घुसपैठियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई

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देश में तीन करोड़ से अधिक घुसपैठिए

-अनिल सौमित्र

घुसपैठ और सामान्य आवाजाही में फर्क है। दुनियाभर में अपनी आवश्यकताओं के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर आबादी की आवाजाही सामान्य बात है। लेकिन घुसपैठ सुनियोजित और रणनीतिक है। अर्थात भारत में घुसपैठ आवश्यकता या परिस्थितियों के कारण नहीं बल्कि किसी खास मकसद का हिस्सा है। इनका आगमन, बसाहट और निवास सब रणनीतिक होता है।

घुसपैठ भारत की भू-सांस्कृतिक और भू-राजनैतिक पहचान और अस्तित्व के लिए चुनौती और खतरा दोनों है। भारत में हर रोज छह हजार घुसपैठिए आ रहे हैं। अभी तक तीन करोड़ बंगलादेशी घुसपैठ कर चुके हैं। वे बकायदा अपनी भारतीय पहचान स्थापित कर रहे हैं। इस जनगणना के बाद करोड़ों बंगलादेशियों को भारतीय पहचान मिल जायेगी। ये घुसपैठिए न सिर्फ भारतीय मुसलमानों के हक और संसाधनों की बंदरबांट कर रहे हैं, बल्कि भारत में मुसलमान की छवि को भी चोट पहुचा रहे हैं। घुसपैठ वाले इलाकों में अपराध और अन्य सामाजिक बुराइयों का विस्तार होता है, आरोप मुसलमानों पर लगता है। ये घुसपैठिए भारतीय मुसलमानों के साथ घुल-मिलकर रहते हैं ताकि उनकी मुस्लिम पहचान बनी रहे। विदेशी और बंगलादेशी पहचान को छुपाने के लिए घुसपैठ को मुस्लिम पहचान दिया जा रहा है। अल्पसंख्यक (मुस्लिम) मतों की यह सिथति है कि देश के एक बड़े क्षेत्र में मुस्लिम समर्थन के बिना कोई दल बहुमत में आ नहीं सकता। इसीलिए अल्पसंख्यक मतों के लिए बड़े पैमाने पर सौदेबाजी की नौबत आ गई है। मुसलमानों के मत के लिए देश में प्रतिस्पद्र्धा का माहौल बन गया है। असम में 1@3 विधायक घुसपैठियों के मतदान से ही बनेंगे ऐसी स्थिति बन गई है। यही स्थिति बंगाल और बिहार की होने वाली है।

घुसपैठ के कारण भारत के विभिन्न प्रदेशों का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। असम, बंगाल और बिहार सहित देश के अनेक प्रदेश मुस्लिम प्रभाव में आ गए हैं। असम की आधी विधानसभा सीट मुस्लिम प्रभावित हो चुकी है। विधानसभा में मुस्लिम और घुसपैठिए जनप्रतिनिधियों का प्रभाव बढ़ गया है। अब वे वहां के कानून को बनाने और उसे प्रभावित करने में लगे हैं। बंगाल और बिहार के कई जिले मुस्लिम बहुल होने की स्थिति में हैं।

भारत में घुसपैठ की समस्या मजहब से भी जुड़ा है। भारत का मजहब मानवतावादी है। जबकि अन्य मजहब इसके विपरीत। देशी और विदेशी मजहबों में बहुत फर्क हैं। हिन्दुत्व अपने साथ अन्य सभी मतों को भी स्थान देता है। उसके प्रति सद्भाव रखता है। जहां-जहां सद्विचार है उसे ग्रहण करने और स्वयं को स्वीकार्य बनाने का प्रयत्न करता है, किन्तु दुनिया के अन्य मजहबों में यह बात नहीं है। दुनिया के दो बड़े संप्रदाय इस्लाम और ईसाइयत कट्टर और आक्रामक हैं। वे अपने भगवान को भगवान और अन्य को शैतान मानते हैं। इतना ही नहीं, वे यह भी मानते हैं कि शैतान के अस्तित्व को समाप्त करना हैं। इस्लाम और ईसाइयत के अनुयायी अपने भगवान और अपने रास्ते को ही सही मानते हैं, उसे ही मानने और उसी पर चलने को सबको बाध्य करते हैं। उनकी मान्यता है कि मेरे अलावा बाकि सब गलत है। जो गलत है वे उसे अपने रास्ते पर लाना दैवी कर्तव्य मानते हैं। अर्थात दुनिया के अन्य सभी मत के लोगों को ये गलत मानते हैं, और इन्हें सही रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं। दुनिया के लोग उनके रास्ते पर स्वेच्छा से आ गए तो ठीक नही ंतो ज्यादती या बल प्रयोग से। इसीलिए सिर्फ हिन्दुओं का मतान्तरण होता है। इस्लाम या ईसाइयत के मानने वालों का नहीं। वे तो मतान्तरण करने वाले हैं।

