-लिमटी खरे
बीसवीं सदी के अंतिम तीन दशकों में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्या का अघोषित तमगा मिल चुका है पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह को। कुंवर अर्जुन सिंह के जहर बुझे तीरों के चलने के बाद जब घाव रिसने लगते हैं, तब लोगों को पता चल पाता है कि कुंवर साहब ने घाव कहां दिया है। यूपीए सरकार की दूसरी पारी में कुंवर अर्जुन सिंह को दूध में से मख्खी के मानिंद निकालकर फेंक दिया गया है। कुंवर अर्जुन सिंह की खामोशी से कांग्रेस के आला नेता परेशान दिख रहे थे। राज्य सभा में जब अर्जुन सिंह ने अपना बयान दिया तब लोगों को लगा भई वाह कुंवर साहेब ने तो राजीव गांधी को सिरे से बरी कर पूरा का पूरा ठीकरा तत्कालीन गृह मंत्री नरसिंहराव पर फोड दिया है। हर कांग्रेसी चैन की सांस ले रहा था कि अब कोई जाकर स्व. नरसिंहराव से पूछने तो रहा कि उनके कार्यालय ने गैस कांड के वक्त मध्य प्रदेश के निजाम रहे कुंवर अर्जुन सिंह को फोन पर भोपाल गैस कांड के आरोपी वारेन एंडरसन को छोड़ने का फरमान दिया था या नहीं।
देखा जाए तो कुंवर अर्जुन सिंह ने इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को बरी नहीं किया है, वरन् राजीव गांधी की भूमिकाओं पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं? बकौल कुंवर अर्जुन सिंह उन्होंने 03 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घटना की पूरी जानकरी दे दी थी। इसके उपरांत यूनियन कार्बाईड के वारेन एण्डरसन की 07 दिसंबर की गिरफ्तारी और रिहाई के बारे में भी मध्य प्रदेश के हरदा में चुनावी कार्यक्रम में सविस्तार बता दिया था। कुंवर अर्जुन सिंह ने साफ कहा कि उन्होंने एण्डरसन की गिरफ्तारी के आदेश दिए और हरदा के लिए रवाना हो गए, जहां राजीव गांधी से उनकी इस संबंध में पूर्ण चर्चा हुई। इस मामले में वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री ने यह कहकर मामला और संगीन कर दिया है कि गृह मंत्रालय के पास एसा कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है, जिससे साबित हो सके कि उस वक्त गृह मंत्रालय इस बात के लिए इच्छुक था कि एंडरसन की रिहाई की जाए।
अर्जुन सिंह ने बड़ी ही सफाई से कांग्रेस जनों को प्रसन्न कर एक एसा दस्तावेज उजगर कर दिया है जिसमें कांग्रेसियों को यह मुगालता होने लगा है कि कुंवर अर्जुन सिंह ने बड़ी ही सफाई के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी को इस मामले से पूरी तरह बरी कर दिया है। वस्तुतः एसा है नहीं। जानकारों का साफ मानना है कि कुंवर अर्जुन सिंह ने जहर बुझे तीर के माध्यम से यह बात जनता के बीच छोड़ दी है कि जब संवेदनशील प्रधानमंत्री राजीव गांधी मध्य प्रदेश में होते हुए भी सारी हकीकत से ‘‘बेखबर‘‘ नहीं ‘‘बाखबर‘‘ तब उन्होंने कोई कदम उठाने के कुंवर अर्जुन सिंह को यह क्यों कहा कि अगली सभा की ओर कूच किया जाए? इसके पीछे राजीव गांधी की संवेदनहीनता ही सामने आ रही है, जो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए एक मुश्किल पैदा कर सकती है, बशर्ते विपक्ष कुंवर अर्जुन सिंह के जहर बुझे तीरों को संभाल कर उठाए और उसे वापस कांग्रेस के खेमे में फेंके।
