रहीम बाबा कह गए हैं –
रूठे स्वजन मनाइये , जो रूठें सौ बार।
रहिमन पुनि-पुनि पोइए ,टूटे मुक्ता हार।। [भारत-पाक दोनों के लिए ]
कबीर बाबा कह गए हैं –
जब तूँ था तब मैं नहीं ,अब तूँ है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सँकरी ,जा में दो न समाय।। [ नवाज शरीफ के लिए ]
आतंकवाद और दोस्ती दोनों एक साथ नहीं रह सकती . . . . . !
गोस्वामी तुलसीदास बाबा कह गए हैं –
दोउ को होहिं एक समय भुआला।
हँसहु ठठाय फुलावहु गाला।। [सिर्फ मोदी जी के लिए ]
अपना वैयक्तिक वर्चस्ववादी एजेंडा और भारत का राष्ट्रीय एजेंडा एक साथ मत चलाइये … ।
मोदी जी विगत १६ मई -२०१४ से पूर्व सिंह गर्जना कर रहे थे कि हम सत्ता में आयंगे तो पाकिस्तान को ,चीन को ठीक कर देंगे। जो भारत की ओर गलत निगाहें डालते रहते हैं हम उन्हें ठीक कर देंगे । हम आतंकियों को नेस्तनाबूद का र्देंगे। हम कालाधन वापिस लाएंगे और उन चोट्टों के नाम भी उजागर करेंगे। हम देश के गल्लाचोरों को -मुनाफाखोरों को ,रिश्वत खोरों को फाँसी पर चढ़ा देंगे। हम मनमोहनसिंह की तरह निष्क्रिय नहीं बनें रहेंगे ।इसी तरह सुशासन और विकाश के चुनावी उत्तेजक भाषण सुनकर भारत की युवा आवाम ने न केवल तालियाँ बजाई बल्कि ऐतिहासिक प्रचंड बहुमत देकर मोदी को सर्वशक्तिमान बना दिया। कालाधन का क्या हुआ पता नहीं ? महंगाई , बेकारी , हत्या ,बलात्कार कितने कम हुए पता नहीं। वर्तमान सत्तासीन नेतत्व के ‘बोल बचन’ से क्या हासिल हुआ वो तो सबको दिख रहा है. किन्तु पाकिस्तान और चीन कितने डरे पता नहीं। वर्तमान परिदृश्य में हालात इतने बुरे होंगे इसका भी किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा । दो पडोसी प्रधानमंत्री एक दूसरे से नजरें ही नहीं मिलायंगे यह किसी ने शायद ही सोचा होगा ! शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ -तत्कालीन दोनों महाशक्तियों में भी इस कदर अबोला या संवादहीनता का दृश्य कभी देखने -सुनने में नहीं आया। इंदिराजी और मुजीब के नेतत्व में जब पाकिस्तान खंडित हुआ तो भी जुल्फीकार अली भुट्टो और इंदिराजी के मध्य ऐतिहासिक शिमला समझौता सम्पन्न हुआ। इस तरह का ३६ का आंकड़ा कभी नहीं देखा गया।
वेशक इस असहज स्थति के लिए पाकिस्तान तब भी ९९% कसूरवार हुआ करता था । किन्तु फिर भी बातचीत और मेल मिलाप को रोककर स्थति को इस मुकाम तक नहीं आने दिया गया। इस दौर के सत्तासीन नेता चुनावी भाषणों में बेल का दूध निकालने का वादा या दावा कर बैठे हैं । क्या भाजपा और संघ परिवार के इन नेताओं को नहीं मालूम था कि पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के कारण ही १५ अगस्त – १९४७ से १६ मई -२०१४ तक ,यहाँ तक की अटलबिहारी की एनडीए सरकार के कार्यकाल तक भारत की यही नियति थी कि उसे पाकिस्तान के फौजी जनरलों से जूझना पड़ा। मोदी जी आप तो पाकिस्तान के चुने हुए नुमाइंदों से भी संगत नहीं बिठा पा रहे हो ! यदि आप का कथन है कि हम क्या करें ? पाकिस्तान ही गुनहगार है. तो यह कौन सा नया आविष्कार है ? पाकिस्तान में तो अब आंशिक जम्हूरियत भी है. किन्तु इससे पहले तो वहाँ अधिकांस फौजी निजाम ही रहा है । यदि यही बहाना करना था जो काठमांडू में किया तो डॉ मनमोहनसिंह ही क्या बुरे थे ? आपसे तो वे ही ठीक हैं क्योंकि लोग उनसे ईर्षा या द्वेष नहीं करते । वेशक उनकी आर्थिक नीतियाँ देश के मेहनतकशों के खिलाफ रहीं हैं किन्तु फिर भी वे बड़बोले लफ़्फ़ाज़ तो अबश्य नहीं हैं। डॉ मनमोहनसिंह के समक्ष दुनिया का हर राष्ट्र अध्यक्ष इज्जत से पेश आता है । वेशक डॉ मनमोहनसिंह की आर्थिक नीतियों से देश में भृष्टाचार बढ़ा और अमीरों की तरक्की ज्यादा हुई है। लेकिन मोदी जी तो इस आर्थिक नीति की पूँजीवादी कलाकारी में तो मनमोहन सिंह के भी उस्ताद निकले हैं . वेशक मोदी जी राजनयिक गाम्भीर्य और कूटनीति में महाफिस्सड्डी साबित हुए हैं । क्या यह उनकी उत्तरदायित्व हीनता नहीं है कि आज सबके सब पडोसी आँखें तरेर रहें हैं ? क्या इसलिए देश की आवाम ने ‘मोदी-मोदी’ का सिंहनाद किया था कि सबसे बोलचाल बंद कर दो ? क्या यह नितांत वैयक्तिक अहंकार की उद्घोषणा नहीं है ? क्या दो सनातन पड़ोसियों के प्रधानमंत्रियों द्वारा हाथ नहीं मिलाने या नजर नहीं मिलाने के लिए हम ख़ुशी का इजहार करें ?
