अधरों की हंसी हो या
आंखों से आंसू हों,
आंखों से आंखों की बात होती है,
क्योंकि, मौन की भी एक निराली भाषा होती है!
जब कोई तस्वीर सामने होती है,
बिना मिले ही उनसे बात होती है,
कभी मु्स्कान या नमी आंखों में होती है,
बिन कहे ही मन से मन की बात होती है,
क्योंकि, मौन की अनोखी एक भाषा होती है!
यादों के झरोखे खोलकर,
जब मौन से ही मौन की,
मुलाक़ात होती है,
शब्दों मे कहां वो बात होती है,
भावना कब शब्द की मोहताज है!
बिन कहे समझले जिसे अपना कोई,
अपनों में ऐसी ही कुछ बात होती है!
क्योंकि, मौन की भी अपनी एक भाषा होती है!
शब्द कम पड़ जायें या सूझे नहीं,
काम आती मौन की भाषा तभी,
मौन से नहीं केवल,
सुख, दुख या प्रेम ही व्यक्त होते हैं,
क्षमा, दया, क्रोध
और याचना के उद्गार भी,
मौन से कभी अभिव्यक्ति पाते हैं,
क्योंकि, मौन से अच्छी नहीं कोई भाषा होती है!
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यहीं कहीं है
आओ चले देखें,
क्षितिज के उस पार ,
क्या है!
चलते-चलते थके पांव,
क्षितिज तो मिला ही नहीं,
जंहा से चले थे,
वहीं पहुंच गये पांव
आओ चलो ढूंढ़े भगवान को ज़रा,
मन्दिरों मे ढ़ूंढ़ा,
मस्जिदों में ढ़ूंढ़ा,
गुरुद्वारे में न मिला,
न मिला चर्च में कहीं,
क्षितिज की तरह कहीं,
वो भी भ्रम ही तो नहीं,
महसूस करके देखो,
वो है यहीं कहीं।