अंततः योगी अंततः हिंदुत्व

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के मनोनयन के पश्चात यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी व अमित शाह की टोली ने यह नियुक्ति कई संदेशों के स्पष्टतः प्राकट्य, प्रस्तुतीकरण व प्रसारण के लिए बड़ी ही दृढ़ता के साथ की है. बहुत से ऐसे तथ्य, मान्यताएं व राजनैतिक मिथक हैं जो नरेंद्र मोदी के इस कदम से आलोकित व स्पष्ट होंगे. बड़ी ही सामान्य सी व सर्वमान्य सी धारणा थी कि नरेंद्र मोदी जैसे तैसे बन रही अपनी विकास पुरुष की छवि को शनैः शनैः विकसित करेंगे और योगी आदित्यनाथ को उप्र का मुख्यमंत्री क्या अपने केन्द्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री का स्थान भी नहीं देंगे. योगी आदित्यनाथ को उप्र जैसे भारत के सबसे बड़े, सर्वाधिक जनसंख्या वाले व सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने स्वयं के हिंदुत्व के कठोर आग्रह वाली छवि को पुनर्जागृत कर दिया है. एक सामान्य सा प्रश्न सभी के मष्तिष्क में आ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि विकास पुरुष की व कठोर निर्णय लेनें में सक्षम प्रधानमंत्री की छवि के ऊपर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने हिंदुत्व वाली छवि को वरीयता दी?! उत्तरप्रदेश के चुनाव में एक भी मुस्लिम को भाजपा प्रत्याशी न बनाना अपने आप में एक चौकाने वाली व राजनीति में एक नई लकीर को खींचनें के संकल्प वाली घटना थी और योगी के मुख्यमंत्री बनने की बिसात वहीं बिछ गई थी. वर्तमान राजनीति के दौर में जबकि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति चरम पर है तब 20% मुस्लिम जनसँख्या वाले प्रदेश में एक भी मुस्लिम को टिकिट न देना एक प्रकार से आत्मघाती निर्णय माना गया था. वस्तुतः ऐसा करके अमित शाह ने “मुस्लिम वोट बैंक” की अवधारणा को ही समाप्त कर दिया था और इसी के साथ जन्म हुआ “हिन्दू वोट बैंक” की अवधारणा को. स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा हुआ है जब “हिन्दू वोट बैंक” जैसा कोई शब्द धरातल पर अपने अस्तित्व सहित दिख पा रहा है. चुनाव प्रचार के दौर में जब स्वयं प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने श्मशान और कब्रिस्तान की बात करके चुनाव को इस विषय पर केन्द्रित कर दिया था कि तुष्टिकरण की राजनीति की समाप्ति हो या वह चलती रहे तब भी यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा ने इस चुनाव को भगवा एजेंडे पर लड़ने के अपनें निर्णय को कठोरता के साथ धरातल पर उतार दिया है. पूरे चुनाव के दौरान समूची भाजपा का चुनाव अभियान तो हिंदुत्व को अभियान के एक भाग के रूप में चलाता रहा किन्तु योगी आदित्यनाथ का चुनाव अभियान पूरी तरह से भगवा रंग में रंगा ही नहीं होता था बल्कि वे मुस्लिम कट्टरता के विरुद्ध बड़ी ही संकल्पशीलता के साथ मारक अंदाज में भाषण बाजी करते थे व चुनाव को तेजी से ध्रुवीकरण की तरफ ले जानें में सफल भी हो गए थे.

योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनानें के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य मिशन 2019 ही है. माना जा रहा है कि समूचे उत्तरप्रदेश में योगी एक बड़े स्टार प्रचारक के रूप में छा गए हैं और वे अपने दम पर चुनावी मैदान की दिशा मोड़ने का माद्दा रखते हैं. वैसे भी पूर्व से ही योगी पूर्वांचल के प्रभावी, निर्णायक व लोकप्रिय नेता माने जाते रहें हैं. उप्र के पूर्वांचल में 60 विधानसभा क्षेत्र आते हैं व सबसे बड़ी बात प्रधानमन्त्री का निर्वाचन क्षेत्र बनारस भी पूर्वांचल में ही आता है.

सतत 5 लोस चुनाव जीतनें वाले योगी 2009 का चुनाव दो लाख वोटों से व 2014 का लोकसभा चुनाव तीन लाख मतों के अंतर से जीत चुकें हैं. लगातार पांच बार सांसद रहना, फायर ब्रांड हिन्दू नेता होना, अपनें तर्कों के माध्यम से सदा हावी रहना आदि ऐसे तर्क थे जिन्होंने भाजपा आलाकमान को योगी के पक्ष में मुख्यमंत्री की आसंदी देनें का निर्णय करवाया. योगी सदा आक्रामक रहते हुए भी एक विशिष्ट प्रकार की विनम्रता को कठोरता से अपनाए रहते हैं यही उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशिष्टता है.

