अजित का साथ, कांग्रेस के हाथ के साथ

सत्ता की भूख कितनी अजीर्ण पैदा करती है; इसकी ताज़ा बानगी है- कांग्रेस और रालोद का गठबंधन| कोई भी सत्ता-सुख से विमुख नहीं होना चाहता; इस हेतु जोड़तोड़ की राजनीति का चलन जोर पकड़ता जा रहा है| तत्कालीन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार सत्ता में वापसी के बाद से विभिन्न मुद्दों पर कई बार अस्थिर हुई है मगर हर बार जोड़-तोड़ का रास्ता अख्तियार कर इसने अपने हठी स्वभाव एवं सत्ता में बने रहने की भूख को ही दर्शाया है| अब चूँकि देश के सबसे बड़े सूबे में चुनाव निकट हैं; तो कांग्रेस येन-केन प्रकरेण सूबे में पुनः अपनी संभावनाएं तलाशती नज़र आ रही है| गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में एक समय कांग्रेस की तूती बोलती थी मगर इसके नीति-नियंताओं की समाज बाँटों नीति ने प्रदेश से कांग्रेस का बोरिया-बिस्तर ही गोल कर दिया| कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश गलफांस बन चुका है और अब वह किसी भी कीमत पर प्रदेश फतह करना चाहती है| हालांकि यह इतना आसान भी नहीं दिखता मगर जिस तरह के समीकरण बनते दिख रहे हैं; उनके आधार पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगा| हाँ; केंद्र सरकार पर ज़रूर इन चुनावों या चुनाव पूर्व गठजोड़ों का व्यापक असर पड़ेगा|

कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी से रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की बंद कमरे में हुई मुलाक़ात के बाद रालोद-कांग्रेस के बहुप्रतीक्षित गठजोड़ पर विराम लग गया है| अब रालोद प्रदेश में ४५ सीटों पर चुनाव लड़ेगी| इसमें से अधिकाँश सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हैं जहां रालोद का ख़ासा प्रभाव है| ४ से ५ सीटें राज्य के बाकी हिस्सों से हो सकती हैं ताकि रालोद-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत किया जा सके| यहाँ भी जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा जाएगा| फिलहाल ४०४ सदस्यीय विधानसभा में जहां कांग्रेस के २० विधायक हैं तो रालोद के विधायकों की संख्या १० है| कांग्रेस ने क्या सोचकर रालोद से गठबंधन किया है यह तो वही जाने मगर इस गठजोड़ से चौधरी अजित सिंह ज़रूर फायदे में दिख रहे है|

गठबंधन के अनुसार रालोद प्रमुख को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है| हालांकि प्रधानमंत्री पहले से ही घाटे में चल रहे उड्डयन मंत्रालय को सहयोगी दल को सौंपने के खिलाफ थे मगर गठबंधन धर्म के आगे उन्हें भी नतमस्तक होना पड़ा| अभी रालोद के सदन में ५ सदस्य है जो निश्चित तौर पर सरकार को थोड़ी राहत तो देंगे| यह भी तथ्य है कि उड्डयन मंत्रालय की आर्थिक हालात चाहे जो रही हो; इसके कप्तान हमेशा अर्थतंत्र के धनी रहे हैं| रालोद मुखिया को यदि उड्डयन मंत्रालय मिल जाता है तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो उनका प्रभाव बढेगा ही; केंद्र में भी उनकी धाक जम जाएगी| अभी कांग्रेस उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर किसी भी तरह के बड़े से बड़े दबाव को झेलने का दंभ भर रही है| हो सकता है इससे कांग्रेस को अल्पकालीन फायदा हो मगर नुकसान ज़रूर दीर्घकालीन होगा| चौधरी अजित सिंह अपने फायदे के लिए पाला बदलने में माहिर माने जाते हैं| जहां उन्हें लगा कि अब कांग्रेस के साथ उनका नुकसान हो रहा है; वे तुरंत पलटी मार लेंगे| उनके बारे में पूर्व का इतिहास भी यही कहता है| फिर उत्तर प्रदेश में चौधरी अजित सिंह के पास खोने के लिए कुछ नहीं है परन्तु कांग्रेस अपना सर्वस्व दाव पर लगाने जा रही है| रालोद मुखिया इस तथ्य से भी वाकिफ हैं; तो इसकी भी संभावना है कि वे कांग्रेस की आड़ में स्वयं को मजबूत करने लगें|