यदि इस दक्षेश सम्मलेन का यही एजेंडा था तो देश को विश्वाश में क्यों नहीं लिया गया ? क्या यह केंद्रीय मंत्रिमंडल और भाजपा का पारित प्रस्ताव था ? क्या यह मोदी की तात्कालिक बाध्यता थी ? वेशक तात्कालिक बाध्यता के लिए नवाज शरीफ १०० % कसूरवार हो सकते हैं. किन्तु तब तो मोदीजी और उनकी पार्टी को सारे देश से उस झूँठ के लिए ,उस दम्भ और बड़बोलेपन के लिए , माफ़ी मांगनी चाहिए , जिसमे उन्होंने पाकिस्तान को सबक सिखाने का वादा किया है । क्या पाकिस्तान को नसीहत मिल गयी है ? क्या दाऊद मिल गया है ?क्या मुंबई बम कांड के दोषी फांसी पर चढ़ चुके हैं ? क्या पाकिस्तान अब पाक-साफ़ हो गया है ? यदि नहीं तो ,काठमांडू में जो हुआ क्या वह देश की आवाम को मंजूर है ? यदि हाँ तो यह आशा की जानी चाहिुए कि आइन्दा किसी आतंकी बारदात ,सीमाओं पर गोलीबारी या देश के अंदर सम्प्रदायिक बल्बे में पाकिस्तान का कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो स्वीकार कीजिये कि भारत पाकिस्तान के संबंधों को सामान्य बनाने में आप असफल रहे हैं। आपसे बेहतर नीतियाँ नेहरू,इंदिरा या अटलजी के पास थीं। इन्होने डींगे नहीं हाँकी कुछ करके ही दिखाया है।
श्रीराम तिवारी
जैसे बंदरिया मरे बच्चे को सीने से लगाए घूमती रहती है वही हाल इन जैसे वामपंथी लेखकों का है. अब तो उस मरे बच्चे में से बदबू भी आने लगी है, तब भी ये उस मरे बच्चे को नहीं फेंक रहे. दुनिया के सभी कम्युनिस्टों ने उसे फेंक दिया. यहाँ तक कि चीन ने भी नए बच्चे को जन्म देकर पालना-पोसना शुरू कर दिया परन्तु भारत के ये वामपंथी अभी भी उस मरे बच्चे को छोड़ना नहीं चाहते. एक कौमनिष्ठ को ये कम्युनिस्ट हमेशा गरियाते रहेंगे. देश को विश्वास में लेने का मतलब क्या उन हारे हुए कम्युनिस्ट नेताओं को विशवास में लेना था जिनको जनता जनार्दन पहले ही ठुकरा चुकी है. पता नहीं ये कब यथार्थ को स्वीकारेंगे? अब तो इनके विधवा-विलाप का कोई नोटिस तक नहीं लेता.
कमाल है तिवारी जी आपका भी, एन डी टीवी पर रविश का रोना देखा था और यहाँ आपका। क्या दक्षेस में पाक के अलावा और कोई देश ही नहीं है ? घरों में भी नंग से सब बोलना छोड़ देते हैं कि उसको रियलाइज हो। अब तक आप लोगों की तरह भीरु सरकारें थी, उसका नतीजा सब देख भी रहे हैं और भुगत भी रहे हैं। कठपुतलियों से क्या मिलना मिलाना ? जिसका अपना ही वजूद ना हो उससे क्या बातचीत ? ये शायद आप लोगों की धूर्त बुद्धि में नहीं बैठेगा। क्या आपने “ज्योति जवाहर” का ये गीत नहीं सुना “अत्याचारी के चरणो में झुक जाना भारी हिंसा है, पापी का शीश कुचल देना जी हिंसा नहीं अहिंसा है ” . लेकिन उधार के विदेशी दर्शन पे जीने वाले आप लोगों को देश की ये बातें समझ में नहीं आएंगी। जिस दर्शन को सारे संसार से ठुकरा दिया, पलीता लगा दिया। उसे सहेज के संजो के आप लोगों ने रखा है, आप लोगों के हौसले की दाद देनी पड़ेगी।
दिल का गुबार और भड़ास निकालने के मकसद से अच्छा लेख लिखा। आप लोग अब सिर्फ लेख ही लिख सकते हो। आप लोगों के फरेबी चेहरे दुनिया के सामने हैं। आप लोगों की उपयोगिता अब समाप्त है। कुछ समय बाद सिर्फ इतिहास की किताबों में ही आप लोगों का जिक्र मिला करेगा ……
इति शुभम्
अच्छी भड़ास निकाली है ,सराहनीय
आपको ऐसा क्यो लगता कि केवल कम्यूनिस्टो के सोच से देश सोचे. आपकी उपयोगिता समाप्त…