दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जनता पर जादुई असर ने आम आदमी पार्टी के लिए वैकल्पिक राजनीतिक दल के रूप में खड़ा होने का रास्ता खोल दिया है। गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपावाद का यह दल सही विकल्प है, क्योंकि अब तक भाजपा और राममनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलन से निकले लोग ही गैर-कांग्रेसवाद का नारा बुलंद करके तीसरे मोर्चे का बेमेल विकल्प साधते रहे हैं। लेकिन आजादी के बाद देश में यह पहली बार हो रहा है कि बिना किसी वैचारिक आग्रह के एक राजनीतिक दल, राजनीति में भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था और शुचिता की संस्कृति के पंखों पर सवार होकर देशव्यापी असर दिखाने को उतावला है। अब तो आप ने देश के सभी राज्यों में लगभग 300 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करके अपनी राष्ट्रीय मंशा भी सार्वजानिक कर दी है। साथ ही आप नेता योगेंद्र यादव ने अपनी ख्वाहिश जताते हुए कह भी दिया,‘मेरा सपना है कि अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री बनें। ‘आप के इस राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी हस्तक्षेप ने राजनीतिक दलों की नींद हराम कर दी है।
कामयाबी की सीढि़यों पर निरंतर आगे बढ़ती आप ने कांग्रेस व भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को सकते में डाल दिया है। सबसे बड़ा झटका राष्ट्रीय फलक पर भाजपा को लगा है। दरअसल, भाजपा नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भुनाने में लगी थी। उसे उम्मीद थी कि संप्रग सरकार की नाकामियों के बरक्ष, कांगेस का मजबूत विकल्प आम चुनाव आते-आते वह हासिल कर लेगी। मोदी के विकास के नारे, युवाओं में आकर्षण और राष्ट्रीय स्वयं संघ की राणनीति के चलते, भाजपा इस आस में थी कि उत्तर प्रदेश में वह जहां खोए जनाधार को प्राप्त करेगी, वहीं जिन राज्यों में उसकी उपस्थित नगण्य है, उनमें कमल की खुशबू फैलाने में सफल होगी। लेकिन अरविंद का बढ़ता जादुई असर, भाजपा की महत्वकांक्षाओं पर दिल्ली की तरह पानी न फेर दे, यह चिंता उसे सताने लगी है।
दरअसल, दिल्ली में आप की सरकार बनाए जाने के दौरान भाजपा नेतृत्व ने आप पर जिस तरह की क्षुद्र छींटाकशी की और विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने के दौरान, जो आरोप मढ़े, उनने साफ कर दिया कि खिसीयानी बिल्ली, खंबा नोंचने में लगी है। ‘आप’ ने सरकार बनाने के दौरान जिस पारदर्शिता को अंजाम दिया, कांग्रेस से पर्दे के पीछे कोई सौदेबाजी हुई हो, ऐसी झलक दिखाई नहीं देती? इसके उलट आप ने सरकार के गठन में मतदाताओं के बीच जाकर रायशुमारी का जो उदाहरण पेश किया, जनमत संग्रह की इस दुलर्भ बानगी ने राजनीति में बंद कमरों में गंठबंधन की शर्तों की गांठ ही नहीं बांधने दी। जाहिर है, भाजपा से जनभावना को समझने में बड़ी चूक हुई है जिसका खमियाजा उसे दिल्ली लोकसभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है?
दरअसल, अनुभवहीन ‘आप’ से कांगेस और भाजपा को यह उम्मीद कतई नहीं थी कि वह सत्ता पर काबिज होने के बाद चंद दिनों में ही वादों की कसौटी पर खरी उतरकर अपनी निर्णय-क्षमता भी जनता के समक्ष पेश करने में कामयाब हो जाएगी। घोषणा-पत्र में किए वादों पर आप ने जो ताबड़तोड़ फैसले लिए हैं, उनके बरक्ष देश की जनता में आप के प्रति रूझान बढ़ा है। नतीजतन पूरे देश में आप की सदस्यता लेने के लिए कतारें लग रही हैं। शपथ-ग्रहण के बाद चार दीन के भीतर ही, सस्ती दरों पर पानी और बिजली देने के वादों को पूरा करके अरविंद दिल्ली ही नहीं देश की पूरी जनता को यह संदेश देने में सफल रहे कि घोषणा-पत्र में दर्ज वादों को लेकर गंभीर हैं। अरविंद ने प्रशासनिक समझ दिखाते हुए बिजली कंपनियों के बही-खातों की जांच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से कराने का आदेश भी दे दिया। अरविंद और उनके दल को आशंका है कि बिजली कंपनियों के हिसाब-किताब की जांच के बाद, इन्हें जिस अनुपात में सब्सिडी दी जा रही है, उसकी जरूरत नहीं रह जाएगी और उपभोक्ता को इसका फायदा मिलेगा।
