शुरूआत के दिनों में नई सरकार

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-फख़रे आलम-
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बड़े समर्थन और विशाल जनादेश वाली मोदी की सरकार अपने शुरुआती दौर में ही है। कहा जाता है कि सवेरा दिन का और बचपना जवानी का संकेत तो देता ही है। आम बजट से पूर्व मोदी सरकार का कार्यकाल आम जनताओं के लिये कही से कहीं तक राहत वाला नहीं कहा जा सकता। भारत की आम जनता ने जिस परेशानी से निजात हासिल करने के लिये भारी मतदान किये थे। और जिस अच्छे और आसान दिनों की बात की गई थी। दावे किये गये थे कि वह सब कुछ करने में समर्थ और सक्षम हैं। उन दावों की पोल खुलने लगी है। बजट से पूर्व जनता की हालत बेहाल है ओर जनता ने इन चंद दिनों में महंगाई की इतनी कठोर मार देखी है कि उन्हें पिछली सरकार का दस वर्ष, वर्तमान बोझ की अपेक्षा हल्का लगने लगा है। जनता को यह सब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि बजट के बाद किया होगा ?

हां, इस दौरान कुछ चीजें और परिदृश्य कुछ अलग है। जनता के बीच और उन के मन में निराशा और गुस्सा एक साथ है। मीडिया और राजनीति पार्टियां खामोश है। जनता मन ही मन सी महसूस करने लगी है, अभी पार्टी और सरकार अपने-आप को फिर करने में लगी है। अभी दौर बड़े बड़े पदों पर अपने अपनों को बैठाने और राजपालों के बदलने का है। कभी-कभी तिलमिलाहट और झल्लाहट में सरकार में शामिल लोग महंगाई के लिए और बेकाबू होती अर्थव्यवस्था के लिए पिछली सरकारों को कोस देते हैं तो कभी मानसून और प्रकृति को महंगाई के लिये जिम्मेदार बताते हैं।

सरकार देश में किसी भी प्रकार की खाद्य की कभी की बात नहीं करती। साथ ही जमाखोरी और अव्यवस्था की बात भी स्वीकारती है। सरकार की ओर से बड़े-बड़े कठोर फैसलों और कठोर कदम उठाने की बात होती है। मगर महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ती थी, वर्तमान सरकार के अधीन महंगाई की गति ने रिकॉर्ड बना डाला है। सरकार के प्रति, उनके मंत्रियों के प्रति, सुधर और काम के प्रति लोगों में निराशा बढ़ता ही जा रहा है। अब तो आम चर्चाओं में, खेत खलिहानों में, चाय की दुकानों पर लोग अच्छे दिन आने वाले हैं- को मजाक के तौर पर प्रयोग करने लगे हैं। मगर आप को यकीन न आये तो आज सरकार सर्वे करवा करके देखे। उनका समर्थन करने वाली आम जनता उनके शुरू के काम काज से न तो संतुष्ट है और न ही खुश। अभी ऐसा लगता है कि स्वतंत्रा रूप से न तो मंत्रालय काम कर रहा है और न ही नौकरशाही, क्योंकि सभी तंत्रा को प्रधानमंत्री कार्यालय की अनुमति की दरकार है और ऐसी स्थिति में सुचारू रूप से सुगमतापूर्वक कामकाज संभव नहीं है।

मैं न तो मोदी सरकार का आलोचक हूं और न ही मैं जल्दी में ही हूं। मेरा समर्थन पत्राकार बिरादरी से है और जो घटना घटित होते देखता हूं, अपने अन्तरात्मा की आवाज से कलम चलाता हूं। अब तो ऐसा लगने लगा है कि काम करने, कदम उठाने और बात करने में बहुत अन्तर है दावा करना और उसे हकीकत का जामा पहनाना दोनों बातें जुदा हैं। सबको साथ लेकर चलने की बात और हकीकत दोनों बड़े दूर की बात है। सम्पूर्ण देश का एक समान विकास रेल बजट और रले बजट में कुछ गैर भाजपा शासित प्रदेशों के साथ भेदभाव हकीकत की परते खोलने के लिए कापफी है। रेल बजट में उन प्रदेशों की उपेक्षा हुइ्र है। जिस प्रदेशों ने पूर्ण बहुमत दिलाने में अपना प्रमुख योगदान दिया है।

देश और देश की जनता सिर्फ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर निगाहे टिकाये हुए हैं। आमजन प्रधानमंत्री और उनकी कार्यालय की ओर टकटकी लगाये हुए हैं कि वादे तो दूर की बात है जो सपने दिखाये गये थे। जो कुछ कर गुजरने का जजबा और जोश चुनाव प्रचार के क्रम में दिखाया गया था। वह सब बाद की बातें हैं जिस अवस्था में देश की बागडोर प्राप्त हुई थी, कम से स्थिति को राहत न भी दिया जाये, स्थिति यथावत तो सरकार बनाने रखे।

गौर जरा सी बात पर बरसों के याराने गये।
लेकिन इतना तो हुआ कि कुछ लोग पहचाने गये।।
कुछ लोग जो सवार है कागज की नाव पर।
तोहमत तराशते हैं हवा के दवाब पर।।
हर कदम पर नित नये सांचे में ढल जाते हैं लोग।
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग।

1 COMMENT

  1. महाराज हम सभी ने वोट दिया है मोदी सरकार को , जादू की छड़ी नहीं। थोड़ा इन्जार कीजिये। सब्र का फल मीठा होता है। ये तो आपका मजहब भी कहता है। ६० साल के बिग़डे मर्ज को ६० महीने का समय तो दीजिये। नहीं तो आपकी जूती आपके सर मारने को दूसरी पार्टियां तो तैयार बैठी ही हैं। उनको सियासत की चाभी दे दीजियेगा।

    सादर,

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