एक अविस्मरणीय वर्षगांठ : लालकृष्ण आडवाणी

पिछले सप्ताह मैं नरेन्द्र मोदी के साथ चेन्नई में तमिल पत्रिका ‘तुगलक‘ के वार्षिक कार्यक्रम में भाग लेने गया था। क्या था! कुछ अन्य ही पत्रकार शायद इतने लोग जुटा सकते हैं। यदि चेन्नई में ‘तुगलक‘ घर-घर में जाना जाने वाला नाम है। तो चो रामास्वामी देशभर के बुध्दिजीवियों में सुप्रसिध्द और आदरणीय नाम है। 

चो में हमें तमिल अस्मिता और अदम्य भारतीय राष्ट्रवाद का पूर्ण संगम देखने को मिलता है। 

चार दशक पूर्व पोंगल के दिन तुगलक का प्रकाशन शुरु हुआ था। इस प्रकार इस वर्ष 14 जनवरी को तुगलक का 42वां स्थापना वर्ष था। 

मैं किसी और पत्रकार के बारे में ऐसा नहीं सोच सकता जैसेकि चो के बारे में है कि उनमें व्यंग्य और कटाक्ष की शक्ति से अपने लेखन और बोलने में गंभीर विचारों को भी प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने की कला है। 

उदाहरण के लिए कार्यक्रम में भी वह नरेन्द्र भाई और मेरे सम्मुख बोले तो उनके लगभग चालीस मिनट के भाषण में सभागार में उपस्थित तीन हजार से अधिक श्रोतागण बीच-बीच में हंसी से लोट-पोट हो रहे थे,जबकि प्रथम पंक्ति में मेरे साथ बैठे गुरुमूर्ति चो के भाषण का वाक्य-दर-वाक्य भाषांतर मुझे बता रहे थे, को सुनकर मुझे साफ हुआ कि क्यों श्रोतागण मुख्य मेजबान के कठोर दंश के उपर भी मस्त हो रहे थे। 

चो के कार्यक्रम को कभी भी न भूलने वाले एक विशिष्ट मेहमान सुप्रसिध्द सिने अभिनेता रजनीकांत शायद ही कभी चो के कार्यक्रम में आना भूले हों। पिछले सप्ताह वह भी वहां उपस्थित थे। 

मैंने अपने भाषण की शुरुआत श्रोताओं को पोंगल की बधाई से की। मैंने कहा कि देश के अधिकांश हिस्सों में इस त्यौहार को मकर संक्राति के नाम से पुकारते हैं। हालांकि असम में यह बिहू, गुजरात में उत्तरायण् और पंजाब में लोहिड़ी के नाम से जाना जाता है। मेरे जन्म स्थान सिंध में भी इसे ‘उत्तराण‘ के रुप में जाना जाता है। सिंधी में एक कहावत है: उत्तरण उत्तरियो, अद्य सियारो कुतरियो (उत्तारण के आगमन के साथ, आधी सर्दी समाप्त)। 

गुजरात में, उत्तरायण के अवसर पर पतंगबाजी बहुत लोकप्रिय है। मकर संक्राति के दौरान गुजरात में पतंगबाजी वास्तव में देखने योग्य होती है। नरेन्द्र भाई ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव शुरु कर इसका आकर्षण और बढ़ा दिया है। लाहौर और पाकिस्तान के पंजाब के अन्य हिस्सों में भी उत्साह के साथ पतंग उड़ाई जाती है जिससे अक्सर सीमा पर भी उन्माद हो जाता है।

पाकिस्तान में कुछ मजहबी कट्टरपंथी पतंगबाजी पर प्रतिबंध लगाने का यह कहकर अभियान चलाए हुए हैं कि यह पाकिस्तान के हिन्दू अतीत की गैर-इस्लामिक विरासत है, लेकिन इस अभियान का आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा है। 

