बचपन पर आतंकी क्रूरता का कहर

0
128

peshawar 3प्रमोद भार्गव

 

वैश्विक स्तर पर दो काम एक साथ हुए हैं। पहला, बचपन बचाने वाले भारतीय कैलाश सत्यार्थी एवं बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने वाली पाकिस्तानी मूल की मलाला यूसुफजई को नोबेल शान्ति सम्मान। यानी सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में चरम पराकाष्ठा से जुड़ा सम्मान दिया गया। दूसरा काम महजबी गर्भ से उपजे आतंकवादियों ने पाकिस्तान के पेशावर की सैनिक पाठशाला में करीब डेढ़ सौ छात्रों को मौत के घाट उतार दिया गया। इन छात्रों को कतारबद्ध खड़ा करके सिर और छाती में गोलियां मारी गईं। निर्दोष व निहत्थे बचपन को खून में बदलने वाले ये हत्यारे वाकई दरिंदे थे, क्योंकि इन्होंने वारदात की जिम्मेबारी लेने में एक तो देरी नहीं की, दूसरे अपनी क्रूर मंशा भी जता दी। कहा कि ‘फौजियों के बच्चों को इसलिए मारा गया है, ताकि तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ वजीरिस्तान में पाक फौज जो मुहिम चला रही है, पाक सैनिक अपनों के ही मरने की वैसी ही पीड़ा को समझ सकें। जाहिर है, आतंकियों का मासूम इंसानियत और मानवता से कोई वास्ता नहीं रह गया है। ये नए-नए आतंकी गिरोह खड़े करके केवल अपने घिनौने और बर्बर मंसूबों को हिंसक वारदातों से साधने में लगे है। लिहाजा इस पागलपन का इलाज अब वैश्विक स्तर पर खोजना जरुरी है। क्योंकि इस घटना के ठीक पहले आस्ट्रेलिया के सिडनी में भी मजहबी आतंकवादी ऐसी ही घटना को अंजाम तक पहुंचा चुके हैं।

पेशावर के सैनिक स्कूल में बच्चों के साथ खेली गई इस खूनी होली को पाकिस्तान को एक बड़ी चेतावनी के रुप में लेने की जरुरत है। क्योंकि जिन भस्मासुरों को उसने भारत के खिलाफ खड़ा किया था, अब वे उसी के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं। बच्चों के साथ खूनी खेल कर आतंकियों ने साबित कर दिया है कि उन्हें पाक के भविष्य से कोई वास्ता नहीं रह गया है। क्योंकि किसी भी देश के बच्चे कल का भविष्य होते हैं। हालांकि यह घटना उसी के बोए बीजों का परिणाम है। इन बीजों को जमीन में डालते वक्त पाकिस्तान ने यह कतई नहीं सोचा होगा कि ये कल विष-फल के रुप में फलित होंगे। इनके विषैले होने का पाक को तब पता चला जब इन्हीं आतंकियों ने पाक सेना के कराची हवाई अड्डे पर हमला बोलकर उसे कब्जाने की कोशिष की थी। इसके बाद पाक फौज सतर्क हुई और उसने इसी साल जुलाई-अगस्त में उत्तरी वजीरिस्तान के आतंकी अड्डों पर हमला बोलकर करीब 400 आतंकियों को मार गिराया। यहां इस्लामिक मूवमेंट आॅफ ईस्टर्न तुर्किस्तान, अलकायदा के मार्फत उग्रवादियों को प्रशिक्षित करने के शिविर चला रहा था। इन्हीं आतंकी संगठनों ने अक्टूबर 2011 में चीन के सीक्यांग प्रांत में आतंकी हमला बोला था। इस घटना के पहले तक चीन भी आतंक की पनाहगाह बना हुआ था, लेकिन इस हमले से जब ऊंट पहाड़ के नीचे आया तो चीन को पता चला कि आतंकवाद क्या होता है ? पाले हुए सांप जब डसते हैं, तब भूल का पता चलता है ?

हमलावरों के अरबी भाषी होने से आशंका बनी है कि इनके तार कुख्यात आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से भी जुड़े हो सकते हैं। क्योंकि आईएस ने जिस तरह से इराक के अनेक प्रांतों को कब्जा लिया है, नतीजतन उसकी ताकत का डंका पूरी दुनिया में बजा है। इस नाते तालिबान की मंशा इस नई ताकत से जुड़ने की हो सकती है ? इनकी यह इच्छा भी हो सकती है कि भविष्य में एक साथ मिलकर काम करें तो दुनिया को ज्यादा आसानी से इस्लामिक दुनिया में बदलने में शायद कामयाब हो जाएं ? तालिबान इसलिए भी आईएस की ओर हाथ बढ़ाने को मजबूर हो सकता है, क्योंकि पाक फौज ने वजीरिस्तान में उसकी कमर तोड़कर रख दी है। वह वजूद के संकट से जूझ रहा है। शायद इसीलिए उसने बदले की क्रूरता, सैनिकों के बच्चों को मारकर दिखाई है, जिससे उसे दुनिया के अन्य आतंकवादी संगठनों की मदद मिलना शुरू हो जाए ? हालांकि उसकी यह हरकत वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने की भूमिका रचने का आधार भी बन सकती है। क्यूंकि पाकिस्तान के राजतंत्र और सेना को भी अब अपना नजरिया बदलना होगा, अन्यथा उसे बुरे दिनों से निजात मिलने वाली नहीं है ?

