गाय में समाहित हैं सभी शास्त्र – स्वामी अखिलेश्‍वरानंद

पठानकोट, 7 अक्टूबर। गाय भारतीय समाज-जीवन के सभी पहलुओं को र्स्पा और प्रभावित करती है। गाय में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्साशास्त्र का समावेश है। यह कहना है स्वामी अखिलेश्वरानंद का। स्वामी जी विश्व मंगल गो-ग्राम यात्रा के स्वागत के लिए पठानकोट में आयोजित एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे।

स्वामी जी ने कहा कि गाय अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है। गोमूत्र सभी रोगों की रामबाण औषधि है। यह सम्पूर्ण शरीर का शोधन करके रागों का नाश करता है। उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रों में गोविज्ञान की बात कही गयी है। गाय का दूध, मूत्र, गोबर आर्थिक विकास में उपयोगी है और वैज्ञानिक कसौटी पर पर भी खरे उतरे हैं। उन्होंने कहा कि गाय को अपने जीवन से दूर करने के कारण ही पंजाब की समृध्दि में कमी आयी है।

इससे पहले कठुआ में आयोजित स्वागत सभा में बोलते हुए गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र के सुरो धवन ने गाय की उपयोगिता और पंचगव्य को लेकर हुए आधुनिक शोधों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बाजार में उपलब्ध घी बनाने की प्रक्रिया दोषपूर्ण है। बाजारु घी स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। जबकि ठीक प्रकार से बनाया गया गाय का घी हृदयरोगियों के लिए भी लाभदायक है।

यात्रा को जम्मू से हिमाचल प्रदो में प्रवो करने पर नूरपुर में यात्रा का भव्य स्वागत किया गया। कांगडा में आयोजित स्वागत -सभा में बोलते हुए ज्वाला देवी मंदिर के स्वामी सूर्यनाथ ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद पं. जवाहर लाल नेहरु और उनके समर्थकों के कारण गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला प्रस्ताव संसद में पारित नही हो सका। उन्होंने गोशालाओं मे सुधार करने की भी बात कही।

गोकर्ण पीठाधीश्‍वर जगद्गुरु शंकराचार्य राघवेश्वर भारती ने आंकडों का हवाला देते हुए कहा कि 1947 में एक हजार भारतीयों पर 430 गोवंश उपलब्ध थे। 2001 में यह आंकडा घटकर 110 हो गयी। और 2011 में यह आंकडा घटकर 20 गोवंश प्रति एक हजार व्यक्ति हो जाने का अनुमान है।

उन्होंने कहा कि गोमाता की रक्षा करके ही भारतमाता और प्रकृति माता की रक्षा की जा सकती है।

फिल्म अभिनेता सुरेश ओबेराय ने अपना व्यक्तिगत अनुभव बताते हुए कहा कि गोदुग्ध के सेवन से उनके पूरे परिवार में प्यार का माहौल बन गया है। उन्होंने कहा कि गोवंश के महत्व को तार्किक रुप से समझने की आवश्यकता है।

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा अब मैदानी हिस्से को छोडकर पहाडी क्षेत्रों में प्रवेश कर चुकी है। लेकिन यात्रा के स्वागत कार्यक्रमों और जनसमुदाय की भागीदारी में कोई कमी नहीं आयी है।

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