स्पीड युग का नायक नरेन्द्र मोदी

मासमीडिया दुधारी तलवार है। दर्शकों के लिए बिडम्बनाओं की सृष्टि करता है। मासमीडिया के द्वारा सृजित अर्थ वहीं पर नहीं होता जहां बताया जा रहा है बल्कि अर्थ अन्यत्र होता है। अर्थ वहां होता है जहां विचारधारा होती है और विचारधारा को लागू करने वाले संगठन होते हैं। चूंकि गुजरात में संघ परिवार की सांगठनिक संरचनाएं बेहद पुख्ता हैं अत: टीवी के अर्थ का लाभ उठाने की संभावनाएं भी वहां पर ज्यादा हैं। मासमीडिया अदृश्य हाथों को लाभ पहुँचाता है अत: हमें देखना होगा मोदी के संदर्भ में अदृश्य शक्ति कौन है? मीडिया जब एक बार किसी चीज को अर्थ प्रदान कर देता है तो उसे अस्वीकार करना बेहद मुश्किल होता है। इसबार मीडिया ने यही किया उसने मोदी को नया अर्थ दिया, मोदी को विकासपुरूष बनाया। विकास को मोदी की इमेज के साथ जबर्दस्ती जोड़ा गया जबकि विकास का मोदी से कोई संबंध नहीं बनता। इसने मोदी का दंगापुरूष का मिथ तोड़ दिया। मोदी का दंगापुरूष का मिथ जब एकबार तोड़ दिया गया तो उसका कोई संदर्भ नहीं बचता था और इसी शून्य को सचेत रूप से विकासपुरूष और गुजरात की अस्मिता के प्रतीक के जरिए भरा गया। विकासपुरूष और गुजराती अस्मिता की धारणा असल में गुजराती जिंदगी के यथार्थ के नकार पर टिकी है। यह ऐसी धारणा है जिसे मीडिया ने पैदा किया है,यह गुजरात की ठोस वास्तविकता के गर्भ से पैदा नहीं हुई है। वरना यह सवाल किया ही जा सकता था कि मोदी ने राज्य में क्या कभी कोई ऐसा कारखाना खुलवाया जिसकी कीमत दस हजार करोड़ रूपसे से ज्यादा हो !

मोदी की जो छवि मीडिया ने बनायी वह मोदी निर्मित छवि है। असली मोदी छवि नहीं है। यह छवि कर्ममयता का संदेश नहीं देती। बल्कि भोग का संदेश देने वाला मोदी है। मीडिया निर्मित मोदी को हम असली मोदी मानने लगे हैं। विकास और गुजराती अस्मिता के प्रतीक मोदी को मीडिया ने निर्मित किया। यह आम लोगों को दिखाने के लिए बनाया गया मोदी है। यह दर्शकों के लिए बनाया गया मोदी है। इसमें सक्रियता का भाव है,यह मुखौटा है,बेजान है।यह ऐसा मोदी है जिसका गुजरात की दैनन्दिन जिंदगी के यथार्थ के साथ कोई मेल नही ंहै। यह मीडिया के जरिए संपर्क बनाता है। मीडिया के जरिए यह संदेश देता है। हम जिस मोदी को जानते हैं वह कोई मनुष्य नहीं है। बल्कि पुतला है। हाइपररीयल पुतला है। जिसके पास न दिल है, न मन है, उसके न दुख हैं और न सुख हैं। उसका न कोई अपना है और न उसके लिए कोई पराया है। वह पांच करोड़ गुजरातियों का था ,उसमें पांच करोड़ गुजराती थे और वह फासिस्ट था। वह कोई मानवीय व्यक्ति नहीं है। अमेरिकी पापुलर कल्चर के फ्रेमवर्क में उसे सजाया गया है। पापुलरकल्चर में मनुष्य महज एक विषय होता है। प्रोडक्ट होता है। जिस पर बहस कर सकते हैं, विमर्श किया जा सकता है। मोदी इस अर्थ में मानवीय व्यक्ति नहीं है। वह तो महज एक प्रोडक्ट है। विमर्श की वस्तु है।

