-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारतीय लोकत्रांतिक शासन व्यवस्था में इस देश के संविधान ने पंथनिरपेक्षता को आत्मसात किया है। सर्वधर्म सम्भाव भारतीय संविधान की आत्मा कही जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी, लेकिन जिस प्रकार भारत में अलगाववादी तत्व इस पंथ निरपेक्षता के सिद्धांत को कमजोर कर तोडने में लगे हैं, यह जरूर आज चिन्ता का विषय है। जैसे प्रत्येक मुसलमान के लिए जीवन में एक बार अपने पैगम्बर मोहम्मद साहब की जन्मस्थली और कार्य क्षेत्र मक्का-मदीना के दर्शन करना महत्वपूर्ण है, ईसाइयों के लिए जिस प्रकार जेरूसलम में ईसा की समाधि और वहाँ के गिरजाघरों में प्रार्थना करना विशेष महत्व रखता है। ठीक उसी प्रकार भारत में हिन्दुओं के लिए चार धामों की यात्रा, विशेषकर उत्तर में हिमालय की आच्छादित् बर्फ की पहाडियों के बीच अपने आराध्य भगवान शिव के दर्शन बाबा अमरनाथ गुफा में करना जीवन में अपनी अंतिम इच्छा पूर्ण करने के समान है। किन्तु हिन्दुओं के इस पवित्र स्थल की यात्रा लोकतांत्रिक देश भारत में शान्ति से कैसे सम्पन्न हो सकती है? कश्मीर को अपनी बपोति मानने वाले पडोसी मुल्क पाकिस्तान की शह पर घाटी की हवा बिगाडने वाले असामाजिक तत्व हर वर्ष की तरह इस बार भी नहीं चाहते कि यह यात्रा प्रेम और सौहार्द के वातावरण में सम्पन्न हो सके। इसीलिए ही तो एक धर्म विशेष को मानने वाले समुदाय के लोग कश्मीर में हिंसा फैलाकर अमरनाथ यात्रा को रोकने का प्रयास कर रहे हैं।
आश्चर्य इस बात है कि जम्मू कश्मीर की सरकार अलगाववादी तत्वों को रोकने के स्थान पर इन आतंकियों से निपट रहे सीमा सुरक्षा बल के जवानों को ही कटघरे में खडा कर रही है। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला प्रदेश में बढते जनाक्र्रोश के लिए सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वे लगातार सुरक्षा बल और विशेषाधिकार कानून को वापस लेने या उसमें बदलाव करने की माँग कर रहे हैं। जबकि हकीकत यही है कि जम्मू-कश्मीर के जो वर्तमान हालात हैं वह अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय या सेना के कारण नहीं बल्कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर व बहुसंख्यक समुदाय के स्थानीय निवासियों द्वारा ही पैदा किए गए हैं।
पिछले दिनों जम्मू कश्मीर के सोपोर में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में जिस एक युवक बिलाल अहमद वानी की मृत्यु हुई थी उसके बारे में सभी जानते हैं कि सीआरपीएफ के जवानों ने किसी व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते उसे नहीं मारा, वह एक हादसा था इस युवक की मृत्यु तो बेकाबू और हिंसक होती भीड पर कंटनेल करने के लिए किए गए हवाई फायर के कारण हुई, लेकिन इस बात को आधार बनाकर अलगाववादी तत्व जम्मू-कश्मीर में जिस तरह अमरनाथ यात्रा रोकने के लिए हिंसक आंदोलन का सहारा ले रहे हैं उससे इतना तो साफ है कि कश्मीर को भारत से काटने के लिए यहाँ के अलगाववादी संगठन दिन रात प्रयासरत हैं। वह नहीं चाहते कि किसी भी स्थिति में देश के अन्य हिस्सों के लोग खासकर हिन्दू समुदाय कश्मीर में आए।
आज देश के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इस बात को स्वयं मान रहे हैं कि कश्मीर में जो तनावपूर्ण स्थिति उसके पीछे पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। वहीं दूसरी ओर उन्होंने दंगाईयों तथा पत्थरबाजों से निपटने के लिए केन्द्रीय अध्र्दासैनिक बलों को निर्देश दिया है कि वे संयम से काम लें। लेकिन जम्मू-कश्मीर की जो प्रदेश कांग्रेस है उसको क्या नसीहत देंगे चिदम्बरम साहब क्योंकि वह मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के रूख का समर्थन कर रही है।