कल तक भोपाल गैस कांड के सच को अपनी आत्मकथा के माध्यम से उजागर करने की घोषणा करने वाले कुंवर अर्जुन सिंह का हृदय अचानक ही परिवर्तित हुआ और उन्होंने बजाए किताब के माध्यम से इस मसले में सदन में बयान देना ही उचित समझा। कुंवर अर्जुन सिंह का कहना है कि पूरी बात सुनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बारे में तो एक शब्द भी नहीं कहा लेकिन अगली चुनावी सभा में जाने का आदेश दे दिया। राजीव गांधी के बारे में जो और जितना भी लोग जानते हैं उनके गले यह बात नहीं उतर सकती कि स्व.राजीव गांधी इतने संवेदनहीन थे कि इस तरह की घटना के बाद वे चुप्पी साधे रहते। स्व. राजीव गांधी जैसा जिन्दादिल और संवेदनशील नेता सच जानने के उपरांत कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य ही व्यक्त करता। हो सकता है कि उस समय राजीव गांधी को कुंवर अर्जुन सिंह द्वारा घटना का मार्मिक पक्ष पेश ही न किया हो या यह भी संभव है कि कुंवर अर्जुन सिंह अभी गलत बयानी कर रहे हों।
कुंवर अर्जुन सिंह बार बार एक ही बात फरमा रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उस समय बार बार फोन करके वारेन एण्डसरन को भगाने की बात कही जा रही थी। अगर यह सच है तो क्या यह कुंवर अर्जुन सिंह की मुख्यमंत्री के तौर पर जवाबदेही नहीं थी कि उन्हें सीधे तत्कालीन गृह मंत्री नरसिंहराव से चर्चा करना था। 26 साल बाद गड़े मुर्दे उखाड़ने का फायदा ही क्या? इतिहास में संभवतः पहली बार कुंवर अर्जुन सिंह अपने बिछाए जाल में खुद ही फंसते नजर आ रहे हैं। इस मामले में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री के बारे में बयानबाजी कर अपना बदला अवश्य ही निकाल रहे हों पर यह तीर उन्हें भी घायल करता ही प्रतीत हो रहा है।
जनता जनार्दन के मानस पटल पर यह प्रश्न कौंधना स्वाभाविक ही है कि आखिर कुंवर अर्जुन सिंह जैसा राजनीतिज्ञ इतना बड़ा बोझ लेकर 26 साल तक शांत कैसे बैठा रहा? आखिर क्या वजह थी कि इतने सालों में कुंवर अर्जुन सिंह ने अपनी जुबान खोलने की जहमत नहीं उठाई। विधायक और सांसद रहते हुए क्या कुंवर अर्जुन सिंह को कभी नहीं लगा कि वे एक जनसेवक हैं, और वे यह बात छुपाकर जनता के साथ ही धोखा कर रहे हैं।
अब कुंवर अर्जुन सिंह 26 सालों बाद फरमा रहे हैं कि उस समय वारेन एण्डरसन को राजकीय विमान उपलब्ध कराना बेतुका था। राजनैतिक समझबूझ वाला व्यक्ति यह बात अच्छी तरह समझता है कि किसी भी सूबे में तभी सरकारी विमान किसी को मुहैया करवाया जा सकता है, जबकि मुख्यमंत्री या विमानन मंत्री इसकी अनुमति दें। इन दोनों विशेषकर मुख्यमंत्री की इजाजत के बिना सरकारी उड़न खटोला एक इंच भी सरक नहीं सकता है। सवाल यह उठता है कि आखिर इतना सब अन्याय होते देखने के बाद कुंवर अर्जुन सिंह के हृदय परिवर्तन में 26 साल का लंबा समय कैसे लग गया? इसके पहले उनका जमीर क्यों नहीं जागा?
बहरहाल इस पूरे मामले में छब्बीस साल बाद तथ्यों को सामने लाना एक तरह से अप्रासंगिक ही प्रतीत हो रहा है। ढाई दशक पहले निकले सांप की धुंधली या मिट चुकी लकीर को पीटने का आखिर फायदा क्या है? आज साफ सफाई आरोप प्रत्यारोप से ज्यादा आवश्यक यह है कि गैस त्रासदी के पीडितों को मुकम्मल इंसाफ मिले। इस मसले में सरकार के साथ ही साथ देश की न्याय व्यवस्था को आत्मावलोकन की महती आवश्यक्ता है। जनता को खुद ही यह प्रश्न पूछना चाहिए कि छब्बीस साल पहले घटी अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी से भला भारत गणराज्य ने क्या सबक सीखा?
