अफ़सरों से अधिक राजनेताओं को इलाज की ज़रूरत?

इक़बाल हिंदुस्तानी

यूपी में डीआईजी फायर सर्विसेज़ डी डी मिश्रा को व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा दर्ज करने पर बदले की भावना से मानसिक रोगी बताकर ‘राहे रास्त’ पर लाने की कोशिश की जा रही है। इतना ही नहीं उनकी सच्ची और कड़वी बातों को सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन बताकर उनके खिलाफ अनुशासनहीनता का एक और मोर्चा खोला गया है। हालांकि अब मिश्रा मानसिक चिकित्सालय से अपने घर लौट आये हैं लेकिन अंदाज़ लगाया जा रहा है कि शायद उन्होंने या उनके परिवार और मित्रों ने आगे से सरकार या व्यवस्था के खिलाफ एक भी शब्द न बोलने का वायदा किया है जिसका संकेत इस बात से मिलता है कि जब मीडिया उनके घर उनका पक्ष लेने पहुंचा तो न केवल वे खुद बल्कि उनके मित्र और परिवार वाले भी डरे सहमे कुछ भी कहने को तैयार नहीं हुए। दरअसल डीआईजी डी डी मिश्रा का मामला नया हो सकता है लेकिन सत्ता का यह तानाशाह, अत्याचारी और क्रूर रूख़ ऐसे ईमानदार, सिध्दांतवादी और नियमानुसार चलने वाले अधिकारियों के लिये पुराना है। 1971 के बैच के आईएएस अफसर धर्म सिंह रावत को सरकारी भ्रष्टाचार सहन नहीं हुआ तो उन्होंने हर जगह तैनाती के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को बार बार शिकायत भेजी लेकिन जब किसी ने उनकी बात पर कान नहीं दिये तो वह विरोध में राजधानी लखनउू जाकर धरने पर बैठ गये। अपने पूरे कार्यकाल में वे पांच बार भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन पर गये लेकिन नीचे से उूपर तक सब मिले हुए थे, इसलिये कोई कार्यवाही किसी के खिलाफ नहीं हुयी और उनको सनकी बताया जाता रहा। ऐसे ही 1994 बैच के पीपीएस शैलेंद्र सिंह ने जब बड़े माफियाओं के खिलाफ कानून का डंडा चलाना चाहा तो उनको पालने वाले आका नेता शक्तिशाली दीवार बनकर उनके सामने आकर खड़े हो गये। सिंह को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उल्टे जब उनके खिलाफ ही अनुशासन का डंडा चलने लगा तो 2004 में उन्होंने तंग आकर सेवा से इस्तीफा दे दिया। 1976 बैच की प्रोमिला शंकर को एनसीआर की कमिश्नर के रूप में यमुना एक्सप्रैसवे के मास्टर प्लान को जबरदस्ती एप्रूव करने के लिये मजबूर किया गया जब वे इसके लिये तैयार नहीं हुयीं तो उनको बिना अनुमति विदेश जाने का आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया। 1969 बैच के सहकारी सेवा के अधिकारी के सी कर्दम ने 1976 में बदायूं के ज़िला सहकारी बैंक में एक ऐसा घोटाला पकड़ा जिसकी जांच की आंच कई बड़े सफेदपोशों तक पहुंच रही थी उनको बार बार जांच रोकने का इशारा मिला लेकिन वे जब नहीं माने तो उनको इस करोड़ों के घोटाले को दबाने के लिये मात्र 200 रूपये की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ लिया गया। वे कई बार धरने पर बैठे और लगातार चिल्लाते रहे कि उनको झूठा फंसाया गया है लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। अदालत ने उनको ईमानदार अधिकारी माना और केस खारिज कर दिया। 