चकाचौंध है पैसे की|
किसी तरह से पैसा आये,
चाहे आये जैसे भी|
पैसे की दुनियाँ दीवानी,
पैसे के सब मीत यहाँ|
बिना दाम के कॊई न पूँछे,
पूँछ है केवल पैसे की|
पैसे से इज्जत मिलती है’
पैसे से मिलता सम्मान|
इस कारण से ही तो सबको,
भूख है बाकी पैसे की|
पैसे से मिलती सुविधायें ,
पैसे से आराम मिले|
जय जय कार हुआ करती है,
सभी ओर अब पैसे की|
पैसे से पैसा बनता है,
पैसा बढ़ता जाता है|
सपने में भी आती अक्सर,
याद सभी को पैसे की|
किंतु कभी संतोष न मिलता,
कभी किसी को पैसे से|
कितना भी आ जाये पैसा,
भूख न मिटती पैसे की|