अब तो शर्म करो केजरीवाल

एक समय था, जब अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के प्रतिबिंब माने जाते थे। अन्ना आन्दोलन के दौरान आईआईटी, चेन्नई में उनका भाषण सुनकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि उनका प्रबल प्रशंसक बन गया। अन्ना ने यद्यपि घोषित नहीं किया था, फिर भी भारतीय जन मानस उन्हें अन्ना के प्रवक्ता और उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने लगा था। उन्होंने तात्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप क्या लगाए, भाजपा समेत आरएसएस भी हिल गया। संघ के ही निर्देश पर गडकरी को भाजपा के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र भी देना पड़ा। गडकरी ने अदालत की शरण ली। केजरीवाल कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके। उन्होंने गडकरी से माफ़ी मांगकर इस घटना का पटाक्षेप किया। गडकरी को उस समय निश्चित रूप से नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन केजरीवाल को ज्यादा क्षति हुई। उनकी स्थापित विश्वसनीयता का ग्राफ अब X-Axis पर लुढ़कने लगा।

इस समय केजरीवाल लालू और दिग्विजय सिंह की श्रेणी में पहुंच गए हैं। मैं आरंभ से ही खेल संघों पर राजनीतिक हस्तियों के नियंत्रण के विरुद्ध रहा हूं। जेटली, शरद पवार, राजीव शुक्ला जैसे कद्दावर नेताओं को क्रिकेट-प्रबन्धन ज्यादा भाता है। मात्र इस कारण उनकी चरित्र हत्या नहीं की जा सकती। केजरीवाल ने अपने प्रधान सचिव के भ्रष्टाचार और उनके कार्यालय पर सीबीआई के छापे से जनता का ध्यान हटाने के लिए बदले की भावना से प्रेरित हो बिना किसी प्रमाण के अरुण जेटली की चरित्र-हत्या करने की अपनी ओर से पूरी कोशिश की। डीडीसीए में हुई कथित अनियमितता के लिए जेटली को दोषी ठहराकर उनसे इस्तीफ़े की मांग भी कर डाली। इसके पूर्व केजरी सरकार ने ही डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए अपने मनपसंद त्रिसदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था जिसकी रिपोर्ट भी आ गई है। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अरुण जेटली के नाम का उल्लेख भी नहीं किया है। ज्ञात हो कि इसके पूर्व  शीला दीक्षित की कांग्रेसी सरकार ने भी अरुण जेटली को घेरने का पूरा प्रयास किया था और डीडीसीए में कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक आयोग का गठान किया था। उसने भी जेटली को क्लीन चिट दी थी। मोदी और अन्य भाजपा नेता राजनीतिक असहिष्णुता के हमेशा से शिकार रहे हैं। पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहा राव ने आडवानी को हवाला काण्ड में लपेटने के लिए भरपूर प्रयास किया था, चार्ज शीट भी दाखिल की थी; लेकिन आडवानी बेदाग सिद्ध हुए। नरेन्द्र मोदी पर जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कांग्रेस ने एक दर्ज़न से अधिक मुकदमे दर्ज़ कराए। सिट से लेकर सीबीआई तक ने वर्षों तक गहन जांच की, लेकिन सत्य, सत्य ही रहा। मोदी पर एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। आज वे देश के प्रधान मंत्री हैं। देश ही नहीं विदेश भी उनके मुरीद हैं।

केजरीवाल कोई आज़म खां, ओवैसी या लालू यादव नहीं हैं। उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। आईआरएस में एक जिम्मेदार अधिकारी के पद की शोभा बढ़ाई है। किसी पर अनर्गल आरोप लगाना, कम से कम उन्हें शोभा नहीं देता है। राजनीति में आने के बाद केजरीवाल इतना नीचे गिर सकते हैं, किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।