उत्तरप्रदेश बहुत से क्षेत्रीय भूभागों में बंटा एक विशाल प्रदेश है. इसके प्रत्येक भूभाग की अपनी एक अलग क्षत्रपों की टोली है. इन सभी क्षत्रपों को एक साथ लेकर चलनें का गुण या माद्दा या वरिष्ठता राजनाथ सिंह के अलावा सामनें आ रहे नामों में से किसी के पास भी नहीं थी. योगी ही एक मात्र ऐसा व्यक्तित्व है जो अपेक्षाकृत अधिक युवा होते हुए भी राजनैतिक व संसदीय अनुभव के साथ अपनी आक्रामक छवि के कारण उप्र के विभिन्न क्षेत्रीय क्षत्रपों को नियंत्रित कर सकता है.

उत्तरप्रदेश के जातीय समीकरण भी योगी के पक्ष में परिस्थितियों का निर्माण करते हैं. एक संत होनें के कारण योगी पर किसी जाति विशेष का ठप्पा नहीं है. प्रत्येक जाति, पंथ, समाज का व्यक्ति उनमें एक जातिगत छवि के स्थान पर हिन्दू संत कीई छवि को स्पष्ट देख पाता है यह बात योगी के पक्ष में निर्णय करानें में सर्वाधिक असरकारक रही. महंत गौरक्षनाथ परम्परा का गद्दीदार होना उन्हें उत्तरप्रदेश के कई क्षेत्रों में श्रद्धा का पात्र बनाता है यह बात उनके पक्ष में जानी ही थी.

उत्तरप्रदेश के चुनावों में स्टार प्रचारकों की जो बड़ी सूचि तैयार हुई थी उनमें नरेंद्र मोदी के बाद सर्वाधिक मांग योगी आदित्यनाथ की रही. परिस्थितियां कुछ इस प्रकार बनी थी कि योगी को अपने क्षेत्र में बुलानें की प्रत्याशियों की मांग के कारण योगी की सभाओं में अमित शाह को वृद्धि करनी पड़ी थी.

उत्तरप्रदेश चुनावों के परिणाम आनें के पश्चात जब मुख्यमंत्री पद हेतु केशव प्रसाद मौर्य, मनोज सिन्हा, सतीश महाना व राजनाथ सिंह के नामों की बड़ी चर्चा थी तब उस दौर में राजनाथ सिंह द्वारा अपना नाम मुख्यमत्री की दौड़ से बाहर होनें की घोषणा के साथ ही सूची में योगी आदित्यनाथ का नाम सबसे बड़ा नाम हो गया था क्योंकि बाकी सभी नाम अनुभव व लोकप्रियता की दृष्टि से योगी से बहुत अधिक पीछे थे.

कहना न होगा कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव के मुद्दे व एजेंडे को तय कर दिया है. संघ परिवार के भव्य राममंदिर निर्माण के एजेंडे को भाजपा प्रत्येक चुनाव में कभी चिंघाड़ कर तो कभी दबे स्वर में अपना एजेंडा बताती रही है. भाजपा पर मंदिर निर्माण के विषय में होने वाली व्यंगोक्तियाँ समय समय पर विभिन्न मंचों व नेताओं के माध्यम से भाजपा को चोटिल करती रहीं हैं. मंदिर निर्माण एक ऐसा मुद्दा हो गया है जो भाजपा को सदैव घेरे रहनें का एक सर्वप्रिय माध्यम बन गया है, ऐसे दौर में आवश्यक ही था कि सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश की राजनीति व विभिन्न समाज, जाति, धर्म को साधने हेतु भाजपा एक आक्रामक चेहरे को सामने लाती. निस्संदेह भाजपा के समक्ष यह एक चुनौती है कि वह न्यायलीन मर्यादा का सम्मान भी करे व विभिन्न मतों व धर्मों को दबावपूर्वक एक टेबिल पर बैठाकर मंदिर निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त करे. कहना न होगा कि उत्तरप्रदेश का 20% मुस्लिम नागरिक योगी के मुख्यमंत्री बननें से जबरदस्त मानसिक दबाव में आ गया है. एक आम मुस्लिम नागरिक वैसे भी मंदिर मस्जिद के मुद्दे से छुटकारा पाना चाहता है किन्तु कुछ मुट्ठी भर कट्टर मुस्लिम नेता ही हैं जो मंदिर मुद्दे को वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से गर्मायें रहतें हैं. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब यह कट्टरपंथी मुस्लिम राजनीतिज्ञ नेपथ्य में चले जायेंगे और मंदिर निर्माण का मार्ग भी दोनों धर्मों के लोगों के परस्पर बैठनें से ही निपट जानें वाला है. योगी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने मंदिर मुद्दे पर न केवल बढ़त बना ली है बल्कि उसके राष्ट्रीय नेतृत्व ने स्वयं को बड़ी ही चतुराई से इस विषय से अलग करने का प्रयास भी कर लिया है. यद्दपि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व या प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी मंदिर निर्माण के मुद्दे से स्वयं को अलग कर पायेगा इसमें संशय है तथापि योगी जैसे क्रियाशील व आक्रामक व्यक्तित्व के चलते उसे मंदिर मुद्दे से कुछ आड़ तो मिल ही गई है.

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