क्या आप इस नरेंद्र मोदी को जानते थे !

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संजय द्विवेदी

एक हफ्ते में मीडिया और एनडीए सांसदों से संवाद करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस प्रचार की भी हवा निकालने की कोशिश की है कि वे संवाद नहीं करते या बातचीत से भागना चाहते हैं। एक ‘अधिनायकवादी फ्रेम’ में उन्हें जकड़ने की कोशिशें उनके विरोधी करते रहे हैं और नरेंद्र मोदी हर बार उन्हें गलत साबित करते रहे हैं। लक्ष्य को लेकर उनका समर्पण, काम को लेकर दीवानगी उन्हें एक ‘वर्कोहलिक मनुष्य’ के नाते स्थापित करती है। काम करने वाला ही उनके आसपास ठहर सकता है। एक वातावरण जो ठहराव का था, आराम से काम करने की सरकारी शैली का था, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तोड़ने की कोशिश की है। सरकार भी आराम की नहीं, काम की चीज हो सकती है, यह वे स्थापित करना चाहते हैं।

वे जानते हैं कि नए समय की चुनौतियों विकराल हैं। ऐसे में लिजलिजेपन,अकर्मण्यता या सिर्फ नारों और हुंकारों से काम नहीं चल सकता। वे भारत की जनाकांक्षाओं को समझने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं और यही आग अपने मंत्रियों और सांसदों में फूंकना चाहते हैं। इसलिए बड़े लक्ष्यों के साथ, छोटे लक्ष्य भी रख रहे हैं। जैसे सांसदों से उन्होंने एक गांव गोद लेने का आग्रह किया है। समाज के हर वर्ग से सफाई अभियान में जुटने का वादा मांगा है। ये बातें बताती हैं कि वे सरकार के भरोसे बैठने के बजाए लोकतंत्र को जनभागीदारी से सार्थक करना चाहते हैं। नरेंद्र मोदी को पता है कि जनता ने उन्हें यूं ही बहुमत देकर राजसत्ता नहीं दी है। यह सत्ता का स्थानांतरण मात्र नहीं है। यह राजनीतिक शैली, व्यवस्था और परंपरा का भी स्थानांतरण है। एक खास शैली की राजनीति से उबी हुयी जनता की यह प्रतिक्रिया थी, जिसने मोदी को कांटों का ताज पहनाया है। इसलिए वे न आराम कर रहे हैं, न करने दे रहे हैं। उन्हें पता है कि आराम के मायने क्या होते हैं। आखिर दस साल की नेतृत्वहीनता के बाद वे अगर सक्रियता, सौजन्यता और सहभाग की बातें कर पा रहे  हैं तो यह जनादेश उनके साथ संयुक्त है। उन्हें जनादेश शासन करने भर के लिए नहीं, बदलाव लाने के लिए भी मिला है। इसलिए वे ठहरे हुए पानी को मथ रहे हैं। इसे आप समुद्र मंथन भी कह सकते हैं। इसमें अमृत और विष दोनों निकल रहे हैं। इस अमृत पर अधिकार कर्मठ लोगों, सजग देशवासियों को मिले यह उनकी चिंता के केंद्र में है। एक साधारण परिवेश से असाधारण परिस्थितियों को पार करते हुए उनका सात-रेसकोर्स रोड तक पहुंच जाना बहुत आसान बात नहीं है। नियति और भाग्य को मानने वाले भी मानेंगें कि उन्हें किसी खास कारण ने वहां तक पहुंचाया है। यानि उनका दिल्ली आना एक असाधारण घटना है। मनमोहन सिंह की दूसरी पारी की सरकार का हर मोर्चे पर विफल होना, देश में निराशा का एक घना अंधकार भर जाना, ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से पूरे देश में एक आलोड़न और बदलाव की आग का फैल जाना, तब मोदी का अवतरण और जनता का उनके साथ आना यह घटनाएं बताती हैं कि कैसे चीजें बदलती और आकार लेती हैं। राजनीति की साधारण समझ रखने वाले भी इन घटनाओं और प्रसंगों को जोड़कर एक कोलाज बना सकते हैं। यानि वे उम्मीदों का चेहरा हैं, आशाओं का चेहरा हैं और समस्याओं का समाधान करने वाले नायक सरीखे दिखते हैं। नरेंद्र मोदी में इतिहास के इस मोड़ पर महानायक बन जाने की संभावना भी छिपी हुयी है। आप देखें चुनावों के बाद वे किस तरह एक देश के नेता के नाते व्यवहार कर रहे हैं। चुनावों तक वे गुजरात और उसकी कहानियों में उलझे थे। अब वे एक नई लकीर खींच रहे हैं। गुजरात तक की उनकी यात्रा में सरदार पटेल की छवि साथ थी, अब वे महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और इंदिराजी की याद ही नहीं कर रहे हैं। उनकी सरकार तो गजल गायिका बेगम अख्तर की जन्मशताब्दी मनाने भी जा रही है।  एक देश के नेता की देहभाषा, उसका संस्कार, वाणी,  सारा कुछ मोदी ने अंगीकार किया है।