25 COMMENTS

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  2. विपिन किशोर सिन्हा जी, आपके समयोचित व सारगर्भित लेख “अब तो शर्म करो केजरीवाल” में प्रस्तुत आपके वक्तव्य “एक समय था, जब अरविन्द केजरीवाल अन्ना हजारे के प्रतिबिंब माने जाते थे। अन्ना आन्दोलन के दौरान आईआईटी, चेन्नई में उनका भाषण सुनकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि उनका प्रबल प्रशंसक बन गया|” ने मानो तीन वर्ष एक माह वर्ष पूर्ण आप ही के लेख, “दिग्विजय की राह पर केजरीवाल” पर मेरी टिप्पणियों में मेरे प्रत्यक्ष अविवेक को क्षण भर में दोषमुक्त कर दिया है| धन्यवाद|

  3. फिरंगी राज से कांग्रेस राज में होते हुए भारत ने बहुत कुछ खो दिया है। कांग्रेस राज की अन्तर्निहित अयोग्यता एवं अनुपयुक्त नीतियों के कारण तथाकथित स्वतंत्र भारत में भारतीयों की निष्ठा और राष्ट्रप्रेम कभी पनप ही नहीं पाया और आज भी हम विद्रोहीमनोभाव नकारात्मक- दृष्टिकोण बनाए हुए हैं। इससे पहले कि हम चिल्ला चिल्ला कर अपने विचारों की दरिद्रता, निर्विरोध असफलता, और चिरस्थाई विवशता को प्रदर्शित करें, क्यों न हम एक बार सकारात्मक ढंग से देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए भारत पुनर्निर्माण में यथायोग्य योगदान दें? कक्षा में व्यर्थ छिद्रान्वेषण करते अध्यापक से बच्चों को भयभीत और किंकर्तव्यविमूढ़ निष्क्रिय होते देखा है तो उसी कक्षा में किसी दूसरे अध्यापक द्वारा प्रोत्साहित करते विद्यार्थियों को स्वर के साथ स्वर मिलाते पाठ पढ़ते और रटते भी देखा है। टिप्पणीकारों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आज राष्ट्रीय शासन से गौरवित वे सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए सुधारवादी विचार प्रस्तुत कर सामान्य नागरिकों को लाभान्वित करें।

  4. सभी टिप्पणियां नमो भक्तों या केजरी प्रशसकों की हैं की हैं, क्याा निष्पक्ष चिंतन की इतनी कमी है!अन्य लेखों की तरह यह लेख भी लेख भी एकपक्षीय ही है

    • आप किसी पर अंध भक्त या प्रसंशक का लेबल लगा कर उसकी बातो को नकारती है तो आप निष्पक्ष चिंतन की हिमायती कैसे हो सकती है। यह लेख और टिप्पणियों ने सर्वाधिक पाठको को आकृष्ट किया है, अतः प्रशंसनीय है। सत्य दो अतियों के बीच कही छुपा होता है। आप अंध मोदी विरोधी है और यह भी एक अति ही तो है।

      • जिनको मैने नमो भक्त या केजरी प्रशंसक कहा है, उनकी लेखनी और विचारों को बहुत बार पढ़ा है। मै मोदी जी की इज्जत करती हूँ, जब कभी कुछ सही लगा है वह भी कहा है।

  5. अब तक के सबसे ज्यादा अभद्र और रोड छाप टपोरी भाषा से अलंकृत मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल है ! झूठ ऐसा बोलते हैं वो भी कैमरे के सामने जैसे लगता है की वे ही एक सच बोलते हैं बाकि श्रोता उनके चमचे जो हर बात को बिना सोचे समझे स्वीकार कर लेंगे ! आज तक कोई बात ठोस और सबूत से इस आदमी ने नहीं प्रमाणित किया न ही न्यायलय तक पहुचाया ! हर बार पल्टी मारी ! इस बार भी डेफरमेसन के केश में जेटली जी से माफीनामा लेकर पहुच जायेंगे ! क्युकी शर्म तो उनको लगती है जो सम्मान और इज्जत को समझते है गुंडे को क्या सम्मान !

