वाट ऍन आईडिया सर जी

-राजीव बिशनोई

“Only first class business and that in first class way……” David Ogilvy की ये लाइने विज्ञापन जगत की रीढ़ की हड्डी मानी जाती हैं, David Ogilvy ने विज्ञापन जगत को नायब नुस्खे दिए हैं। 1948 में उन्होंने अपनी फार्म की शुरुआत की, जो बाद में Ogilvy & Mather के नाम से जानी गई और जिस समय काम शुरू किया उनका एक भी ग्राहक नहीं था लेकिन ग्राहक की नब्ज पकड़ने में माहिर थे और कुछ ही वर्षों में उनकी कंपनी दुनिया की आठ बड़ी विज्ञापन जगत की कंपनी में से एक बनी और कई नामी ब्रांड्स को उन्होनी नई पहचान दी जिनमे Rolls-Royce, American Express, Sears, Ford, Shell, Barbie, Pond’s, Dove शामिल है, और जुलाई 1999 को फ्रांस में उनका निधन हुआ। विज्ञापन और ग्राहक के बीच रिश्ता कायम रखने के बारे में उनका कहना था की “ग्राहक का ध्यान खीचने के लिए आपका आईडिया बड़ा होना चाहिए जो उसे कंपनी का उत्पाद खरीदने को आकर्षित करे, अन्यथ आपका विज्ञापन उस पानी के जहाज के समान हैं जो अँधेरे में गुज़र जाता हैं ……….” Dove के विज्ञापन की लाइन “Darling… I’m having extra ornery experience.” इसका उदहारण हैं।

किसी भी उत्पाद का विज्ञापन, उपभोक्‍ता की मानसिकता पर अल्प कालीन और दीर्घ कालीन प्रभाव छोड़ता हैं, उदाहरण के तोर पर लाइफ बॉय की पंच-लाइन “तंदुरस्ती की हफाज़त करता हैं लाइफ बॉय….”, निरमा वाशिंग पाउडर की “दूध सी सफेदी, निरमा सी आये ……..” आदि उपभोक्‍ता की सोच को विज्ञापन के ज़रिये उसी तक वापस पहुचने की कला थी, जो किसी उत्पाद और ग्राहक के बीच की अटूट कड़ी हैं। एक अच्छे और अमिट छाप के विज्ञापन में वो सभी खूबियाँ होती हैं जो समाज की परम्परा को अपनाते हैं, और उपभोक्‍ता के हितो की भी रक्षा करता हैं, भारत सरकार का उपभोक्‍ता मामलो का मंत्रालय जिन हितो का ज़िक्र करता हैं वो हैं…. सुरक्षा, सुचना का चयन, सुनवाई, सुधार या हर्जाने की गुंजाइश और शिक्षित करना प्रमुख हैं।

आज के अधिकांश विज्ञापन इन हितो की अनदेखी कर अपने उत्पाद की छवि ग्राहक तक पहुचाते हैं, लेकिन ग्राहक के दिमाग में उस उत्पाद के उपभोग की प्रवति को जीवित करने में कामयाब नही हो पाते। कोई कम कपडे में समुद्र से निकलती लड़की और ठीक उसके बाद सीमेंट की मजबूती को उस लड़की से जोड़ना न तो ब्रांड को मजबूती देता हैं न ही विश्वनीयता पैदा करता हैं, सिर्फ प्रोडक्ट की अल्प कालीन छवि उपभोक्‍ता के दिमाग में छपती हैं। कोका कोला ने भारत में अनेक मुश्किलों का सामना किया, चाहे राजनैतिक कारण ही हो लेकिन उसी कम्पनी ने आम बोलचाल के ठंडा शब्द को अपने से जोड़ा तो इसका ज़बरदस्त फायदा हुआ चूंकि अधिकाश लोग कोल्ड ड्रिंक को ठन्डे के नाम से बालते थे और “ठंडा मतलब……….कोका कोला” इजाद किया। कुछ विज्ञापन गुणों से भरपूर होते हैं, चूंकि 10 से 20 सेकंड या 10 वाई 10 सेमी के कॉलम में सम्पूर्ण जानकारी व छाप छोडनी होती हैं इसलिए जितना भी क्रिएटिव विज्ञापन होगा उसका आईडिया इजात करने वाला शख्श ग्राहक के निजी विचारो से परिचित होता हैं , प्रसून जोशी इसका उदाहरण हैं।