हालिया घटना से सम्पूर्ण भारत को समझ में आ गया है कि आतंकवादी और अलगाववादी तत्वों ने जिस प्रकार कश्मीरी पंडितों को राज्य से पलायन करने को मजबूर किया तथा बाद में कश्मीर में नहीं घुसने दिया। उसी प्रकार अब जम्मू-कश्मीर में अर्धसैनिक बलों पर दबाव बनाकर उनके अधिकारों में कटौती करना ही एकमेव उद्देश्य कश्मीरी अलगावादी नेताओं का है।
कश्मीर में राजनैतिक दल बोट बैंक की स्वार्थी राजनीति से संचालित होने के कारण ही आज पंडितों की पीडा को मूक दर्शक की तरह चुपचाप देख रहे हैं। इसे कश्मीर तथा वहाँ के स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही माना जाएँगा कि नेशनल कान्फ्रेंस के शेख अब्दुल्ला से लेकर फारूख अब्दुल्ला तथा वर्तमान में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद, महबूबा मुफ्ती सईद जैसे राजनीतिज्ञ लम्बे अर्से से कश्मीर को अपनी निजी सम्पत्ति मानकर वहाँ का राजनीतिकरण करने में लगे हुए हैं। यह सच है कि सम्पूर्ण राष्टन् को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से जम्मू-कश्मीर के हालातों के मद्देनजर भारतीय संविधान ने अपने अनुच्छेद 370 से उसे विशेष अधिकार दे रखे हैं। किन्तु इसका कतई यह मतलब नहीं कि इस विशेषाधिकार का दुरूपयोग करने की किसी को छूट दी जानी चाहिए।
वस्तुत: आज कश्मीर में मुख्य राजनीतिक दल नेशनल, कान्फ्रेंस, पीडीपी व अन्य अलगाववादी संगठन, बिना किसी शर्म और संकोच के कश्मीरियत की राष्टन् विरोधी व्याख्या कर रहे हैं। बिना किसी भय के जम्मू-कश्मीर के हितों की परवाह किए यह दल भारतीय संविधान की धज्जियाँ उडा रहे हैं, लेकिन यह भूल रहे हैं कि भारत ने जिस लोकतांत्रिक सर्वधर्म सम्भाव पर आधारित पंथ निरपेक्ष राज्य का आदर्श अपने सामने रखा है, यह कोई उसकी कमजोर नहीं बल्कि शक्ति है।
कश्मीर में देशभर से जो हिन्दू यात्री अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं। वह अपने साथ इतना कुछ ले जाते हैं कि उससे कश्मीर की वर्षभर की आर्थिक व्यवस्था निर्वाध रूप से चलती है। इस यात्रा को नुकसान पहुँचाकर कश्मीरी अपने हितों को ही संकट में डालने का कार्य कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि, अर्धसैनिक बलों के पुख्ता सुरक्षा कबच के बीच इस वर्ष की अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई है। कश्मीर में हालिया घटनाओं, तनाव और सुरक्षा चिन्ताओं के बावजूद तीर्थयात्री अपनी आस्था को लेकर प्रतिबध्दा हैं। यात्रियों का उत्साह यह संदेश देने के लिए पर्याप्त है कि भारत को कमजोर करने वाली विदेशी या अंदर की शक्तियाँ कितने भी प्रयत्न कर लें, उनके मंसूबे कभी कामयाब नहीं हो सकते।
सर जी आप ने लिखा तो बहुत अच्छा है पर क्या मौजूदा सरकार से ये उम्मीद की जा सकती है की वो कुछ तो जिम्मेदाराना निर्णय ले लगता तो नहीं क्योकि उनका vote बैंक कम हो जायेंगा धरा ३७० रद्द करने की इच्छा सकती चाहिए और वो शक्ति उसी सरकार को मिलेंगी जो बहुशंख्यों द्वारा चुनी हो इस सरकार से उम्मीद लगाना मुर्खता होंगी , इस स्थिति को जन्बुज कर उल्जाया जा रहा है , ताकि मौजूदा सरकार कश्मीर को जानबूझ कर अलग कर दे और इसका ठीकरा हिंदुयों पर फोड़ दे जैसा १९४७ मैं किया था , जन बुजकर हिंदुयों को भड़काया जा रहा है
हमारी सरकार की यही दुलमुल निति रही और सेना को वहा से हटाया गया तो कुछ ही सालो में जम्मू और कश्मीर या तो स्वतंत्र राष्ट्र बन जायेगा या पूर्ण रूप से पाकिस्तान का अंग बन जायेगा. हमारी सरकार का अगर दृड़ निश्चय हो तो कुछ महीनो नहीं बल्कि दिनों में कश्मीर समस्या जड़ से ख़त्म हो सकती है.
अमरनाथ यात्रा को रोकने की कोशिश करना बहुत ही शर्मनाक है.