भारत गणराज्य की नीति विहीन सरकार की कार्यप्रणाली की एक बानगी है, देश के बड़े और छोटे बांध। इन बांधों के साथ आपदा प्रबंध कितना पुख्ता है, इस बारे में सरकरें पूरी तरह मौन हैं। आपदा प्रबंध के मसले पर स्थानीय लोगों को कुछ भी जानकारी न होना आश्चर्यजनक ही है, साथ ही साथ आपदा प्रबंध के मामले में स्थानीय लोगों को शामिल न किया जाना भी आश्चर्यजनक इसलिए माना जाएगा, क्योंकि दुर्घटना की स्थिति में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले स्थानीय लोग ही होते हैं।
अभी कुछ माह पहले ही पायलट ट्रेनिंग संस्थान के ससेना विमान के मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के पास बरगी में डूबने की खबर मिली थी। जिला प्रशासन जबलपुर और सिवनी ने रानी अवंती सागर परियोजना में गोताखोरों की मदद से उक्त विमान और गायब पायलट रितुराज को खोजने का नाकाम अभियान चलाया। इसके बाद जब प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए तब रितुराज के परिजनों ने अपने स्तर पर बांध के अथाह पानी में अपने लाड़ले को खोज ही निकाल। इस तरह की घटनाएं आपदा प्रबंध की पोल खोलने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि यूनियन काबाईड को संचालित करने वाली डाउ केमिकल आज भी शान से भारत में अपना व्यवसाय संचालित कर रही है। यह सब कुछ भारत के लचर प्रशासनिक तंत्र के कारण ही संभव हुआ है। हमारी नजर में इस सबके लिए एसी व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक होगा जिससे दुर्घटना के लिए जवाबदार लोगों को तत्काल कटघरे में खडा किया जा सके।
भारत सरकार को चाहिए कि हाल ही में ब्रिटिश पेट्रोलियम के कुएं में हुए तेल रिसाव से सबक ले। दुनिया के चौधरी अमेरिका के प्रथम पुरूष बराक ओबामा ने इस त्रासदी को पर्यावरण का भीषणतम नुकासन बताकर न केवल ब्रिटिश पेट्रोलियम को जवाबदार ठहराया वरन् आना पाई से मुआवजा देने पर विवश भी किया है। विडम्बना है कि भारत में घटने वाली दुर्घटनाओं में संबंधित जवाबदार लोगों को जनसेवक, नौकरशाह और प्रशासनिक तंत्र हाथों हाथ लेकर उन्हें हीरो बनाने में जुट जाता है, जिसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है, इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
श्री खरे जी बिलकुल सही कह रही है. राजनीती में सब जायज है.
सच कह भी दिया तो कोई क्या कर लेगा. जिसको पार्टी विशेष को वोट देना है वे देंगे, हमारे देश में वोट व्यक्ति को नहीं, पार्टी को दिए जाते है.
हम आपस में तो बहतु लड़ते है, किन्तु घर ससे बहार हम गाँधी बन जाते है. अमेरिका तो दूर, पाकिस्तान से दो खरी खरी बात कहने में हमें सालो लग गए. कारगिल युद्ध में हमारे देश का ४० से ५० हजार करोड़ का खर्च हुआ जो की हमारे देश के कुल बजट का लघभग आधा है. किन्तु आज तक किसी भी मंच पर, किसी भी नेता ने, किशी भी अधिकारी ने, किशी भी पत्रकार ने एक बार भी यह बात नहीं उठाई की हमें पाकिस्तान से यह राशी वसूलनी चहिये क्योंकि यह पूरी तरह से दो देशो का युद्ध था. हालांकि हम यह जानते है की पाकिस्तान इस हालत में नहीं है की वोह यह राशि हमें दे सकता है.
श्री श्रीराम तिवारी जी बिलकुल सही कह रह की बहुत से लोग जिनका भोपाल से दूर दूर का वास्ता नहीं है वोह भी गैस कांड में नाम लिखवा कर पैसे ले रहे है. बहुत से वास्तविक कोगो को अभी तक नहीं मिला है.