आदित्य बिरला के आईडिया का विज्ञापन, भाषा की बंदिश को तोड़ता हैं, साथ में जिस तरह से देश के कुछ हिस्से भाषाई मतभेद पर उलझे हुआ हैं उन्हें भी एक अच्छा सन्देश देता हैं।

इसे बनाने वाली एजेंसी लोव लिंटास के अध्यक्ष आर बालाकृष्णन का कहना हैं… “क्योंकि इस समस्या का सामना आज ज्यादातर देश कर रहे है और इस विज्ञापन की शूटिंग देश के विभिन हिस्सों में की गयी, यानि विभिन प्रान्तों के द्रश्य देखने को मिलते हैं … इस तरह से एक नया आईडिया इजात होता हैं जो भाषा की बंदिश को तोड़ता हैं …”

वर्तमान की बात की जाये तो कुछ विज्ञापन सचमुच में ही शिक्षा, सामाजिक सन्देश से भरपूर हैं जेसे महिंद्रा का नया टू-व्हीलर का विज्ञापन जिसमें आमिर खान ने अपने अनुरूप ही विज्ञापन को परोसा हैं …आखिर में ये कहना कि इस विज्ञापन में किये हर स्टंट को आप घर पर ही कर सकते है, ग्राहक के दिमाग में उत्पाद के प्रति भरोषा पैदा करता हैं, पियर्स के विज्ञापन में माँ अपनी बच्ची को खेल खेल में मासूमियत के साथ इतिहास समझाती हैं की, अकबर का पिता कौन था।

वास्तव में विज्ञापन कम समय में अच्छा सन्देश देता है बशर्ते उसे उस उद्देश्‍य के साथ बनाया गया हो, उसमें वास्‍तविकता होनी चाहिए न कि उसमे शर्ते लागु लिखना, या छोटे अक्षरों में चेतावनी लिखना, ये सब उपभोक्‍ता को गुमराह करता हैं जो सरासर अपराध हैं जेसे कोई प्रोडक्ट दावा करता हैं कि इसके इस्तेमाल से बच्चे की लम्बाई बढती है, जबकि इसी विज्ञापन के निचे लिखी छोटी लाइनों पर किसी का ध्यान जाता ही नहीं और यही कम्पनी चाहती है यानि वो कानून की मार से भी बच जाती है, या उपरोक्त दूध का इस्तेमाल बच्चो के लिए ज्यादा फायदेमंद हैं। जबकि कानूनन अगर कोई उत्पाद स्तनपान पर प्रहार करता हैं तो इसे माँ के अधिकारों के हनन मन जाता हैं ……आज के अधिकारों को अनदेखा क्यों न करना पड़े।

सरकार का उपभोक्‍ता मामलों का विभाग ग्राहकों को जागरूक करने का कम करता है अगर इसके साथ अगर सुचना व प्रसारण मंत्रालय अगर बेलगाम व भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर लगाम लगाये तो लोग लुटने से बच सकते हैं चूंकि ज़्यादातर लोगों में जागरूकता की कमी हैं इनमे पढ़े लिखे लोग भी शामिल हैं। चूँकि एक जागरूक इन्सान पढा-लिखा होता हैं पर ज़रूरी नहीं कि हर पढा-लिखा इन्सान जागरूक हो। किसी भी ब्रांड पर आँख मूंद कर विश्वास करना सही नहीं हैं।

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