  6. 1. केजरीवाल को “सुचना के अधिकार” के दिनों से देखने की कोशीस करे। विश्व के सभी देशो में “सुचना के अधिकार” सुनिश्चित करने वाले कानून बने इसके लिए पश्चिमी देशो ने आई.एन.जी.ओ. के सञ्जाल के मार्फत व्यापक काम किया। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका आदी सभी देशो में आई.एन.जी.ओ. के धन से लोगो ने “सुचना के अधिकार” कानून की वकालत की थी। भारत में भी कुछ लोगो ने यह काम किया और उसमे केजरीवाल प्रमुख व्यक्तियो में आते है। उन्होंने जो काम किया उसके लिए विचार (idea) और धन संसाधन विदेशी दातृ संस्थाओ से उन्हें मिले।

    2. “सुचना के अधिकार” कानून से पश्चिमी देशो को क्या लाभ था, यह लम्बी विवेचना का विषय है। लेकिन एक बात सोलह आने सच है की पश्चिमी देश सिर्फ जनहित के लिए धन नही देते उसमे उनका भी स्वार्थ छुपा होता है।

    3. आधुनिक भारत में इंदिरा गांधी को एक देशभक्त लीडर के रूप में देखता हूँ। इंदिरा गांधी ने भारत को कई जोड़दार सफलताए दिलाई, जो शायद शक्ति राष्ट्रों को रास नही आया। उन्होंने जयप्रकाश को इंदिरा गांधी के पीछे लगा दिया, और अंततः इंदिरा गांधी को सत्ता से हटना पड़ा।

    4. भारत में जब भी किसी देशभक्त लीडर का उदय होगा तब किसी जय प्रकाश या अरविंद केजरीवाल जैसे पात्र को उसके पीछे लगा दिया जाएगा। जे.एन.यु. जैसे केंद्र उनकी योजना को अमली जामा पहनाने में अपनी भूमिका अदा करते है। कोई नितीश और ममता तो उन्हें राह पर मिल ही जाते है।

    5. काठ की हांडी बार बार नही चढ़ सकती, लोगो को असलियत समझ में आ चुकी है। अब केजरीवाल का सिक्का नही चलेगा।

    • क्या इंदिरा गांधी सचमुच देश भक्त नेता थी?अगर ऐसा था तो अपने को सर्वोपरि राष्ट्र भक्त मानने वाला संगठन यानि आर.एस.एस उनके विरुद्ध जय प्रकाश नारायण को क्यों साथ दे रहा था?जेपी आंदोलन का आधार स्तम्भ आर.एस.एस था.जेपी ने इसे एक से अधिक बार स्वीकार किया था.इतना ही नहीं आर.एस.एस के आज के सब नेता या कार्य कर्ता जिनकी उम्र साठ या उससे ज्यादा हो चुकी है,जिसमे नमो का नाम भी शामिल है,सक्रिय रूप में जेपी आंदोलन में भाग ले रहे थे.आखिर ऐसा क्यों था?क्या आर.एस एस भी उस समय देश द्रोहियों का साथ दे रहा था?रह गयी काठ की हांडी की बात ,तो दिल्ली में आआप दो बार जीत चूका है,अगर आगे भी किसी राज्य में आआप की जीत होती है तब आप क्या कहेंगे?

      • आर.सी. सिंह साहब, कमेंट के लिए धन्यवाद। आप पहले व्यक्ति है जो जेपी के बारे में मेरी राय से सहमत है. संघ राष्ट्रवादी संगठन है, इस बात में कोई शक नही. संस्था के उद्देश्य पवित्र होते हुए भी उसके संचालक व्यक्ति परिस्थितिवश जाने अनजाने कोई कदम उठाते है जिसे सही या गलत ठहराना कठिन होता है. कई बार घटनाए इतनी तेजी से घटती है की घटनाक्रम निर्णय लेने की क्षमता पर हावी हो जाता है. आपातकाल की घोषणा के समय हुए घटनाक्रम ने कदाचित संघ और इंदिरागांधी को एक दूसरे का सामने खड़ा कर दिया था, यह मेरा अनुमान है. खैर, मैं संघ का प्रवक्ता नही हूँ, मेरा मानना है की संघ राष्ट्रवादी संगठन है, इंदिरा भी कुछ कमियो के बावजूद एक देशभक्त लीडर थी, उनके योगदान के लिए मैं उनका सम्मान करता हूँ. जयप्रकाश और केजरीवाल जैसो को एक ही तराजू में तौलता हूँ मैं. जेपी के जीवन पर शोध करेंगे तो बहुत कुछ स्पस्ट होगा.

