शाहबुद्दीन के नाम एक खत

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shahabuddinसंजय चाणक्य

” लिखू कुछ आज यह वक़्त का तकाजा है !
मेरे दिल का दर्द अभी ताजा-ताजा है !!
गिर पडते है मेरे आसू ,मेरे ही कागज पर !
लगता है कि कलम मे स्याही का दर्द ज्यादा है !!,,

मै काफी उलझन में था सोचता हू खत की शुरूआत कहा से और कैसे करू। बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद जो ग्यारह वर्षो के बाद सरकारी आराम तलब खाने से बाहर आये है उन्हे किस शब्दो से संबोधन करे। अगर उन्हे सिर्फ शहाबुद्दीन कहूंगा तो ये यह उनकी महानता एव ओहदे पर चोट पहुचेगी और तमाम सवाल खडे होगें । हो सकता है तमाम मऩिऋषि लोगो को मेरे द्वारा सिर्फ शाहबुद्दीन कहना नागवार भी लगे। तो क्या सासद शहाबुद्दीन जी या शाहबुद्दीन साहब या फिर शाहबुद्दीन भाई कहे। लेकिन यह हम कह नही सकते क्योकि तब मेरा जमीर मुझे घिक्कारेगा। क्योकि की पांच दर्जन से अधिक संगीन अपराधो में आरोपी रहे और कई मामलो मे सजायाफता व्यक्ति को इन शब्दो से संबोधित करना खुद उन शब्दो का अपमान होगा। ऐसे में बिना नाम लिए बिना किसी लाग लपेट के इस खत की शुरुवात करता हूं।

‘‘ सीने में जलन आखो में तूफान सा क्यो है !!
अब इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है !!

