सलमान रुश्दी को लेकर छिड़ी महाभारत

2
142

तनवीर जाफरी 

भारतीय मूल के विवादित ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी की प्रत्येक वर्ष जयपुर में आयोजित होने वाले चार दिवसीय जयपुर साहित्यिक महोत्सव में शिरकत करने की संभावना है। आयोजक मंडल ने उन्हें विश्वभर के तमाम प्रतिष्ठित साहित्यकारों और लेखकों के साथ साहित्यिक महोत्सव में आमंत्रित किया है।

यह कार्यक्रम पूरी तरह गैरसरकारी है तथा कार्यक्रम के आयोजन अथवा आमंत्रित लेखकों की सूची से राजस्थान की राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। सलमान रुश्दी विवादों में घिरने के बाद भी इससे पूर्व कई बार भारत आ चुके हैं। परंतु देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पूर्व जयपुर में उनके आगमन की खबर से देश में एक महाभारत सा मच गया है।

गौरतलब है कि 65 वर्षीय सलमान रुश्दी मूलरूप से भारत के निवासी हैं। शिमला तथा मुंबई में उनकी संपत्तियां हैं। वे एक भारतीय व्यवसायी की संतान हैं। 1947 में उनका जन्म मुंबई में हुआ था। इसके बाद वे यहां से ब्रिटेन चले गए, जहां इंग्लैंड के रगबी स्कूल में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। उसके पश्चात कैंम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में उन्होंने अध्ययन किया।

हालांकि अपने जीवन के शुरुआती दौर में उन्होंने विज्ञापन के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहा था। उन्होंने इस क्षेत्र में काफी काम भी किया, मगर लेखन की ओर रुझान होने के कारण वे पूर्णकालिक लेखक होकर रह गए। रुश्दी का पहला उपन्यास ‘ग्रिम्स’ था जो 1975 में प्रकाशित हुआ था। इसके पश्चात उनके दूसरे उपन्यास ‘मिडनाईट्स चिल्ड्रेन’ ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। साहित्य जगत में इसी उपन्यास ने उन्हें नई पहचान दी।

‘मिडनाईट्स चिल्ड्रेन’ लिखे जाने के बाद ही उन्हें 1981 में बुकर सम्मान से नवाज़ा गया। इतना ही नहीं 1993 में उन्हें इसी उपन्यास को लेकर ‘बुकर ऑफ बुकर्स’ जैसा विशेष सम्मान भी दिया गया। यह सम्मान उन्हें 25 वर्षों के अंतराल में बुकर सम्मान से सम्मानित समस्त उपन्यासों में सर्वोत्तम उपन्यास होने की वजह से दिया गया। सलमान रुश्दी पश्चिमी देशों में एक स्थापित साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान 1980-90 के मध्य ही बना चुके थे।

इसी के बाद 1988 के अंतिम दिनों में सलमान रुश्दी द्वारा लिखित एक और धार्मिक व्यंग्य प्रकाशन ‘द सेटेनिक वर्सेस’ प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास ने पूरी दुनिया में कोहराम पैदा कर दिया। दुनिया के मुस्लिम बाहुल्य देशों में इस उपन्यास का भारी विरोध हुआ। तमाम देशों में हिंसात्मक प्रदर्शन हुए, तमाम बुकस्टोर आग के हवाले कर दिए गए। इस उपन्यास की प्रतियां जलाई गर्इं। तात्कालिक रूप से ‘सेटेनिक वर्सेस’ को भारत, बंगलादेश, सूडान, दक्षिणी अफ्रीका, श्रीलंका, केन्या, थाईलैंड, तंजानिया, वेनेजुएला,पाकिस्तान, इंडोनेशिया तथा सिंगापुर जैसे देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया।

इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद भड़की हिंसा में जहां कई लोग मारे गए, वहीं उपन्यास के प्रकाशन से जुड़े कई अनुवादक और उनके सहयोगियों पर भी हमले हुए। इनमें भी कई लोग मारे गये और अनेक लोग घायल हुए। उपन्यास के प्रकाशन के बाद ही ईरान के तत्कालीन सर्वाच्च आध्यात्मिक नेता आयतुल्ला खुमैनी ने 14 फरवरी 1989 को सलमान रुश्दी के विरुद्ध तौहीन-ए-इस्लाम किए जाने के आरोप में उनके विरुद्ध मौत का फतवा जारी कर दिया।

सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘द सेटेनिक वर्सेस’ के प्रकाशन को लेकर ईरान द्वारा जारी किए गए रुश्दी के मौत के फतवे के बाद ईरान व ब्रिटेन के मध्य रिश्ते इस कदर बिगड़ गए कि 7 मार्च 1989 को इसी मुद्दे पर इन दोनों देशों के राजनयिक संबंध तक समाप्त हो गए। एक ओर ईरान ने सलमान रुश्दी को मौत के घाट उतारे जाने का फतवा जारी किया, तो दूसरी ओर स्कॉटलैंड यार्ड की सुरक्षा एजेंसी ने सलमान रुश्दी की सुरक्षा की जि़म्मेदारी संभाल ली। इस दौरान कई वर्षों तक कड़ी सुरक्षा के बीच सलमान रुश्दी भूमिगत भी रहे।हालांकि 1998 में ईरान की ओर से अपने इस फतवे पर पुनर्विचार करते हुए यह भी कहा गया था कि अब इस फतवे का समर्थन नहीं करता। जबकि कुछ कट्टरपंथियों ने ईरान के इस नए वक्तव्य के बाद भी यही कहा कि एक बार जारी किया गया फतवा वापस नहीं लिया जा सकता।

गौरतलब है कि ‘सेटेनिक वर्सेस’ के प्रकाशन के बाद जहां मुस्लिम जगत में तूफान खड़ा हो गया था, वहीं उस समय कई साहित्यिक आलोचक ऐसे भी थे जिन्होंने इस व्यंग्य आधारित उपन्यास की प्रशंसा की थी।चूंकि इस्लाम धर्म इस्लामी मामलों, हदीस या शरीया से जुड़े विश्वासों को लेकर किसी प्रकार की आलोचना, नुक्ताचीनी अथवा उसमें सुधार किए जाने जैसी बातों को सहन नहीं करता, इसलिए इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस उपन्यास के प्रकाशन से आग बबूला हो उठे।

‘सेटेनिक वर्सेस’ में पैगम्बर हज़रत मोहम्मद और उनकी पत्नी के चरित्र पर लांछन लगाने जैसा दुस्साहसिक प्रयास किया गया है। यहां तक कि इस पुस्तक के शीर्षक को ही इस्लामी जगत पसंद नहीं करता। परंतु ब्रिटेन द्वारा सलमान रुश्दी जैसे विवादित उपन्यास लिखने वाले लेखक को अपने देश में संरक्षण देने, उनकी सुरक्षा का जि़म्मा उठाने यहां तक कि उन्हें सम्मानित कर उनका इकबाल बुलंद कर मुस्लिम जगत के ज़ख्म पर नमक छिडक़ने का काम किया गया।

कई मुस्लिम देश प्राय: आरोप लगाते रहते हैं कि इस्लाम के विरुद्ध लिखने वाले लेखकों को ज़्यादातर पश्चिमी देश सम्मान देते हैं। जिस समय 2007 में ब्रिटिश हुकूमत ने सलमान रुश्दी को प्रतिष्ठित नाइटहुड अवार्ड देने की घोषणा की, उस समय भी ईरान द्वारा इसका ज़ोरदार विरोध किया गया था। उस समय ईरान ने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि ब्रिटेन के इस फैसले से साफ पता चलता है कि पश्चिमी देश इस्लामी भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धारणा का समर्थन करते हैं।