मोदी के जिस विजुअल को बार-बार टीवी से प्रक्षेपित किया गया है उसमें हम मोदी के इतिहास को नहीं देख पाते, वैविध्य को नहीं देख पाते। मोदी का सिर्फ सीने से ऊपर का हिस्सा ही बार-बार देखते हैं। इसका ही मुखौटे के तौर पर व्यापक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया। मोदी का प्रत्यक्षत: टीवी में सीने के ऊपर का हिस्सा और मुखौटा एक ही संदेश देते हैं कि मोदी कोई व्यक्ति नहीं है। बल्कि ऐसा व्यक्ति है जिसका इकसार सार्वभौम रूप बना दिया गया है। इकसार सार्वभौमत्व मोदी की इमेज को पापुलरकल्चर, मासकल्चर और मासमीडिया के सहयोग से प्रचारित प्रसारित किया गया। यह एक तरह से मोदी की जीरोक्स प्रतिलिपियों का वितरण है। मुखौटे मूलत: मोदी की जीरोक्स कॉपी का कामकर रहे थे। यह नकल की नकल है। किंतु यह ऐसी नकल है जिसका मूल से अंतर करना मुश्किल है। बल्कि अनेक सभाओं में तो मोदी के डुप्लीकेट का भी प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया। संभवत: भारत में पहलीबार ऐसा हुआ है कि किसी राष्ट्रीय दल ने अपने नेता के प्रचार के लिए उसके डुप्लीकेट का इस्तेमाल किया हो साथ ही इतने बड़े पैमाने पर नेता के मुखौटों का इस्तेमाल किया गया हो। इससे यथार्थ और नकली मोदी का अंतर ही धूमिल हो गया।

मोदी को नायक बनाने के लिए जरूरी था कि मोदी के मोनोटोनस अनुभव से दर्शकों को बचाया जाए इसलिए तरह-तरह के रोमांचक,भडकाऊ भाषण भी कराए गए। दर्शकों को जोड़े रखा गया। ध्यान रहेमीडिया कभी भी सारवान अर्थ सृष्टि नहीं करता बल्कि बल्कि हाइपररीयल अर्थ की सृष्टि करता है। वह ऐसी चीजें को उभारता है जिसे दर्शक हजम करें।

मोदी ने जिस तरह की हाइपररीयल राजनीति का इसबार प्रदर्शन किया है उसने समूचे राजनीतिक परिवेश और राजनीतिमात्र के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिया है। मोदी की इस तरह की राजनीति का हिन्दुओं की मुक्ति अथवा गुजरात के पांच करोड़ लोगों की अस्मिता की मुक्ति के सपने से कोई लेना-देना नहीं है। हाइपरीयल राजनीति की विशेषता यही है कि किसी को भी नहीं मालूम होता कि सूचनाएं जनता में कैसे जा रही हैं। हम सब जानते हैं कि कोई रिमोट कंट्रोल है जो सूचनाओं और प्रचार को नियंत्रित कर रहा है किंतु कौन है इसका किसी को पता नहीं है। मोदी का नया रूप ट्रांसप्लांटेशन की पध्दति की देन है। अभी तक हम संप्रेषण के जिस रूप के आदी थे वह रूप परिवहन और संचार के जरिए प्राप्त हुआ था। ठोस रूप हुआ करता था। किंतु मोदी हाइपररीयलिटी की देन है। संप्रेषण ट्रांसप्लांटेशन की देन है।

मुखौटा संस्कृति की देन है। वह वास्तव समय और स्थान के साथ जल्दीएकीकृत हो जाता है। मोदी अपने विचारों और चरित्र का एक ही साथ ,एक ही क्षेत्र में और एक ही समय में एकीकरण करने में सफल रहा है। इसके साथ उसने परिवहन और संचार के संप्रेषण रूपों का भी उपयोग किया है। इसके कारण वह अपनी वैद्युतकीय चुम्बकीय इमेज बनाने में सफल रहा। इस तरह का मोदी तो सिर्फ निर्मित करके ही उतारा जा सकता है।

मोदी का प्रचार अभियान रेसकार में भाग लेने वाली कार की तेज गति से हुआ है। यह कार इतनी तेज गति से दौड़ती है कि इसमें एक्सीडेंट भी उतना ही तेज होता है जितना तेज वह दौड़ती है। यह एक तरह का इनफार्मेशन शॉक पैदा करती है। मोदी ने भी यही किया है। उसने अनेक को इनफार्मेशन शॉक दिया है। मोदी ने जिस गति से गुजरात को चलाया है उसमें काररेस की तरह लगातार तकड़े एक्सीडेंट होते रहे हैं। किंतु एक्सीडेंट की खबरें तो खबरें ही नहीं बन पायीं क्योंकि कार रेस का एक्सीडेंट कोई खबर नहीं होता है। बल्कि उसे सामान्य एक्सीडेंट के रूप में पेश किया जाता है। उसे सामाजिक खतरा नहीं माना जाता। मोदी के शासन में जिस तरह की कार रेस चली है उसने यह बोध भी निर्मित किया है कि मोदी से कोई सामाजिक खतरा नहीं है। क्योंकि मोदी हाइपररीयल है, काररेस का हिस्सा है। काररेस में एक्सीडेंट होना सामान्य बात है, इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है।

