संवैधानिक संस्थाओं पर हमलावार होती सरकार

0
181

डॉ. आशीष वशिष्ठ

संवैधानिक संस्थाओं पर कांग्रेस नीत संप्रग सरकार का लगातार हमलावार होना और उसकी कार्यप्रणाली पर उंगली उठाना सरकार की नीति और नीयत को दर्शाता है। सरकार की उसकी दृष्टि में संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कितना सम्मान है। टू जी स्पेक्ट्रम से कोल ब्लाक आवंटन तक कैग की रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए केंद्र सरकार ने कैग और उसके आला अधिकारियों पर जिस प्रकार की टीका-टिप्पणी की है उसकी जितनी निंदा और आलोचना की जाए कम है। यूपीए-1 और यूपीए-2 के कार्यकाल में हुए तमाम घोटाले उजागर हो चुके हैं। टू जी स्पेक्ट्रम से कोल ब्लाक आवंटन में मची खुली लूट से देश के खजाने को लगे भारी भरकम चूने का कैग द्वारा खुलासा करने पर सरकार का जनविरोधी और भ्रष्ट चेहरा तो जनता के समक्ष आया ही वहीं विपक्ष को भी सरकार को घेरने का अवसर प्राप्त हुआ। चारों ओर से हो रहे हमलों और निंदा से बौखलाई सरकार और उसके मंत्रियों ने भी ताव में आकर गलती स्वीकार करने की बजाय हमलावार रूख अपना लिया अर्थात चोरी और सीना जोरी भी। विपक्ष पर हमलावार मुद्रा में आई सरकार के नुमांइदों ने क्रोध और आवेश में संविधान और उसके द्वारा स्थापित संस्थाओं की मान-मर्यादा और सम्मान भूलकर उनका मानमर्दन और आलोचना करना शुरू कर दिया जिसका सीधा निशाना संविधान द्वारा शक्ति प्रदत्त कैग को बनना पड़ा। सरकारी कमियों, नाकामियों ओर गलतियों का हिसाब-किताब करना और संसद के समक्ष रखना कैग की जिम्मेदारियों में शुमार है, लेकिन सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं की सर्वोच्चता, निष्पक्षता और ईमानदारी पर सीधे उंगली उठाते हुए कैग की रिपोर्ट और कार्यप्रणाली पर ही टीका-टिप्पणी शुरू कर उसे एक अपराधी की भांति कटघरे में खड़ा कर दिया। हमलावार होने के स्थिति में सरकार यह भी भूल गयी कि वो किसी विपक्षी राजनैतिक दल नहीं बल्कि संविधान द्वारा स्थापित संस्था पर आरोप लगा रही है। अपने गिरेबां में झांकने की बजाय सरकार ने कैग की कार्यप्रणाली और नीयत पर संदेह करके एक गलत परंपरा को तो जन्म दिया ही है वहीं उसने यह भी बता दिया है कि संविधान, संसद और इस देश के कानून से वो सर्वोपरि है और उसका जो मन चाहेगा वो हर कीमत पर वो करके ही मानेगी।

यह कोई प्रथम और अंतिम उद्घरण नहीं है जब सरकार ने किसी संवैधानिक या विधि द्वारा स्थापित किसी संस्था की कार्यप्रणाली पर उंगली उठाई हो या फिर उसके काम-काज और तौर-तरीकों को राजनीति से प्रेरित या संचालित बताया हो। आजादी के बाद से ही संवैधानिक संस्थाओं का मान मर्दन और उन्हें मन मुताबिक संचालित करने का चलन आरंभ हो गया था। शासन में चाहे जो भी दल रहा उसने पार्टी लाइन और वोट बैंक की राजनीति के गुणा-भाग के अनुसार सीबीआई, पुलिस, योजना आयोग और तमाम सरकारी व संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं का जन और देश हित में सदुपयोग की बजाय दुरूपयोग ही किया। यूपीए सरकार के आठ वर्षों के शासनकाल में तो भ्रष्टïाचार के नये-पुराने सारे रिकार्ड ध्वस्त हो चुके हैं। विपक्ष और तमाम सामाजिक संगठन सरकार पर निरंतर हमलावार रूख अपनाए हुए हैं और सरकार भी हठधर्मिता और बेशर्मी पर उतारू है। सरकार और उसके मंत्रियों को देश और संवधिान की प्रतिष्ठा से कोई लेना-देना ही नहीं है इसलिए सब कुछ खुली पुस्तक की तरह स्पष्टï हो जाने और घपले-घोटालों में मंत्रियों-संतरियों की भूमिका के उपरांत भी जिस तरह से सरकार आरोपियों की तरफदारी पर आमादा है वो यह सोचने को विवश करता है कि दिन रात देश की जनता को संविधान, संसद और कानून का पालन और सम्मान का पाठ पढ़ाने और रटाने वाले हमारे नेता स्वयं इनका कितना पालन और सम्मान करते हैं। दरअसल जब तक सरकारी संस्थाएं और विभिन्न एजेंसियां सरकार की हां में हां मिलाती है तब तक वो उज्जवल और उत्तम चरित्र की होती है लेकिन जब वो संस्थाएं सरकार की कमियां और कालिख को देश के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करती हैं तो सरकार और उसके कर्ता-धर्ता आनन-फानन में हमलावर मुद्रा अपनाकर उन संस्थाओं को ही संदेह के घेरे में खड़ा करने में सारी शक्ति और ऊर्जा का उपयोग करते दिखते हैं।

