तेल के खेल में फंसता हुआ अमेरिका

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में लाई गई गिरावट का आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव नजर आने लगा है। रूस, ईरान, इक्वाडोर और वेनेजुएला जैसे तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था पर किया गया यह आर्थिक हमला, अमेरिका, यूरोपीय संघ और सऊदी अरब सहित तेल उत्पादक उसके सहयोगी देशों की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ने लगा है। अमेरिका और उसके मित्र देशों के लिये सबसे बुरी स्थिति यह बन रही है, कि रूस के समर्थन और सहयोग से उनके वर्चस्ववाली ‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कन्ट्री’ (ओपेक) के विकल्पों की नई पहल शुरू हो गयी है। कई देश अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये गैर ओपेक देशों के संगठन की अनिवार्यता से संचालित हो रहे हैं। कह सकते हैं, कि ओपेक के विभाजन का खतरा बढ़ता जा रहा है।
जनवरी में वेनेजुएला के राष्ट्रपति मदुरो ने ईरान, सऊदी अरब, कतर और अल्जीरिया जैसे ओपेक देशों का दौरा किया, जिसका उद्देश्य कच्चे तेल की कीमतों का उचित निर्धारण और तेल बाजार की स्थिरता के लिये संयुक्त प्रयत्नों को विकसित करना था। इक्वाडोर के विदेश मंत्री रिकार्डो पटिनो और वेनेजुएला की विदेश मंत्री डेलसी रोडरिज 14 फरवरी को ग्रीस के दौरे पर गये। ग्रीस की यात्रा का यह निर्णय रूस के ऊर्जा मंत्री के साथ हुई संयुक्त बैठक में लिया गया। ग्रीस की यह यात्रा वहां की नई वामपंथी सरकार के प्रति सहयोग एंव समर्थन है, जो अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों की राजनीति के विरुद्ध है। वह ग्रीस की आम जनता के पक्ष में कटौतियों को घटाने और वेतन को बढ़ाने के लिये यूरोपीय संघ का विरोध सह रही है। उसके सामने यूरोपीय संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और यूरोपीय सेंट्रल बैंक का भारी कर्ज है, और उन पर लदी हुई राजनीतिक शर्तें हैं। वह इन ताकतों के अन्यायपूर्ण शर्तों एवं सहयोग के बिना ग्रीस की अर्थव्यवस्था का पुर्ननिर्माण कर रही है।
6 फरवरी को वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने घोषणा की थी, कि वेनेजुएला के कूटनीतिक प्रमुख ग्रीस की नई सरकार के साथ उद्योग, शिपिंग और टूरिज्म के क्षेत्रों में द्विपक्षीय समझौते पर चर्चा करने के लिये ग्रीस का दौरा करेंगे। उसी दिन वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने कहा था कि ग्रीस के पास एक बड़ी शिपिंग इण्डस्ट्रीज और तकनीकी विकास है। इसलिये इस क्षेत्र में उचित समझौता किया जा सकता है, ताकि एलिसिस त्रिपास सरकार के द्वारा ग्रीस की व्यवस्था को संभालने के महत्वपूर्ण एवं महान कार्य में लातिनी अमेरिका की भूमिका हो। ग्रीस के पुर्ननिर्माण के कार्य से लातिनी अमेरिका को जोड़ने का अर्थ, यह प्रदर्शित करना है, कि ‘एक दूसरी दुनिया संभव है।’ उन्होंने जोर देकर कहा- ‘अनअदर वर्ल्ड इज पॉसिबल’, जिसकी कडि़यां वास्तव में जुड़ती जा रही हैं।
15 जनवरी को वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो रूस के राजनीतिक यात्रा पर गये थे। मास्को में आयोजित इस बैठक के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि इससे पहले कि हम वैश्विक ऊर्जा बाजार पर चर्चा करें, मैं इस बात का उल्लेख विशेष रूप से करना चाहता हूं, कि वेनेजुएला हमारा न सिर्फ अच्छा मित्र देश है, बल्कि वह हमारा निकटतम सहयोगी साझेदार है। लातिनी अमेरिका में हमारा सबसे प्रमुख साझेदार है। इसलिये, मैं इस बात से काफी खुश हूं, कि हम ऐसे द्विपक्षीय समझौतों पर चर्चा कर रहे हैं, जिसमें तात्कालिक समस्याओं के साथ-साथ लम्बे समय में पूरा होने वाली परियोजनायें भी हैं।
राष्ट्रपति पुतिन का यह वक्तव्य इसलिये भी महत्वपूर्ण है, कि बाहरी सैन्य हस्तक्षेप के खिलाफ लातिनी अमेरिकी देशों की सुरक्षा के लिये रूस महत्वपूर्ण कदम उठा चुका है, और इसी महीने वेनेजुएला में निकोलस मदुरो सरकार के तख्तापलट के षडयंत्रों का खुलासा भी हुआ है, जिसे आर्थिक हमले और राजनीतिक अस्थिरता फैलाने के लिये हिंसक प्रदर्शनों का सामना पिछले एक साल से करना पड़ रहा है और जिसकी सूत्रधार अमेरिकी सरकार है।
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अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

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