बोलकर पलट क्यों जाते हैं बाबा?

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-शैलेंद्र जोशी- babaramdev_1_23011_f
योग गुरु बाबा रामदेव कहने को तो बाबा हैं लेकिन उन्हें कभी व्यासपीठ नहीं भायी। वे व्यासपीठ पर बैठे भी तो चर्चा राजनीतिक ही करते रहे। कभी विदेशों में जमा धन को वापस लाने की बात कही तो कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुद्दा उठाया। बाबा ने जो भी किया व्यासपीठ के विषय अध्यात्म से परे अन्य विषयों पर ही चर्चा की। बाबा योग गुरु माने जाते हैं, योग मतलब एकाग्रता भी है लेकिन वे कभी अपनी बात और मुद्दों पर एकाग्र नहीं हो पाए। वे कब कौन-सा सुर बदलेंगे कहा नहीं जा सकता। मोदी के विरोध में रविवार को बोलने के बाद बाबा सोमवार को अपने बयान से पलट गए। आखिर बाबा की इसमें क्या मजबूरी थी?
फिलहाल बाबा एनडीए को लेकर समर्थन पर हर दिन सुर बदल रहे हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले तक वे भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के गुण गाते नहीं थकते थे, लेकिन भाजपा द्वारा जैसे ही टिकट की घोषणा की गई, बाबा नाराज हो गए। वे अपने खास लोगों को टिकट नहीं मिलने पर मोदी से भारी खफा हो गए और उन्होंने उन पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। हाल ही में बाबा ने सार्वजनिक तौर पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि मोदी को पीएम बनने की जल्दबाजी है लेकिन उन्हें थोड़ा संयम से काम लेना चाहिए। इसी के साथ बाबा रामदेव ने पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के कसीदे काढ़ते हुए उन्हें बेहद साफ और ईमानदार इंसान बताया। बाबा के काम भी निराले हैं। यह बात और है कि ठीक एक दिन बाद बाबा अपने बयान से पलट गए। उन्होंने हमेशा की तरह मीडिया पर ढोल दिया और कहा कि मोदी को लेकर कुछ नहीं कहा। रामदेव का कहना है कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। रामदेव अपने रविवार को दिए बयान से यह कहते हुए पलट गए कि उन्होंने सिर्फ भाजपा को राजनीतिक गतिविधियों में सतर्कता बरतने की सलाह दी थी। बाबा होने के बाद बयान देना और दूसरे दिन पलट जाना, क्या किसी स्वार्थी नेता की तरह नहीं है? एक संन्यासी तो सच को तवज्जो देता है। यदि बोल भी दिया तो भय किस बात का? पलटने का सवाल ही क्यों खड़ा होता है? कौन-सा उन्हें घर-परिवार या बिजनेस संभालना है? लेकिन बाबा जैसे दिखाई देते हैं, अंदर से संभवत: वैसे बन नहीं पा रहे हैं।
फिर भी यदि बाबा रामदेव भाजपा के टिकट बंटवारे और अपने खास लोगों को टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं, तो उन्हें उचित मंच पर अपनी बात रखनी चाहिए, लेकिन बाबा की यह बौखलाहट और नाराजी मोदी और भाजपा के लिए लाभकारी नहीं कही जा सकती। बाबा ने मोदी को लेकर हमेशा की तरह इस बार भी दो मुंही बातें की हैं। एक तरफ तो उन्होंने मोदी के खिलाफ सुर छेड़ा, वहीं वाराणसी से चुनाव लड़ने पर उन्होंने मोदी का समर्थन भी कर दिया। बाबा ने यह भी कहने लगे कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल यदि वहां से खड़े होते हैं तो उनकी जमानत जब्त हो जाएगी। रामदेव ने सलाह भी दी है कि केजरीवाल को घोषणा करनी चाहिए कि अगर वहां से उनकी जमानत जब्त हो जाती है तो वह राजनीति छोड़ देंगे। बाबा का कहना है कि केजरीवाल का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया है। उनकी वहां से जमानत जब्त होने जा रही है। वह मोदी के खिलाफ  कांग्रेस के एजेंडा पर काम कर रहे हैं। वह राहुल और सोनिया गांधी के करप्शन पर चुप्पी साधे हुए हैं।
भाजपा के टिकट बंटवारे से खफा बाबा रामदेव ने कहा कि पाटलिपुत्र से उनके अनुयायी निशिकांत यादव और अलवर से चंदू महाराज लगातार भाजपा के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। रामदेव साफ तौर पर कह रहे हैं कि वे पाटलिपुत्र से अपने समर्थक निशिकांत यादव को टिकट न दिए जाने से  काफी निराश हैं। उन्होंने दागदार छवि के बीएस येदियुरप्पा और पी. श्रीरामुलु को टिकट दिए जाने पर भी नाराजगी जताई है। गौरतलब है कि भाजपा ने आरजेडी छोड़कर हाल ही में पार्टी में शामिल हुए रामकृपाल यादव का पाटलिपुत्र से टिकट दिया है। पाटलिपुत्र से लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा मैदान में हैं।
जाहिर सी बात है कि बाबा रामदेव में लोकसभा चुनावों में अपने लोगों को टिकट नहीं दिए जाने से खफा तो चल रहे हैं, लेकिन वे भाजपा के लिए गड्ढे खोदने लगे हैं, इस ओर भाजपा को नजर दौड़ाना चाहिए। सब जानते हैं कि बाबा शुरू से ही धर्म-अध्यात्म से दूर ही रहे हैं, वे तो कभी राजनीति, कभी उद्योग-धंधे तो कभी ऐसे मुद्दों पर काम करते रहे हैं, जो उनके कामकाज में सहायक हों। लोग तो यहां तक कहते हैं कि यदि उनके चोले को नजरअंदाज कर दें तो उनके आचार-व्यवहार, रहन-सहन कहीं से भी वे बाबा नजर नहीं आते। पहले योग के नाम पर पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुए। योग को भी काफी प्रचारित किया और सशुल्क शिविर लगा-लगाकर देश-दुनिया से धन भी समेटा। उसके बाद उन्होंने जड़़ी-बूटियों का धंधा शुरू कर दिया। बाबा रामदेव की चाय, च्यवनप्राश से लेकर स्वर्ण भस्म सहित कई तरह की औषधियों और अगरबत्ती का निर्माण और फिर बेचने की दुकानें खोलने के साथ ही देश को जबरदस्त बत्ती दी और बाबा करोड़पति-अरबपति हो गए। जो औषधि बाजार में 100 रुपए की मिलती है बाबा की दुकान से लोग उनके नाम के प्रताप के चलते 200 रुपए में भी खुशी-खुशी खरीद रहे हैं। बाबा बनने से पहले भले ही उन्होंने लोभ-मोह, दुनियादारी से मुक्त होकर मोक्ष के रास्ते पर चलने की कसम खाई हो लेकिन वे इन बातों से दूर ही दिखाई दिए।

