जो भी कीमत हो उसकी वो चुकाई जाये,
बात सच्ची हो तो बेख़ौफ़ उठाई जाये।
हम अमन के हैं पुजारी कोई बुज़दिल तो नहीं,
फ़ितनागर अफ़वाह उड़ा जितनी उड़ाई जाये।
हरेक इंसान का दुखदर्द हो शामिल जिसमें,
वक़्त कहता है ग़ज़ल ऐसी सुनाई जाये।
ये अदब है जागीर नहीं है उनकी,
नापसंदी भी अदब से ही बताई जाये ।
आपके हाथ में महफ़ूज़ रहे देश अगर,
देश के वास्ते गर्दन भी कटाई जाये।
कितना दुख होता है वो लोग तो तब समझेंगे,
उनकी बेटी भी जब ऐसे ही जलाई जाये।
ढोंग मज़हब ना बना कुछ तो अमल भी करले,
जो भी ख़तरे में है वो जान बचाई जाये।
पहले तू बन तो मेरा मुझ से ये चाहने वाले,
खून ए दिल से तेरी तस्वीर बनाई जाये।।
नोट-बुज़दिलः डरपोक, फ़ितनागरः शरारती, अदबः साहित्य, महफूज़ः
सुरक्षित, अमलः कर्म।
Aapki Ghazal achchi lagi.
Suresh maheshwari