आस्था की एक और जीत – गंगा हुई आजाद

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– विनोद बंसल

जो स्थान मानव शरीर में रक्त शिराओं व धमनियों का है वही स्थान भारत के लिए गंगा का है। जिस प्रकार मस्तिष्क से लेकर पैरों तक रक्त का दौरा इन रक्त वाहिकाओं के विना सम्भव नहीं है उसी प्रकार भारत माता के मस्तक (गौमुख) से प्रारम्भ हुई गंगा के बिना देश का विकास सम्भव नहीं है। भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई यह नदी बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है। 2071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। प्राकृतिक संपदा की धनी होने के साथ-साथ यह जन जन की आस्था का आधार भी है।

कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी इसी के द्वारा होती है। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। बहुत से पवित्र तीर्थ स्थल व प्रसिद्ध मंदिर गंगा के किनारे पर बसे हुये हैं जिनमें वाराणसी और हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। ये तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करते हैं। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है। इसमें स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र मान कर समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए मकर संक्रांति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। उत्तराखण्ड के पंच प्रयाग तथा प्रयाग राज गंगा के वे प्रसिद्ध संगम स्थल हैं जहाँ वह अन्य नदियों से मिलती हैं। ये सभी संगम धार्मिक दृष्टि से पूज्य माने गए हैं।

गोमुख से लेकर ऋषिकेश तक गंगा और उसकी सहायक नदियों पर क़रीब 30 से अधिक बांध बनाए जा रहे थे। इन बांधों के कारण उसके प्राक्रतिक व नैसर्गिक बहाव को अबरुद्ध कर गंगा को निष्प्राण करने का प्रयास पिछले कुछ वर्षों से किया जा रहा था। संतों, पर्यावरणविदों व अन्य विषेशज्ञों का स्पष्ट मत था कि यदि ये बांध बन जाते तो न सिर्फ़ देश की प्राण वायु गंगा की हत्या हो जाती वल्कि राष्ट्र को अनेक गंभीर खतरों का सामना करना पडता। इसलिए इसका देश व्यापी विरोध किया गया।

हरिद्वार में महाकुंभ के दौरान साधु संतों के सभी 13 अखाड़ों ने सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर गंगा पर बन रही बांध परियोजनाओं को रद्द नहीं किया गया तो वे कुंभ का बहिष्कार कर देंगें। विश्व हिंदू परिषद और दूसरे हिंदूवादी संगठनों सहित कई पर्यावरणवादी भी संतों के इस आंदोलन का समर्थन कर रहे थे। प्रसिद्ध पर्यावरणविद प्रोफेसर अग्रवाल का कहना था कि उनका आमरण अनशन लक्ष्य-सिद्धि या प्राण त्यागने तक जारी रहेगा।

सरकार की हठधर्मिता के कारण इन बांध परियोजनाओं में देश के करदाताओं की गाढी कमाई के कई हजार करोड रुपयों को अब तक पानी में बहाया जा चुका था। ऐसे में परियोजना को खत्म करने का फैसला लेना आसान नहीं था। किन्तु गंगा के राष्ट्रीय महत्व और इसकी अविरल धारा से जुड़ी आस्थाओं का ख्याल रखते हुए मंत्री समूह को अपना फैसला बदल इस के मार्ग में आने वाली सभी बांध परियोजनाओं को रोकना पडा। इतना ही नहीं, ऊर्जा मंत्रालय में गंगा बचाओ आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों और धर्मगुरुओं की मौजूदगी में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश को यह भी कहना पडा कि गोमुख से उत्तरकाशी तक 135 किमी लंबे क्षेत्र को पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील इलाका घोषित किया जाएगा।

हिन्दुओं की आस्था पर आघात, पर्यावरण पर पडने वाले खतरों तथा विश्व हिंदू परिषद व देश के अनेक धर्माचार्यों व साधू संतों के कडे तेवरों के आगे आखिर सरकार को घुटने टेकने पडे। चाहे राम सेतु व बाबा अमरनाथ की जमीन की तरह गंगा के लिए भी हिंदू समाज व राष्ट्र भक्तों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप ही सही, देर आए – दुरुस्त आए किन्तु यही कहा जाएगा कि लौट के बुद्धू घर को आए। और आखिर गंगा हो गई आजाद्।

2 COMMENTS

  1. सरकार ने आखिर बहुत सही निर्णय लिया है. कहा जाने लगा है “The Era of Big Dams is Over”. वाकई सोधो और निष्कर्षो ने यह सिद्ध किया है की बड़े बंधो से प्रकृति को नुक्सान ज्यादा होता है. छोटे छोटे तालाब, स्टॉप डेम बनाकर भी पानी को सहेजा जा सकता है, इससे न तो प्रकृति को नुक्सान होगा बल्कि उस जगह का जल स्तर भी बढेगा.
    हर हर गंगे, हर हर महादेव.

  2. bahut achchha aalekh hai .ab ek nivedan hai ki himalay se samudr payant ganga ke shuddhikarn ka bhi maha abhyan chalna chahiye .jo log fokat men sarkari paise pr l t c ke gulchharare udate hain ganga ko pradushit kar rahe hain unhen dandit kiya jaay .vahno pr .murdon pr sade foolon pr or uddyogo ki gandgi ganga men na ja ye is pr pryas hona chahiye .

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