वहां उपस्थित पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मैंने कहा: स्वयं एक पत्रकार होने के नाते मैं अंग्रेजी भाषा के ‘काईट फ्लाईंग‘ शब्द के लाक्षणिक अर्थ के प्रति बहुत ही सचेत हूं। मुझे और नरेन्द्र मोदी को चो के कार्यक्रम जो डा. जयललिता द्वारा शासित प्रदेश में है, में देखकर इससे पहले कोई कल्पना की पतंगें उड़ाए, मैं स्वयं यह कहना चाहूंगा कि हम डा. जयललिता को अपना स्वाभाविक मित्र मानते हैं। यद्यपि अन्नाद्रमुक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का औपचारिक हिस्सा नहीं है, मगर डा. जयललिता की पार्टी के साथ हमारा अनौपचारिक सहयोग तथा विशेष रुप से संसद के दोनों सदनों में पार्टी का उनके दल से समन्वय बढ़ रहा है। अपनी 40 दिवसीय चेतना यात्रा का संदर्भ देते हुए मैंने डा. जयललिता, उनके पार्टी सहयोगियों और उनकी सरकार द्वारा मदुरई क्षेत्र से गुजरते समय गंभीर बम धमकी से निपटने में की गई सहायता के लिए सार्वजनिक रुप से धन्यवाद दिया था। इसी संदर्भ में, यात्रा की समाप्ति पर दिल्ली की रैली में अन्नाद्रमुक द्वारा संसद में अपने वरिष्ठ नेता श्री थम्बीदुरई को भेजने पर भी मैंने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की थी। 

उत्कृष्ट सामाजिक-आर्थिक, दार्शनिक और हमारी पार्टी के प्रमुख विचारक पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के समय से ही हम सदैव मजबूत राज्यों की जरुरत पर बल देते रहे हैं। 

राज्यों के मजबूत बनने से केन्द्र कमजोर नहीं बनता। हमें एक मजबूत केन्द्र की जरुरत है, लेकिन केन्द्र तब तक मजबूत नहीं हो सकता जब तक राज्य मजबूत न बने। 

जैसाकि हम सभी जानते हैं, राष्ट्रीय राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) एक ऐसा मंच है जहां नई दिल्ली राज्य सरकारों को समान भागीदार मानकर परामर्श करती है। एनडीसी की पिछले दिनों हुई बैठक में तमिलनाडू की मुख्यमंत्री डा. जयललिता ने कहा था: ”मुझे नहीं पता है कि भारत सरकार राज्यों को भागीदार के रुप में मानती है, समान भागीदार और उनके विचारों का आदर देने की बात तो छोड़िए।” 

इसी तरह की कठोर और तानाशाही दृष्टि लोकपाल और लोकायुक्त राज्यों पर थोपने के समय देखने को मिली। इसका भाजपा, एनडीए में हमारे सहयोगियों और अन्नाद्रमुक द्वारा मुखर विरोध किया गया। 

वस्तुत:, यूपीए सरकार की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस हम नहीं जानते कि-यह कब तक साथ चलेगा-ने भी शेष विपक्ष के इस विरोध के आधार कि यह राज्य सरकारों की शक्तियों पर अतिक्रमण है, पर विरोध किया है। 

अंतत: विधेयक पारित नहीं हो सका। पूरे देश ने देखा कि राज्यसभा में बहस के बाद विधेयक पर बगैर मतदान के कैसे अर्ध्दरात्रि में संसद का मखौल बनाया गया। राज्यसभा में मेरे सहयोगी अरुण जेटली जो सदन में विपक्ष के नेता भी हैं, ने उस रात कांग्रेस सरकार के व्यवहार को वर्णित करने हेतु एक अविस्मरणीय शब्द गढ़ा: ‘अर्ध्दरात्रि में भाग खड़े होना‘ (Fleedom at midnight). 

मुख्य बिन्दु यह है कि कांग्रेस पार्टी ने अतीत से कोई सबक नहीं सीखा है। यह अभी भी इस भ्रम में है कि उसे ही भारत पर शासन करने का एकमात्र अधिकार मिला हुआ है। 

वे सभी जो लोकतंत्र और स्वस्थ केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के पक्षधर हैं, उन्हें अवश्य ही साथ आकर इसी दंभभरी मानसिकता को पराजित करना चाहिए।

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