नवीनतम मामला कैग से जुड़ा है। कैग एक संवैधानिक संस्था है और ये केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के राजस्व आवंटन एवं खर्च की समीक्षा एवं परफारमेंस ऑडिट कर सकती है। हाल ही में प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी बेशर्मी का परिचय देते हुए कांगे्रस नीत संप्रग सरकार कैग को लगातार नसीहत देने से बाज नहीं आ रही थी। कोल ब्लाक आवंटन के मामले से जुड़ी एक याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फिर एक बार कड़ी फटकार लगाई है और सरकार को नसीहत दी है कि कैग को सरकार की मुनीम नहीं है जो बस उसके लेखे-जोखे का हिसाब-किताब रखेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टï तौर पर कहा है कि 1971 में बने एक्ट संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत कैग को पूरा अधिकार दिया गया है कि आडिट कर सके जिसमें सरकार द्वारा संसाधनों के प्रयोग का लेखा-जोखा बताया जा सके। कैग की रिपोर्ट संसद में पेश होती है। संसद रिपोर्ट की जांच करती है ये संसद पर निर्भर करता है कि वह रिपोर्ट स्वीकार करती है कि नहीं। या संबंधित राज्य विधानसभा राज्य के खर्च के बारे में पेश कैग रिपोर्ट की जांच करती है। कोयला ब्लाक आवंटन की रिपोर्ट के बाद से कैग पर कांग्रेस की ओर से निरंतर हमले होते रहे हैं। विद्घान न्यायाधीशों ने सीएजी की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि सीएजी का दायरा कुछ स्तरों तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसे सरकारी निर्णयों की कुशलता तथा प्रभावोत्पादकता की जांच करने का भी अधिकार है। याचिका खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि सीएजी अपने संवैधानिक एवं वैधानिक जनादेश का उल्लंघन करता है तो संसद अंकेक्षण रिपोर्ट देखते समय इस बारे में कह सकती है।

कैग ने अपनी पिछली रिपोर्टो में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से 1.76 लाख करोड़ रुपये और कोयला ब्लाक आवंटन से 1.86 लाख करोड़ रुपये का चूना लगने की बात कहने के साथ ही सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कैग रिपोर्ट पर विचार करते हुए 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद कर दिये थे, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन पर राष्टï्रपति की ओर से भेजे गये रिफरेंस के जवाब में सुप्रीम कोर्ट की पिछले हफ्ते आई राय पर सरकार प्रफुल्लित थी। उस राय में कोर्ट ने कहा था कि सभी प्राकृतिक संसाधनों का सिर्फ नीलामी के जरिए आवंटन जरूरी नहीं, लेकिन आवंटन पारदर्शी और जनहित को ध्यान में रख कर होना चाहिए। कोयला घोटाले पर रिपोर्ट के बाद कैग से चिढ़ी सरकार के कई मंत्रियों और सत्तारूढ़ गठबंधन की अगुआई कर रही कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की इस राय के बाद कैग को सीमा में रहने की नसीहत दी थी। प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने कहा था कि कैग सुपर गवर्नमेंट बनने की कोशिश कर रहा है। कैग को यह सवाल उठाने का हक नहीं है कि सरकार ने ऐसा क्यों किया। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने तीखा रूख अपनाते हुए कहा था कि कैग को अपनी रिपोर्ट में जीरो बढ़ाकर कुछ लोगों का हीरो बनने में रुचि है। कांग्रेस महासचिव दिज्विजय सिंह ने कई बार स्पष्टï रुप से कहा है कि कैग जान बूझकर सरकार के विरूद्घ रिपोर्ट तैयार कर रही है।

सरकार और उसके मंत्रियों की संवैधानिक संस्थाओं पर ओछी, आधारहीन और तथ्यों से परे आरोप लगाना और उन्हें संदेह की घेरे में खड़ा करना एक गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है कि सरकार में संसद, संविधान और कानून से बढक़र राजनेताओं और सत्ताधारी दल के स्वार्थ और हित सर्वोपरि हैं। सरकार के काम-काज पर दृष्टिï रखने उसका आंकलन करने और देश की जनता की खून-पसीने की कमाई के पैसे का हिसाब-किताब रखने के लिए निर्मित और स्थापित संस्थाओं का सरकार की दृष्टिï में कोई महत्व व प्रभाव नहीं है। सरकार की इशारों पर नाचने वाले, उसके झूठ, कालिख, अपराध और गलतियों को ढकने वाले और देश व जनहित छोडक़र सत्ताधारी दल के राजनीतिक गुणाभाग से नीतियां और कानून बनाने वाली संस्थाएं और अधिकारियों की ही प्रतिष्ठïा और महत्व सरकार की दृष्टिï में है उसके अलावा ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करने वाली संवैधानिक संस्थाएं सरकार की दृष्टि में उसकी विरोधी, विपक्षी दलों की विचारधारा से प्रेरित और षडयंत्रकारी हैं जो सरकार के प्रति दुर्भावना रखकर काम काज करती हैं और उसकी कमियों और खामियों की पोल खोलने की गलती करती हैं। संवैधानिक संस्थाओं के प्रति सरकार का दुराग्रह और दुर्भावना सीधे तौर पर संविधान का अपमान है। सीबीआई के दुरूपयोग को लेकर आलोचना झेल रही सप्रंग सरकार का कैग पर उंगली उठाना ये दर्शाता करता है कि कैग सीबीआई की भांति सरकार की पालतू और आज्ञाकारी संस्था नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here