अन्ना और सेकुलर शैतान…

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क्या राष्ट्र भक्ति साम्प्रदायिकता है ?

एल. आर. गाँधी

अन्ना ने अपने आन्दोलन को सेकुलर शक्ल देने के चक्कर में मंच पटल से भारत माता और शहीदों के चित्र हटा कर मात्र महात्मा गाँधी के चित्र को स्थान दिया- यही सोच कर कि …

दामन पीवे शराब ते करे सज़दा

राज़ी रब्ब ते गुस्से शैतान वी नईं…

मगर अपने आका मोहन दास करमचंद गाँधी कि भांति अन्ना भी यहीं पर ‘मात’ खा गए. शैतान भी कभी खुश हुआ है भला.? गाँधी जी ने मुसलमानों के जिन्न जिन्नाह को खुश करने की जी तोड़ कोशिश की – उसे कायदे आज़म की उपाधि से नवाज़ा,बेवजह खिलाफत आन्दोलन को तूल दी ,जिन्नाह को सब कुछ सौंपने की वकालत भी कर डाली मगर शैतान खुश न हुआ और राष्ट्र को टुकड़ों में बाँट कर ही माना. कुछ कुछ यही अन्ना के साथ हो रहा है. सेकुलर सरकार तो अन्ना के खून की प्यासी है ही . लालू – अमर जैसे चोर उचक्‍कों का विरोध भी समझ में आता है. अरुणा राय का सरकारी एन.जी.ओ और सोनिया की ‘नाक ‘..! विरोध करना बनता है. मगर अरुंधती राय और दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सयद अहमद बुखारी भी आँखें तरेर रहे हैं ! यह तो मानसिक कुष्ठरोग के लक्षण जैसा लगता है. अधिकाँश मुस्लिम संगठनों ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का समर्थन किया है मगर बुखारी साहेब को राम लीला मैदान से भारत माता की जय और वन्दे मातरम के उद्दघोश से बुखार चढ़ गया और लगे गुर्राने … और किरण बेदी भी फटाफट पहुँच गई मानाने . बुखारी साहेब का मानना है कि भारत माता और वन्दे मातरम इस्लाम विरोधी है…इस्लाम में तो जन्म देने वाली माँ की पूजा में भी विश्वास नहीं किया जाता.

यह अंधविश्वास नहीं तो और क्या है कि छठी शताब्दी की इस्लामिक मान्यताओं को २१वी सदी में भी ढ़ोया जा रहा है…..महात्मा गाँधी ने अलामा इक़बाल के ‘सारे जहाँ से अच्छा गीत को इतनी बार गुनगुनाया कि उसे आज़ादी का तराना बना डाला. मगर इक़बाल को जब पाकिस्तान के कीड़े ने काटा तो उसने अपने इस गीत को ही बदल डाला . हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा को बदल कर ‘ मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा. बना दिया. मगर गाँधी को फिर भी होश नहीं आया और लगे रहे इन शैतानों को खुश करने में. वही काम आज अन्ना के सिपहसलार कर रहे हैं. अरे जो राष्ट्र को नहीं मानता उसे राष्ट्र की समस्याओं से क्या लेना देना.ऐसे मानसिक कुष्ठ साम्प्रदायिक लोगों को साथ लगाने से तो राष्ट्र को प्यार करने वाले भारत माँ के रणबांकुरों को साथ लेकर चलना बेहतर है. जागरूक मुसलमान भ्रष्टाचार की पीड़ा को समझता है और वह अन्ना के साथ है. किरण जी यदि बुखारी साहेब को किसी प्रकार अन्ना के मंच पर ले भी आई तो अन्ना के उस अहद का क्या होगा जिसमे किसी राजनेता को मंच से दूर रखने का…… बुखारी साहेब तो खुद को मुसलमानों के राजनेता कहते हैं. ऐसे शख्‍स को मंच पर लाना तो राष्ट्रवादी मुसलमानों का अपमान है. क्या बुखारी को मंच पर देख कर भारत माता की जयजयकार या वन्देमातरम का राष्ट्र गीत नहीं गाएगी जनता.? क्या राष्ट्रभक्ति साम्प्रदायिकता है ?

6 COMMENTS

  1. Dosto ek Imambukhari ke kahne par aur kisi bhi Dharm ke Thekedaro ke uksane par hamari Ekta par Fark nahi padta, ye kuch hamare Desh me ginti ke Pakhandi log hai jo har dharm me milenge wah dharm ke nampar apas me nafrat failate hai, aur dusre dharm ka apman karte hai, aur kisi bhi dharm me nafrat failana pap hai, isliye hame in pakhandiyo ko najar-andaj karke, purane Matbhed bhulkar, Hamare Hindustan me Ekta ki Misal banana hai, hamare Desh ko bhrastachar se mukt karna hai.VANDE MA TARAM, INKALAB JINDABAD.

  2. भाइयों थकेला की बात का बुरा मत मानो, जैसा की उसके नाम से द्रष्टिगोचर हो रहा है, वह तन मन दोनों से थकेला है, इमाम के पजामे धो धोकर इसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा है,

  3. जैन साहेब व् गुप्ता जी सटीक व् सार्थक विचारों के लिए साधुवाद… उतिष्ठ कौन्तेय

  4. जो शैतान अपनी माँ को भी नहीं मानते – पाक ले कर भी नापाक कत्लोगारत में लगे हैं .. बुखारी जैसे कठमुल्ला की वकालत कर रहे हैं… अल्लाह उन्हें सन्मति दे. .. उतिष्ठकौन्तेय.

