अटलजी का भारतीय राजनीति में योगदान

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atal jiदेवेश खंडेलवाल

गीता का महत्व सबके लिए तथा हमेशा के लिए है क्योंकि यह जिंदगी के तीन मूलभूत सवालों का संतोषजनक उत्तर देती है. हम क्या है? हमें क्या करना चाहिए? और हमें कैसे जिंदगी बितानी चाहिए? गीता के सन्दर्भ में कहे गए ये वाक्य अटल बिहारी वाजपेयी के है. जिनके लिए भाषण देने से महत्वपूर्ण उस भाषण को पहले अपने जीवन के हर पहलु में भी उतरनारहा है. यही कारण था की उनकी इस कर्म प्रधान सोच ने उनके व्यक्तित्व को प्रखर, ओजस्वी और गुणवान बनाया. सत्ता, संगठन और समाज को अपना परिवार मानने वाले अब तक के इस सर्वाधिक करिश्माई नेता ने भारतीय राजनीति में अपना योगदान ही नहीं किया बल्कि अपना समर्पण किया है.

अटल बिहारी वाजपेयी उन महान विभूतियों में से है जो अपनी अगली पीढ़ी को प्रेरणा देते रहे है. उन्होंने राष्ट्र का सफल नेतृत्व किया. उनका नेतृत्व संकीर्ण प्रादेशिकता, जातियता और भाषावाद से परे रहा. सामजिक समरसता का सिद्दांत ही उनके नेतृत्व की विशेषता रहा है. 90 के दशक के मध्यवर्ती सालों में जब देश का नेतृत्व अस्थिर था. ऐसी विकट परिस्थितयों में अटलजी ने देश की कमान संभाली तो गठबंधन की अस्थिर राजनीति ने अपना दायरा और बढ़ा लिया. लेकिन अटलजी ने अपनी सूझ-बुझ और राजनीतिक कुशलता के चलते इस कठिन गठबंधन की राजनीति की डगर पर चलकर देश को एक मजबूत और स्थाई सरकार दी.इस करिश्माई नेतृत्व की ख़ास बात यह रही की इस भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार अब तक की सबसे लोकप्रिय सरकार बनी.

आज़ादी के संघर्ष के दिनों और फिर उसके बाद के आधुनिक भारत में कुछ ही ऐसे जननेता हुए है जिन्होंने भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए है. अटलजी भी उन जननेताओं में से एक है जिनके लिए राजनीति का मकसद जनता में शासन के प्रति विश्वास जगाना है. अपने राजनीतिक सफ़र के दौरान उनका मत था की जनता और शासन के बीच प्रमाणिकता का व्यवहार होता है. शासन के जिन अंगों के साथ जनता का संपर्क होता है उन अंगों को प्रमाणिक और भ्रष्टाचार से रहित नहीं बनाया गया था जनता में यह विशवास जगाना मुश्किल होगा की हम देश में जिस शासन की स्थापना का प्रयत्न कर रहे है वह सभी के विकास के लिए उत्तरदायी होगा. सामान्यतया देश में अलगाववाद और नक्सल समस्या की जड़ भी यही शासन और जनता के बीच का अंतर है. अटलजी इस बात से भली भांति परिचित है किअगर समस्या को अगर खत्म करना है तो उसे उसकी जड़ से ही खत्म करना चाहिए. इससे साफ़ पता चलता है की वे समस्या को बाहरी तौर पर नहीं बल्कि गहराई में जाकर उसका हल निकालते है.

देश भर में अपनी असाधारण प्रतिभा और राजनीतिक कुशलता से उन्होंने हमारे सामने कई आदर्श उपस्थित किये है. एक संसद सदस्य होने के नाते भी उनकी जिम्मेदारी और कर्तव्य था की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की मौलिक भावना का आदर करे, और ऐसा उन्होंने अपने समस्त संसदीय कार्यकाल में किया भी. पक्ष और विपक्ष दोनों में रहते हुए उन्होंने हमेशा ही इस संसद की मान-मर्यादा का ख्याल रखा और उसके लिएनिष्ठावान भी बने रहे.

राष्ट्र सेवा को सर्वोपरि मानने वाले अटलजी का बुनियादीसपना था की “भारत के भविष्य की और निहारे”, 80-90 के दशक में ही वे भारत को 21वी सदी में ले जाने की बात वे कर चुके थे, और जब देश की जनता ने उन्हें अपनी कही गयी बात को सच करने का मौका दिया तो उन्होंने एक गंभीर राजनेता और अटूट साहस का परिचय देते हुए देश को विकास के शिल्पी भी बने. स्वाधीनता के 50वे वर्ष में प्रवेश के साथ ही अटलजी की लक्ष्य के प्रति अडिग रहने की सोच ने भारत को परमाणु सम्पन्न देश होने का गौरव हासिल करवाया. और इसी के साथ देश ने अगली सहस्त्राब्दी की ओर एक कदम और बढ़ा दिया. उनका यह कदम उन राजनेताओं के लिए एक सीख था कि एक राजनेता के लिए जरुरी है की वह अपने मजबूत इरादों के साथ दूरद्रष्टा भी बने.

अगली कड़ी में उन्होंने अपने आर्थिक चिंतन से सिर्फ संसद ही नहीं बल्कि विदेश तक में लोगों को प्रभावित किया. उनका आर्थिक चिंतन देश की धरती से जुड़ा हुआ था. खेती और किसानों को प्राथमिकता और गृह उद्योगों के विकास के साथ वे हर आम आदमी के तरक्की और उज्जवल भविष्य के लिए हमेशा आगे रहे. अटल जी की आर्थिक नीति के साथ उनकी विदेश नीति भी भारतीय राजनीति में मील के पत्थर साबित हुई. उनकी विदेश नीति में एक सफल राजनेता होने के साथ एक सफल कूटनीतिज्ञ होने की छवि साफ़ दिखाई देती है. जब पूरा विश्व आतंकवाद के साए में जी रहा था, खुद भारत में भी कारगिल युद्ध, संसद पर हमला, पडोसी देशों से अलगाव जैसी समस्याएं व्याप्त थी. लेकिन बावजूद इसके अटलजी की प्रतिबद्दता के साथ संकल्पशील कार्य करने की क्षमता ने भारत की अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित रखा.

अटलजी की लेखनी और वाणी दोनों में जबरदस्त प्रभाव है. व्यंग्य, चिंतन, आत्मविश्वास प्रमाणिकता और अभूतपूर्व शैली उनकी लेखनी और वाणी दोनों की जान है. उनकी इस ह्रदयस्पर्शीकला के तो उनके आलोचक भी दीवाने है.साफ़ सुथरी छवि और विनम्र स्वभाव वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रवाद और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के सिद्दांत को अपने राजनीतिक, सामजिक और निजी सफ़र का आदर्श बनाया हुआ है. परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति के भविष्य के प्रति आशंकाओं का उन्होंने अपने अनुशासन, एकता और आत्मविश्वास से निवारण किया है. आज देश का लोकतंत्र अपने 6 दशक पूरे कर भविष्य की ओर झाँक रहा है. अटलजी आज सक्रिय राजनीति में तो नहीं है लेकिन कहते है कि व्यक्ति का अस्तित्व हमेशा सार्थक रहता है. उम्मीद की जानी चाहिए की अटलजी के प्रयासों को फिर से रोशनी दी जाए. और सुनिश्चित किया जाएँ कि हम इस देश के लोकतंत्र के भविष्य को आज ही सुरक्षित कर ले.

 

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