भारत घुसपैठ और मतान्तरण का शिकार है। इसके द्वारा विदेशी ताकतें भारत को कमजोर और खंडित करना चाहती हैं। दुनिया में विविध देशों का सामाजिक मनोविज्ञान अलग-अलग विकसित होता है। भारत का भी सामाजिक मनोविज्ञान अलग प्रकार से वर्षों में विकसित हुआ है। भारत का मनोविज्ञान हिन्दुत्व से जुड़ा है। हिन्दुत्व ही इसकी पहचान और हिन्दू ही इसके अस्तित्व का कारण है। जिस दिन हिन्दू अल्पसंख्यक और हिन्दुत्व कमजोर होगा, भारत की पहचान और उसके अस्तित्व दोंनों को खतरा पैदा हो जायेगा। विदेशी ताकतें भारत के पहचान और अस्तित्व को चुनौती देना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने हिन्दुत्व को खतरे में डालने का कुचक्र रचा है। भारत में पहचान का संघर्ष शुरू हो चुका है। यहां जिंदा रहने की अहमियत पहचान से जुड़ गई है। यही पहचान भारतीयों के लिए राष्ट्रीयत्व है। भारत में हिन्दुत्व और राष्ट्रीयत्व पर्यायवाची है। घुसपैठ और मतान्तरण हिन्दुत्व और राष्ट्रीयत्व दोनों के लिए खतरा है। विदेशी स्वार्थों के कारण भारत की क्षेत्रीय, जातीय, सांप्रदायिक और भाषाई विविधता संघर्ष का कारण बन गई है। विदेशी ताकतें भारत की इस विशेषता का दुरुपयोग कर भारतीय समाज में मतभेद, वैमनस्य और संघर्ष पैदा कर रही हैं। भारतीय राजसत्ता इस मामले में लापरवाह है। भारत सरकार ने घुसपैठ और मतान्तरण के मामले मे शुतुर्मुग का रवैया अख्तियार कर रखा है। सत्ताधारी और उसकी सहयोगी पार्टियां अल्पसंख्यकवाद की राह पर है। विपक्षी दल भाजपा और उसके सहयोगी दल असमंजस और अस्पष्टता के शिकार हैं। भाजपा भी अल्पसंख्यकवाद के मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों के दबाव में है। ‘‘गठबंधन-धर्म’’ के नाम पर भाजपा ने भी घुसपैठ, मतान्तरण, हिन्दुत्व, अल्पसंख्यकवाद, आतंकवाद, माओवाद और आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अस्पष्ट रवैया अपना रखा है। इस मामले में मीडिया का रवैया भी अ-भारतीय है।

भारतीय राजनीति इस मामले में विश्वासघात की शिकार है। सामाजिक तौर पर घुसपैठ का कोई समाधान नहीं दिख रहा है। व्यक्ति, परिवार, समाज और सरकार के स्तर पर बौद्धिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक प्रयासों का कोई प्रभावी परिणाम नहीं निकल सका है। असम का उदाहरण सबसे सटीक है। असम गण परिषद् ने घुसपैठ के मुद्दे पर दो बार असम की जनता का विश्वास अर्जित किया, लेकिन दोनों ही बार उसने जनता से धोखाधड़ी की। आज असम घुसपैठियों के कुचक्र में फंसा है। हर बार जनजागरण और आंदोलन होता है, लेकिन संसद और सरकार द्वारा देश के साथ हर बार विश्वासघात किया जाता है।

गत दिनों भोपाल में भारत रक्षा मंच के बैनर तले घुसपैठ की समस्या पर विस्तार से चर्चा हुई। चर्चा से समाधान के तरीके और रास्तों की पड़ताल की गई। 27 जून को देशभर से आए सौ से अधिक प्रतिनिधियों ने अनेक सुझाव दिए। घुसपैठ की रोकथाम के लिए देश की सीमा सील कर सेना तैनात करने, घुसपैठियों की खोज के लिए बड़े पैमाने पर देशभर में, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में विशेष खोजी अभियान चलाने, घुसपैठ प्रभावित राज्यों व क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषा के जानकार विशेष बल की तैनाती करने, बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान के लिए एक स्वतंत्र और सक्षम एजेंसी का गठन करने, चिन्हित घुसपैठियों पर मकोका और पोटा के तहत कार्यवाई करने, शीघ्र कानूनी कार्यवाई के लिए त्वरित न्यायालय का गठन करने, घुसपैठिये की पहचान करने वालों को पुरस्कृत करने, जिला स्तर पर घुसपैठियों की सूची जारी करने, इन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा मुहैया कराने वाले अधिकारियों पर मुकदमा दायर कर उन्हें दंडित करने का सुझाव आया।