  5. मौलाना मोहम्मद अली ने एक बार गांधीजी के बारे में कहा था की भले ही मि. गाँधी में लाख खूबियाँ हों लेकिन मजहबी नजरिये से बुरे से बुरा मुस्लमान भी मि.गाँधी से अच्छा है. लेकिन अफ़सोस हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए पूरी जिंदगी समझौते करने वाले और पाकिस्तान बन्ने के बाद ओसे ५५ करोड़ रुपये देने के मसले पर सर्कार पर दवाब डालकर पाकिस्तान को दिलवाने वाले गांधीजी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के प्रतिशोध की आग में धधक रहे गोडसे की गोली खाकर अपनी जान देदी लेकिन हिन्दू मुस्लिम एकता आज भी एक मृग मरीचिका ही बनी है. इसके लिए जैसा की प्रसिद्द समजवादी अशोक मेहता ने एक बार कहा था की हिन्दू मुस्लिम एकता समस्याओं को दरी के नीचे खिसकाने से हल नहीं होगी बल्कि सीढ़ी बात से हल होगी उन्होंने कहा था “वी शुड काल ऐ स्पेड ऐ स्पेड” अब तो इस मृग मरीचिका से बहार निकलो और हकीकत को पहचानों. किसी पागल इमाम के आपत्ति करने मात्र से भारत माता का चित्र हटाना या भारतमाता की जय और वन्देमातरम को मंच से हटाना भी अपने आप में भारतमाता का अपमान है. और ऐसा कदम उठाने वालों की नीयत के बारे में देश की समझदार जनता को सोचना चाहिए.जिन्हें भारत माता की जय के नारे पर आपत्ति है उन्हें इस देश में रहने और सारी सुविधाएँ लेने का कोई हक नहीं है. ऐसे लोगों का मताधिकार रद्द कर देना चाहिए.

  6. क्या अब राष्ट्रवादी जनता का अपमान नहीं होगा?
    जी अब अन्ना के उस अहद का क्या होगा जिसमे किसी राजनेता को मंच से दूर रखने का ऐलान किया था?
    आज जब टीवी खोला तो अन्ना के उसी मंच पर जिसमे किसी राजनेता को मंच से दूर रखने का ऐलान किया था
    भगवा चोला पहने माननीय बाबा रामदेव जी (जो गिरफ़्तारी के डर से भगवा चोला उतारकर महिलाओं के वस्त्र में आ गए थे)
    जो महाशय संविधान की को कुचलकर अपनी सेना बनाने की बात करते थे
    जो मान्यवर केंद्र सरकार गिराकर भाजपा द्वारा मिलने वाले तोहफे “रास्ट्रपति की कुर्सी” का सपना संजोय हुय थे (लेकिन अफ़सोस दिल के अरमान आंसुओं में बह गए ) अन्ना के मंच पर दहाड़ते हुय दिखे
    (आपके अनुसार जो राष्ट्र को नहीं मानता उसे राष्ट्र की समस्याओं से क्या लेना देना)
    मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ आप जिस राष्ट्र की बात कर रहे हैं उसी राष्ट्र के पिता (महात्मा गाँधी) को मरने वाला कोई और नहीं वंदेमातरम कहने वाला ही था- शायद वो दुनिया को ये पैगाम देना चाहता था की अगर कोई अमन या शांति की बात करेगा तो उसका यही हश्र होगा
    और आप ज़रा अपनी जानकारी दुरुस्त कर लें – किसी का चित्र हटाकर महात्मा गाँधी के चित्र को स्थान नहीं दिया गया बल्कि गाँधी जी
    का स्थान पहले सही मौजूद है और पूरा आन्दोलन ही गाँधी जी को फोकस करता है
    अगर छठी शताब्दी की इस्लामिक मान्यताओं को २१वी सदी में भी फोलो किया जा रहा है ये आपकी नज़र में अंधविश्वास है
    वेद और पुराण जो छठी शताब्दी से भी पुराने हैं अगर कोई उनमे विश्ह्वास करता है तो क्या आप उसे भी अन्द्विश्वास कहेंगे? या फिर आप उनमे शंशोधन करेंगे?

    ले. कर्नल श्रीकांत पुरोहित: सेना की खुफिया जानकारियां जमा करने वाली इकाई मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) में पदस्थ थे। उन्हें सबसे पहले नवंबर 2008 में मुंबई एटीएस ने मालेगांव विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार किया। रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को भेजे एक एमएमएस के आधार पर उनकी गिरफ्तारी हुई। उपाध्याय भी मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी हैं।

    स्‍वामी असीमानंद: हाल ही में उन्होंने कथित रूप से बम विस्फोट की कुछ घटनाओं में हाथ होना कबूला है। असीमानंद को पिछले साल 19 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। असीमानंद का असल नाम जतिन चटर्जी है और वह हरिद्वार में स्वामी नबा कुमार सरकार नाम से रह रहे थे। वह छद्म नाम से विदेश भागने की फिराक में थे। हालांकि ऐसा करने से पहले सीबीआई के हत्थे चढ़ गए।

    साध्वी प्रज्ञा ठाकुर: एटीएस का दावा है कि प्रज्ञा मालेगांव ब्लास्ट को अंजाम देने में प्रमुख भूमिका निभाई।
    ये सभी वंदेमातरम कहने वाले देशभक्त हैं, इन्होने सोचा होगा कि कुछ भी करो वंदेमातरम बोलो और देशभक्ति का तमगा लेलो

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