चौधरी अजित सिंह की राजनीति जाट बाहुल्य क्षेत्रों में जमकर चलती है| उत्तर प्रदेश चुनाव पूर्व गठबंधन के मद्देनज़र हो सकता है कि वे कांग्रेस से जाटों के लिए आरक्षण की मांग भी कर लें| इससे जाटों में तो उनका कद बढ़ेगा ही; जनता के बीच उनकी छवि भी निखरेगी| जाट बाहुल्य क्षेत्रों में मुसलमानों की भी अधिकता है और कांग्रेस पहले से ही मुसलमानों पर डोरे डाल रही है, जाट-मुस्लिम वोट बैंक रालोद और कांग्रेस को फायदा तो पहुंचाएगा मगर इसमें भी अधिक फायदा चौधरी अजित सिंह को होगा| पिछले दिनों सूबे की मुखिया सुश्री मायावती ने प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित करा दिया था| पश्चिमी उत्तर प्रदेश पहले से ही जाट-मुस्लिम राजनीति का गढ़ रहा है और चौधरी अजित सिंह यहाँ की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं| जाट-मुस्लिम आरक्षण से चौधरी अजित सिंह का राजनीतिक दायरा बढेगा| कुल मिलाकर लब्बो-लुबाव यह है कि कांग्रेस-रालोद गठबंधन से फिलहाल तो चौधरी अजित सिंह ही बढ़त बना रहे हैं| अब प्रदेश की राजनीति में इस गठबंधन का कितना व्यापक असर पड़ेगा; इसका पूर्वानुमान अभी संभव नहीं|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

2 COMMENTS

  1. दोनों मतलबी धोखेबाज़ और भ्रष्ट हैं जोड़ी तो ठीक बन गयी देखना ये है कौन किसको धोखा देता है?

  2. इसी का नाम राजनीती है और देश की पड़ी लिखी जनता यह सब खुली आँख से देखती है और उसका दायित्व सिर्फ इतना है की चौराहा पैर दोस्तों के साथ चाय की चुस्की लेते हुए इस बात पर चर्चा करना.
    हर चुनाव के पहले इस तरह का गटबंधन या फिर यु कहे की बंद कमरे मे हुई खरीद फरोक्त आज के परिद्रश्य मे एक साधारण सी घटना है.
    देश का भविष्य तो आज के पड़े लिखे युवाओ को संभालना हे, लेकिन कोई भी सरदार पटेल या सुभाष चन्द्र नहीं बनना चाहता. सब हर्षद मेहता बनने की राह की और अग्रसर दिखते है. अपना स्वार्थ सबसे पहले. एसे मे इन महत्वाकंशी देश भक्तो को कौन रोके यह तो समय के गर्भ मे छुपा हुआ हे. यहाँ यह जरूर कहाँ चाहूँगा की इस तरह के रिश्तो पर कभी भी कोई संसद सदस्य या देश का मंत्री या अधिकारी रोक लगाने के लिए नहीं बोलता और अगर ऐसा कोई करने की कोशिश करे तो वह प्रजातंत्र देश मे हमारे देश भक्त नेतागण उसे तालिबानी नियम कहने मे जरा भी देर नहीं करेंगे.
    इससे रोकने का सिर्फ एक ही पहल करनी जरूरी हे की देश की जनता सिर्फ उसको ही अपना मत दे जो हर दृष्टी से उपयुक्त हो फिर वोह किसी भी पार्टी का क्यों न हो.

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