        • हिमवंत जी,मैं कुछ हद तक जेपी आंदोलन का हिस्सा था. मेरी अपनी मजबूरियां थी,जिसके चलते मैं उस समय उतना योगदान नहीं दे सका जितना मैं चाहता था. आर.एस.एस के साथ भी मेरा बहुत नजदीक का नाता रहा है,अतः उनको भी मैं बहुत हद तक समझता हूँ. .मैंने अपने एक आलेख में पहले भी जिक्र कर चूका हूँ कि जेपी ने इस आंदोलन की बागडोर कैसे और कब संभाली थी. भ्रष्टाचार तो भारत में कम या अधिक हमेशा रहा है,पर इंदिरा गांधी ने इसे संस्थागत रूप दे दिया था.पाकिस्तान के युद्ध का उनका समयोचित निर्णय और उसमे भारत की विजय उनके युग की भारत को गरीमा प्रदान करने वाली सर्वश्रेष्ठ घटना है.फिर भी इंदिरा गांधी को मैं देशभक्त नहीं मानता,क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार और चापलूसी को सबसे ज्यादबढ़ावा दिया था.रही आर.एस.एस की बात ,तो उसके नजदीक रह कर भी मैं पूर्णतः उसको अपना नहीं सका,क्योंकि मुझे उसका राष्ट्र वाद का नारा और हिंदुत्व दोनों ढोंग लगने लगा था.आज अगर इसको आप विस्तार से समझाने को कहियेगा ,तो मैं नहीं बता सकूँगा,क्योंकि आज लोग इसे अरविन्द केजरीवाल से जोड़ने लगेंगे,पर मेरा यह मोहभंग सतर अस्सी के दशक में ही हो चूका था.जेपी को पूर्ण रूप में समझना सचमुच कठिन था,पर वस्तुतः मैं उनको एक अच्छा विचारक मानता था,जो देश के लिए कटिबद्ध दीखता था.

          • अरे वाह सिंह साहब, आप तो बड़े अनुभवी आदमी है-जे.पी., संघ, इंदिरा और केजरीवाल सभी को आपने नजदीक से देखा है।

            1. जेपी पर मैंने शोध किया तो पाया की वह लम्बे समय अमेरिका में रहे थे। जो लोग उनके साथ रहे है, उनसे बात करने पर यह पता चला की उनमे से अधिकाँश को इस बात का पता नही है। उनको नेपाल के बीपी कोइराला आदि के आत्म व्रुतान्त के जरिए भी समझने की चेष्टा की है। वह मेरे लिए संदिग्ध पात्र हैं।

            2. इंदिरा जी के बारे में मेरी धारणा उच्च है। वह भारत विरोधी शक्तियो की षड्यंत्र का शिकार बनी। संजय गांधी की मर्तुयु या हत्या (?) के बाद नाटकीय ढंग से राजीव और सोनिया गांधी का उनके जीवन में प्रवेश फिर उनकी ह्त्या और फिर राजीव की हत्या, फिर सोनिया का भारत का सुपर प्राइम मिनिष्टर बनना, यह सब किसी गर्यान्ड डिजाइन का हिस्सा लगती है । चापलूसी और भरस्टाचार के लिए मैं समाज को दोषी मानता हूँ, न की किसी नेता को। आज भी देश की राजनीति में चापलूसी और वंशवाद हावी है। विचार बदलेंगे तो व्यक्ति बदलेगा, व्यक्ति बदलेंगे तो समाज बदलेगा। अच्छा नेता अच्छे विचार देने की कोशीस करता है, अच्छे निर्णय लेता है।

            3. संघ सिर्फ आदमी के विचारो का निर्माण करता है फिर उसे स्वतन्त्र छोड़ देता है। जो लोग संघ से अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते है उन्हें निराशा होती है। कई विषयो पर संघ की नीतियों में मुझे खामिया नजर आती है तो मैं उनकी आलोचना करता हूँ, लेकिन कई बार आगे जा कर मुझे लगता है की मैं गलत था। संघ के बारे में मैं अधिक नही जानता। लेकिन जितनी भी देश विरोधी शक्तिया है वे संघ से बहुत डरती है और उनके विरुद्ध मिथ्या प्रचार करती है। मैं संघ का प्रशंसक हूँ लेकिन उनका कार्यकर्ता नही हूँ, मैं स्वतन्त्र रूप से समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन का प्रयास करता हूँ। संघ के नारे आपको ढोंग क्यों लगते है जरा उन पर फिर से विचार करे और सविस्तार कुछ लिखे तो बात समझ में आएगी।