मोदी ने अपनीहाइपरीयल राजनीति के जरिए व्यक्ति को ‘डि-लोकलाइज’किया है। व्यक्ति को जब ‘डी-लोकलाइज’ कर देते हैं तो वह कहीं पर ही नहीं होता। मोदी ने जब राजनीति को हाइपरीयल बनाया तो राजनीति और समाज के बीच वर्चुअल दूरी बनायी और इस वर्चुअल दूरी में ले जाकर लोगों को कैद कर दिया। वर्चुअल दूरी में आप वास्तव के साथ नहीं होते किंतु मजा ले सकते हैं। यह एकदम वर्चुअल सेक्स की तरह है।

इसके गर्भ से एकदम नए किस्म के नजरिए और नैतिक सवाल उठ रहे हैं। आप पूरी तरह वर्चुअल नजरिए से देख रहे होते हैं। मोदी को इस बात का श्रेय देना चाहिए कि उसने वर्चु अल तकनीक को मनुष्य के अंदर उतार दिया और उसके नजरिए का वर्चुअलाइजेशन कर दिया। नजरिए का वर्चुअलाइजेशन व्यक्ति को समाज से दूर ले जाता है साथ ही नजरिए का भी रूपान्तरण कर देता है। वर्चुअल राजनीति में हमें दूर से देखने में मजा आता है। दूर से ही भूमिका अदा करते हैं। यह बिलकुल साइबरसेक्स की तरह है।

संघ के हिन्दुत्व को देखना है तो उसे किताबों से नहीं देख और समझ सकते। बल्कि आप गुजरात जाकर ही महसूस कर सकते हैं। हिन्दुत्व ने गुजरात का कायाकल्प किया है। गुजरात को व्याख्या और मिथों (गांधी के मिथ) के जरिए नहीं समझा जा सकता। उसके लिए गुजरात जाना होगा और उसे करीब से महसूस करना होगा तब ही संघ का हिन्दुत्व समझ में आएगा। अब तक गुजरात को हमने कहानियों और व्याख्याओं के जरिए ही

देखा है उसके वास्तव संसार को महसूस नहीं किया। वास्तव गुजरात न तो रूपान्तरणकारी है और न कल्याणकारी है। वह जितना ही रंगीन है,दरिद्र है,भोगी है,बर्बर है उतना ही वर्चुअल है असुंदर है। आज गुजरात सांस्कृतिक रेगिस्तान की ओर तेजी से प्रयाण कर रहा है।

बुध्दिजीवियों-लेखकों-संस्कृतिकर्मियों की इसमें बलि देदी गयी है। बौध्दिकता की अब गुजरात में कोई कदर नहीं है। जनता का बुध्दिजीवियों पर कोई भरोसा नहीं रहा। यह मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मौलिक विचार ,मौलिक सृजन करने वालों को,सत्ताा का प्रतिवाद करने वालों को रेगिस्तान में गाड़ दिया गया है। अब हमारे पास गुजरात के गरबा और मंदिरों और हीरों के प्रतीक भर रह गए हैं। इन्हें ही हम अपनी समृध्दि का प्रतीक मान रहे हैं। मोदी की आंधी ने सभी रंगों को धो दिया है। सभी इमेजों को साफ कर दिया है। संभवत: ऐसा महात्मा गांधी भी नहीं कर पाए थे। क्योंकि गांधी मनुष्य थे। मोदी वर्चुअल मनुष्य है। मोदी के पास मीडिया और तकनीक का तंत्र है जबकि गांधी के पास न तो मीडिया था और न सूचना तकनीक ही थी अगर कुछ था तो सिर्फ रामनाम और आंदोलनकारी जनता थी। मोदी के पास न तो राम हैं और न आन्दोलनकारी जनता है। बल्कि जनता के ऐसे बर्बर झुंड हैं जिनको जनसंहार करने में कोई परेशानी नहीं होती, बुध्दिजीवियों-संस्कृतिकर्मियों पर हमले करने में परेशानी नहीं होती। निन्दा से परेशानी नहीं होती। अपने दुष्कर्मों पर लज्जित नहीं होते। वे वीडियोगेम के खिलाड़ी की तरह व्यवहार करते हैं। खेलते हैं।

