अन्नदाता किसानों के लिए राहुल सांस्कृतायन के लिखे-कहे शब्द ,– ” किसानों सावधान हो जाओ और आँख खोल कर देखते रहो कि तुम्हारे प्रतिनिधि तुम्हारे विरुद्ध कोई काम न कर सकें । ” वर्तमान सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों के मद्देनज़र आज मनो-मस्तिष्क में कौंध रहे हैं । उत्तर-प्रदेश के विधानसभा 2012 के आम चुनावों के दौरान व पूर्व में किसानों की तमाम समस्यायों समेत कृषि भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ व्यापक किसान आन्दोलन खड़ा हुआ था । समस्त राजनैतिक दलों के प्रमुख नेताओं ने अपने-अपने तरीके से स्वयं को व अपने-अपने राजनैतिक दल को असली किसान हितैषी साबित करने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाये थे । भट्टा पारसौल में छिडे किसान-प्रशासन संघर्ष के पश्चात् अपनी-अपनी राजनैतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने पहुँचे राजनेताओं ने अपने आचरण से सिद्ध कर दिया था कि वो तभी किसानों की सुधि लेंगे ,तभी किसान आन्दोलन-संघर्ष से जुड़ेंगे जब सरकार के इशारे पर पुलिस तंत्र अपनी बेरहम लाठियां-गोलियां अन्नदाता पे बरसायेगा । पुलिस-सरकार के जुल्म से कराहते किसानों की मानों मौत का इन्तेजार और उसके पश्चात् वहां अपने लावलश्कर के साथ पहुँच कर उसका राजनैतिक फायदा उठाने की जद्दोजहद में ही लगे राजनेताओं को अब किसानों के लिए वक़्त निकालना दूभर सा प्रतीत होता है ।
उत्तर-प्रदेश की वर्तमान सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार के कारागार मंत्री -संगठन प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का दावा है कि सरकार ने समाजवादी पार्टी द्वारा विधानसभा 2012 में जारी घोषणापत्र को लागू करने में तत्परता दिखाई है । उत्तर -प्रदेश सूचना विभाग द्वारा वर्तमान सरकार के दावों को प्रचारित-प्रसारित करने हेतु हमेशा की ही तरह विज्ञापन पटों , समाचार-पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन ,टी वी चैनलों में विज्ञापन दिये जाना जारी है ।जनता इन सरकारी विज्ञापनों में दिखलाई जा रही उपलब्धियों को देख कर ,पढ़ कर अपनी हैरानी जारी करे तो ऐसे प्रचार का कोई अर्थ नहीं होता । नौकरशाहों का रवैया-आचरण शनैः-शनैः युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझ में आने ही लगा है । वे समझ चुके हैं कि नौकरशाह किसी के भी नहीं होते हैं, सिर्फ अपना हित साधने हेतु सत्ताधारी राजनेताओं को एक माध्यम बनाते है ।राजनेताओं का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ हेतु करना नौकरशाहों की फितरत में शामिल है । नौकरशाहों की इस फितरत को भांप चुके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपने मंत्रीमंडल के द्वारा किये गये अब तक के निर्णयों और कार्यों के विषय में विपक्षी दलों के बयानों ,मीडिया में छप रहे विचारों के साथ-साथ आम जन की प्रतिक्रिया व उनके सुझावों को समझने की चेष्टा करने की कोशिश करनी चाहिए । लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनपक्ष का सटीक आकलन करते रहने से राजनेता अपने आप में सुदृढ़ होता रहता है । ईमानदार कर्मियों , निष्पक्ष -सजग सलाहकारों के सूचना तंत्र व कार्यकुशलता ,मिलनसारिता की बदौलत सामान्य जनता से जुड़े मुद्दे को समझने एवं उसके निराकरण की पहल राजनैतिक-सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से श्रेयस्कर ही होता है ।
समाजवादी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में पृष्ठ 7 पर भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में लिखा गया ,– ” किसानों को दो फसल देने वाली जमीन का उधोग एवं बुनियादी ढाँचा निर्माण के लिए अधिग्रहण पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा । किसी खास स्थिति में अधिग्रहण होना है तो किसान की स्वीकृति से ही होगा । अधिग्रहण का मूल्य सर्किल रेट से छः गुना होगा । अगर उस इलाके में उधोग निर्माण होना है तो किसान परिवार के एक युवक को नौकरी और परिवार के बुजुर्ग दंपत्ति को आजीवन पेंशन का इंतजाम करना होगा । जिस उद्देश्य से भूमि अधिग्रहित होगी , यदि तीन वर्ष तक वह काम नहीं हुआ तो किसानों की जमीन वापस करनी होगी । निजी निवेशक किसान की जमीन लेना चाहें तो सीधे किसान से वार्ता कर जमीन खरीद सकते हैं ।