            4. रही बात केजरीवाल की, वह मुझे जयप्रकाश नारायण दिखता है। देश को गुमराह करने वाला अराजकतावादी। किसी बाहिरी शक्ति का एजेंट।

        • हिमवंत जी,आपने अपनी इस टिप्पणी में दो तीन मुद्दे एक साथ उठाये हैं.पहले जय प्रकाश नारायण के बारे में विचार करते है.सचमुच अब समय आ गया है कि उनके राष्ट्र के प्रति योगदान का पूर्ण मूल्यांकन किया जाये.आपने लिखा है कि वे अमेरिका में बहुत समय तक रहे थे,पर आप भूल रहे हैं कि कांग्रेस का साथ छोड़ने के बाद वे आचार्य नरेंद्र देव और डाक्टर राम मनोहर लोहियाके साथ मिल कर सोशलिस्ट पार्टी बनाये थे.जहाँ तक मुझे याद है,प्रभावती जी यानि जेपी की धर्मपत्नी ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था.अमेरिका से प्रभावित व्यक्ति सोशलिस्ट नहीं हो सकता था. १९५१ में जब विनोबा जी ने भूदान आंदोलन आरम्भ किया और सर्वोदय उनका मूल मन्त्र बना और उसके लिए विनोबा जी ने जीवन दान करने का यानि जीवन दानी बनने का आवाहन किया तो जय प्रकाश नारायण पहले जीवन दानी बने थे.वही उनको अपनी धर्म पत्नी का भी साथ मिल गया ,क्योंकि वह भी सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गयी और जीवन दानी बन गयी.इसके बाद के जेपी के जीवन में अगरकोई रहस्य मय दौर है तो मुझे इसकी जानकारी नहीं.
          अब बात आती है इंदिरा गांधी की,तो मैं उनको देश को बर्बादी की तरफ ले जाने वाला नेता मानता हूँ.उनका भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला कदम,चापलूसों को महत्त्व पूर्ण बनाने वाला दृष्टि कोण ये सब गलत दिशा की ओर इशारा कर रहे थे.उनकी आर्थिक नीतियां भी देश को गढ़े में ले जा रही थी.देश की वह पहली नेता थी,जिन्होंने भारत में भ्रष्टाचार को उचित ठहराया था,यह कहकर कि दुनिया में भ्रष्टाचार कहाँ नहीं है.पाकिस्तान पर स्पष्ट विजय उनके शासन काल का स्वर्णिम दौर है. बात यही नहीं ख़त्म होती.अगर इंदिरा गांधी देशभक्त थी,तो आर.एस एस को आप क्या कहेंगे,जो इंदिरा गांधी के पीछे प्रत्यक्षतः उनके १९७१ के चुनाव के समय से पड़ा हुआथा.आर,एस.एस इंदिरा के गांधी के सामने केवल आपत्काल में नहीं खड़ा था.पूरा जेपी आंदोलन आर.एस.एस के बल पर चल रहा था.१९७१ के बाद इंदिरा गांधी के चुनाव में धांधली और उसके लिए केस दर्ज करने की बीज उसी दिन डाली जा चुकी थी,जब राजनारायण इंदिरा गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़ने गए थे.अतः आप इंदिरा गांधी और आर.एस.एस को एक साथ देश भक्त नहीं कह सकते,देश द्रोही भले ही दोनों एक साथ कह दिए जाएँ.
          फिर बात आती है,अरविन्द केजरीवाल की तो,मेरे विचार से उनके मूल्यांकन का समय अभी नहीं आया है.अभी तो सक्रीय राजनीति में उन्होंने कदम ही रखा है.
          अंत में, इस आलेख से सम्बंधित यह मेरी आखिरी टिप्पणी है.

