आगरा की समाचार डायरी

डा. राधेश्याम द्विवेदी
स्मार्ट सिटी बनने से चूका:-अभी हाल ही में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 20 नगरों को स्मार्ट सिटी का तोहफा दिया है। इनमें उत्तर प्रदेश का एक भी नगर शामिल नहीं हो सका है। जो मापदण्ड निर्धारित थे उन्हें पूरा कर पाने वाले नगर ही इस श्रेणी में स्थान बना सके है। इसके लिए आगरा सहित भारत के प्रमुख शहरों में आनलाइन सुझाव तथा वोटिंग भी कराये गये हैं। शहरवासियों ने जो आस जगा रखा था वह सब अधूरा रह गया। लोगों की जागरूकता एवं एकजुटता सब धरी की धरी रह गयी। वोटिंग के अलावा आगरा ने कोई बुनियादी तैयारी तो कर नहीं पायी थी। केवल वोट के सहारे कामयाबी नहीं मिल सकती है। इस शहर को अभी करने को बहुत कुछ है। ताजमहल, आगरा किला तथा फतेहपुर सीकरी इसे हेरिटज सिटी की काबिलियत तो दे सकते हैं परन्तु स्मार्ट के लिए वाकई स्मार्ट बनना ही पड़ेगा। हां, यदि मन व निष्ठा से काम कर यहां के बेसिक व बुनियादी स्थिति में बदलाव लाया गया तो अगले राउन्ड में इसकी घोषणा के चान्स बन सकते हैं।
अलग पहचान:-आगरा ब्रजमण्डल का एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर है। इसके 12 बनों एवं चैबीस उपबनों में एक ’अगर बन’ भी हुआ करता था। इसे अग्रवाण भी कहा गया है। चैरासी कोस की परिधि में इसे भी समलित माना जाता है। इसका सम्बन्ध महर्षि अंगिरा से जोडा़ जाता है, जो 1000 ई. पू. पैदा हुए थे। तौलमी ने सबसे पहले इसे आगरा नाम से सम्बोधित किया था। वैसे चन्द्रपाल तथा बादल सिंह आदि मुगलपूर्व राजपूत राजाओं के दृष्टांत यहां से जोड़े जाते हैं ,परन्तु मुगलों व विदेशी इतिहासकारों ने इस शहर को सिकन्दर लोदी द्वारा 1506 ई. में बसाया गया माना है। आगे चलकर मुगलों ने इसे अपनी पहली राजधानी बनाया था। यहां तीन विश्व विरासतें – ताजमहल का रोजा ,आगरा किला तथा फतेहपुर सीकरी का मुगल शहर स्थित हैं। यहां अनेक राष्ट्रीय स्तर की इमारतें हैं, जो एक मात्र इसे अन्य शहरों से अलग रखती हैं।
उपेक्षा के शिकार:-इतना सब होते हुए उत्तर मुगलकाल से यह अपना महत्व खोता गया। तब देश की राजधानी दिल्ली स्थापित की गई। मराठों जाटों एवं अंग्रेजों के समय में भी इसका गौरव वापस ना आ सका। सभी ने इसे लूटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था। कभी यह ’नार्थ वेस्टर्न प्राविंस ’की प्रांतीय राजधानी हुआ करती थी। 1857 के विद्रोह के परिणाम स्वरूप यहां अंग्रेजों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस कारण अंग्रेजो ने यहां की प्रान्तीय राजधानी, हाई कोर्ट , म्यूजियम तथा अभिलेखागार यहां से स्थानान्तरित कराकर इलाहाबाद कर दिया था। बस ,यहां छोड़ा था तो केवल पुरानी यादें तथा पुराने शहर की बेजुगान इमारतें। तब से यह केवल एक मण्डल मुख्यालय तक अपने को समेट लिया है।
यहां के इमारतों के कारण पर्यटक तो यहां बेसुमार आते रहे, परन्तु उनके लिए अनुकूल वातावरण बनाने के गंभीर प्रयास नहीं किये गये। यहां कोई अति विशिष्ट राजनेता भी नहीं हुआ जो इसके गौरव को वापस दिला सके। छोटे-मोटे नेता तो अपना या अपनी पार्टी लाइन पर काम किये । अपनी सीट व अपने वोट बैंक को संभालने में लगे रहे। कभी कांग्रेस का गढ़ रहने वाला यह जिला आगे चलकर जनसंध-भाजपा और बाद में बसपा का प्रमुख केन्द्र बन गया। ंराम बारात, ताज महोत्सव तथा भीम नगरी आदि कुछ छिटपुट आयोजन करके यहां के नेतागण अपने को धन्य कर रहे हैं।
