देशी विचारक मोदी सरकार का एक वर्ष

-अवधेश कुमार पाण्डेय-
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मैं कोई पत्रकार नहीं, संस्था नहीं बल्कि भारत का आम नागरिक हूँ. मोदी सरकार ने देश विदेश में क्या किया? क्या नहीं किया? क्या करना चाहिये? क्या नहीं करना चाहिये? इसका आकलन भी नहीं कर रहा हूँ. मैं बेहिचक स्वीकार करता हूँ कि भारत के आम नागरिक की तरह उम्मीदों की लहर पर सवार होकर मैने ग्रेटर नोएडा से 700 किमी दूर और लगभग 10 किमी पैदल चलकर श्री नरेन्द्र मोदी के लिये उस प्रत्याशी को अपना मत दिया था, जिसे मैं, मेरा परिवार या मेरा गाँव कतई पसंद नहीं करता.

16 मई 2014 को ऐतिहासिक जनमत द्वारा भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला. मन अत्यंत प्रसन्न हुआ. अगले ही दिन जीत के बाद भावी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने काशी जाकर जब गंगा आरती की और गंगा को माँ कहकर उसे स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया तो उस क्षण का गौरव भी मेरे लिये ऐतिहासिक था. आभास हुआ कि वास्तव में हमारा नेता जनता से जुड़ा हुआ है एवं अब मेरी भारत माँ को उसका खोया गौरव अवश्य वापस मिल जायेगा.

प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार ने 26 मई 2014 को शपथ ली. आम जनता कि तरह मेरे मन में भी स्वाभाविक अपेक्षायें थी. नौकरी पेशा होने के कारण तब प्रसन्नता मिली जब सरकार ने गृहऋण और 80सी की सीमा बढ़ा दी और इससे मेरी आय में लगभग 100 रुपये प्रतिदिन की वृद्धि हो गयी.

इसके बाद प्रधानमंत्री जी ने जब जनता से सरकार को सुझाव देने के लिये कहा तो मैने भी अपना कर्तव्य समझते हुए सरकार कोhttps://pgportal.gov.in/Grievance.aspx के माध्यम से सुझाव और शिकायतें भेजीं. जिनमें से कुछ का विवरण निम्नलिखित है.

परिवहन भत्ते से संबधित सुझाव-

1) कर्मचारी को उसके मासिक वेतन में कार्यालय आने जाने के लिये मिलने वाला परिवहन भत्ता, जो पिछले कई वर्षों से 800 रुपये ही है, जबकि ईंधन/किराया कई बार बढ़ चुका है. अत: इसे बढ़ाया जाना चाहिये. परिणामस्वरूप बीते बजट में यह सुझाव मान लिया गया और इस भत्ते को बढ़ाकर 1600 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है. संदर्भ:-CBODT/E/2014/04355.

2) मैंने कुछ पुस्तकें मँगाई थी, प्रकाशक ने पंजीकृत डाक से भेजी किन्तु डाक विभाग की लापरवाही के कारण मुझे नहीं मिली. मैंने पंजीकरण का संदर्भ देकर पोर्टल पर शिकायत की. ऊपर से जाँच आ गयी और मेरा पार्सल मेरे पास पहुँच गया. जिले के प्रधान डाकघर से फोन एवं पत्र द्वारा असुविधा के लिये खेद प्रकट किया गया एवं शिकायत के निपटान की सूचना भी दी गई. संदर्भ:- DPOST/E/2014/04079

3) मैं 2007 में बैंगलूरू में था, दिल्ली से कैफियत एक्सप्रेस ट्रेन का कन्फर्म न होने के कारण टिकट रद्द करा कर टीडीआर फाइल कर दी थी. पैसे वापस नहीं मिले थे. नई सरकार से इसकी भी शिकायत कर दी. शिकायत को समझने एवं उसके निपटान के लिये रेल मंत्रालय से दो बार फोन आया किन्तु बहुत पुराना मामला होने के कारण अधिकारी ने खेद प्रकट करते हुए पैसे वापस करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी. शायद शिकायत पैसे वापसी के लिये थी भी नहीं, किन्तु लगा कि मंत्रालय द्वारा शिकायत के निपटान के लिये प्रयास किया गया है. संदर्भ:- MORLY/E/2014/08469.