          • आप टिप्पणी भले यहाँ खत्म कर दे लेकिन मूल बात यह है की आप चीजो को यथास्थिति में नही देख पा रहे है। आप कुंठा, भय और स्वार्थ से ऊपर उठे बिना सत्य को नही देख सकते। मैं किसी संघ, इंदिरा या केजरीवाल का कार्यकर्ता नही हूँ। मैं स्वतन्त्र मूल्यांकन करना चाहता हूँ। आप असहमत होने के लिए स्वतन्त्र है। जेपी जब अमेरिका से लौटे तो शुरू के दौर में तो वह साम्यवादी मार्क्सवादी मुखौटे में थे, बाद में कांग्रेस नेहरू को ज्वाइन किया, उसके बाद लोहिया और अन्य लोग से जुड़े, किसी एक घटना से नही, उनके सम्पूर्ण जीवन को बड़े कैनवास पर देखे तो चीजे स्पस्ट होती है। वे कुछ शक्ति राष्ट्रों के हित में भारत के राष्ट्रहित में काम करने में सफल इंदिरा को अपदस्थ करने के शक्ति राष्ट्रों के मनसूबे को पूरा करने का काम कर रहे थे। जहां तक इंदिरा गांधी की बात है, उनकी आर्थिक नीतियों में कुछ गलत होगा, कुछ शैली से असहमति होगी लेकिन कुल मिला कर मैं यह मानता हूँ की उनका योगदान अतुलनीय है। आपकी यह बात बिलकुल गलत है की परस्पर विरोधी संघ एवं इंदिरा दोनों को एक साथ देशभक्त नही कहा जा सकता। परस्पर विरोधी चीजे पूरक होती है, दर्शन की उचाई पर से यह स्पस्ट दिखता है। कोई देशभक्त मार्क्सवादी, कांग्रेसी और भाजपाई ऊपर से परस्पर विरोधी होते हुए मेरी प्रशंसा पा सकते है, क्योंकि कोई क्या कर रहा है, इससे अधिक महत्वपूर्ण है की की वह किस नियत से कर रहा है। जेपी, केजरीवाल, जयचन्द की नियत संदिग्ध है।

  7. यदि जेटली जी इतने साफ पाक हैं तो आरोप लगाने वाले कीर्ति आज़ाद को भाजपा से बाहर का रास्ता क्यो दिखाया/किसी विशेष संस्थान से डिग्री लेने का मतलब ये नही की वो ग़लत गतिविधियों मे लिप्त नही हो सकता/ सच मानिए तो मोदी सरकार की सबसे कमजोर कड़ी इस समय जेटली हैं मानी हानि का दावा करके इन्होने मुसीबतो का पिटारा खोल दिया है / जिस जांच आयोग की बात कर रहे हैं वो क्या राजनीति से प्रेरित या प्रशासन के दबाव मे काम नही कर रहे हैं क्या? डीडीसीए घोटाले में वित्त मंत्री अरुण जेटली को किसी तरह से क्लीन चिट नहीं मिली है अभी तो जाँच शुरू हुई है गोपाल सुब्रह्मण्यम आयोग ने अभी काम शुरू किया है बीजेपी और अरुण जेटली जांच से क्यों भाग रहे हैं? आप को यही सामने ही दिखाई दे रहा होगा की व्यापं घोटाले मे जाँच क्या हो रही है और किस तरह से शिवराज पाटिल और भाजपा को बचाने के लिए CBI सुस्त पद गई है / जो वास्तव मे गिर गये हैं वो नजर नही आ रहे हैं लोगो को/ अगर केजरीवाल गिर गये हैं तो ये बताइए कौन सा चेहरा दूध का धुला है/

    • भाई आप पहले ये जानिए क्यों कीर्ति आज़ाद निकाले गए ! उनसे ज्यादा बार पार्टी के खिलाफ शत्रुघ्न सिन्हा बोल चुके हैं ! कीर्ति आज़ाद ने जेटली जी को नपुंसक कहा ! क्या इसके बाद भी उन्हें पार्टी में रखना चाहिए ! दूसरी तरफ योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण जब उजागर किये तो उन्हें कजरी क्यों निकाला ! उनका क्या दोष था !
      भाई जब जेटली जी का नाम तक नहीं है उन्ही के द्वारा बनी कमिटी के फाईल में ,फिर क्या मंगल से उन्हें कोई एलियन बताया की जेटली दोषी है !
      बात ये है की राजेंद्रा के ऊपर लगे छपे के वजह से उनकी पोल खुल रही थी जनता का ध्यान दूसरी तरफ किया केजरीवाल ने जेटली जी पर इल्जाम लगाकर !
      जब नाम ही नहीं है तो गोपाल सुभ्रमनयम क्या जीवनी लिखेंगे ! वैसे भी वो पोलिटिकल आदमी है जिन्हें खीज है की बीजेपी ने उन्हें सुप्रेम कोर्ट का जज नहीं बनाया !

