अद्भुत प्रतिभावान डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर

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ओ३म्

पुण्य तिथि 7 दिसम्बर पर श्रद्धांजलि

मनमोहन कुमार आर्य

7 दिसम्बर 1956 को दिवगंत डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर जी की आज 58 वीं जयन्ती है। वह भारत के पहले कानून मंत्री रहे। भारत के संविधान के निर्माण व उसका प्रारूप तैयार करने में उनकी प्रमुख भूमिका थी। भारतीय रिसर्व बैक की स्थापना में भी उनका मुख्य योगदान था। वह दलितों, पिछड़े, निर्धनों व दुःखियों के मसीहा थे। उन्होंने जीवन में अनेकानेक महत्वपूर्ण कार्य किये जिनसे देश व समाज प्रभावित हुआ। बहुत से कार्य वह करना चाहते थे व चाहते होगें परन्तु उसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। एक कार्य तो यह चाहते थे कि समाज से सामाजिक असमानता, छुआछुत, अस्पर्शयता, ऊंचनीच, छोटे-बड़े की भावना समाप्त होकर सारा देश एक भाव, एक विचार, सर्व-स्वीकार्य एक मत-धर्म, भाषा व जीवनशैली, सबका एक सुख-दुख व एक हानि-लाभ को स्वीकार करे व अपनायें। परन्तु यह कार्य अब तक कुछ बड़े लोगों के कारण सफल नहीं हो सका। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने भी अपने साहित्य व शंका-समाधान आदि में ऐसे ही विचार व्यक्त किये थे कि ऐसा होने पर ही देश व विश्व का पूर्ण हित हो सकता है व होगा। हिन्दुओं की जन्म पर आधारित जन्म-जाति व्यवस्था के बारे में सन् 1875 के आसपास उन्होंने कहा था कि ये वर्ण व्यवस्था आर्यो के लिए मरण व्यवस्था है। देखें इस डाकिन से आर्यो (हिन्दुओं) का पीछा कब छूटता है?’ हम समझते हैं कि देश में यदि अस्पर्शयता न होती तो डा. अम्बेदकर जी देश व समाज के लिए और अधिक उपयोगी कार्य कर सकते थे। वह अपने जीवन में जितना कार्य कर सके उसके आधार पर हम उन्हें न्यायविद्, राजनेता, दार्शनिक, anthropologist] इतिहासकार तथा अर्थशास्त्री आदि अनेक विशेषणों से युक्त महनीय पुरूष कह सकते हैं। लगभग 63 वर्ष की आयु में ही उन्होंने इतने कार्य किये हैं इससे उनका जीवन आदरणीय, सम्मानीय, श्रद्धा  व अनेकानेक युवकों व सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

