अस्पताल में एक और आम हादसा

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imagesअपने ही अस्पताल में दिन रात माकरी, साॅरी,  नौकरी करने के बाद भी उनको चार छींके आने पर आईसीयू बड़ी मुश्किल से नसीब हुआ।  तब बिस्तर पर लेटते हुए उन्हें लगा कि अब उन्हें बचने से कोई नहीं रोक सकता। डॉक्टर को तो छोड़ो यमराज भी नहीं। डॉक्टर से लेकर मुर्दे ढोने वाले तक सब उनके। एक सांस बंद करें तो यार. दोस्तों की सैंकड़ों सांसंे उनके फेफड़ों में उमड़ने. घुमड़ने लगें।

वे अपने खानदानी आईसीयू में पूरे कांफिडेंस में पड़े .पड़े अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे थे कि अचानक पता नहीं कैसे पेड सीट से डॉक्टकरे योग्य डॉक्टर से क्या गलती हुई कि उनको जो सुई उसने ठीक करने की लगाई, जब सुई  उनकी सरकारी चर्बी से बाहर निकली कि उसके साथ उनकी जिंदगी भीतर जाने के बदले रूह सुई की नकली दवाई से मरने के डर से डाल पर बैठे कौवे की कांव. कांव करती उड़ गई। बेचारे जितने को संभलते किन्तु कोमा में चले गए। सारी की सारी जान पहचान धरी की धरी रह गई। मोबाइल में पता नहीं किस किसके नंबर आड़े वक्त काम आने को सेव करके रखे थे। डॉक्टर ने उनको बचाने के इरादे से आनन फानन में सरकारी सप्लाई में आई आॅक्सीजन के बदले कार्बन मोनोओक्सीइड की पंचर नली नाक में फंसा लगा दी। गजब! उसके बाद भी वे सांस लेते रहे। मरे होने के बाद भी जीते रहे।

उनके परिवार वाले उनसे अधिक परेशान! राम जाने कब तक कोमा में रहें हो सकता है दो दिन में ही आर या पार हो जाएं और हो सकता है दो साल भी यों ही निकाल लें। मन ही मन एक रिश्तेदार ने तो उनके जाने की भगवान से मन्नत कर डाली ताकि उन्हें रात को उनके पास अस्पताल में न रहना पड़े।

वैसे आज की तारीख में सरकारी अस्पताल में बंदे के साथ ऐसे हादसे आम बात है।  ऐसे हादसे खास तो तब होते हैं जब बंदा अस्पताल से बाहर मरता है या मरते.मरते जीता है। अब तो अखबार भी उनके ही मरने की खबर को बड़े शौक से दिखाया करते हैं जो अस्पताल से बाहर मरे हों।

वे न इधर के और न उधर के  रहे तो उनके घरवाले अस्पताल में उनके पास रहने को एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। सबके लटके हुए चेहरे।

और शरीर से निकल उनकी रूह बिना एक पल खोए यमराज के दरबार में जा पहुंची। अचानक  अस्पताल के रेगुलर एंप्लाइज भोलाराम की रूह को अपने पास आया देख वे चोंके। उन्हें उस वक्त उसका आना अच्छा भी लगा। अच्छा इसलिए कि अब छोटे. मोटे रोगों के लिए वे उससे सलाह ले सकते थे। नीम हकीम खतरे जान हो तो होती रहे पर फस्र्ट एड इनसे ही मिलती है। और ये  रूह तो तीस साल तक अस्पताल में रही है। दवा भले ही न दी होगी, पर दवा देतों को तो खूब देखा है। वैसे सरकारी अस्पताल में सरकारी डॉक्टर होते ही कब हैं? उन बेचारों को तो बाहर के अस्पतालों से ही फुर्सत नहीं होती।  इसलिए मरीजों को बहलाने.बरगलाने के लिए दूसरे ही उनके सफेद कोट पहन काले काम करते रहते हैं।