भारत रक्षा मंच ने राज्य सरकारों के समक्ष भी घुसपैठियों के बारे में अपनी मांगे रखी। मंच ने दो वर्षों के भीतर घुसपैठियों की पहचान करने, इस विषय पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक करने, जिलों में इसके लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करने, सरकार को मदद करने वाले नागरिकों को पुरस्कृत करने, अवैध मजार, मस्जिद, मदरसों और कत्लखानों को रोकने के लिए कारगर उपाए करने, मुकदमों की सुनवाई के लिए त्वरित न्यायालय गठित करने और लापरवाह अधिकारियों को दंडित करने की मांग की। भारत रक्षा मंच ने देश के राजनैतिक दलों से अल्पसंख्यक वोट की राजनीति छोड़ घुसपैठ पर कारगर कदम उठाने की अपील की। मंच ने घुसपैठियों की मदद करने वाले राष्ट्रद्रोही नेताओं और दलों पर भी कार्यवाई की मांग भी की।

भारत रक्षा मंच के इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक, संघ के पूर्व प्रचारक और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव गोविन्दाचार्य ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वे उद्घाटन और समापन दोनों सत्रों में बोले। भारत रक्षा मंच के संरक्षक सूर्यकांत केलकर भी हाल तक संघ के प्रचारक रहे। अब वे भी संघ के पूर्व प्रचारक हो गए हैं। प्रचारक रहते हुए केलकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, सहकार भारती और संघ के अन्य कई संगठनों से जुडे रहे। अब वे संघ से अलग होकर घुसपैठ के मुद्दे पर काम करेंगे।

गौरतलब है कि संघ पहले से ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर घुसपैठ और मतान्तरण जैसे मुद्दे पर कार्यरत है। केलकर के सामने संघ का कार्य चुनौती की तरह होगा या सहयोगी! संघ अपने पूर्व प्रचारकों की हरकतों से पहले भी अपना हाथ जला चुका है। संघ दूध का जला है, छांछ भी फूंक-फूंककर पीना चाहेगा। मुद्दा चाहे कितना ही जरूरी क्यों न हो, संघ अपनी छवि और पहचान दांव पर नहीं लगाना चाहेगा। संघ दीर्घजीवी संगठन है। संघ की कार्यपद्धति, रीति-नीति अलग है। संघ कांग्रेस और वामदलों के ही नहीं विदेशी ताकतों के भी निशाने पर है। गांधी हत्या से लेकर आपातकाल, अयोध्या प्रकरण और हिन्दू आतंकवाद के मुद्दे पर संघ को फंसाने और कमजोर करने की कोशिश पहले भी हो चुकी है और अब भी जारी है। संघ की नीति है – सांप मरे या नहीं, लाठी नहीं तोड़नी है, लेकिन कुछ लोग सांप मारना चाहते हैं, भले ही लाठी भी टूट जाये। संघ के कुछ पूर्व प्रचारक भी यही नीति चाहते हैं।

ऐसे वक्त में जबकि व्यक्तियों, समूहों और संगठनों की विश्वसनीयता दांव पर है, भारत रक्षा मंच का प्रयास भी चुनौतीपूर्ण है। घुसपैठ के मुद्दे पर भारत रक्षा मंच का प्रयास संघ की नीति से कितना इतर होगा यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि घुसपैठ जेसे मुद्दे पर सिर्फ जनजागरण करके सरकार को इसके खिलाफ कार्यवाई के लिए बाध्य किया जाना संभव नहीं लगता। संभव है यह आंदोलन हिंसक हो जाये। अगर सरकार की मंशा इस आंदोलन के खिलाफ होगी तो सरकार इस आंदोलन को मदद करने की बजाये इसे खत्म करने का ही प्रयास करेगी। आतंकवाद के खिलाफ आंदोलन ‘हिन्दू आतंकवाद’ के सहारे कमजोर करने का भरसक प्रयास हुआ है। भारत रक्षा मंच के साथ भी सांप्रदायिकता का मुल्लमा चस्पा किया जायेगा। उसे मुस्लिम विरोधी, हिन्दूवादी, अंधराष्ट्रवादी और संकीर्ण करार दिया जा सकता है। जो भी हो संघ से जुड़े किन्तु अब संघ से इतर कुछ लोग घुसपैठ पर आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। इसे मुकाम तक पहुचाने की जिद्द लिए। अभी तो यही कहा जा सकता है – देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

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