क्रोध क्या है?
फट जाये तो ज्वालामुखी,
दब जाये तो भूकंप!
गल जाये वो बर्तन,
जिसमें उसे रख दो,
तेज़ाब की तरह!
क्रोध इतना हो कि,
वो जोश दिलादे!
क्रोध इतना हो कि,
न होश उड़ा दे!
जो प्रेरणा बन जाये,
उतना क्रोध ही भला।
इसलिये,
क्रोध की जड़ों को,
पकड़ के,
थोड़ा सा मनन करके,
मन ती गाठों को,
सुलझाना ही भला।
क्रोध आ जाये कभी जो,
लंबी सांस लेकर पानी पीलो,
दस तक मन में गिनो फिर,
वहां से हटलो…
सोचो क्रोध क्यों आया था?
क्या होता उससे,
का किसी का भला!