स्ंासाधनों का दोहन:-एतिहासिक इमारतें यहां के रोजी रोटी के साधन रह गये हैं। जब से प्रदूषण का शोर ज्यादा हुआ, यहां के उद्योग आदि धीरे-धीरे सिमटते गये और दूसरे शहरों की ओर बढ़ गये। यह बात किसी से छिपा नहीं कि यहां पैसे या संसाधन की कमी तो कभी भी नहीं रही है। पथकर का असीमित पैसा भारतवर्ष में केवल आगरा जैसे शहर को ही नसीब है। यहां का विकास प्राधिकरण , नगर निगम , छावनी परिषद ,जल संस्थान यहां तक की लोक निर्माण विभाग भी इस निधि पर न केवल आंख गडाये रहते हैं अपितु अधिकारियों की दरियादिली से इसे झटकने में कहीं कोई कोर कसर नही बाकी नहीं लगाते हैं। आयुक्त ,विकास प्रधिकरण , जिलाधिकारी की विभागीय सम्पत्तियों का अनुरक्षण इस निधि से बखूबी होता रहता है।
काम करनेवालों का पलायनः- अभी विगत शताब्दी तथा इस शताब्दी के प्रथम दशकांे तक यहां की हालत दिन बदिन विगड़ती ही देखी गयी है। कानूनन व्यवस्था यहां कभी भी ना तो ठीक रहा और ना अब ही ठीक हैं । यहां कानून का शासन तो कोई कोई अधिकारी अपनी विशेष रूचि व महत्वाकांक्षा के जरिये कायम करा ले जाता हंै और जब उसका परिणाम समाज व शहर में दिखने लगता है तो हमारे माननीय नेता गण उसका स्थानानतरण करवाने में भी पीछे नहीं रहते हैं। अच्छे नेतृत्व के अभाव में नगर वासी भी ज्यादा रूचि लेते देखे नहीं गये।
रास्ता जाम लगाना:- एक चीज यहां और क्षेत्रों से ज्यादा सक्रियता से देखी गयी है, वह है छोटी- छोटी स्थानीय समस्या के लिए रास्ता जाम लगा देना। इसे प्रशासन सख्ती से हटा सकने में समर्थ नही हो पाता हैं और शहर की जनता अपने ही लोगों के समस्याओं के निदान के लिए किये जाने वाले इस ज्यादती को सहने के लिए मजबूर हो जाती है। यहां के प्रमुख सड़के तो निरनतर निगरानी के साथ सही करायी जाती रहती है । परन्तु अनेक सड़कों का नम्बर ही नहीं आने पाता हैं । बरसात जो इस शहर में कम ही होती है और जब होती हैं तो सड़को पर पानी बहने लगता। नालियां तो कागजों में ठीक कर दी जाती हैं इनकी सिल्टें कभी कभार ही साफ की जाती है। आये दिनों ये दुर्घटनाओं को दावत देती देखी गयी है। जब तक पश्चिमांचल विद्युत निमग के पास शहर की विद्युत व्यवस्था रही यहां के लोग काफी दुखी रहे। अब टोरंटों ने इसमें आमूल परिवर्तन करके बहुत सुधार कर दिखाया है। बाहरी पर्यटकों का दबावः- इस शहर में एक समस्या और सर्वधिक हैं वह है जाम की। सप्ताहान्त में बाहर के मुसाफिर आगरा में ज्यादा आ जाते है। कहीं कोई रैली का आयोजन हुआ तो भी भीड़ बढ जाती है। जब शहर में प्रतियागिताओं की कोई परीक्षायंे होती हैं तो भी यह भीड़ देखी जा सकती हैं। इसके समाधान के लिए प्रशासन जो भी उपाय करता है वह पर्याप्त नहीं होता है। पुलिस की पेट्रोलिंग इस उद्देश्य से कभी नहीं की जाती है। टैम्पांे रिक्शे सवारियों के लिए आम जनता की सुविधाओं की अनदेखी करते रहते हैं। इनमें अच्छे शहर के बनाये रखने का ना तो कोई रूचि होती है और ना ही उनमें प्रशासन द्वारा कोई दबाब या गाइडलाइन ही दी जाती है। गांव के आने वाले लोग तो यातायात नियमों का पालन कम करते हैं। तमाम शहरी लोग भी जल्दी जाने के चक्कर में नियम तोड़ते देखे जा सकते हैं। जैसे ही दिल्ली के वाहन यमुना एकसप्रेस वे छोड़तें हैं, आगरा में मनमानी यातायात के संचालक हो जाते हैं। कुछ भले चालक तो नियमां की अनदखी नहीं करते पर आगरा के मूल बासिन्दे ज्यादा से ज्यादा उलंघन करते रहते हैं।
इतना ही नहीं शहरों में डेरी उद्योग पूर्ववत चल रहा हैं। भैसों की झुण्ड जब निकलती है तो ये सारी व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है। पेठा इकाइयों के वाहन, लोडिंग वाहन जब भीड़ वाले इलाके में घुस जाते हैं तो असुविधा बढना लाजिमी है। कहीं कहीं फुटपाथों पर दूकाने चलवायी जाती हैं वे भी शहर की नागरिक व्यस्था के सुचारू रूप में संचालन में बाधक है।
दिखने लगा परिवर्तन:-