राष्ट्र नायक डा. अम्बेदकर जी 14 अप्रैल 1891 को महू-मध्यप्रदेश में जन्में थे। आप अपने पिता श्री रामजी सकपाल एवं माता श्रीमति भीम बाई की 14 वीं व अन्तिम सन्तान थे अर्थात् भाई बहिनों में सबसे छोटे थे। तर्क व विज्ञान के आधार पर भी यही परिणाम निकलता है कि छोटी सन्तान सबसे अधिक स्वस्थ, बलवान, मेधावी व प्रतिभावान होती है। आपका परिवार “महर” जाति से सम्बन्धित एक निर्धन परिवार था तथा धार्मिक विचारधारा से आप कबीर पन्थी थे। पिता की आपको प्रेरणा थी कि वह हिन्दू मत के शास्त्रों में वर्णित वर्ण-व्यवस्था व जाति प्रथा का अध्ययन करें। आपका परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले का रहने वाला था। पिता व परिवार के अन्य लोग ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में कार्यरत थे। आपको बाल्यकाल में शिक्षा प्राप्त करने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। उनके साथ जो भी भेद-भाव किसी भी रूप में हुए, वह सब अनुचित व दुःखद थे, उन्हें अमानवीयता की संज्ञा दे सकते हैं। महर्षि दयानन्द ने जिस गुरूकुलीय शिक्षा व्यवस्था को अध्ययन-अध्ययापन के लिए प्रस्तुत किया उसमें उनका कहना था कि राजा का पुत्र हो या किसी निर्धन, दलित व पिछ़ड़े परिवार का, सबको समान आसन, समान भोजन, समान वस्त्र व अन्य सभी सुविधायें एक समान रूप में मिलनी चाहिये। यदि समानता नहीं होगी तो यह अधर्म है व अनुचित कार्य है। यह विचार उन्होंने सन् 1875 में व्यक्त किये व अपनी प्रसिद्ध पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखे हैं। आर्य समाज के इस समय लगभग 500 से अधिक गुरूकुलों में इस व्यवस्था का पालन किया जाता है जिसका परिणाम है कि आज वेदों के अध्ययन पर पण्डित वा ब्राह्मण वर्ग का एकाधिकार समाप्त होकर देश व समाज में दलित व पिछड़ें वर्गों से सम्बन्धित  अनेक वेदों के भाष्यकार, विद्वान, अध्यापक आदि महान आशय वाले लोग हैं। सन् 1894 में अम्बेदकर जी के पिता सेना से सेवानिवृत होकर परिवार सहित सतारा आकर रहने लगे। यहां दो वर्ष बाद आपकी माताजी का देहान्त हो गया।  भीमराव जी इस समय मात्र 5 वर्ष के बालक थे। आपकी चाची ने आपका व अन्य भाई-बहिनों का पालन-पोषण किया। आप अपने नाम के अम्बावादेकर शब्द का प्रयोग करते थे। आप एक जन्मना-ब्राह्मण अध्यापक महादेव अम्बेदकर के प्रिय छात्र थे। उन्होंने आपका नाम में अम्बावादेकर के स्थान पर अम्बेदकर कर दिया और यही शब्द स्कूल के अभिलेख में अंकित किया। यही शब्द सदा जीवन आपके नाम के साथ शोभायमान रहा। आपने कोलम्बिया विश्वविद्यालय एवं लन्दन के स्कूल आफ इकोनोमिक्स में अध्ययन किया और यहां से विधि, अर्थशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र में स्नातक हुए तथा इन विषयों में अध्ययन व अनुसंधान कर आप डाक्टरेट की उपाधि से अंलकृत हुए। आपने सन् 1918 में मुम्बई के College of Commerce & Economics में राजनीति एवं अर्थशास्त्र का अध्यापन भी कराया।  आपके अध्ययन से आपके छात्र अत्यन्त प्रभावित थे और आपके व छात्रों के परस्पर अत्यन्त मधुर सम्बन्ध थे। सन् 1926 में आपने वकालत आरम्भ की व इसमें सफलता प्राप्त की। आपने 1920 में मूक नायक (Leader of the silent) नामक पत्र प्रकाशित कर अस्पर्शयता निवारण के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया।  कोल्हापुर के महाराजा शाहूजी (1874-1922) ने आपको इस कार्य व अन्य गतिविधियों में आर्थिक सहयोग प्रदान किया। यह ज्ञातव्य है कि शाहूजी आर्य समाज व आर्य विचारधारा के अनुयायी थे। अर्थशास्त्र पर आपने तीन पुस्तकें लिखी जिनके नाम थे – Administration & Finance of the East India Company, The Evolution of Provincial Finance & British India and The Problem of Rupee – Its origin and its solution.

रिसर्व बैंक आफ इण्डिया सन् 1934 में स्थापित हुआ जो कि डा. अम्बेदकर के विचार एवं अनुमानों, कल्पनाओं व आइडियाज पर आधारित था। इसके लिए उन्होंने आवश्यक feedback आदि Hilton Young Commission को दिये थे। डा. अम्बेदकर जी की भारतीय संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका थी। वह पहले कानून मंत्री थे। उन्होंने काश्मीर के सम्बन्धित विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 का खुल कर विरोध किया था। नेहरूजी इसके लिए उन्हें मना नहीं पाये थे। इससे उनके व्यक्तित्व का अनुमान होता है। अस्पर्शयता का विरोध उन्होंने किया। यह एक अमानवीय समाजिक कुप्रथा थी जिसका महर्षि दयानन्द सहित स्वामी श्रद्धानन्द एवं उनके अन्य सभी अनुयायियों ने विरोध किया। खेद है कि आज भी समाज में यत्र-तत्र इसके दर्शन होते हैं और जिन लोगों को इसका विरोध करना चाहिये, जिनके कारण यह विद्यमान है, वह विरोध नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोगों को क्या कहा जाये? यह कैसा वैज्ञानिक युग व आधुनिक काल है कि यह अमानवीय कुप्रथा आज भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। हमें लगता है कि आज की आधुनिक शिक्षित युवा पीढ़ी इसे आने वाले समय में समाप्त करेगी।