दवा का क्या! दवा तो अपने आप में ही डॉक्टर होती है। डॉक्टर को तो बस उसे लिख अपना कमीशन बनाना होता है। कोई मरे तो अपनी बदकिस्मती से, कोई जिए तो अपनी किस्मत से। जहां से ज्यादा कमीशन मिल जाए रोगी को वही दवा दे दो।  रोगी को कौन सा पता है कि डॉक्टर उसे जो दवा दे रहा है वह उसी रोग की है जो उसे है। वैसे भी मरना. जीना तो ऊपर वाले के हाथ में होता है। डॉक्टर के हाथ में तो बस बीमारी के नाम पर कमीशन लेना भर होता है। उसके लिए आदमी आदमी नहींए पांच. सात सौ रूपए की गोलियों, इंजेक्शनों का पत्ता है।

कुछ देर तक यमराज उस रूह को गौर से देखते रहे। पहचानते रहे कि ये उन्हीं महानुभाव की ही है जो आप्रेशन थिएटर में जब ड्यूटी पर होते थे तो डॉक्टर के न मंगवाने के बाद भी बाहर रोगी के परेशान रिश्तेदारों से बेकार में ही कभी ये सामान, तो कभी वो समान मंगवाते रहते थे और फिर जब आधा पौना आपे्रशन हो जाता था तो पिछले दरवाजे से सारा सामान उसी केमिस्ट की दुकान पर पहुंचा देते थे।

वेलकम! वैलकम!! आओ भोलाराम जी। आपका मेरे यहां स्वागत है। अभिनंदन है। कहो कैसे आना हुआ? किसी रोगी के पीछे पीछे भागते. भागते तो यहां नहीं आ पहुंचे कि उसने कहा  नहीं जनाब! अब तो मैं खुद ही भागते. भागते यहां आ पहुंची हूं भोलाराम की रूह ने फिल्मी नायिका की तरह मन मसोसते, लज्जाते. शरमाते. बलखाते. इठलाते कहा।

तो  कैसे आई तुम यहां? जनता तो हरपल मृत्यु.अल्पमृत्यु को प्राप्त होती ही रहती है परंतु अस्पताल में काम करने वालों को भी आधी मृत्यु का शिकार होना पड़ता है, पहली बार देख रहा हूं। मेरे हिसाब से अभी तो तुम्हारा समय पूरा नहीं हुआ था। हुआ तो नहीं था सर पर जब हो, कैसे घटा ये सब? हम सत्यकथा सुनना चाहते हैं। तुम कैसे उस ग्रेट लिंकि, बंदे के शरीर से निकलीं जिस बंदे की जेब से चवन्नी तक निकालना टेढ़ी खीर है। तुम बच्चों की बेरोजगारी से परेशान होकर निकलीं या सब कुछ होने के बाद भी सबकुछ होने की परेशानियों से निकलीं या भली चंगी नौकरी और ऊपर से बेहतर रिश्वत होने के बाद भी भोलाराम को अकेला छोड़ने की कोई खास वजह? हम बस तुम्हारे समय से पहले  यहां आने की वजह जानना चाहते हैं हे भोलाराम की रूह ! इसे अन्यथा न लें प्लीज!  जो तुम सच कहो तो देखो तो, वह बेचारा तुम बिन कैसे पड़ा है। और उसके सामने उसका बेटा उसे हर्बल गालियंा देता कैसे मौन खड़ा है।सर! बच्चों की बेरोजगारी से तंग आकर वे ईमानदार मां. बाप मरते हैं जिनके ऊपर वालों से लिंक नहीं होते। जिनको बच्चों के लिए योग्यता से बड़ी नौकरी खरीदनी नहीं आती। और भगवान की दया से मैंने सरकारी नौकरी में रहते हुए लिंक बनाने के सिवाय और कुछ किया ही नहीं। मैं पगार सरकार की लेती रही और लिंक अपने बनाती रही। ये तो पता नहीं मेरे साथ कैसे ये हादसा हो गया। वरना जो जरा सी भी मुझे पहले ये भनक लग जाती कि मेरे साथ ये होने वाला है, तो पीएमओ आॅफिस तक से भोलाराम के साथ रहने की सिफारिश ले आती। तब देखती कोई मेरा क्या करता? पर कम्बख्त  इंजेक्शन के रिएक्शन ने वक्त न दिया। मोबाइल में एक से एक नंबर धरे के धरे रह गए। तो क्या घर में बीवी से कहा सुनी हो गई थी जो जोश में तंग आकर उसके हसबेंड के शरीर से निकलने का खतरनाक रास्ता चुन लिया.

