सन् 1960 में जैन इण्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) में आयोजित एक कवि सम्मेलन में उस समय के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी चर्चित रचना दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी तो पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी से माइक छीन कर बोला-‘बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो शासन के खिलाफ हैं।’ उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से वहाँ पहुँचा और उसने उस दरोगा को मंच पर ही उठाकर दे मारा।
विद्रोही जी ने मंच पर बैठे कवि उदय प्रताप सिंह से पूछा ये नौजवान कौन है तो पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव है। उस समय मुलायम सिंह उस कालेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह वहाँ प्राध्यापक थे। बाद में यही मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री बने तो उन्होंने विद्रोही जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया।
मुलायम का संघर्षमयी जीवन
वर्ष 1954 में मात्र 15 वर्ष की आयु में मुलायम ने डा0 लोहिया के आह्वान पर छेड़े गये ‘नहर रेट’ आंदोलन में हिस्सा लिया और पहली बार जेल गये।इसके बाद तो आंदोलन का सिलसिला ही चल पड़ा।आपातकाल के दौरान 19 महीने तक जेल में रहे मुलायम ने अक्टूबर 1992 में किसानों के हितों की रक्षा के लिये देशव्यापी आंदोलन चलाया और इस बार भी मुलायम को जेल जाना पड़ा।
वर्ष 1961-62 में इटावा डिग्री कालेज छात्रसंघ का अध्यक्ष बनने के बाद मुलायम ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।वर्ष 1980 में उत्तर प्रदेश लोकदल के अध्यक्ष बने।लोकदल विभाजन के बाद उत्तर प्रदेश क्रांतिकारी मोर्चा का गठन किया और बाद में उत्तर प्रदेश लोकदल(ब)के अध्यक्ष बने।जनता दल के गठन के बाद उत्तर प्रदेश जनता दल के अध्यक्ष बनने वाले मुलायम ने 1989 में जनता दल चुनाव अभियान समिति का कुशलता के साथ संचालन किया। 1967 में पहली बार मुलायम सिंह संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी के टिकट से चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचने वाले सबसे कम उम्र के विधायक बने।वर्ष 1974 में भारतीय क्रांतिदल तथा वर्ष 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर विधान सभा के लिये चुने गये।इसी वर्ष बनी जनता पार्टी की सरकार में मुलायम सहकारिता और पशुपालन मंत्री बने।1982 में मुलायम विधान परिषद में नेता विरोधी दल भी रहे।1989 के विधान सभा चुनाव में जनता दल के टिकट से पुनः चुनाव जीते और 05 दिसंबर 1989 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे। इसके अतिरिक्त वे केन्द्र सरकार में रक्षा मन्त्री भी रह चुके हैं।
लगता है आप को कोई भ्रम हुआ है – अब न वो थानेदार है और न ही वह नवयुवक। अगर आप उत्तर प्रदेश में ही रहते हैं तो आप वास्तविकता जानते होगे । शांति व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं । ये सब स्वयं को लोहिया के अनुगामी कहते हैं लेकिन लोहिया जी स्वर्ग में भी इन के कारनामों को देख कर परेशान हैं । कठिनाई यह है की इन का विकल्प भी कोई नहीं है – हमाम में सब नंगे हैं ।