पाकिस्तान को भारत के खिलाफ दो मुंही रणनीति से भी मुक्त होना होगा। क्यूंकि एक ओर तो वह वजीरिस्तान को आतंक से छुटकारे के लिए फौज को खुली छूट देता है, लेकिन दूसरी तरफ पाक अधिकृत कश्मीर में उसी के सैनिक आंतक का प्रशिक्षण देने वाले शिविरों का संरक्षण करते हैं और आंतकियों की भारत में घुसपैठ के लिए मदद करते हैं। यहां तक कि पाक सेना की वर्दी भी आंतकियों को पहनाकर नियंत्रण रेखा पर हमला बोलने की व्यूह रचना करते हैं। यही नहीं मुंबई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद जैसे आतंकी आका को भारत को नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से खुला संरक्षण देते हैं। पाक को अब अपनी सुरक्षा के लिए आतंक के इस संरक्षणवाद से मुक्त होना होगा।

इस्लामिक मजहब के बहाने इस आतंकवाद की पेशावर जैसी ही भयावहता सितंबर 2004 में रुस में भी देखने में आई थी। तब रुस के उत्तरी ओसेतिया के बेसलान में चेचन इस्लामी कट्टरपंथीयों ने एक विद्यालय में घुसकर करीब 700 छात्रों को बंधक बना लिया था। इन्हें छुड़ाने की सैनिक कार्रवाई में करीब 400 बच्चे हताहत हो गए थे। इस घटना को दुनिया अब तक भूली नहीं है। हालांकि पेशावर में ही आठवें दशक में एक सरकारी स्कूल में आतंकियों ने टाइमबम से हमला बोला था, जिसमें पांच बच्चे खलाक हो गए थे। दुनिया में यदि इन चरमपंथियों की ताकत बढ़ती रही है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इन्हें राज्यसत्ताओं का सहयोग मिलता रहा है। पाक-सत्ता व सेना भी अपने सामरिक, राजनीतिक और रणनीतिक हित साधने लिए आतंकी संगठनों की पीठ थपथपाती रही है। जिसका दुष्परिणाम उस अब देखने को मिल रहा है।

पाक की इस घटना से सबसे ज्यादा सचेत भारत को होने की जरुरत है। क्यूंकि कमजोर पड़ रहे बौखलाए आतंकवादियों का आसान निशाना भारत ही है। भारत की सुरक्षा व खुफिया एजेंसियां कितनी सुस्त व लापरवाह हैं, इसकी तस्दीक मेहदी मसरुर विस्वास की गिरफ्तारी से हाल ही में हुई है। इस युवा इंजीनियर के चेहरे से जब नकाब हटा, तब पता चला कि यह आतंकी संगठन आईएस को साइबर तकनीक के स्तर पर मदद कर रहा था। यह अरबी भाषा में लिखे,संदेषों का अंग्रेजी में अनुवाद करके उन्हें टिव्टर पर पोस्ट करता था। जिससे युवा इस्लाम धर्मावलंबियों की मानसिकता को बदला जा सके। करीब दो साल से आतंकी हरकतों को उकसाने के काम में लगे, इस युवा की करतूतों की भनक हमारी सुरक्षा व गुप्तचर एजेंसियों को नहीं लग पाई। ब्रिटेन के टीवी चैनल ने जब इस करतूत का खुलासा अपनी खबर में किया, तब कहीं जाकर मेहदी की गिरफतारी हुई। जाहिर है, हमारी गुप्तचर संस्थाएं वैश्विक संपर्क और सहयोग के प्रति सजग व सक्रिय नहीं हैं ? अन्यथा मेहदी की भनक, विदेशी चैनल पर खबर बनने से पहले ही लग गई होती ? जाहिर है, भारत को इन सिरफिरे आतंकियों से पाकिस्तान से कहीं ज्यादा सतर्क रहने की जरुरत है। क्योंकि वहां तो आतंकियों ने अफगानिस्तान और इराक की तरह तबाही का आलम मचाना शुरू कर दिया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here