आसमां में लिखा गया नया इतिहास

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भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने अद्भुत कलात्मक अभिव्यक्ति का लोहा पेश करते हुए एक कीर्तिमान स्थापित किया, जो विश्व इतिहास में शक्तिशाली होने वाले राष्ट्र ने नहीं किया था। अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एकसाथ 104 सैटेलाइट को सफलता पूर्वक लॉन्च करने के साथ ही सभी राष्ट्रों के सामने विश्व पटल पर अग्रणीय होने का दर्जा हासिल किया। इसके पहले एकसाथ इतने सैटेलाइट कभी किसी देश ने एक साथ नहीं छोड़े थे। इसके पूर्वत यह रिकॉर्ड अभी तक रूस के पास था। जिसने 2014 में एक साथ 37 सैटेलाइट भेजने का कारनामा किया था।
उपग्रहों का प्रक्षेपण भारतीय रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी के जरिए किया गया। जिन उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया है, उनमें देश की धरा का अवलोकन करने वाला उपग्रह काटरेसैट-2 सीरीज भी शम्मिलित है। 44.4 मीटर लंबे और 320 टन वजनी रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल जो लगभग 1,378 किलोग्राम है, आकाश को बेधते हुए इतिहास बना गया। इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक काटरेसैट उपग्रह पृथ्वी अवलोकन उपग्रह के काटरेसैट-2 सीरीज में चौथा उपग्रह है। इस सीरीज के तीन उपग्रह पहले ही पृथ्वी की कक्षा में हैं और दो अन्य का प्रक्षेपण किया जाना है। काटरेसैट-2 सीरीज के सभी छह उपग्रहों को प्रक्षेपित किए जाने के बाद काटरेसैट-3 सीरीज लॉन्च किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक मंगलयान की सफलता हॉलीवुड की मूवी ग्रेवेटि से कम कीमत पर सफल बनाया गया था, जो इसरो की सफल चरणबद्ध नीति का सरोकार आज भी बयाँ कर रही हैं। देश का पहला उपग्रह आर्यभट्ट था, जो आज की सफल कहानी का मोहरा मात्र था। जिसको कॉसमॉस-3एम प्रक्षेपण वाहन के जरिए कास्पुतिन यान से प्रक्षेपित किया गया था, और वह स्वदेशी निर्मित था, यानि हमारी रक्षा प्रणाली पहले से काफी विकसित अवस्था की रही हैं।
इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट भेजकर नया कृतिमान बनाया हैं। इस लॉन्च में जो 101 छोटे सैटेलाइट्स हैं उनका वजन लगभग 664 किलो ग्राम हैं, इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया जैसे स्कूल बस से बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोडा जाता हैं। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान को 1990 में विकसित किया गया था। जिसके माध्यम से आज के परिवेश में कृतिमान स्थापित किया जा रहा हैं। इसके पश्चात वर्ष 1993 में इस यान से पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया था, जो भारत के लिए गर्व की बात थी, क्योकि उसके पहले यह सुविधा रूस के सिवाय किसी के पास नहीं थी। इस वर्तमान उपलब्धि के पूर्व भी इसरो ने अपने परचम के झंडे विश्व परिदृश्य पर गड़े हैं, क्योंकि इसरो का कार्य क्षेत्र अधिकतर कम खर्च में अधिक सकारात्मक परिणाम देने वाला साबित होता हैं।
इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार के अनुसार इसरो ने जिन सैटेलाइट को लाँच किया हैं, उसमें एक 730 किग्रा का है, जब क़ि बाक़ी के दो का वजन लगभग 19 – 19किग्रा है। उनके मुताबिक इनके अलावा हमारे पास 600 किग्रा और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लाँच करने का फ़ैसला लिया। इस मिशन को आधे खर्चे में भेजा गया हैं, जो काफी अच्छा हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर इतिहास रच दिया। इसके साथ भारत ने इस लक्ष्य के साथ अमरीका और इसराइली के सैटेलाइट को भी लांच किया है। जो ये साफ इशारा करता है, कि भारत