1995 में आईएएस अधिकारी राय सिंह ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण के पद पर रहते बार बार तबादला होने पर यह कड़वा सच कहने की हिम्मत की थी कि अफसरों को ताश के पत्तों की तरह नहीं फेंटा जाना चाहिये और कुछ समय तक एक जगह काम करने का मौका दिया जाना चाहिये बस इतनी बात पर उनको भी निलंबित कर दिया गया था। इसका यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि आज हमारी व्यवस्था इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि वह सुधरना तो दूर कोई ईमानदार अधिकारी उसको आईना दिखाता है तो वह तिलमिला कर उसी पर हमला करती है। ऐसे में एक बीच का रास्ता भी है जो पीसीएस जे पी गुप्ता जैसे लोगों ने अपनी संवेदनशीलता से अपनाया है। जे पी गुप्ता जिनको लोग प्रेम से जनप्रिय गुप्ता भी कहते हैं, एक साल से अधिक समय से नजीबाबाद के एसडीएम हैं। इस दौरान उन्होंने जहां जनता से अपने सरोकार लगातार मज़बूत किये हैं वहीं एक कवि के रूप में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है। इतना ही नहीं वे केवल साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करके रह जाते हों बल्कि उनके व्यवहार में भी एक संवेदनशील इंसान की भावनाएं झलकती हैं। मिसाल के तौर पर वे मूक बधिर और विकालांग बच्चो के प्रेमधाम आश्रम जाते हैं तो अपने बच्चे का जन्मदिन उन अनाथ बच्चो के साथ ही मनाते हैं। साथ ही इस दिन उन बच्चो को फल और कपड़े बांटते हैं। इस दिन घंटों उन मासूम और पेरशान बच्चो के साथ गुज़ारने का नतीजा यह होता है कि जे पी गुप्ता उन बच्चो के दर्द और जज़्बात पर एक लंबी कविता लिख देते हैं और जब यह कविता पहली बार वे अपने मित्रों को सुनाते हैं तो सबकी आंखे गीली हो जाती हैं। एक घटना याद आ रही है। एक बार इस पत्रकार ने गुप्ता जी को बताया कि पास के एक गांव में एक बेहद गरीब परिवार रहता है। उसकी सरकारी स्तर पर कुछ सहायता करा दीजिये। गुप्ता जी ने कहा ठीक है। बात आई गयी हो गयी। सारी तहसील में गरीबों का सर्वे हुआ। इस बेहद गरीब परिवार का नाम उस सूची में संयोग से नहीं आ पाया। मैंने एक दिन गुप्ता जी को फिर याद दिलाया कि उस परिवार को आपके एसडीएम होते हुए कोई मदद नहीं मिल रही। उन्होंने कहा एक दिन मौके पर चलते हैं। वे एक शाम बिजनौर से लौट रहे थे। उनका फोन आया कि मैं जलालाबाद बाईपास पर पहुंच रहा हूं। आप भी उस गांव के लिये चलने को आ जाईये। मैंने सब काम छोड़े तुरंत वहां पहुंचा। जब हम उस गांव में प्रवेश कर ही रहे थे, गुप्ता जी ने अपनी पारखी नज़रों से दूर से ताड़ लिया कि वह परिवार है क्या जिसने प्लास्टिक की पन्नी से अपना आशियाना सर छिपाने को जैसे तैसे बना रखा है। मैंने कहा हां बिल्कुल ठीक वही है। पूरे गांव में शायद वह अकेला गरीब परिवार था जिसने सर्दी से बचने के लिये यह जुगाड़ किया हुआ था। दाद देनी पड़ेगी एसडीएम साहब की सोच और समझ की। पहले उन्होंने अपने स्टाफ से यह पता लगाया कि यह बेहद पात्र और ज़रूरतमंद गरीब परिवार सरकारी योजना में आवास, बीपीएल कार्ड