अमर अजेय है लोकतंत्र

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समय और समाज के साथ चलना बहुत बार हमारी मजबूरी हो जाती है। हम चाहे जिस क्षेत्र में हो, स्थायित्व के साथ-साथ उन्नति की अपेक्षा तो रहती ही है। समाज में नैतिकता की आवश्यकता के पक्षधर होते हुए भी परिस्थितिवश हमें जाने अनजाने में कुछ अनैतिक काम भी करने पड़ जाते हैं। ऐसे में देश की राजनीति के खिलाडियों से फिर नैतिकता की अपेक्षा क्यों ?
वर्तमान राजनीति तो वाहन चलाने से भी कहीं अधिक चौकसी का कार्य हो गया है। “सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी” का नारा तो राजनीति पर अक्षरशः लागू होता है। हालात ऐसे हो गए हैं कि विरोधी दलों के साथ-साथ अपने और सहयोगी दलों के कार्यकलापों और पर गुप्त निगरानी की अधिक आवश्यकता महसूस होने लगी है। क्या पता कौन कब इधर से उधर हो जाए। गठबंधन की राजनीति में तो दिनरात चौकसी की आवश्यकता दिखाई देती है।
राजनीति में तो कभी भी कुछ भी हो सकता है। भौतिकवाद की इस अंधी दौड़ में केवल राजनीतिक लोगों से नैतिकता की उम्मीद क्यों ? धन-सम्पदा, पदलाभ और स्थायित्व की आशा में राजनीति में भी नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास हुआ है।महंगे होते चुनाव और फिर उसपर राजनीतिक अस्थिरता का भय ही दल बदल जैसे अनैतिक कार्य को बढ़ावा देते हैं। ऐसे में राजनीतिक विचारधारा और आस्थाओं की कौन पूछे ?
देश की लोकतान्त्रिक राजनीति में दलबदल कोई नया काम नहीं है। चुनाव सुधार प्रक्रिया के तहत अनेक उपाय करने के बावजूद ये आज भी बदस्तूर जारी है। अनेकों बार आस्था बदलने वालों के लिये ही आयाराम गयाराम की संज्ञा दी जाने लगी थी। सरकार बनाने या गिराने के लिये दलबदल का कांग्रेस द्वारा खूब इस्तेमाल किया जाता रहा। बाद के समय में अन्य दलों ने भी इसका प्रयोग किया।
पिछले वर्ष तो अरुणाचल प्रदेश में तो खूब तमाशा हुआ जब सीएम पेमा खांडू समेत कांग्रेस के 43 विधायक पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) में शामिल हो गए हैं। इससे पहले दिसंबर 2015 में दिवंगत कलिखो पुल ने कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सरकार को जुलाई 2016 में हटा दिया था। विदित हो कि कि विगत 36 वर्षोें में देश में ऐसा दूसरी बार हुआ है जब किसी मौजूदा सीएम ने लगभग सभी विधायकों के साथ पार्टी बदल ली है।
इससे पूर्व हरियाणा में जनतापार्टी के मुख्यमंत्री भजनलाल ने 22 जनवरी 1980 को रातों रात पूरी सरकार के साथ कांग्रेस में शामिल हो सबसे बड़ा दलबदल किया था। ऐसा उसने केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार बनने के बाद पैदा हुए भय के वातावरण के कारण किया था। हुआ यूँ की 1980 में इंदिरागांधी ने पुनः सत्ता पर वापसी पर जनता पार्टी के शासन वाली कई राज्यों की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। हरियाणा की जनता पार्टी की सरकार को भी बर्खास्त किये जाने की चर्चा थी। इससे बचने के लिए भजनलाल ने जनता पार्टी के सभी विधायकों सहित कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

 

देश की हर राजनितिक उठापटक को लोकतंत्र की हत्या की उपमा देने वालों को यह समझना चाहिये कि हजारों वर्षो से हमारे बीच विभिन्न रूप में विद्यमान लोकतंत्र अमर और अजेय है।
छुटपुट अनैतिक राजनीतिक घटनाओं से लोकतंत्र के नैतिक मूल्यों में आस्था रखनेवाले तो संभव है आहत होते हों, परंतु लोकतंत्र को कोई क्षति नहीं पहुंचा सकता।

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विनायक शर्मा
संपादक, साप्ताहिक " अमर ज्वाला " परिचय : लेखन का शौक बचपन से ही था. बचपन से ही बहुत से समाचार पत्रों और पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं में लेख व कवितायेँ आदि प्रकाशित होते रहते थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान युववाणी और दूरदर्शन आदि के विभिन्न कार्यक्रमों और परिचर्चाओं में भाग लेने व बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ. विगत पांच वर्षों से पत्रकारिता और लेखन कार्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर के अनेक सामाजिक संगठनों में पदभार संभाल रहे हैं. वर्तमान में मंडी, हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र में संपादक का कार्यभार. ३० नवम्बर २०११ को हुए हिमाचल में रेणुका और नालागढ़ के उपचुनाव के नतीजों का स्पष्ट पूर्वानुमान १ दिसंबर को अपने सम्पादकीय में करने वाले हिमाचल के अकेले पत्रकार.

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