आदरणीय बाहुबली नेताजी…….
सबसे पहले आपको आजाद फिजा के लिए ढेर सारी बधाई और मुबारकबाद। वैसे तो आप जेल में रहकर भी कभी कैद नहीं थे। बिहार में किसी जेल की दीवारे इतनी ऊंची और बुलन्द नही है जो आपकी इच्छा के विरूद्व आपको कैद में रख पाए। दुनिया जानती है कि आप देश की अमानत और बिहार के चश्म-ओ-चिराग हैं। जो सीवान के हर शख्स के जेहन बसे है। हम जानते हैं कि बिहार के बाशिन्दों की उन्हीं चश्म की बेचैनी की कदर करते हुए आप जेल की फाटक लांघकर बाहर आये है । और जो बुरे चश्म वाले हैं ना उनके लिए हम कहेंगे चश्म-ए-बददूर सुशासन बाबू याद आ रहे हैं। बाहुबली जी आप परेशान मत होइयेगा आपको बदुआ देने वाले चश्म-ए-बददूर बहुत भोले है वो नादां है उन्हे नही पता कि आप चीज क्या है। उन्हे आपकी नजायज ताकत का एहसास तो है पर वह यह नही जानते है कि स्वयं यमराज ने आपको लाचार,कमजोर, निरीह प्रणियो और आपके खिलाफ आवाज बुलन्द करने वालो का गैर कानूनी ढंग से संहार करने का लाइफटाइम ठेका दे रखा है। वो बेवकूफ है बेचारे उन नादां की फिक्र आप बिल्कुल मत कीजिएगा। आप बस सीवान की शादाबियों को देखिये । आप चंदा बाबू की ओर हरगिज मत देखियेगा। तीन जवान बेटो को खोने के बाद वह पगला गए है। अब आप ही देखिये न अपने बेटे के कातिलो को सजा दिलाने के लिए वो जमीन-आसमान एक कर दिए थे।बहुत उम्मीद लगाए बैठे थे कि आँख पर काली पट्टी बाधने वाली न्याय की देवी के चौखट से उन्हे न्याय मिलेगा और आप जिन्दगी भर जेल मे सडते रहेगे। लेकिन हुआ क्या,बेचारे ओधे मुँह गिर गए। अब उन्हे कौन समझाए कि आपने तो परवरदिगार के हुक्म की तामील की है। आप तो वही करते है जिसके लिए जन्नत से आपको धरती पर उतारा गया है। बददिमागी थे चंदा बाबू उन्हें आपकी नजायज अलौकिक शक्ति का ज्ञान नही था। और जब उन्हे आपकी असाधारण शक्ति का एहसास हुआ तो , देखिये न ! थक हार कर बैठ गए। और बैठे भी क्यो नही इस बुढापे मे हर तरफ से नाउम्मीद हो गए है । उन्हे अब पूरी तरह मालूमात हो गया है कि न्याय पालिका, कार्यपलिका सहित सारी पालिकाए और सुशासन बाबू की फौज आपके पतलून की जेब मे है। चंदा बाबू और उनकी बीमार पत्नी इतना टूट गए है कि वह आपको बुरा-भला भी नही कह सकते है। बस दिल-ही-दिल मे आपको ढेर सारी बदुआ दे रहे है।
” जिन्होने मुझे रुलाया है !
तु उनको भी रुलाना खुदा!!
मुझ पर क्या क्या बीती है !
इसका एहसास उसे भी दिलाना खुदा !!,,
तो क्या हुआ, उस बदुआ से आपका क्या बन- बिगड जायेगा। आप बेफिक्र होकर अपने काम को अंजाम दीजिए। आप देखिये कि सीवान की सड़कों पर पटाखें से लेकर बंदूकें तड़तड़ाने वाले कितने शगुफ्ता है।टीबी पर आपकी रिहाई का जश्न देखा अपने चित-परचितो से आपके शाही स्वागत के बारे मे सुना।कोई आश्चर्य नही हुआ क्योंकि आप विश्व युद्ध जीतकर लौटे है। आपके स्वागत मे तो पूरे बिहार मे लाखो तोरण द्वार बनना चाहिए और उन तोरण द्वारो पर घण्टो आपका जार्ज पंचम की तरह शाही अन्दाज मे स्वागत होना चाहिए।सुना है गोपालगंज में किसी नामाकूल ने आपके लिए हो रहे जलसे में पटाखे फोड़ने पर एतराज जताया। भला हुआ जो उसे थप्पडो की भाषा से सबक सिखाकर शान्त कर दिया गया। उसकी पिटाई के दरम्यान वर्दी वालों को चुपचाप तमाशा देखते हुए देखा तो एक आम आदमी अनयास ही बुदबुदा उठा कि आपका रुतबा ,आपका रसूख सीवान में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में कायम है । अब तो मुझ जैसे कामनमैन को यकीन होने लगा कि सीवान से ही सूबा और सीवान से ही सियासत चलेगी । देर रात तक ” टाइगर इज बैक ” के नारे सुन बाखुदा आज यकीन हो चला कि डॉ राजेंद्र प्रसाद और मौलाना मजहरूल हक तो सीवान के लिए गाय और बकरी जैसे थे। मेरा एक मित्र आपके जिले से है इस लिए बचपने से हमने आपके बहादुरी के किस्से खूब सुने। आज उन लोगों को भी कोसने को जी कर रहा है जिन्होने नादानी में मुझे गलत-सलत किस्से सुना दिया। भला ये भी कोई बात हुई ! गब्बर की तर्ज पर मुझे कहानियां सुनायी गयी थीं।भला जंगल में कोई शेर के खिलाफ बोल सकता है या क्या ऐसे लोगों को मुआफ कीजियेगा।वो नहीं जानते है कि शेर को मेमनों और बछड़ों का शिकार करना जंगल का इंसाफ होता है अन्याय नहीं ।
” ऐ खुदा तु ही बता कैसे तुझ पर एतबार करु!
तेरा इन्साफ मुझे नास्तिक न बना दे !!,,
हे बाहुबली शेर हकीकत जानने और समझने लायक हूं देर ही सही लेकिन दुरूस्त जान गया हूं कि जंगल में रहकर शेर से बैर नहीं करना चाहिये। कुछ कमअक्लों को देख रहा हूं। हर जगह आपके खिलाफत में जहर उगलते हुए , मुझे उन पर तरस आ रही है उन्हें क्षमा करना , वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं ।हे ! सीवान के पालनहार मुझे अक्ल आ गयी है मैं जानता हूं कि पटना में बैठे सियासी नुमाइंदे आपको शह देंगे अपनी फिक्र करेंगे जान की तो कभी सियासत की । जैसे एक वक्त में अनन्त सिंह को पनाह दी थी और अब आपको देंगे, वैसे इनके शरण में जाने से भला हम आपसे उम्मीद क्यो न करें । सो हे मृगपति हे वनराज मुझे रहम की उम्मीद बस आप ही से है। आप ही अपने जंगल की प्रजा को जान बख्शने का वरदान दे दो।यह जानते हुऐ की आप अपने आप में कोई तब्दीली नहीं करने वाले । इस खत के जरिये एक गुजारिश है आपसे कि आप ही बदल जाओ।महर्षि वाल्मीकि की तरह शायद उम्र के इस पड़ाव में आकर आप थोड़ा सोचे बिहारवासियों के बारे में तो सम्भव हो पायेगा। फिर बिहार भी आपका यहाँ हुकूमत भी आपकी….!!
” मौत से पहले भी होता एक मौत!
जो चंदा बाबू के नसीब मे आ गई !!
देखो तुम भी बेटो की अर्थी को कंघा देकर !
खुद जिन्दा लाश न बन जाओ तो कहना !!,,
अब मेरे शब्द भी खत्म हो गए इस खत पर विराम लगाता हू।
सादर।

संजय चाणक्य

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