जहां तक सलमान रुश्दी के मुसलमान होने या उनके एक मुस्लिम पिता की संतान होने का प्रश्र है, तो उनके पालन-पोषण से लकर उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उनकी युवावस्था के उनके चारों ओर के वातावरण को देखकर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वे रुढीवादी व कट्टरपंथी सोच पर चलने वाले मुसलमान न होकर एक खुले दिमाग तथा अपनी बात को सोच व अपने चिंतन के आधार पर प्रस्तुत करने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो स्वयं को किन्हीं बंदिशों या सीमाओं में बंधे हुए देखना पसंद नहीं करते।

उनके जीवन से जुड़े उनकी आशिकमिज़ाजी के तमाम किस्से ऐसे हैं जोकि उनके व्यक्तिगत् चरित्र की भी तर्जुमानी करते हैं। कहा जा सकता है कि एक रूढ़ीवादी विचार रखने वाला मुसलमान रुश्दी जैसे व्यक्ति के चरित्र को शायद ही पसंद करे। उदाहरण के तौर पर युवा संतान के पिता होने के बावजूद सलमान रुश्दी का कई वर्षों तक प्रसिद्ध मॉडल पदमालक्ष्मी के साथ इश्क़ चला। पदमालक्ष्मी काफी समय तक देश-विदेश में रुश्दी के साथ देखी गयीं। ज़ाहिर है इस प्रकार के कृत्य गैर इस्लामी ही थे। आखिरकार 2004 में इन दोनों ने शादी रचा ली। और मात्र तीन वर्ष के अंतराल में 2007 में इनकी आशिकी का अंत यानि तलाक भी हो गया।

काबिलेगौर है कि 2007 में रुश्दी से हुए तलाक के बाद 20 फरवरी 2010 को पदमालक्ष्मी ने एक बच्ची को जन्म दिया। यह और बात है कि पदमालक्ष्मी ने अभी तक उस बच्ची के पिता का नाम सार्वजनिक नहीं किया। इस प्रकार के रिश्ते व इतनी ‘अत्याधुनिक’ सोच रखने वालों का गुज़ारा इस्लाम तो क्या शायद ही किसी धर्म के मध्यवर्ग में हो सकता हो। हां तथाकथित उच्च वर्ग के लिए तो बेशक ऐसे लोग आदर्श बन भी सकते हैं।

बहरहाल, यही विवादित सलमान रुश्दी अब अपने प्रस्तावित भारत दौरे को लेकर एक बार फिर विवादों में हैं। भारत की प्रमुख इस्लामी संस्था देवबंद सहित देश की सभी मुस्लिम संस्थाओं द्वारा सलमान रुश्दी के भारत दौरे का प्रबल विरोध किया जा रहा है। इस मुद्दे को विराम देने का सबसे उपयुक्त व प्रभावी रास्ता यही है कि सलमान रुश्दी स्वयं इस विवाद को समाप्त करने के लिए आगे आएं तथा ‘सेटेनिक वर्सेस’ में व्यक्त किए गए अपने विचारों पर या तो अपना स्पष्टीकरण दें या फिर इसके लिए इस्लामी दुनिया से माफी मांगकर मामले का पटाक्षेप करें। अन्यथा यह विवाद सलमान रुश्दी का पीछा जल्दी नहीं छोडऩे वाला है।

जिस प्रकार भारत में चुनावी अवसर को भांपकर विभिन्न राजनीतिक दल भी इस आग में अपना हाथ सेंकना चाह रहे हैं, भविष्य में भी इस प्रकार की घटनाएं देखी जाती रहेंगी। इसके अतिरिक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देने वाले लोगों को भी इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ऐसी सीमाएं निर्धारित की जाएं जिससे कि किसी भी समुदाय के लोगों की भावनाएं आहत न हो सकें।

2 COMMENTS

  1. इस महाभारत में मकबूल फ़िदा हुसैन और सलमान रश्दी दोनों के प्रति अलग-अलग बर्ताव करनेवाले सेकुलर पाखंडियों का दोगलापन भी बेनकाब हो गया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here