और अन्य सुविधाओं से अब तक वंचित रह कैसे गया? जब पता लगा कि सर्वे के समय यह परिवार किराये के मकान में रह रहा था, तब उन्होंने प्रशासन की भूल का सुधार करते हुए सबसे पहले अपनी जेब से एक बड़ी धनराशि निकालकर इस परिवार को मदद के तौर पर थमाई। अपनी पत्रकारिता के तीन दशक में मैंने ऐसे ईमानदार अधिकारी तो कई देखे जो काम न होने पर पैसा लौटा देते थे लेकिन किसी गरीब की अपनी जेब से बड़ी रकम देकर मदद करने वाला जेपी गुप्ता जैसा मानवप्रेमी और गरीब सेवक पहली बार देख रहा था। बाद में इस परिवार का बीपीएल राशनकार्ड बनाने को जेपी गुप्ता ने एक शिक्षिका का फ़र्जी बीपीएल कार्ड निरस्त किया क्योंकि वह अपने पेपर सत्यापित कराने उनके पास आई थी जबकि उसकी वेतनपर्ची में आय 17000 रू0 मासिक लिखी हुयी थी। ऐसे और भी कई केस हैं जिनकी लीक से अलग हटकर जेपी गुप्ता जी ने जेब से बार बार मदद की है। आदमी में लगन और इरादा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं लगता। यही बात लोकप्रिय उपज़िलाधिकारी जे पी गुप्ता पर बिल्कुल ठीक लागू होती है। जब उनको यहां आये कुछ ही माह हुए थे, तभी पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने कवि सम्मेलन और मुशायरे की नई परंपरा शुरू कर दी थी। गत वर्ष यह भव्य प्रोग्राम एक बड़े बैंक्वट हाल में हुआ था। इस साल एसडीएम गुप्ता जी ने इस गंगा जमुनी कार्यक्रम को स्थायी रूप देने को इसकी भविष्य के लिये ज़िम्मेदारी नगरपालिका परिषद पर डाल दी। यानी चेयरमैन और एसडीएम चाहे जो रहे यह प्रोग्राम हर साल 15 अगस्त को बदस्तूर होता रहेगा। इस बार यह बात खासतौर पर नोट की गयी कि शहर में अलग अलग संस्थाओं से एसडीएम गुप्ता जी ने आधा दर्जन से अधिक द्वार स्वतंत्राता सेनानियों के नाम पर बनवाये थे। भारत टाकीज़ के पास जीर्ण क्षीर्ण पड़े तिकोने पार्क की सफाई कराकर उसकी पुताई और बिजली की झालर से सजावट होने से नेशनल हाईवे से आने जाने वाले उत्तराखंड और राजधानी दिल्ली तक के यात्रियों पर एक अच्छा मैसेज गया कि हां नजीबाबाद में भी 15 अगस्त जोरशोर से मनाई जा रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एसडीएम जेपी गुप्ता ने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से देशभक्ति की भावना का परिचय देते हुए नगर में साहित्यिक, सांस्कृतिक और भाईचारे का माहौल बना दिया है। इस बार एक विशेष बात यह भी नोट की गयी कि नगर मेंं मुस्लिम भाइयों की तरफ से होने वाला होली मिलन का प्रोग्राम, जिसका संयोजक इन पंक्तियों का लेखक रहता है को भी जेपी गुप्ता जी ने संगीत के साथ अपना होली का विशष गीत पेश कर चार चांद लगाये थे। नतीजा यह हुआ कि जिस गीत को लेकर कुछ लोग आशंकाएं जता रहे थे उसको सुनकर युवा मगन होकर नाच रहे थे। सच तो यही है कि सिस्टम पीएम और सीएम से उूपर से नीचे को ठीक होना शुरू होगा लेकिन एक दूसरी हकीकत भी है कि जेपी गुप्ता जैसे अधिकारी चाहें तो विपरीत हालात में भी एक बीच का जनसेवा का रास्ता बिना व्यवस्था से टकराये निकाला जा सकता है। अहंकारी और भ्रष्ट राजनेताओं के लिये तो यही कहा जा सकता है।

