अम्मा बापू

सुबह-सुबह जब धूप गुनगुनी,

छत पर आती है|

सूरज कि किरणों में बैठी,

मां मुस्कराती है।

 

आसमान भी देख देख कर,

गदगद हो जाता|

जब छत रूपी बिटिया को,

हँसकर दुलराती है।

 

ठंडी शीतल हवा झूमती,

नदियों के ऊपर|

लहरों पर भी खुशियों की,

चादर बिछ जाती है|

 

बिजली के तारों पर बैठी,

चिड़ियों की पंक्ति|

चें चें चूं चूं चीं चीं का,

मृदु गान सुनाती हैं।

 

बचपन में जब कभी सार में,

,गाय रंभाती थी|

खपरेलों वाले उस घर की,

याद आ जाती है|

 

गाय लगाते हँसकर,

मटकी जांघों पर रखकर|

वह सूरत बापू की,

आँखों में आ जाती है|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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