आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है

adwani and soniaआदरणीय आडवानी बाबा,

सादर परनाम !

आगे समाचार इ है कि नीतिश कुमार के तरह-तरह के विरोध के बाद भी नरेन्दर मोदिया बिहार में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। बिहार के लोगबाग नरेन्दर का इन्तज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहा है। नीतीश तो आपके ही मानस पुत्र हैं। जब जरुरत थी तो सांप्रदायिक भाजपा से कवनो परहेज़ नहीं था; अब काम चलाऊ बहुमत पा गए तो सेकुलर बन गए। इ प्रधान मंत्री की कुरसिए ऐसी है कि जो भी उधर देखता है, रातोरात सेकुलर बन जाता है या बनने की कोशिश करने लगता है। आपको भी तो इ कुर्सिए न सेकुलर बनाई है वरना क्या कारण था आपको जिन्ना की तारीफ़ में कसीदा काढ़ने का। छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोलपट्टी खोलनेवाले, रामरथ के सवार, राम जन्मभूमि आन्दोलन के मसीहा को भी अल्ला-हो-अकबर का नारा लगाना ही पड़ा। कबीर दास कह गए हैं – माया महा ठगनी हम जानी। अब देखिए, आप न घर के रहे न घाट के। जातो गवांए और भातो नहीं खाये।

बाबा ! हमरी बात का बुरा मत मानिएगा। इ खत में हम उहे बात लिख रहे हैं, जो जनता कह रही है। सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के चक्कर में पड़कर बुढ़ापा काहे खराब कर रहे हैं? कर्नाटक का अनन्त कुमार जो वहां पर येदुरप्पा के साथ-साथ भाजपा को भी ले डूबा, सुनते हैं आपका सलाहकार है और सुधीर कुलकर्णी आपका प्रवक्ता है। आप जो कल करने को होते हैं कुलकर्णिया दो दिन दिन पहले ही ट्वीट कर देता है। फिर भी आप उसपर ही विश्वास करते है। आपके साथ लगे इस गैंग आफ़ फ़ोर के चारों मेम्बर बहुते डेन्जरस हैं। आप खुद ही देखिए – संसदीय दल की बैठक के दिन आप तो कोप-भवन में थे और ये सभी मोदी को माला पहना रहे थे। आपको छोड़ ये सभी वक्त का मिज़ाज़ भांप चुके हैं। आप से लेटर-बम फोड़वाते हैं और स्वयं राजनाथ की चमचागीरी करते हैं। वैसे कोप-भवन में जाने का परिणाम इस आर्यावर्त्त में अच्छा ही रहा है। कैकयी के कोप-भवन में जाने से राम को वनवास तो जरुर मिला, लेकिन इसके बिना रावण-वध भी नहीं हो सकता था। कलियुग की इक्कीसवीं सदी में आप दो बार कोप-भवन में जा चुके हैं। दोनों बार रिजल्ट ठीके रहा है। मोदी को पी.एम. बनाने के लिए आपको एक बार और कोप-भवन में जाना पड़ेगा। इस बार इसको थोड़ा लंबा रखिएगा। ताज़पोशी के बादे बाहर आइयेगा। लेकिन आपको सलाह देना बेकारे है। आप तो वही कीजिएगा जो कुलकर्णी कहेगा। साठ के बाद लोग सठियाते हैं, आप तो अंठिया गए है। आरे, वर्ण-व्यवस्था बनाने वाले मनु महाराज और हमारे ऋषि-मुनि बुड़बक तो थे नहीं। पचहत्तर के बाद उन्होंने संन्यास आश्रम कम्पलसरी किया था। आप तो पचासी पार कर चुके हैं। काहे को लार टपका रहे हैं। अब राम-राम जपने का वक्त आ गया है। जिन्ना-जिन्ना जपकर काहे आकबद खराब कर रहे हैं? मरने के बाद स्मारको नहीं बनेगा।

पानी पी-पीकर आपको कट्टरवादी और सांप्रदायिक कहनेवाले कांग्रेसी आपसे बहुत आस लगाए हैं। क्या सोनिया गांधी और क्या दिग्गी बाबू, सब आपके लिए आंसू बहा रहे हैं। नीतीश तो नीतीश, लालू भी तारीफ़ कर रहे हैं। कांग्रेसी खेमे में आपकी लोकप्रियता अमिताभ बच्चन से भी ज्यादा है। कल बनारस के लंका चौराहे पर कांग्रेसी नारा लगा रहे थे – आडवानीजी संघर्ष करो, सोनिया तुम्हारे साथ है।