अपनी छवि के विपरीत अब वे लोगों को साधारण बातों का श्रेय दे रहे हैं। जैसे देश के विकास के लिए वे सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को श्रेय देते हैं, स्वच्छता अभियान के उनके प्रयासों में शामिल मीडिया के लोगों, लेखकों से लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर को श्रेय देना वे नहीं भूलते। वे अपने सांसदों और अपनी सरकार को अपने सपनों से जोड़ना चाहते हैं। आखिर इसमें गलत क्या है? सरकार कैसे चल रही है, इसे जानने का हक देश की जनता और सांसदों दोनों को है। दीवाली मिलन के बहाने इसलिए प्रमुख मंत्री, राजग के सांसदों को सामने प्रस्तुति देते हैं। यह घटनाएं नई भले हों पर संकेतक हैं कि प्रधानमंत्री चाहते क्या हैं। दीपावली मिलन पर मीडिया से संवाद से वे भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में करते हैं, इसका भी एक संदेश है। वे चाहते तो मीडिया को सात रेसकोर्स भी बुला सकते थे। किंतु वे बताना चाहते हैं कि संगठन क्या है और उसकी जरूरतें अभी और कभी भी उन्हें पड़ेगी। अमित शाह के रूप में दल को एक ऐसा अध्यक्ष मिला है जो न सिर्फ सपने देखना जानता है बल्कि उन्हें उसमें रंग भरना भी आता है। उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और हरियाणा की कहानियां बताती हैं कि वे कैसे रणनीति को जमीन पर उतारना जानते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह  का लंबा साथ रहा है। सत्ता और संगठन की यह जुगलबंदी सफलता की अनेक कथाएं रचने को उत्सुक हैं। भाजपा का पीढ़ीगत परिवर्तन का कार्यक्रम न सिर्फ सफल रहा बल्कि समय पर परिणाम देता हुआ भी दिख रहा है। देखना है कि सत्ता के मोर्चे पर प्रारंभ में उम्मीदों का नया क्षितिज बना रहे मोदी आने वाले समय में देश को परिणामों के रूप में क्या दे पाते हैं? देश की जनता उन्हें जहां उम्मीदों से देख रही है, वहीं उनके विरोधी चौकस तरीके से उनके प्रत्येक कदम पर नजर रखे हुए हैं। दरअसल यही लोकतंत्र का सौंदर्य है और उसकी ताकत भी। सच तो यह है कि आज देश में नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक रहे लोग भी भौचक होकर उनकी तरफ देख रहे हैं। उनकी कार्यशैली और अंदाज की आलोचना के लिए उनको मुद्दे नहीं मिल रहे हैं। लोकसभा चुनावों के पूर्व हो रहे विश्लेषणों, अखबारों में छप रहे लेखों को याद कीजिए। क्या उसमें मोदी का आज का अक्स दिखता था। उनकी आलोचना के सारे तीर आज व्यर्थ साबित हो रहे हैं। उन्हें जो-जो कहा गया वो वैसे कहां दिख रहे हैं। गुजरात के चश्मे से मोदी को देखने वालों को एक नए चश्मे से उन्हें देखना होगा। यह नया मोदी है जो श्रीनगर जाने के लिए दिल्ली से निकलता है तो सियाचिन में सैनिकों के बीच दिखता है। यह वो प्रधानमंत्री है जो दीवाली का त्यौहार दिल्ली या अहमदाबाद में नहीं, श्रीनगर में बाढ़ पीड़ितों के बीच मनाता है। मोदी की इस चौंकाऊ राजनीतिक शैली पर आप क्या कह सकते हैं। वे सही मायने में देश में राष्ट्रवाद को पुर्नपरिभाषित कर रहे हैं। वे ही हैं जो लोगों के दिल में उतर कर उनकी ही बात कर रहे हैं। देश ने पिछले 12 सालों में मीडिया के माध्यम जिस नरेंद्र मोदी को जाना और समझा अब वही देश एक नए नरेंद्र मोदी को देखकर मुग्ध है। दरअसल मोदी वही हैं नजरिया और जगहें बदल गयी हैं। उनकी राजनीतिक सफलताओं ने सारे गणित बदल दिए हैं।  राजनीतिक विरोधियों की इस बेबसी पर आप मुस्करा सकते हैं। भारतीय राजनीति सही मायने में एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है, इसके फलितार्थ क्या होंगें कह पाना कठिन है किंतु देश तेजी से दो ध्रुवीय राजनीति की ओर बढ़ रहा है इसमें दो राय नहीं है। संकट यह है कि कांग्रेस राजनीति का दूसरा ध्रुव बनने की महात्वाकांक्षा से आज भी खाली है।