सैटेलाइट प्रक्षेपण के बाज़ार में बड़ी तेजी से अपनी पैठ स्थापित कर रहा है। पिछले कुछ सालों में भारत अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बाज़ार में भरोसेमंद खिलाड़ी बनकर विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराया हैं। इन वर्षों के दरमियां भारत ने दुनिया के 21 देशों के 79 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है, जिसमें गूगल और एयरबस जैसी बड़ी कंपनियों के सैटेलाइट शामिल रहे हैं। जो जगजाहिर करता हैं, क़ि भारत की मांग विश्व परिदृश्य में लगभग हर क्षेत्र में बढ़ रही हैं।101 नैनो उपग्रह मेंं, इजरायल, कजाक़िस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड व संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक और अमेरिका के 96 के साथ भारत के दो नैनो उपग्रह शामिल हैं।
पिछले कुछ सालों में इसरो ने विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी कामयाबी अर्जित की हैं, जिसकी एक और बानगी इसरो ने शक्तिशाली देशों के सैटेलाइट लांच कर उपलब्ध की हैं। पिछले कुछ सालों में इसरो ने विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी कामयाबी अर्जित की हैं, जिसकी एक और बानगी इसरो ने शक्तिशाली देशों के सैटेलाइट लांच कर उपलब्ध की हैं। इसके पहले एसएलवी-3 भारत का पहला स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल था. जिस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम थे। जिन्हें भारतीय मिसाइल तकनीकी का पितामह कहा जाता हैं, उन्हीं के रास्तों पर चल भारत आज अंतरिक्ष क्षेत्र में नया कारवां बढ़ाते हुए, ऊँचाई की बुलंदियों को छू रहा हैं। इसरो के काम की सराहना इसी बात से की जा सकती हैं, कि जिस मंगलयान को सफल बनाने में मुश्किलों से विश्व की शक्तियां गिरी रही, वहीँ भारत ने मार्स मिशन को सबसे सस्ते में सफल बनाया। जीएसएलवी मार्क 2 का सफल प्रक्षेपण भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि इसे भारत ने अपने ही देश में बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन लगाया था, जिसके पश्चात भारत को सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ने अप्रैल 2016 में भारत का सातवां नेविगेशन उपग्रह इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम लॉन्च किया। जिसके बाद भारत को अमेरिका के जीपीएस सिस्टम के समान अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम मिल गया। पहले यह केवल अमेरिका और रूस के पास था।
इसरो की बढ़ती ताकत जिसकी बानगी चंद्रयान,मंगलयान साक्ष्य हैं। इसरो ने चंद्रयान को 2008 में भेजकर भारतीय इतिहास को गौरवान्वित किया था, क्योंकि उसके पहले मात्र छः देश चंद्रयान को परिक्षेपित किया था।
अमेरिका सीनेट ने कुछ समय पूर्व यह कह दिया था, अमेरिका भारत के ज़मीन का प्रयोग नहीं करेगा, लेकिन समय बलवान होता हैं, जिसके कारण उसे पलटना पड़ा, और अन्य देश भी इसरो के प्रति लालयित हैं। जो भारत की बढ़त को पेश कर रहा हैं।

मंगलयान : भारतीय मंगलयान ने इसरो को दुनिया के नक्शे पर नया रसूख़ दिलाया था। इन दोनों सफल प्रयास के बदौलत भारत को कमतर आंकने की पहेली दुनिया भूल ही गई, क्योंकि जिस मंगल ग्रह पर पहुँचने के लिए रूस, अमेरिका जैसी ताकतों को कई बार कोशिश करनी पड़ी, उसे भारत के वैज्ञानिकों ने अपनी प्रखर दिमाग़ के बल पर पहली बार में ही सबसे सस्ते में अंजाम दिया था, जिसके बाद विश्व ताकतों के सामने भारत की धाक बन गई। इसके साथ-साथ मोदी सरकार ने 23 फीसद इसरो का बजट बढ़ा दिया हैं, जो बढ़ाकर 7509 करोड़ कर दिया गया हैं, यानि देश के साथ इसरो भी तेजी से अग्रसर हो रहा हैं।
महेश तिवारी

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