इहां यू.पी बिहार ही नहीं, सगरे हिन्दुस्तान में आपके पोता-पोती राजी-खुशी हैं। बस एके गड़बड़ है – सब नमो-नमो जप रहे हैं। अब चिठ्ठी बन्द करता हूं। थोड़ा लिखना, ज्यादा समझना। पयलग्गी कुबूल कीजिएगा।

 

आपका पोता

जवान हिन्दुस्तानी

 

8 COMMENTS

  1. एक सुन्दर मनोरंजक लेख के लिए विपिन किशोरे सिन्हा जी को बधाई. कुछ टिप्पणियां देखकर ऐसा लगता है कि आदवानिजी के कुछ भक्तों का यह निश्चित मत है कि आदवानिजी ने भाजपा के लिए २०/२५ वर्षा पहले जो कुछ किया उस ने भाजपा के सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिशाली नेता के पद पर आदवानिजी का जीवन पर्यन्त निर्विकल्प आसीन रहना निर्विवाद रूप से सिद्ध कर दिया है अटल जी के बाद २००५ और २००९ के चुनाव भाजपा ने आडवाणीजी के नेतृत्व में लड़े और पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा . २००९ के परिणाम तो विशेष रूप से दुखद रहे . यदि दो दो बार विफल रह कर तथा ८५ वर्षतक पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता रह कर भी आडवाणी जी को किसी योग्य उत्तराधिकारी को आगे लाने का विचार नहीं आया तो यह उनकी महत्वाकांक्षा ही है जो उन्हें पार्टी के हित /अहित की चिंता पर ध्यान देने से रोकती है और यही कारन है की आदवानिजी पार्टी के शुभचिंतकों की श्रद्धा खोकर उपहास के पात्र बन रहे हैं और फिर यदि वे कान्ग्रेस या जय डी यू जैसे पार्टियों का मनचाहा व्यवहार करेंगे तो फिर कोई किसी व्यंग कर को कैसे दोष दे सकता है.

  2. यह लेख विचित्र मानसिकता का प्रतीक माना जा सकता है वैसे इससे लेखक को शांति मिलती है तो ठीक शांत होने दीजिये – कभी जीवन में उन्हें स्वयम इसका अनुभव होगा

  3. विपिन किशोर सिन्हा जी,गुस्ताखी माफ़. यह व्यंग्य नहीं है,यह उस व्यक्ति का सरासर अपमान है,जिसे पूरा बीजेपी पूजता था. उगते सूर्य को अर्घ्य देने की बात तो समझ में आती है,पर बीजेपी के लिए अडवाणी का योगदान बीजेपी के समर्थक कैसे भूल गए? आज सच पूछिए तो नमो भी उसी मार्ग पर चलने का प्रयात्नकर रहे हैं,जिस पर चल कर अडवाणी जी ने बीजेपी के सांसदों की संख्या दो से बढ़ा कर सौ से ऊपर पहुंचा दी थी.ऐसे मैं राजनीति में जाति या धर्म का समर्थक नहीं हूँ,पर हकीकत यही है कि बीजेपी आज भी उसी मार्ग पर चल रहा है, जिसे अडवाणी जी ने दिखाया था.

      • हा हा हा … सिन्हा साहब बहुत सुंदर जवाब दिया है आपने. ….. सादर

    • आज अडवाणी जी से सहानुभूति रखने वाले किसी भी व्यक्ति ने आडवानी जी को कभी वोट नहीं किया होगा, और दूसरी बात संघ इशारों में २००५ से ही आडवानी जी को नए नेतृत्व के लिए रास्ता खाली करने को कह रहा है, लेकिन अडवाणी जी है की संन्यास लेते ही नहीं केवल सचिन-सहवाग के आकड़ो को देखेंगे तो कभी विराट-जडेजा को मौका ही नहीं मिलेगा, इस डर से सौरव को न हटाना और धोनी का विरोध करना की कोई नया नेतृत्व पतन की ओर ले जा सकता है बुजुर्गो में हमेशा होता है, लेकिन युवा हमेशा रिस्क लेने को तैयार होता है और लोकतंत्र में गलतियों को सुधरने की गूंजाईस हमेशा होती है, हमेशा महत्वपूर्ण ये होता है की देश के लिए खेलने वाली टीम कैसे जीत हासिल करेगी

  4. का बात सिन्हा साहब, बहुते अच्छा लिखे हैं जी आप … दिल आपका इ व्यंग पढ़ कर गद गद हो गए राहिल … आसा है अडवाणी जी को कुछ सद्बुद्धि आयेगी…

    प्रणाम…
    आपका पाठक हिंदुस्तानी

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