भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गंगा से गोदावरी तक भाजपा की सरकारें बनाने का आह्वान किया है। वे पंचायत से पार्लियामेंट तक अपनी सरकारें खड़ी करना चाहते हैं। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भाजपा कार्यकर्त्ताओं से कहा है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ताओं की तरह पूर्णकालिक बनें। उनके इस प्रस्ताव की स्वीकृति में लगभग 4 लाख कार्यकर्त्ताओं ने हाथ उठाए। कुछ ने एक साल, कुछ दस माह और कुछ ने 15 दिन पूर्णकालिक बनने का संकल्प किया। यह अमित शाह की अदभुत पहल है। संघ के साथ जुड़कर भाजपा के कार्यकर्ता राष्ट्र का रुपांतर कर सकते हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वे अपने पूरे समय में करेंगे क्या?
यदि उनका काम सिर्फ मोदी और शाह की जुगल जोड़ी के झांझ कूटना है तो लोग तंग आकर उन्हें खदेड़ देंगे। वे खुद उब कर भाग खड़े होंगे। सरकार की उपलब्धियों के बारे में हम खुद मियां-मिट्ठू बनें, इससे बेहतर होगा कि सरकार का काम खुद बोले। फिर भी राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं को अमित शाह पूर्णकालिक बना रहे हैं तो यह अपने आप में अपूर्व है और ये कार्यकर्त्ता अदभुत काम कर सकते हैं। ये कार्यकर्त्ता क्या-क्या करें, ऐसे 11 सूत्र मैं यहां दे रहा हूं।
पहला, भाजपा के 11 करोड़ कार्यकर्त्ता हैं। वे रोज़ सुबह व्यायाम करें। आसन, प्राणायाम, कसरत, खेल-कूद वैसे ही करें, जैसे संघ के स्वयंसेवक शाखा में जाते हैं। उनकी देखा-देखी उनके परिजन और मित्र भी व्यायाम करें तो देश के 50 करोड़ से भी ज्यादा लोग स्वस्थ रहेंगे। शरीरमाघं खलु धर्मसाधनम्। शरीर धर्म का पहला साधन है। दूसरा, 11 करोड़ सदस्य वर्ष भर में 10-10 पेड़ लगाएं तो हर साल भारत में 1 अरब 10 करोड़ पेड़ बढ़ते चले जाएंगे।
तीसरा, शराब और पूर्ण नशाबंदी के लिए धरने, प्रदर्शन, जुलूस आदि आयोजित करें। चौथा, मांसाहार त्यागने के लिए करोड़ों लोगों को स्नेहपूर्ण प्रेरणा दें। पांचवां, लोगों से संकल्प करवाएं कि वे न रिश्वत लें और न रिश्वत दें। रिश्वत लेने और देने वालों के विरुद्ध धरने-प्रदर्शन करें। नौकरशाही का शुद्धिकरण करें। छठा, अंग्रेजी की अनिवार्यता का सर्वत्र विरोध करें। भारतीय भाषाओं में अपने काम करें। लोगों को संकल्प करवाएं कि वे अपना दस्तखत हिंदी में करें। सातवां, दहेज, मृत्युभोज, छुआछूत, पर्दा जैसी बुराइयों को छोड़ने का करोड़ों लोगों से संकल्प करवाएं।
आठवां, अपने नामों के आगे लगे जातिसूचक उपनामों को हटाएं। क्या राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि महापुरुषों के जातिसूचक नाम हम लगाते हैं? नौवां, स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल बढ़ाएं। दसवां, आम भारतीयों को उपभोक्तावादी विकृति से बचाएं। उन्हें अपरिग्रह की संस्कृति सिखाएं। ग्यारहवां, 11 करोड़ कार्यकर्त्ता ये सब काम पूर्ण अहिंसक और स्नेह भाव से करें तो साल भर में वह काम हो सकता है, जो पिछले 70 साल में भी नहीं हुआ है। मैंने जो ये काम बताए हैं, यदि अमित शाह इन्हें लागू करें तो देश की राजनीति नोट और वोट के विष-चक्र से बाहर निकलकर लोक-हित का शंखनाद करेगी।