||| एक नज़्म : सूफी फकीरों के नाम ||

sufi

कोई पूछे की
मैं हूँ कौन
लोग कहते है की बावरा हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की आवारा फिरता हूँ तेरी मोहब्बत में
लोग कहते है की जुनूने साये में रहता हूँ

तेरी मोहब्बत में ;सच कहता हूँ की
क़यामत आये और मैं  तुझसे मिल जाऊं
तुझमे मिल जाऊं

एक बार एक पर्वत पर गया
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक बार एक नदी में ढूँढा तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक समंदर ने मुझे बुलाया ,
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था
एक झरने में देखना चाह तुझे
लोगो ने कहा था की तू है वहां
पर तू तो नहीं था

फिर ,एक दिन एक ख्वाब में
अपने दिल में झाँका
लोगो ने कहा था की तू है वहां
और तू था वहां

जाने कहाँ कहाँ भटक आया हूँ
मदिर देखे
मस्जिद देखे
गिरजाघर भी गया
और ढूँढा  तुझे गुरूद्वारे में
पंडितो से मिला,
मौलवियों से मिला
कोई  तुझे जानता न था
कोई तुझे पहचानता नहीं था

अब थक गया हूँ मैं
मुझे अपने पास बुला ले

फकीरी का आलम है मुझ पर
तू दरवेश बन कर मुझ से मिल जा
इश्क का जादू है मुझ पर
तू हुस्न बन कर मुझ से मिल जा
ज़िन्दगी के सजदे किये जा रहा हूँ
तू मसीहा बन कर मुझ से मिल जा

तेरा मुरीद हूँ
मेरा खुदा बन कर मुझ से मिल जा

तारो से कहा की तुझे मेरा सलाम कहे
चाँद से कहा की तुझ तक मेरा सजदा पहुंचा दे
सूरज से कहा की मेरे दियो की रौशनी की तुझे झलक दिखला दे
पर किसी ने शायद मुझ पर ये करम मेहर नहीं किया
अब तेरी मेहर चाहिए मौला

मेरे महबूब मुझे अब तो मिल जा
मेरे जिस्म से मेरी रूह को आज़ाद कर दे
मुझसे मेरा सब कुछ छीन ले
कर दे राख मुझको
एक ही आरजू है अब मेरी
की मुझको , खुद से मिला दे तू
अपने में समां ले तू
अपना बना ले तू मैं तुझमे और तू मुझमे तभी मुझे सकून मिलेंगा .

1 COMMENT

  1. बहुत ही सुन्दर कविता। ये पक्तियाँ बहुत ही प्रभावी लगीं
    मेरे महबूब मुझे अब तो मिल जा
    मेरे जिस्म से मेरी रूह को आज़ाद कर दे
    मुझसे मेरा सब कुछ छीन ले
    कर दे राख मुझको
    शानदार

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