4 COMMENTS

  1. यही कारण है कि गलत कर रहा है==> “उन्होंने दागदार छवि के बीएस येदियुरप्पा और पी. श्रीरामुलु को टिकट दिए जाने पर भी नाराजगी जताई है।” हम हमेशा नकारात्मक बातें करते हैं क्यों????

  2. बाबा का दूसरा नाम ही योगगुरू है इसलिये बेहतर यही है कि बाबा योगगुरू की बने रहें अौर लोगों को योग की शिक्षा देते रहें वर्ना वे जिसे तरह राजनीति कर रहे हैं उससे उनका कद घ्‍ाटता ही जा रहा है. एक बार विफल आंदाेलन करने के बाद जिस तरह से बाबा कांग्रेस सरकार के टैक्‍स जाल में फंसे हैं उससे उनका मोदी की प्रशंसा करना और भाजपा के पक्ष में बोलने के बाद अपने चहेतों को टिकट ना मिलने से नाराज़ हो जाना यह बताने के ि‍लये काफी है कि बाबा में अहंकार, नासमझी और भौतिक सुख सुविधाओं की लालसा कूट कूटकर भरी है.

  3. बाबा अब बाबा व योग गुरु नहीं रहे। यह तो सब उनका बहुत सोचे समझे तरीके से अपने धंधे को ज़माने का हथियार था,अब वे व्यवसायी हो गए है और उनका हर काम हर दांव उसके हिसाब से होता है यह सब वे करें ठीक है पर अब उन्हें बाबा व भगवा चोले को तज देना चाहिए कम से कम इस चोले को तो गरिमा पूर्ण रहने दे, और बहुत लोग है इसे बदनाम करने को.बाबा व अन्ना दोनों का चमत्कार अब समाप्त हो चूका है, अच्छा तो यह हो कि वे अपने पर संयम रख अपने पूर्व क्रियाकलापों को जारी व रखे व खोती जा रही प्रतिष्ठा को बचा ले अन्यथा इस चुनाव बाद उनका कोई नाम लेवा भी न होगा और लोगों में रहा सहा भ्रम भी जाता रहेगा

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