंग कौन्सिल से एप्रूव जरूर करा लीजिएगा। लखनऊ से निदेशक (वाणिज्य) भी वहां रहेंगे। एस.ई, गाज़ीपुर और एक्झिक्युटीव इन्जीनियर को भी अपने साथ ले जाइयेगा। ला सेल के किसी भी आदमी को अपने साथ मत ले जाइयेगा। मुझे सिर्फ आप पर भरोसा है। कोशिश कीजियेगा कि इसके बाद मुझे कोर्ट में दुबारा पर्सनल अपियरेन्स न देनी पड़े।”

अपने नाजुक स्वास्थ्य के बावजूद मुझे इलाहाबाद जाना पड़ा। नीली बत्ती वाली एम्बैसडर कार से यात्रा पूरी की गई। नीली बत्ती वाली कार में बैठने वाले अधिकारी से ज्यादा रोब में ड्राइवर रहता है। अधिकारी ओवर स्पीड से परहेज़ करने की हिदायत देता है लेकिन ड्राइवर को यह कत्तई मंजूर नहीं होता है कि कोई गाड़ी उसके आगे चले। बनारस से इलाहाबाद के पूरे रास्ते में ड्राइवर हूटर बजाता रहा। वकील, चीफ स्टैन्डिंग कौन्सिल और निदेशक से मुलाकात हुई। जवाब तैयार कराया गया। पर्सनल अपियरेन्स से एक्जम्प्सन के लिए अप्लिकेशन भी बन गया। रात के बारह बजे फुर्सत मिली।

दिनांक २१-६-१३। दिन के नौ बजे एम.डी. पूर्वांचल के स्टाफ आफिसर का फोन आता है – “साहब इलाहाबाद के लिए निकल चुके हैं। साढ़े दस बजे सर्किट हाउस पहुंच जायेंगे। आपकी तैयारी पूरी रहनी चाहिये।”

मैंने यह संदेश इलाहाबाद जोन के मुख्य अभियन्ता को पास आन कर दिया। यहां से सभी सूत्र उन्होंने अपने हाथ में ले लि्ये। अपने पूरे अमले के साथ वे सर्किट हाउस पहुंच गए। अब मैं मेहमान बन गया। मेरी देख-रेख और चाय, नाश्ता, भोजन पानी के लिए एक अधीक्षण अभियन्ता की ड्युटी लगा दी गई। सर्किट हाउस के कावेरी सूट को खोलवा कर मुझे सुपूर्द कर दिया गया। मैंने राहत की सांस ली। उन्होंने हम सभी के लिए हाई कोर्ट में एन्ट्री के लिए गेट पास भी बनवा दिए। हमलोगों का केस कोर्ट नंबर-३४ में था। दिन के ग्यारह बजे सीएमडी ट्रान्समीशन, एमडी, ट्रान्समीशन, एमडी,पूर्वांचल, एमडी,पश्चिमांचल, डाइरेक्टर(वाणिज्य), चीफ स्टैन्डिंग कौन्सिल, एडवोकेट, उनके कनिष्ठ वकील, मुंशी, दो चीफ इन्जीनियर, पांच सुपरिन्टेन्डिंग इन्जीनियर और एक दर्ज़न अन्य इंजीनियर तथा कोर्ट क्लर्कों के काफ़िले के साथ हम हाइ कोर्ट पहुंच ही गए। गेट पास बनवाने के लिए की गई मिहनत बेकार गई। मेन गेट एवं कोर्ट नंबर-३४ के गेट पर कोई सन्तरी नहीं था। हमारा गेट पास किसी ने चेक नहीं किया। कोर्ट नंबर-३४ में तिल धरने की जगह भी नहीं थी। आई.ए.एस.प्रबन्ध निदेशकों के चेहरे मायूस हो गए। उन्हें धोती-कुर्ता वाली आम जनता और हम जैसे मातहतों के साथ भीषण गर्मी को झेलते हुए बरामदे में ही खड़ा होना पड़ा। उन्हें यह देखकर राहत मिली कि लाबी में डी.एम. जालौन और डी.एम. वाराणसी भी अपनी पेशी के लिए खड़े-खड़े इन्तज़ार कर रहे थे। यहां दो टीमें बन गईं। आई.ए.एस. अधिकारी एक साथ गप्प मारने लगे और इन्जीनियर अधिकारी एक साथ। समय बिताने के लिए इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। इन्तज़ार करते-करते दिन के दो बज गए। न चाय, न पानी। एक लड़का चाय की केटली और समोसे के पैकेट लेकर आवाज़ लगाते हुए घूम तो रहा था, लेकिन आई.ए.एस.आफिसर बरामदे मे खड़े होकर भीड़ के साथ चाय-समोसा कैसे खा सकते थे? हम भी प्रोटोकाल से बंधे थे। चाय-समोसा लेकर आवाज़ लगाते लड़के को दूर से सिर्फ देखते रहे। वकील ने सूचना दी – “जज साहब लंच पर चले गए। अब दो बजे आयेंगे। आप लोग भी लंच करके दो बजे आ जाइये।”