नहीं सर! वह तो बेचारी समान नागरिक संहिता के दौर में भी हरदम बस इसी बात से डरी रहती है कि दूसरे धर्म का होने के बाद भी जो भोलाराम ने  सपने तक में उसे तीन बार तलाक तलाक तलाक कह दिया तो इस बुढ़ापे में कहां जाएगी? सोचती है तो उसके हाथ पांव फूल जाते हैं।हाय री रूह! गजब के मर्द हैं ये भी! सारी उम्र प्रेम. प्रेम करते. करते, कहते.कहते भी अपनी बीवी से प्रेम नहीं कर पाते पर सिर्फ तीन बार तलाक तलाक तलाक कहकर उसे तलाक जरूर दे देते हैं। कौन से धर्म की पोथी पढ़े हैं री ये मर्द?

“पोथी कौन मुआ पढ़ा हुजूर! ले देकर दुई. चार डिग्री .फिगरी जोड़ ली और ये धर्म की पोथियां बांचना तो उनका पेशा है हुजूर जिनके पास दूसरा कोई काम न हो। आम आदमी तो बेचारा दाल रोटी में उलझा रहता है पैदा होने लेकर मरने तक। जो कुछ उन्होंने कह दिया ये तो बस उनके कहे को ही प्रभु का कथन मान लेते हैं प्रभु! कमाल! नार्को टैस्ट के बिना ही भोलाराम की रूह सच पर सच बोल रही थी, और वह भी छाती बजा. बजा कर। रूह और शरीर में एक यही बेसिक अंतर होता होगा।

चलो, एक बात तो तुममें है। यहां आकर सच तो बोली। नीचे तो तुमने सच न कहने की कसम खा रखी थी क्यों?

प्रभु! वहां सच सुनना ही कौन चाहता है? सब झूठ के पुजारी हैं। सब झूठ के कारोबारी हैं। एक दूसरे के जूते चाटना हर जीव की लाचारी है। जो नहीं चाटता, उसकी जिंदगी में कंगाली है। जिसका जितना उम्दा झूठ, उसका उतना चकाचक कारोबार। झूठ के माहौल में सच बोलने के संकट इतने हैं कि भोलाराम की रूह ने कहा तो यमराज मंद. मंद मुस्कुराए और फिर पूछा, तो तुम्हारे साथ ये केजुअल्टी हुई कहां?

अपने ही अस्पताल के आईसीयू में। अपने ही डॉक्टर की सुई से। उस कमबख्त के पेट की आग ने मुझे समय से पहले भोलाराम के शरीर से जुदा कर दिया। प्रभु! मुझसे रीतिकाल की विरही नायिका की तरह नायक भोलाराम से अब और वियोग सहन नहीं हो रहा।  “कुछ करो वरना” भोलाराम की रूह भोलाराम के वियोग में ऐसे रोने लगी ,ऐसे रोने लगी कि उसे रोता देख यमराज के दरबार में आई शेष. निशेष. अवशेष  रूहें उसके रोने के सुर के साथ सुर मिला उठीं तो यमराज का भेड़तंत्र में एक बार फिर विश्वास गहरा हुआ।

अशोक गौतम

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