सामाजिक समरसता के दूत रामफल सिंहजी नहीं रहे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री व सामाजिक समरसता आन्दोलन के प्रमुख कर्ता श्री रामफल सिंह (रामजी भाई) सुपुत्र श्री स्व0 दलसिंह जी का 09 जून, 2010 को प्रात: 08 बजे अग्रसेन चिकित्सालय में निधन हो गया। वे लीवर की बीमारी से पीड़ित थे। श्री रामफल सिंह जी पाँच भाइयों में चौथे नंबर पर थे।

श्री रामफल सिंह जी का जन्म श्रावण मास – 1934 ईस्वी में पश्चिम उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जनपद के अमरोहा नगर के निकट ग्राम मऊमैचक में हुआ था। वे विद्यार्थी जीवन में ही विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष माननीय अशोक जी सिंहल के सम्पर्क में आ गए थे एवं अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात् वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने, कुछ समय शिक्षक के रूप में कार्य करने के पश्चात् सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में राष्ट्र को समर्पित कर दिया। श्री रामफल सिंह जी सहारनपुर, रूड़की, बाराबंकी, बहराइच, फर्रुखाबाद एवं कानपुर संभाग में अनेकों वर्ष प्रचारक रहने के बाद हिमाचल प्रदेश के संभाग प्रचारक के रूप में लगभग 6 वर्ष तक कार्य किया। 1991 में वे विश्व हिन्दू परिषद के कार्य में उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश (मध्यांचल) के संगठन मंत्री बने तत्पश्चात् वे विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री बने। केन्द्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने हिन्दू समाज में जातीय विभाजन की रेखाओं को समाप्त करने के लिए शोधपरक कार्य किया और एक नया विचार प्रस्तुत किया जिसके फलस्वरूप यह तथ्य सामने आया कि भारत में अस्पृश्यता यह हिन्दू समाज की नहीं बल्कि मुगलकालीन गुलामी की देन है जिसे अंग्रेजों ने अपने हित के लिए और अधिक हवा दी।

आज की समस्त अनुसूचित जातियां एवं अनेक अनुसूचित जनजातियां मध्यकालीन गुलामी के अत्याचारों की देन हैं। उन्होंने यह भी सिध्द किया कि भारत के अधिकांश आदिवासी या जनजातियाँ मध्यकालीन स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने अपमानजनक व्यवस्था को तो स्वीकार कर लिया लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ा और आज तक उस पर डटे हुए हैं। दुर्भाग्य से समाज उन्हें अस्पृश्य मानने लगा और यही व्यवस्था आज भी चल रही है।

श्री रामफल सिंह जी ने इस संबंध में ‘छुआछूत गुलामी की देन है’, ‘आदिवासी या जनजाति नहीं ये हैं मध्यकालीन स्वतंत्रता सेनानी’, ‘सिध्द संत गुरु रविदास’, ‘प्रखर राष्ट्रभक्त ‘डॉ0 भीमराव अम्बेडकर’, ‘समरसता के सूत्र’, ‘घर के दरवाजे बन्द क्यों’, ‘सोमनाथ से अयोध्या-मथुरा-काशी’ तथा ‘मध्यकालीन धर्मयोध्दा’ जैसी अनेकों शोधपरक पुस्तकें भी लिखी हैं।

विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक जी सिंहल ने कहा कि श्री रामफल सिंह के आकस्मिक निधन से विश्व हिन्दू परिषद की अपूरणीय क्षति हुई है और इससे उनके द्वारा किए जा रहे अनुसूचित जातियों पर शोधपरक कार्य की गति मंद तो होगी किन्तु विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता उनके इस प्रयत्न को अधूरा नहीं रहने देंगे।

श्री रामफल सिंह जी की पार्थिव देह को विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय कार्यालय, संकट मोचन आश्रम, लाया गया। जहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय सुरेश जोशी (भैयाजी), विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक जी सिंहल, वरिष्ठ सलाहकार आचार्य गिरिराज किशोर, संघ के वरिष्ठ प्रचारक सूर्यकृष्ण जी, शंकरराव तत्ववादी, संयुक्त महामंत्री चम्पतराय, विहिप के केन्द्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश सिंहल, केन्द्रीय मंत्री मोहन जोशी, खेमचन्द शर्मा, जुगलकिशोर जी, बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक प्रकाश शर्मा, केन्द्रीय सहमंत्री अशोक तिवारी सहित परिषद के सैंकड़ों कार्यकर्ताओं ने उन्हें अश्रुपूरित श्रध्दांजलि अर्पित की तत्पश्चात् उनके शव को उनके पैतृक निवास ग्राम-मऊ मैचक, अमरोहा (उत्तार प्रदेश) ले जाया गया जहाँ कल दिनांक 10 जून को प्रात: अंतिम संस्कार किया जायेगा।

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