भारत की सबसे बड़ी समस्या के बारे में बात की जाए तो वो क्या है ? महंगाई,भ्रष्टाचार,अथवा तुष्टिकरण सोचीये प्रश्न विचारणीय है । उपरोक्त समस्याओं को यदि क्रमवार रखा जाए तो वो क्रम क्या होगा? जहां तक मेरी राय है तो ये क्रम तुष्टिकरण,भ्रष्टाचार सरकार के इन्ही दोनों सुकर्मों का पुण्य फल है कमरतोड़ महंगाई जिसे भुगतने को अभिशप्त है आम जनता । जहां तक इन समस्याओं को इस क्रम में रखने से मेरा प्रयोजन है तो हमें कुछ बातों पर गौर करना होगा । वो बातें बीतते वक्त की धुंध में दफन हो गयी हैं,या दफनाने की प्रक्रिया में हैं ।
ये समस्या भारत की आजादी के वर्ष १९४७ से भी पहले से सर उठा रही थी । इस समस्या को मुस्लिम लीग के नाम से जाना जाता है । बहरहाल यहां इस पर विस्तार से चर्चा करने की बजाय मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि मुस्लिम लीग कुछ राष्ट्रद्रोही प्रकृति के लोगों एक विशिष्ट दबाव समूह था । जहां तक उनके योगदान की बात की जाए तो देश के बंटवारे में इन लोगों के विशिष्ट योगदान को नकारा नहीं जा सकता । हां ये बात और कि इसमें कुछ श्रद्धेय महापुरूषों का योगदान भी था ।हांलाकि यहां मैं उन महान पुरूषों के प्रखर चरित्र का वर्णन कर बेवजह मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता । इस बात पर मुझे अटल जी की एक कविता याद आ रही है –
दागदार चेहरे हैं,दाग बड़ेगहरे हैं । जी हां इतने गहरे दाग जिन्हे सर्फ एक्सल समेत विभिन्न बड़े ब्रांड के डिटरर्जेंट पाउडर भी नहीं धो सकते । बहरहाल हम मुद्दे पर आते हैं तो ये शायद इतिहास की पहली घटना थी जहां हमारे प्रबुद्ध नेताओं का तुष्टिकरण के जनक वाला चेहरा पहली बार सामने आया । यहां एक बात और ध्यान रखने वाली है कि भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था । बावजूद इसके विवाद को यथास्थिती बनाए रखने के लिए ये बंटवारा सही अर्थों में नहीं हुआ । इस बात का खामियाजा पाकिस्तान में बसे हिंदू एवं काश्मीर से विस्थापित हिंदू आज भी उठा रहे हैं ।ध्यातव्य हो कि काश्मीर को महाराजा हरि सिंह की इच्छा के बावजूद तुष्टिकरण की राजनीति से विवादित बनाने में भी हमारे राष्ट्रनायकों के अमूल्य योगदान को नकारा नहीं जा सकता । वास्तव में इन्हीं लोगों के पुण्य प्रताप की ही देन है अनुच्छेद ३७० जिसने निश्चित तौर पर कश्मीर को हिंदुस्तान के लिए अप्राप्य बना डाला । बात फिर वही है बड़े लोग हैं मैं नाम नहीं लेना चाहता आप सब तो खुद ही समझदार हैं । यहां एक मजे की बात और है देश भर के आम आदमी की जेब पर डाका डालके जिस कश्मीर पर खर्च किया जाता है,उसी कश्मीर की आवाम किस बात पर पाकिस्तानी झंडा लहराने लगे ये नहीं कहा जा सकता । यहां फिर एक प्रश्न उठता है क्या भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में पाक का झंडा लहराने वाले राष्ट्रद्रोही नहीं है? एक देश दो ध्वज दो संविधान क्या राष्ट्र की मूलभावना के साथ खिलवाड़ नहीं है? मगर हैरत होती है अपने राष्ट्र की तुच्छ तुष्टिकरण की राजनीति को देखकर यहां कुछ भी हो सकता है । जैसे झंडे के शीर्ष पर शोभायमान भगवा रंग आतंक का पर्याय बन सकता है ।
ये तो रही कश्मीर की बात अब जरा आम जनजीवन की बात कर लें ध्यान दीजीयेगा जहां तक मान्यताओं का प्रश्न भारत के स्वयंभू ठेकेदार इसे शांतिप्रिय देश बताते हैं ? जहां तक मेरी जानकारी है लोगों का ये भी मानना है कि अहिंसा के किसी जबरदस्त पैरोकार ने ही देश को आजादी दिलाई थी । वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखकर लगता वो शायद किसी दूसरी अहिंसा की बात करते थे ,क्योंकि अहिंसा के विस्तृत अध्याय में पशु प्राणी सभी समाहित होते हैं । जहां तक हमारी सेक्यूलर अहिंसा की बात है तो इसमें गाय इत्यादि पशु अहिंसा की मूल अवधारणा में नहीं आते । एक अन्य विषय देखीये भारत की बढ़ती जनसंख्या देश के लिए चिंता का विषय है,कम से कम सरकारी विज्ञापन तो ऐसा ही दर्शाते हैं । अगर सरकार को वाकई चिंता है तो इस पर नियंत्रण के पर्याप्त साधन आज उपलब्ध हैं । हैं ना लेकिन सरकार ये कड़ा निर्णय नहीं ले सकती क्योंकि तुष्टीकरण इसकी इजाजत नहीं देता । अरे भाई देश कानून से थोड़े नहीं चलता देश तो शरियत से चलता है । इन दोहरे मापदंडों को अपनाने वाले जन गण मन के अधिनायक वाकई स्तुति योग्य हैं ।हैं कि नहीं आपको क्या लगता है?
अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक सिने अभिनेता शाहरुख खान ने बताया कि उन्हे धर्म विशेष से होने के कारण काफी जहमत उठानी पड़ी है ? क्या वाकई ऐसा है ? स्मरण रहे ये वो ही शाहरुख जिन्हें सरकारी भाषा में कहें तो भगवा आतंकियों की कौम ने सुपरस्टार बना डाला । अब कैरियर के ढ़लान में उनकी ये तुच्छ टिप्पणी क्या साबित करती है? खैर इस बात से देश और आमजन की भावना आहत होती है तो होती रहे किसे परवाह है? ये देश तो तुच्छ तुष्किरण के छद्म सिद्धांतों पर चलता रहेगा ।स्मरण रहे उनको इस प्रकार की अमर्यादित टिप्पणी करने के असीमित अधिकार इसी सिद्धांत ने दिये हैं । अन्यथा क्या विश्व के अन्य देशों में इस तरह की टिप्पणी करके कोई बच सकता है?
अंतिम बात भारत एक विभिन्नताओं से भरा हुआ देश है । यहां विभिन्नता संस्कृति,भाषा हर रूप में देखी जा सकती है । काबिलेगौर बात ये है कि यहां शहादत की भी कई श्रेणियां पाई जाती हैं । यथा हाल ही प्रतापगढ़ में हुई एक दुर्घटना में मृत पुलिस अधिकारी जिया उल हक की मौत से गमगीन सरकार ने पीड़ित परिवार को तत्काल ५० लाख रुपयों की आर्थिक सहायता के साथ उनके परिवार के तीन सदस्यों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा भी की । अखबारों पर अगर यकीन करें तत्काल मौके पर पहुंचे उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री कई बार भावुक भी हो गए । ध्यातव्य हो प्रदेश के ही सीमा पर शहीद हुए जवान के अनशनरत परिवार से मिलने के लिए उन्होने बमुश्किल समय निकाला था,और शायद भावुक भी नहीं हुए थे । जहां तक इतनी बड़ी आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी की बात है तो उसके बाबत आश्वासन भी नहीं दे सके थे । खैर जो भी हो जहां तके उत्तर प्रदेश पुलिस का प्रश्न है तो शायद ही इससे पूर्व किसी भी पीड़ित परिवार को इतना बड़ा मुआवजा देने की बात की हो । अब हुई न शहादत की श्रेणियां ।ऐसी ही कुछ घटना अभी कश्मीर में भी घटी वहां के युवा मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने हाल ही में फांसी पर लटकाये गये अफजल गुरू को साहेब कह कर संबोधित किया । क्या वो वाकई इनका साहब था ? अगर भारत की न्यायपालिका एवं महामहीम राष्ट्रपति ने वाकई कोई गलती नहीं की है तो उमर साहब का क्या अंजाम होना चाहीए ? सोचीये प्रश्न विचारणीय है । इन सबके अलावा हज सब्सिडी,कब्रिस्तानों की खैरख्वाही भी तो सरकारों का परम दायित्व है । क्या इन सबके अतिरिक्त कश्मीर की सुरक्षा,आतंकियों के पालन पोषण पर खर्च होन वाले पैसा जनता की थाती नहीं हैं ? यदि नहीं है तो तुष्टिकरण के नाम पर जनता के भविष्य के साथ खिलवाड़ कब तक किया जाता रहेगा । इसीलिए आज ये सोचने का वक्त आ गया है तुष्टिकरण बनाम राष्ट्रद्रोही कृत्य में शामिल लोग कौन हैं?
मेरा शरीर मर सकता है,आत्मा नहीं – साध्वी प्रज्ञा
जेल में मुझे मारने की कोशिश की गई तथा वो सारी प्रताड़ना दी गई जो अंग्रेजों के जमाने में क्रांतिकारियों को दी जाती थी ।
इनमें शारीरिक,मानसिक एवं सांस्कृतिक प्रताड़ना भी शामिल है । प्रताड़ना से सिर्फ मेरा शरीर मर सकता है आत्मा नहीं मैं जब जब इस धरती पर जन्म लूंगी अपने देश हित में ही काम करूंगी । उपरोक्त बातें साध्वी प्रज्ञा ने सोमवार को लहार(मध्य प्रदेश) स्थित अपने पारिवारिक निवास पर एक पत्रकार वार्ता में कहीं । वे यहां अपने पिता डा सीपी सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए आई थी ।
गौरतलब है कि लंबे समय से बीमार चल रहे उनके पिता डा सिंह का शनिवार को निधन हो गया । प्रज्ञा ठाकुर के जेल से आने के चलते उनका अंतिम संस्कार सोमवार को हुआ । उन्हे मुखाग्नि उनके पुत्र पुष्यमित्र सिंह ने दी । पत्रकार वार्ता में प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए प्रज्ञा ने कहा कि जेल में यातानाओं के साथ ही साथ अंडा खिलाकर मेरा धर्म भ्रष्ट करने का प्रयास भी किया गया । इन सारी यातनाओं का दोष महाराष्ट्र सरकार को जाता है । पिता की मौत का हवाला देते हुए उन्होने कहा कि,वैसे तो पूरा देश ही मेरा परिवार है लेकिन मेरे परिवार का ॠण सर्वप्रथम है । इसी पितृ ॠण को चुकाने के लिए मैं आज लहार आई हूं ।