4) ग्रेटर नोएडा में बीएसएनएल का कार्यालय, स्वयं का बड़ा परिसर होते हुए भी किराये के एक परिसर में चलता है. पोर्टल पर शिकायत कर दी. मंत्रालय द्वारा जाँच हुई और मुझे बताया गया कि दोनों अलग अलग कार्य हैं, जो एक परिसर से संचालित नहीं हो सकते. संदर्भ:- DOTEL/E/2014/23486.

 

भारत पेट्रोलियम द्वारा शिकायत निपटाना–

5) मेरे भारत गैस एलपीजी वितरक ने डीबीटीएल योजना का हवाला देकर मुझे गैस आपूर्ति बंद कर दी और कहा कि आप अपने बैंक खाते का विवरण जमा कर दीजिये, तभी आपको गैस मिलेगी. आवश्यक विवरण देने के बाद भी जब कई दिनों तक गैस नहीं मिली तो वितरक ने कहा कि आपकी गैस उपर से ही नहीं आ रही, जब आयेगी तब दे देंगे. मैंने कहा कि भैया! सरकार बदल गई है, अब ऊपर वालों को दोष देना बंद कर दीजिये, वर्ना आपकी शिकायत कर दूँगा. मैनेजर साहब ने कहा कि शौक से कीजिये सर! हम चाहते हैं कोई हमारी शिकायत कर दे. अत: मैने शिकायत कर दी. उपर से जाँच आ गयी, उसी बुकिंग पर एक नहीं दो दो बार गैस भेजी और जब वितरक ने तीन बार अपने प्रतिनिधि को भेजा तब लिखकर दिया कि गैस मिल गयी है. संदर्भ:- MPANG/E/2015/01717.

उपर्युक्त कुछ उदाहरण हैं, जिनसे मुझे लगा कि सरकार कार्य कर रही है. इसके अतिरिक्त मैने कुछ और सुझाव भी भेजे हैं, जिनमें से कुछ को स्वीकार कर लिया गया है, किन्तु उन पर अभी वास्तविक कार्य नहीं हुआ है. कुछ मामले अभी सिस्टम में लंबित हैं एवं उन पर क्या कार्यवाही हुई, मुझे अवगत भी नहीं कराया गया है. उम्मीद है कि देर सबेर उन पर भी कुछ कार्यवाही अवश्य होगी.

कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता, अत: सरकार से भी पूर्णता की उम्मीद नहीं. अत: कई मुद्दों पर विद्वान लोगों द्वारा सरकार की जो आलोचना हुई, उसका सच भी स्वीकार किया जाना चाहिये. व्यक्तिगत रूप से मुझे सरकार में शामिल लोगों के द्वारा निम्नलिखित आचरण करने से दु:ख हुआ.

1) क्रिकेट की राजनीति में गलत लोगों का साथ देना.
2) भूमि बिल मुद्दे पर शहरी नेताओं द्वारा किसानों का हितैषी बनने की कोशिश करना एवं
3) उन पत्रकारों के साथ गलबहियाँ करना, जिनका आचरण पिछली सरकार में संदिग्ध था.

अंत में सरकार के एक वर्ष पूर्ण होने पर यही कहना है कि जब सरकार का आकलन करें तो स्वयं का भी आकलन कीजिये. मैने सरकार को लिखा और प्राप्त परिणाम से व्यक्ति के रूप संतुष्ट हूँ. राष्ट्र के रूप में निर्णय लेने का अधिकार राष्ट्र को है. अत: मुझे इस सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल पर गर्व होता है.

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