        • सिंह साहब, शत्रु धन क्यों नही निकाले गए, यह कोई भला आपको क्यों बताएगा। राजनीति में 1 और 1 मिल कर दो भी होते है, एगारह भी और शून्य भी। आज आपका प्रश्न बेमाने और उत्तर भविष्य में छिपा है। आप समझ नही रहे है की समझ कर भी नही समझना चाहते।

        • इस बात से केजरीवाल का क्या संबंध? केजरी भक्तों की यही सबसे बड़ी चाल है कि कोई भी प्रश्न हो, वे प्रश्न का उत्तर न देकर अनर्गल प्रश्न करके बचना चाहते हैं.

          • अरे भाइयो, भक्त बनना है तो देशभक्त बनो और देशभक्त मोदी जी के साथ मिल भारत का पुनर्निर्माण करो|

    • avanish ji,,,bol chaal ki bhasha to kam se kam sabhi netao ke is kejri se achhe hai,,,kam se kam PM pad ka to samman karna chahiye.modi ka karo na karo….

  8. मुझे केजरीवाल की भाषा पर आपत्ति है। जब पढता हूँ; लगता है, गोलपीठा का दलाल बोल रहा है। उनके नरेंद्र मोदी के लिए प्रायोजित शब्द, मोदी जी के बदले केजरीवाल के मस्तिष्क के कूडे को उजागर करते हैं।मोदी सामान्यतः प्रतिक्रिया में नहीं मानते।कार्य से बोलने में विश्वास करते हैं। गुजरात में यही अनुभव है।
    फिर केजरीवाल स्वयं पर लगे आरोंपों का उत्तर नहीं देते; कोई अलग प्रश्न उठा देते हैं।
    ————————————————————-
    न्यायालय में आप पूछे प्रश्नों के बदले, अलग प्रश्न पूछे; तो त्वरित न्यायाधीश बीच में काट के पूछे हुए प्रश्नका उत्तर देने कहेगा।
    *मेरा अनुमान है, कि, राजेन्द्र की सी. बी. आय. के छापे से छींटे का डर केजरीवाल को है।
    पर दिल्ली के पढत मूर्ख मतदाताओं ने ये क्या किया? अब भोगने को सिद्ध रहें।
    *विपिन जी धन्यवाद। लिखते रहिए।

    • आप नमोदी के अंध भक्त हैं यह प्रमाणित हो चूका है,अतः आप अपने भगवान से गलती की कोई उम्मीद कर ही नहीं सकते..आप जब किसी व्यक्ति को गाली देते हैं,तो इसको भी आपका उस व्यक्ति के बीच का मामला समझ कर नजर अंदाज किया जा सकता है,पर आप दिल्ली की ५४% मतदाता को मूर्ख कहने वाले कौन होते हैं? क्या आपका कद इतना बड़ा है कि भारत के राजधानी के बहुमत को आप गाली दे सकते हैं?यह भी मत भूलिए कि जिस नमो को आप भगवान मान रहे हैं,उनको भी केवल ३१% मत प्राप्त हुआ है.

      • आप दिल्ली के बहुमत द्वारा चुने केजरी का बचाव कर रहे हैं. मैं आप ही के तर्क से बात करता हूँ. क्या मोदी देश के बहुमत द्वारा चुने प्रधानमंत्री नहीं हैं? फिर केजरी किस घटिया और ओछी भाषा का प्रयोग प्रधानमंत्री के लिए करते हैं? केजरी को ये हक है कि वो सबको गालियाँ दे, लेकिन किसी को ये हक नहीं कि केजरी के लिए कोई कुछ कहे. आपके दोहरे मापदंड क्यों हैं?

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