क्रोध का करें खात्मा

डॉ. दीपक आचार्य

गुस्सा हमेशा उन लोगों को ही आता है जो विवश, असहाय या कमजोर होते हैं। माना जाता है कि अनचाहे का होना और मनचाहे का न होना, यही क्रोध की वजह है। हर व्यक्ति को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति को पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार निश्चित परिलाभ में फल प्राप्त होता रहता है।

पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रयत्नों और कर्मयोग से उसका वर्तमान जीवन सँवरता है व अगले जन्म के लिए प्रारब्ध का निर्माण होता है। इसलिए फल की कामना न कर अनवरत कर्मयोग का आश्रय लिया जाना चाहिये। फल तो उसे यथायोग्य प्राप्त होगा ही।

सभी प्रकार के क्रोध का मूल कारण फल को लेकर है। कर्मप्रधान व्यक्तित्व को कभी क्रोध आता ही नहीं क्योंकि वह ईश्वरीय सत्ता की मुख्य धारा में आ जाता है जहाँ जो हुआ है और जो हो रहा है वह ईश्वर की इच्छा से ही, यह धारणा हमेशा पक्की बनी रहती है।

जिस किसी व्यक्ति को ज्यादा गुस्सा आता हो उसे रोजाना कम से कम आधा घण्टा किसी भी धार्मिक-आध्यात्मिक ग्रंथ को पढ़ना चाहिए। यथा संभव परिधान, बैड शीट, रूम कलर, मोबाईल, वाहन आदि लाल रंग के न हों। इन्हें श्वेत रंग का प्रयोग करने पर चन्द्रमा का प्रभाव होने पर क्रोध स्वतः कम होता चला जाएगा।

सामने वाले व्यक्ति में भी ईश्वर की सत्ता का भान रखें। खाने-पीने में मिर्च-मसाले, शराब, माँस आदि तामसिक पदार्थों का उपभोग त्यागें। हराम की कमाई और खाना दोनों को त्यागना चाहिए। शुक्ल पक्ष की द्वितीया को चन्द्रमा के दर्शन करें व पूर्णिमा को चन्द्र भगवान को अर्ध्य चढ़ायें।

जब गुस्सा आये तब ठण्डा पानी पी लें व अपना चेहरा काँच में देखकर यह अनुमान लगायें कि इसमें कौन से जानवर की आकृति आपको दिख रही है। जिन्हें बात-बात पर क्रोध आता है उनके बारे में कहा जा सकता है कि ये उनकी पूर्व जन्म की शेष रह गई पशुता ही है जिसे वे मौके बेमौके दर्शाते रहते हैं।

ज्यादा गुस्सैल व्यक्ति को सफेद परिधान पहनाएं व चाँदी का चन्द्रमा बनवा कर गले में पहनायें अथवा चाँदी की अंगूठी या कड़ा पुष्य नक्षत्र में चान्द्र मंत्रों से दुग्धाभिषेक, पूजन कर धारण करवायें। भगवान शिव पर दुग्ध मिश्रित जलधारा चढ़ायें। पूजन-अर्चन में ज्यादा से ज्यादा सफेद पुष्पों व श्वेत चन्दनादि का उपयोग करें। श्वेत चंदन का टीका लगाएं। क्रोध से प्रभावित लोगों को अपने भाल पर चंदन का तिलक अवश्य करना चाहिए।

अपने पूरे जीवन से क्रोध की सदा-सदा के लिए समाप्ति करने इस मंत्र को होली, दीपावली, ग्रहणकाल या किसी अच्छे मुहूर्त में 10 माला जपकर कर सिद्ध कर लें – ‘‘ ¬ शान्ते प्रशान्ते सर्वक्रोधोपशमनि स्वाहा ।’’

फिर जब आपको गुस्सा आए या कोई आप पर क्रोधित होने लगे तो मन ही मन इस मंत्र का ग्यारह बार जप कर लंे। इससे गुस्सा अपने आप शांत हो जाएगा। रोजाना सवेरे ग्यारह बार इसका जप कर लें तो आप में वह शक्ति आ जाएगी कि गुस्सैल से गुस्सैल व्यक्ति या पशु भी आपका चेहरा देखते ही सारा गुस्सा त्याग देगा व प्रसन्न हो उठेगा चाहे वो कितना ही बड़ा नेता, घसियारा, अपराधी, अफसर या खूँखार पशु ही क्यों न हो। इसे आजमाएँ और अपने सुंदर जीवन से क्रोध को तिलांजलि दें।

क्रोध के समय शरीर मन बुद्धि आदि की सारी शक्तियां घनीभूत हो जाती हैं व इससे सामने वाले पर अपने क्रोध का मानसिक या प्रत्यक्ष प्रहार होते ही आपनी शक्तियां व संचित पुण्य क्षय हो जाते हैं। इससे अपना ऊर्जा व पुण्य भण्डार रिसने लगता है जिससे व्यक्तित्व खोखला हो जाता है।

क्रोध की समाप्ति के लिए अपने अहंकार, पद या प्रतिष्ठा का घमंड, कुछ होने के मिथ्या अभिमान, अपने मन के विचारों को दूसरों पर थोपने, राग-द्वेष, ईर्ष्या आदि का पहले खात्मा करना जरूरी है। जिन लोगों को बात-बात पर गुस्सा आता हो, उन्हें जब भी गुस्सा आए तब उनके एक बार भी उपयोग में आ चुके किसी वस्त्र को ठण्डे पानी में भिगो दें, इससे उनका गुस्सा एकदम शांत हो जाएगा।

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