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अनुप्रश्न - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विजय निकोर स्तब्धता को मसोसती बूँद-बूँद टपकते पानी की टप-टप रसोई की साँस हो जैसे ! थाली में गरम रोटी परोसे पुकार रही है प्रतिदिन कई सालों से बार-बार तुम्हारी प्यारी आवाज़ । जीभ पर स्वाद तो अभी भी है तुम्हारी मलका-मसूर का, तुम्हारे कोमल हाथों के खिलाए…