4 COMMENTS

  1. yes I know Namo but I know only he is developer of India. and believes every Indian on Nmo that some do better and coming good day in India.
    But Congress Party change our president how ever Namo ministers will be powerful any no strong opposition in Democracy.
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  2. द्विवेदी जी, आप सही हैं।
    मेरा आज तक का मोदी जी का निरीक्षण कहता है; कि मोदी जी मौलिक निर्णय लेते हैं।और मौलिकता किसी रट्टामार मार्ग का अनुसरण नहीं करती। यदि, करे तो फिर वह मौलिकता नहीं कही जा सकती।

    वे समग्र समस्त भारत के हित में निर्णय लेते हैं। अचरज भरा व्यक्तित्व है मोदी। आप के किसी भी निकषपर खरा उतरेगा। पूर्वाग्रह से उन्हें देखा न जाए।
    विशेष: वे नीति, कूटनीति, राजनीति, रणनीति, जानते हैं। चाणक्य नीति भी–विदुरनीति भी शायद जानते होंगे।
    पर सारी नीतियों को भारत के दूरगामी कल्याण के लिए ही प्रायोजी जाएगी।
    आप आगे आगे देखते रहिए।
    आलेख सुन्दर बन पाया है। बहुत धन्यवाद।

  3. द्विवेदी जी, आप सही हैं।
    मेरा आज तक का मोदी जी का निरीक्षण कहता है; कि मोदी जी मौलिक निर्णय लेते हैं।और मौलिकता किसी रट्टामार मार्ग का अनुसरण नहीं करती। यदि, करे तो फिर वह मौलिकता नहीं कही जा सकती।

    वे समग्र समस्त भारत के हित में निर्णय लेते हैं। अचरज भरा व्यक्तित्व है मोदी। आप के किसी भी निकषपर खरा उतरेगा। पूर्वाग्रह से उन्हें देखा न जाए।
    विशेष: वे नीति, कूटनीति, राजनीति, रणनीति, जानते हैं। चाणक्य नीति भी–विदुरनीति भी शायद जानते होंगे।
    पर सारी नीतियों को भारत के दूरगामी कल्याण के लिए ही प्रायोजी जाएगी।
    आप आगे आगे देखते रहिए।
    आलेख सुन्दर बन पाया है। बहुत धन्यवाद।

    (१) भारत का कल्याण –उन्हें अभिप्रेत है।

  4. कांग्रेस के तो सांप सूंघ गया है,मोदी के इन कार्यों से उसे ईर्ष्या, क्रोध, जलन तो है पर वह कुछ कर नहीं पा रही है , पराजय के सदमे से वह 6 माह बाद भी उभर नहीं पाई है,अपने संगठन, नेतृत्व ,सोच में वह परिवर्तन लाने को तैयार नहीं , नेतृत्व इतना निर्लज्ज है कि वह अपनी कमान छोड़ने को तैयार नहीं है कोई भी सदस्य बदलाव की बात कहता है तो चापलूसों को लगता है कि यह कुर्सी की टांग खिंच कर तोडना चाहता है, इसलिए अभी इस पार्टी को कुछ दिन और आई सी यू में ही रहना पड़ेगा

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