उसमे सरकारी हस्तक्षेप नहीं होगा । यदि कारपोरेट घराने के लोग बड़ा उधोग लगाने के लिए जमीन चाहें तो सरकार गैर उपजाऊ जमीन अथवा पहले से बंद पड़ी मिलों की जमीन अधिग्रहीत कर उन्हें उधोग लगाने के लिए प्रोत्साहित करेगी । ” समाजवादी सरकार को किसानों से सम्बन्धित इस घोषणा को साकार करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने चाहिए । पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में तमाम किसानों की बेशकीमती कृषि भूमि का मनमाना अधिग्रहण हुआ , किसानों ने सहमति पत्र भी नहीं भरे और वहाँ पर कोई भी निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका । उत्तर-प्रदेश की वर्तमान सरकार के मुखिया अखिलेश यादव को बगैर किसानों की सहमति के मनमाने तरीके से किये गये समस्त भूमि अधिग्रहण को निरस्त करके कृषि भूमि अन्नदाता किसानों के नाम वापस राजस्व अभिलेखों में दर्ज कराने की पहल करनी चाहिए । समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया भी कृषि भूमि के अधिग्रहण के कट्टर विरोधी थे । समाजवादी पार्टी के ही घोषणा-पत्र में तत्कालीन बहुजन समाज पार्टी की उत्तर-प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए लिखा गया था ,–” किसानों की जमीन विकास के नाम पर कौड़ी के मोल अधिग्रहित की गई और कई गुना दाम पर निजी बिल्डरों को देकर हजारों करोड़ का वारा-न्यारा किया गया । ” समाजवादी सरकार का यह दायित्व बनता है कि वो उत्तर-प्रदेश में ऐसी सभी अधिग्रहित कृषि भूमि को चिन्हित करें और उन सभी किसानों को उनका हक वापस करे ।
भारत एक कृषि प्रधान देश है । विशाल भू-भाग वाले उत्तर-प्रदेश में दोआब की बेशकीमती उर्वरा भूमि के अधिग्रहण के मामलों ने देश-प्रदेश में हलचल उत्पन्न की , बुंदेलखंड की पथरीली भूमि के बीच खेती-किसानी करता मेहनतकश किसान आज भी जल की कमी से त्रस्त है । पूर्वांचल का किसान छोटी जोत , सिंचाई के पर्याप्त साधनों के आभाव में , सूखा ,बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को सहते हुए शिक्षा-रोजगार-चिकित्सीय सुविधायों के बेहतर होने के इंतजार में पीढ़ी दर पीढ़ी इंतजार कर रहा है । उत्तर-प्रदेश के हर इलाके का किसान अपनी कृषि भूमि पर अधिग्रहण के खतरे को लेकर सशंकित और उद्वेलित है । अपने हक के लिए हलके के लेखपाल , सिपाही से मन्नते करता हुआ किसान यदा-कदा जब भी किसान संगठनों के आह्वाहन पर सड़क पर अपने हक के लिए संघर्ष करने उतरता है तो सरकारों का क्रूर – अमानवीय रवैया पुलिसिया दमन के रूप में सामने आता है और अन्नदाता किसान लाठियाया-धकियाया जाता है । देश-प्रदेश में किसानों की हालत बहुत सोचनीय है , किसान आन्दोलन ज्वालामुखी के मुहाने पर हैं । लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ग्रामीण भारत के आम जन पूंजीपतियों – कॉरपोरेट घरानों की स्वार्थ की बलिवेदी पर भ्रष्ट नौकरशाहों-राजनेताओं के नापाक गठबंधन के चलते बार-बार चढ़ाये जा रहे हैं । किसानों के हाथ में खेती-किसानी के औजारों की जगह अगर देश -प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में जानलेवा हथियार आ चुके हैं तो इसके पीछे सरकारों का पूंजीवादी सोच , जनविरोधी रवैया व जल-जंगल-जमीन के जबरन हरण-दोहन ,स्थानीय लोगों को बेदखल करने की नीति जिम्मेदार है । विकास के नाम पर मूल निवासियों , किसानों से उनकी रोजी-रोटी , उनकी भूमि , उनके प्राकृतिक संसाधनों को छीनना उत्तर-प्रदेश में समाप्त होना चाहिए -निश्चित ही यह एक सबसे अच्छी ,उल्लेखनीय सार्थक उपलब्धि होगी युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार की । उत्तर -प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए ध्यान देने की बात यह भी है कि उत्तर-प्रदेश में एक मर्तबा पुनः किसानों में व्यग्रता बढ़ रही है ,विभिन्न जनपदों में किसानों की सुगबुगाहट अब आन्दोलन की राह पकड़ रही है ।