जनता व सरकार की दिलचस्पीः- जब से केन्द्र में भाजपा सरकार आयी है और माननीय मोदी जी का संवोधन तथा छोटी-छोटीे समस्याओं को ’मन की बात’ से तथा अन्य आयोजनों के जरिये लोगों को सुनने को मिल रहा हैं , तब से लोगों में जागरूकता बढी हैं । इसी प्रतिस्पर्घा में प्रदेश सरकार ने भी कुछ रूचि तथा भारी बजट खर्च करना शुरू कर दिया हैं। माननीय मुख्यमंत्री जी भी रूचि लेने लगे हैं। उनका नियमित दौरा से काम में गति आयी है। समय समय पर माननीय मुलायम सिहं जी की डाट फटकार से भी काम करने का माहौल बना हैं। स्वयं मुख्यमंत्री जी अपने विवेक से निर्णय त्वरित तथा जनहित में लेते देखे जा रहे हैं। लोक सभा में करारी हार तथा विधान सभा का आसन्न चुनाव से सभी मशीनरी गतिशील देखी जा रही है। राजीतिक प्रतिस्पर्घा अपनी जगह पर है परन्तु अपनी जमीन तलासने की होड़ में बहुत अर्सें के बाद आगरा में कुछ काम होते दिख भी रहे हैं। आजकल ताज नगरी आगरा में कुछ सकारात्मक गतिविधियां जमीन पर दिखायी देने लगी हैं। गलियां तथा नालियां अब कुछ स्तर तक ठीक होने लगी हैं।
जन सहभागिता:-इन कार्यो से आम जन मानस काफी प्रभावित हुआ है और वह सार्वजनिक चीजों में रूचि लेने लगा हैं। अभी तक जिन मुद्दों को वह नजरन्दाज कर देता था, वह उन पर रूचि लेकर उसकी गुणवत्ता को देखने व परखने लगा हैं। ंपरिणाम स्वरूप प्रशासन का काम जन सहयोग से काफी आसान होता जा रहा है। अब कई सड़के गुणवत्ता के साथ तथा नयी नयी तकनीकि से कम समय में बनने लगी हैं। नालियां व खडंजे वेहतर लुक में बनते देखे जा रहे हैं। अतिक्रमण में अधिकारियों को ज्यादा असुविधा नही हो पा रही हैं। जनता का पूरा सहयोग मिल रहा है।ं अधिकांशतः अतिक्रमण अब स्वेच्छा से हटते देखे जा रहे हैं। इतना ही नहीं समाचारपत्र इस दिशा में जनता को जागरूक कर रहे हैं। कहीं कमी होने पर उसे प्रकाशित होने पर जल्द उसमें सुधार किया जाता देखा गया गया है। पालिथीन का प्रयोग जनता कम करने के लिए सहयोग कर रही हैे और अपना विकल्प रखने लगी है। आन लाइन सेवाओं में विस्तार किये जाने से जनता उसको अजमाने लगी है और काम का बोझ व दबाव कम होते देखा जा रहा है।
बहुत कुछ किया जाना बाकी हैः-आगरा के सर्वंगीण विकास के लिए अभी निम्नलिखित कदम उठाये जाने की आवश्यकता है-
अच्छे नागरिक होने का सेन्स यहां के लोगां को सिद्ध करना होगा। यातायात के नियमों का पालन कराना होगा तथा मनमानी पर लगाम लगाना होगा।
शहर के अन्द पेठा व्यवसाय , भैंसों की डेरियां तथा शब्जी के बाजार आदि शहर के बीच तथा मुख्य मार्गों पर ना होकर अन्दर तथा लिंक मार्गो पर होना चाहिए।
म्ुाख्य मार्गो पर पुलिस के पिकेट लगनी चाहिए जो देहात से आने वालों को यातायात के नियमों के बारे में जागरूक करे। उलंघन करने वालों पर फाइन लगाया जाना चाहिए। इस पर उच्चाधिकारियों का बराबर निरीक्षण भी होते रहना चाहिए। जिससे यह धन उगाही का साधन ना बनने पाये।
राहजनी व लूट खसोट पर प्रभावी कदम उठाना चाहिए। बदमाशों में काूनन का खौफ होना चाहिए। आम जनता को ना परेशान कर केवल असमाजिक तत्वों पर ही लगाम लगानी चाहिए।
शहर के मध्य तथा बाहर रिंग रोड बनाया जाना चाहिए। जिससे भीड़ का दबाव एक मार्ग पर ना होकर पूरे शहर के माार्गो पर बंट जाय।
शहर का विकास प्रतिवंधित किया जाय। शहर के निकट लगने वाले कस्बों को प्राथमिकता तथा छूट के साथ विकसित किया जाना चाहिए। इससे शहर के मध्य का दबाव कम होगा और वह कस्वों आदि के रूप में बंट जाएगा।
इस प्रकार निरन्तर जागरूकता के कार्यशाला , शिविर तथा विद्यालयों में कार्यक्रम बनाकर जनता को जानकार बनाया जाना चाहिए। इन प्रयासो से शहर में प्रगति तथा गुणवत्ता आयेगी ओैर वह दिन दूर नही कि यह स्मार्ट तथा हेरिटेज सिटी घोषित हो सकेगा।

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