हम लोगों ने सर्किट हाउस जाकर जल्दी-जल्दी लंच लिया। जज का डर इस कदर हावी था कि हमलोग पौने दो बजे ही कोर्ट नंबर-३४ के सामने उपस्थित हो गए। जज साहब तीन बजे आए। हाई कोर्ट में सिर्फ जज ही राजा होता है, बाकी सब प्रजा। जज ही क्या, सभी सरकारी अधिकारी अपने-अपने कार्यालयों में राजा की तरह ही तो व्यवहार करते हैं। हमलोग अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे थे कि हमारा वकील मेरे कान में फुसफुसाया – एम.डी, पश्चिमांचल टाई नहीं लगाए हैं। यह हाई कोर्ट के ड्रेस कोड के खिलाफ है। जज इन्हें कोर्ट से बाहर निकाल देगा। उनके लिए टाई की व्यवस्था कराइये। हम लोगों का केस १७ नंबर पर सूचीबद्ध था। उस समय १४ नंबर की सुनवाई चल रही थी। समय था। मार्केट से काले रंग की टाई मंगाई गई। एक बला टली। वकील ने बताया कि हाई कोर्ट में आई.ए.एस. आफीसर के लिए ड्रेस कोड है। उन्हें जाड़े में काले रंग के बन्द गले वाले कोट में तथा गर्मी में पैन्ट, फुल स्लीव की शर्ट तथा टाइ में पेश होना पड़ता है। अन्य अधिकारियों के लिए फुल स्लीव शर्ट और पैन्ट की ही वाध्यता है। सैंडल या चप्पल पहन कर आने की मनाही है। चमड़े का जूता पहनना अनिवार्य है। यह ड्रेस कोड अंग्रेजों का बनाया हुआ था जो लोकतांत्रिक भारत में आज भी लागू है। कौन कहता है कि हम आज़ाद हुए हैं? मानसिक गुलामी ज्यों की त्यों है। पौने पांच बजे हमलोगों का नंबर आया। तबतक हम सभी पसीने से नहा चुके थे। गिरते-पड़ते, लोगों की देह से देह रगड़ते हम किसी तरह कोर्ट नंबर-३४ में दाखिल हो ही गए। कक्ष में ६ एसी चल रहे थे। किसी भी एसी का साईज़ २ टन से कम का नहीं था; फिर भी गर्मी के मारे बुरा हाल था। कक्ष का टेम्परेचर ३५ डिग्री से कम नहीं था। जज की दाहिनी ओर वरिष्ठता के क्रम में सीएमडी और सभी एमडी हाथ में फाइल लिए हुए अपराधी की भांति नज़रें झुकाए खड़े थे। जज ने तिरछी नज़र से सबको देखा। कार्यवाही आरंभ हुई। पहला प्रश्न जज ने ही पूछा –

“हां तो चीफ स्टैन्डिंग कौन्सिल साहब! ये बताइये कि आप कोल्ड स्टोरेज को सिर्फ चार घंटे की ही सप्लाई क्यों दे रहे हैं?

“नहीं मी लार्ड! कोल्ड स्टोरेज को हम औसत १२ घंटे की सप्लाई दे रहे हैं। आपके सादर सूचनार्थ यह बताना है कि यमुना कोल्ड स्टोरेज गाज़ीपुर को दिनांक २०-६-१३ से २४ घंटे की सप्लाई दी जा रही है।” अपने कथन के समर्थन में अभिलेख पेश करते हुए हमारे वकील ने अपना तर्क दिया।”

“बहुत अच्छा! १९ तारीख को हमने पर्सनल अपियरेन्स के लिए आपके एम.डी. को बुलाया और २० तारीख से आपने २४ घंटे की सप्लाई देना शुरु कर दिया। क्या बिना डांट खाए आप कोई काम नहीं करते हैं। सरकार से डांट खाकर इटावा, कन्नौज, रामपुर, मैनपुरी, झिंझक जैसे इलाकों में आप २४ घंटे बिजली देते है और इलाहाबाद, वाराणसी, कानपुर जैसे महानगरों में अन्धाधुंध कटौती करते हैं। यूपी के सभी जिलों के गावों को आप आठ घंटे की सप्लाई देते हैं और कुछ चुनिन्दा जिलों के गावों को २४ घंटे की निर्बाध विद्युत आपूर्ति। ऐसा क्यों? संविधान की किस धारा और इंडियन इलेक्ट्रिसीटी एक्ट के किस नियम के तहत आप इटावा, कनौज, मैनपुरी, रामपुर आदि जिलों को २४ घंटे की विद्युत आपूर्ति करते हैं?”

“मी लार्ड। वे वी.वी.आई.पी लोगों के क्षेत्र हैं। इसलिए उन्हें २४ घंटे की सप्लाई दी जाती है।”

“व्हाट डू यू मीन बाई वीवीआईपी? गीव मी डेफिनेशन आफ वीवीआईपी।”

” …….सरकारी वकील का लंबा मौन………” जनता का जोरदार ठहाका।

” आल एमडी साहेबान। हैव यू एनी रिप्लाई टू माई क्वेश्चन।”

“………….लंबा सन्नाटा…………..” सभी अधिकारियों ने गर्दन थोड़ी और झुका ली। जज से नज़रें मिलाने का साहस किसी में नहीं था।

“वकील साहब। मैं आपको जवाब के लिए एक महीने का समय देता हूं। दिस रिट इस नाउ कन्वर्टेड इन टू पी.आई.एल.। दि कोर्ट इज एडजर्न्ड टू डे।”

हम सभी एक दूसरे से बिना कोई बात किए कोर्ट रूम से बाहर आ गए। मंत्रियों का आदेश लिखित में नहीं होता है। अधिकारियों का आदेश लिखित होता है। मंत्री कभी नहीं फसेंगे। हमारी पेशी तो अनिश्चित काल तक होती रहेगी। रिटायरमेन्ट के बाद भी। हाई कोर्ट में भी अंग्रेजियत, शासन में भी अंग्रेजियत। जायें तो जायें कहां?

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

1 COMMENT

  1. भारतीय आजादी की बागडोर वकीलों के हाथ में रही या यों कहें की आजादी की लड़ाई की शुरुआत वकीलों ने शुरू की, फिर भी न्यायपालिका गुलाम ही रही?

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