खरे जी आपको इतनी सी बात समझ नहीं ई की नेहरू गाँधी खंडन का इतिहास इस तरह के संवेदनहीनता से भर हुआ है इस कंदन ने आजादी के बाद से आजतक अपने को बनाये रखने के लिए हर तरह की गल्प सही बातो का समर्थन किया है.बात चाहे देश के बटवारे की हो या निर्वाचित संस्थाओ के दुरूपयोग की आपातकाल में क्या हुआ यह तो अब इतिहास है,लेकिन भोपाल त्रासदी में ही देख लीजिये गाँधी खंडन के मुखिया ख़ामोशी से यही देख रही है की उनकी टीम किस तरह राजीव गाँधी का बचाव कराती है.अर्जुन सिंह को देख केर दया अति है की कसे कोई आदमी जूता खा केर भी आह नहीं भर सकता.मेरी निगाह में तो अर्जुन की दयनीयता गैस पेदितो से कम नहीं,जिन्हें दूध की मख्खी की तरह फेका ही नहीं गया उन्हें रोने से भी मरहूम किया जा रहा है.जो अर्जुन गाँधी खंडन के लिए पार्टी छोड़ केर वफ़ादारी साबित करने के लियुए सब कुछ किये वही नरसिंघा राव के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह जो कभी १९,जनपथ झाकने नहीं गए अज प्रधानमंत्री है और अर्जुन राहुल गाँधी की चोलुसी में बयां देते है तो भी फटकारे जाते है.इसी को कहते है समय हॉट बलवान.
अर्जुन सिंह जी का सफरनामा देखते हैं तो एक बात सपष्ट पता चलती है की ज्यादा महत्वाकांक्षी ठाकुर पर भरोसा नहीं करना चाहिए
आज ज्यादा आवश्यक यह है कि गैस त्रासदी के पीडितों को तुरंत इंसाफ मिले। सरकार और अदालतों को आत्मावलोकन की आवश्यक्ता है।
अर्जन सिंह नरसिम्हन राव राजीव गाँधी तीनों सीधे या परोक्ष रूप से उत्तरदायी हैं. 26 साल पहले की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी से भारत ने क्या सीखा ?
अर्जुन का रोना उनके पास रहने दीजिये, उन्हें राजनीती करने दो.
जनता की चिंता करो.
आगे आम जनता को नहीं भुगतना पड़े, यह सुनिश्नित होना चाहिए।
पुरुष वली नहीं हॉट है ;समय होत बलवान .
भिल्लन लूटी गोपिका ;वही अर्जुन वही वान..
खरे जी का आलेख की विषय वस्तु है ‘.देश के नायकों की एतिहासिक भूलें ‘
कुंवर अर्जुन्सिंग ;श्री राजीव गाँधी ;श्री नरसिम्हाराव और एंडरसन इस दुखांत नाटक के पात्र रहे हैं .जो जीवित हैं वे भी हासिये पर हैं .union corbide के रिसन की घटना को २५ बरस होने जा रहे हैं ;किन्तु हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए की चूक किस से कहाँ और कब हुई .
भोपाल में रूपया पानी की तरह बहाया गया ‘विगत २४ साल में जो गुमटी बाले थे वे महलों वाले हो गए .जो चपरासी था वो cleark से आगे चला गया ;जो क्लर्क था वो अफसर से आगे और जो अफसर थे उनके लाकरों से करोड़ों
रूपये निकल रहे हैं .जो भोपाल से दूर का भी नाता रखते थे उनकी भी इस दुर्घटना से पोबारह हो गई .में ऐसे सेकड़ों लोगो को जानता हूँ जो भोपाल में दुर्घटना के वक्त थे ही नहीं या पैदा भी नहीं हुए थे ;उन्हें लाखों की जुगाड़ करने में सफलता मिली ;वे इस बात से बेपरवाह हैं की देश में उपजी इस महा भृष्ट व्यवस्था का ही परिणाम था -union corbide कांड .
सब कुछ नेताओं के भरोसे छोड़कर .अपनी जिन्दगी डाव पर लगाकर चुपचाप भारत अमेरिका की परमाण्विक डील होने दो ‘जब कोई विकरण की आफत आये तो दस बीस हजार क्या अब तो दस बीस करोड़ भी मर जाएँ ‘हमें क्या .बच गए तो लाशों के ढेर पर ढेर सारा मुआवजा और थोड़े से आंसू -सौदा बुरा नही है .
अब अर्जुन्सिंग नहीं तो क्कोई और सिंह होंगे जो भोपाल या दिल्ली दोनों की नैया के खिवैया होंगे .