इन्हीं चार-पांच दिनों में अरविंद ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए, शराब माफिया के हाथ मारे गए सिपाही विनोद के परिजनों को एक करोड़ की अनुकंपा राशि देकर सरकारी कर्मचारियों तक यह संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे कि कर्त्तव्यनिष्ठ ईमानदार कर्मचारियों के साथ खड़े हैं। दिल्ली में ही नहीं शायद यह देश में पहली बार हुआ है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों को ठंड में जीवन-यापन कर रहे लोगों के बीच भेजा और पोटा टेंट लगाकर तत्काल रैन बसेरे बनाए जाने की पहल की। यहां गैारतलब है कि खुले में जीवन गुजार रहे ये लाचार मतदाता नहीं होते, इसलिए किसी दल के वोट बैंक भी नहीं होते? जाहिर है, ऐसे लोगों की सुध लेने की उम्मीद किसी संवेदनशील व्यक्ति से ही की जा सकती है।
यदि मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत लोग राजनीति में सामुहिक हस्तक्षेप करने की दृष्टि से आगे आएंगे, तो तय है, मतदाताओं में राजनीतिक जगरूकता बढ़ेगी और वे वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किए जाने की जड़ता को तोड़ने के पर भी आमादा होंगे। आप के इस जनहितैषी सकारात्मक हस्तक्षेप ने मतदाता की पारंपरिक प्रकृति व प्रवृत्ति को झकझोरने का काम किया है। इसलिए वर्तमान में लगभग 30 प्रतिशत युवा मतदाताओं का ऐसा समूह अंगड़ाई ले रहा है, जो अराजनैतिक होने के साथ वैचारिक आग्रहों-दुराग्रहों से भी मुक्त है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उसका कोई ऐसा राजनीतिक आदर्श भी नहीं है जिसकी आत्मकथा पढ़कर वह उत्प्रेरित हुआ हो। जाहिर उसके जेहन में साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद और गांधीवाद जैसी वैचारिक अवधारणाएं खलबली नहीं मचाती। एक वैचारिक दल से जुड़े और युवा होने के बावजूद राहुल गांधी नेतृत्व के स्तर पर अब तक बेअसर है। इस युवा पीढ़ी का छद्म धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिकता, मिश्रित अर्थव्यस्था और स्वेदेशी-विदेशी अवधारणा से भी कोई बहुत संजीदा वास्ता नहीं है। इसलिए नरेंद्र मोदी का विकासवादी नारा तो उसे लुभाता है, लेकिन धर्म आधारित कट्टरता से वह कमोवेश परहेज करता है। मुजफ्फनगर दंगों के बाद मुलायम सिंह यादव और उनका कुनबा जिस तरह से छद्म धर्मनिरपेक्ष चरित्र के रूप में उभरे हैं, उसके चलते युवा मतदाता उनसे खुले तौर से खफा दिखाई दे रहा है। इस नाराजी ने मुलायम की अगुआई में तीसरे मोर्चे के आम चुनाव पूर्व खड़े होने की हकीकत को नकार दिया है।
जाहिर है, देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में दो ही बातें महत्वपूर्ण हैं। एक भ्रष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था और दूसरी राजनीति में सांस्कृतिक शुचिता। इन्हीं दो मुद्दों पर आप ने दिल्ली में कामयाबी हासिल की है और अवाम में वैकल्पिक नेतृत्व की उम्मीद जगाई है। कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा से शुचिता के सांस्कृतिक उन्नयान की बात इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि ये दल अपराधियों, बहुबालियों और भ्रष्टाचारियों की जमात से छुटकारा ही नहीं चाहते? वीएस येदियुरप्पा को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने साफ संकेत दे दिया कि परिर्वतन की आहट को वह जान-बूझकर नजरअंदाज कर रही है। अलबत्ता इन सभी अनुभवी दलों को यह अनुभव तो होगा ही कि जब बदलाव का मानस अंगड़ाई लेता है तो मतदाता तमाम जड़ संकीर्णताओं से ऊपर उठकर मतदान करता है। यही मतदाता वैकल्पिक राजनीति की संभावना को शक्ति देता है। आप को यह शक्ति मिलती दिखाई दे रही है।
आप का प्रयास सराहनीय है, पर नए दल नए विकल्प कि चाह में सभी लोगों का एकाएक मुड़ना उसे भी भ्रष्ट न कर दे. क्योंकि अवसरवादी,स्वार्थी व स्थापित दलों के कुछ असामाजिक तत्व भी घुसने का प्रयास कर रहें हैं,ऐसे में इतने बड़े जमावड़े को सम्भालना भी कठिन होगा.जिस तरह भीड़ उमड़ रही है उस से रास्ता भटकने की भी सम्भावना ज्यादा हो जाती है.लोकसभा के लिए जितने ज्यादा स्थान के लिए ‘आप’ चुनाव लड़ेगी अभी अपने शैशव काल में उतने ही असफल होने की सम्भावना ज्यादा हो जायेगी.