डा. भीमराव अम्बेदकर जी ने सामाजिक विषमता के विरूद्ध आन्दोलन किया और अंहिसा को प्रधानता देने वाले बौद्धमत ग्रहण किया। आपको 1990 में भारत रत्न की देश की सर्वोपरि उपाधि प्रदान कर गौरवान्वित किया गया। आर्य समाज के शीर्षस्थ विद्वान स्वामी विद्यानन्द सरस्वती आपके प्रशंसक थे। आप दोनों में परस्पर मधुर सम्बन्ध थे। पौराणिकों व आर्य समाज में जब कभी कुछ विषयों पर मतभेद हुआ तो आपने आर्य समाज के विचारों का समर्थन किया। डा. अम्बेदकर जी का सुश्री शारदा कबीर जी से विवाह हुआ था। यह विवाह दिल्ली में आपके निवास पर हुआ था। शारदाजी ब्राह्मण परिवार में जन्मी थी। आपके पुत्र श्री यशवन्त एवं पोते का नाम अम्बेदकर प्रकाश यशवन्त है। वह भारतीय संसद के दोनों सदनों के सदस्य रहे हैं। डा. अम्बेदकर जी को मधुमेह रोग था। आप जून-अक्तूबर, 1954 में गम्भीर रूप से रूग्ण हुए और बिस्तर पर ही रहे। इस रोग से आपकी आंखें भी प्रभावित हुई जिससे आप पढ़-लिख नहीं सकते थे। सन् 1955 में आपका स्वास्थ्य और अधिक गिर गया। इस प्रकार सन् दिसम्बर 1956 आया जब एक दिन रात्रि को सोते हुए ही आपने नश्वर शरीर छोड़ दिया। 7 दिसम्बर 1956 को मुम्बई के दादर, चैपाटी में आपकी अन्त्येष्टि हुई। आपकी पत्नी की मृत्यु सन् 2003 में हुई।

 

आपके जीवन का सन्देश यही प्रतीत होता है कि प्रत्येक व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी अपनी शैक्षिक योग्यता बढ़ानी चाहिये। असत्य, पाखण्ड व कुरीतियों का विरोध करना चाहिये। देश व समाज के लिए जितना भी बन सके उसकी उन्नति में अपना योगदान देना चाहिये। असत्य के आगे झुकना नहीं चाहिये। उनके जन्म दिन पर सबसे बड़ी श्रद्धाजंलि यही हो सकती है कि देश व समाज से सामाजिक असमानता, छुआ-छूत, अस्पर्शयता, ऊंच-नीच की भावना, छोटे-बड़े का अन्तर पूर्णतया समाप्त होना चाहिये। जब तक यह असमानता विद्यामन है, यह नहीं कहा जा सकता कि देश उन्नति कर रहा है व हम आधुनिक समय में है। जिन लोगो के कारण यह असमानता आदि है, उन्हें अपने कर्तव्य को पहचानना है और इसके लिए सच्चे मन से कार्य करना है। इस कार्य में हम सम्प्रति शिथिलता अनुभव करते हैं।

वेद मानव को परमात्मा प्रदत्त ज्ञान है। वहां कहा गया है कि सभी मनुष्य ईश्वर के पुत्र व पुत्रियां है, कोई छोटा-बड़ा नहीं है। अज्ञानता के कारण हम गल्तियां करते हैं जिनसे हम कमजोर होते हैं और देश व समाज पर संकट आते हैं। हम अनुभव करते हैं कि सत्य को ग्रहण करने व असत्य को छोड़ने में हमें सदा उद्यत रहना है। अविद्या का नाश व विद्या की वृद्धि करनी है, सभी मनुष्यों को अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं होना है अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये। यह विचार वेदों स आयें हैं। यदि सभी लोग वेदों का स्वाध्याय कर अपना कर्तव्य निर्धारित करें तो श्रेष्ठ समाज बन सकता है।  सामाजिक विषमता व असमानताओं से रहित समाज बना कर ही हम डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर को उनकी पुण्य तिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। हम समझते हैं कि सामाजिक समानता का लक्ष्य एक न एक दिन पूरा होना ही है। वह दिन ही वस्तुतः पृथिवी का आधुनिक काल कहलायेगा। वेदों की ऐसा समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर को हमारी श्रद्धांजलि।

                   

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