मोदी ने गुजरात को सांस्कृतिक रेगिस्तान बनाया है। मोदी के लिए हिन्दू संस्कृति ही सब कुछ है और कुछ भी नहीं है। यह निर्भर करता है कि आप हिन्दू संस्कृति की किस तरह व्याख्या करते हैं। मोदी के राज्य में संस्कृति नहीं है। किसी भी किस्म का सांस्कृतिक विमर्श नहीं है। कोई मंत्रालय नहीं है। सिर्फ एक ही मंत्रालय है और एक ही मंत्री है वह है मुख्यमंत्री। मोदी ने निर्मित संस्कृति का वातावरण तैयार किया है। निर्मित संस्कृति के वातावरण का भारत की सांस्कृतिक परंपरा और उसके वातवरण से कोई लेना-देना नहीं है। गुजरात में अब हर चीज उत्तोजक और उन्मादी है। संस्कृति के रेगिस्तान को उपभोक्ता वस्तुओं से भर दिया गया है। मोदी के लिए संस्कृति का अर्थ है सिनेमा, तकनीक, हिन्दुत्व और तेज भागमभाग वाली औद्योगिक जिंदगी। मोदी के लिए स्पीड महान है। तकनीक महान है। हर चीज इन दो के आधार पर ही तय की जा रही है। मोदी के भाषणों में इसी बात पर जोर था कि उसने वे सारे काम मात्र पांच साल में कर दिखाए जो विगत पचपन वर्षों में कोई नहीं कर पाया। इस दावे के पीछे जो चीज सम्प्रेषित की जा रही है वह है स्पीड। मोदी के काम की स्पीड। मोदी स्पीड का नायक है और स्पीड का अत्याधुनिक वर्चुअल सूचना तकनीक के साथ गहरा रिश्ता है। तकनीक,हिन्दुत्व और स्पीड के त्रिकोण के गर्भ से पैदा हुई संस्कृति है,हाइपररीयल संस्कृति है,इसे हिन्दू संस्कृति समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। मोदी जैसा सोचता है मीडिया भी वैसा ही सोचता है। इस अर्थ में मोदी हाइपररीयल है।

मोदी ने गुजरात के यथार्थ पर कब्जा जमा लिया है हम वही यथार्थ देख रहे हैं जिसकी वह अनुमति देता है ऐसी स्थिति में यथार्थ को व्याख्यायित करने वाले मोदी के मानकों को निशाना बनाया जाना चाहिए। मोदी आज जिस हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व कर रहा है। वह 1980 के बाद में पैदा हुआ हिन्दुत्व है इसका संघ परिवार के पुराने हिन्दुत्व से कम से कम संबंध है। भूमंडलीकरण से ज्यादा संबंध है। यह अत्याधुनिक तकनीक और अत्याधुनिक बर्बरता के अस्त्रों से लैस है।

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

3 COMMENTS

  1. नमस्क्कार संपादक महोदय,
    लेखक का दिमाग तो वामपंथी है, वो बात तो समझ आती है। पर आप ने छाप कर किस दिमाग का परिचय दिया है?

  2. आप मीडिया विषय के प्रोफेसर हैं, मीडिया लोगों के व्यवहार को नियंत्रित करता है. आप जो कह रहे हैं उससे ये अर्थ भी निकलता है की गुजरात की जनता वेवकूफ है और वो मीडिया एवं प्रचार के आधार पर ही वोट करती है. राहुल गाँधी के बारे मैं आप क्या कहेंगे. अल्ट्रा हाइपररियल. आप मोदी को बुरा कह रहे हैं या अपने मीडिया ज्ञान को बता रहे हैं. अगर आर्टिकल लिखना ही है तो एक ही प्रकृति के अन्य सभी राजनीतिज्ञों को भी इसी लेख मैं कवर करना चाहिए.

  3. Looks like Jagdishwar Chaturvedi in Bengal knows what several million people of Gujrat don’t know about their leader whom they elected three times. Shri Chaturvedi Ji – Your article is insulting to not only millions of people of Gujrat but also shows your desperation. Narendra Modi is a shining star who has made Gujrat engine of economic and cultural progress. there is no comparision between his performance and your comrade’s performance in W. Bengal. Your article is not even worthy of any comments.

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