दूसरों पर जब तब्सरा किया कीजिये,

आईना सामने रख लिया कीजिये ।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. इकबाल भाई एक सुन्दर लेख के लिये आप को और इस लेख की प्रेरणा एसडीएम जेपी गुप्ता जी को बधाई। सच आज जिस दौर से इन्सान गुजर रहा है जितने वो कष्ट सह रहा है शायद अल्लाह, भगवान इस दौर के इन्सान पर तरस खाकर इस के लिये दोजख हराम कर दे क्यो कि आज गरीब और ईमानदार का जीना वास्तव में बडा मुश्किल होता जा रहा है। वो तो खुदा इन इन्सानो के लिये बीच बीच में एसडीएम जेपी गुप्ता जैसे फरिश्ते जमीन पर भेजता रहता है वरना आज का इन्सान, इन्सान को मार कर खा जाये डीआई जी फायर सर्विसेज़ डी डी मिश्रा हो या कोई और आज राजनीति और राजनेता जिस चाण्क्य राजनीति पर चल निकले है उस में लिखा है साम, दाम, दण्ड, भेद। में इन चार शब्दो की व्याख्या नही करना चाहॅूगा आप और सब लोग अच्छी तरह जानते है कहना का अर्थ ये है कि चाहे सरकारी अफसर हो या आम आदमी सब को अपनी इज्जत प्यारी है अपना परिवार प्यारा है फिर इन जहरीले सॉपो से कौन बेर ले पता नही कब कहा किसे डंस ले। बस ये ही वजह है कि इन्हे दूध भी पीलाना पडता है और इन की पूजा भी करनी पडती है। एसडीएम जेपी गुप्ता जी को मैने भी बहुत करीब से देखा है दरअसल उनका पूरा व्यक्तिव चंदन पर जिस तरह भुजंग लिपटे होते है आज सरकारी विभाग में आदरणीय गुप्ता जी की मिसाल ऐसी देना चाहॅूगा।

  2. इकबाल हिन्दुस्तानी जी आपने उदाहरण तो ठीक ही दिए हैं,पर इससे यह प्रमाणित नहीं होता है कि इन ईमानदार अधिकारियों को परेशान करने के पीछे केवलराजनीतिज्ञों का हाथ हैं.इन अधिकारियों को परेशान करने में अगर राजनीतिज्ञों का हाथ हो भी तो मैं दावे केसाथ कह सकता हूँ कि अगर सब अधिकारी ईमानदारी पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करने लगे तो कोई भी मंत्री या नेता उनका बाल बांका भी नहीं कर सकता.राजनीति में तो ज्यादातर गुंडे और बदमाश भरे पड़े हैं,पर उच्च शिक्षा प्राप्त इन महानुभावों से तो अपेक्षा की जाती है कि कम से कम वे अपने कर्तव्य का पालन करेंगे.इकवाल साहब एक बार सोच कर देखिये कि अगर सब अधिकारी ईमानदार हो जाएँ तो किस मंत्री या नेता की हिम्मत है कि वह बेईमानी करे.क्योंकि मंत्री सीधा पैसा लेता भी हो तो अंत में फाइल तो अधिकारियों से होकर ही उनके पास पहुंचना है..ऐसे तो लिखने में थोड़ा भय हो रहा है,पर प्रवक्ता में प्रकाशित मेरी कहानी” मिसेज बेरी” मेरी कल्पना की उपज नही है,बल्कि उन कुछ हकीकतों पर आधारित है,जो मेरी आँखोंके सामने से गुजरी है. होता इतना ही है कि उच्च अधिकारी हों या मंत्री वे योग्यता को दर किनार करके अयोग्य लोगों को आगे बढ़ा देते हैं ,फिर सब अवैध व्यापार आरम्भ हो जाता है .ज्यादातर अधिकारी तो इतने भीरू होते हैं कि वे इसके विरुद्ध आवाज ही नही उठाते और जो आवाज उठाने का प्रयत्न करते हैं ,उनकी संख्या इतनी नगण्य होती है कि वे आसानी से कुचल दिए जाते हैं.

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