स्वायतत्ता तोहफा नहीं, गुलामी की दावत

– भरतचंद्र नायक

गत दिनों लोक सभा में जब कश्मीर के बिगड़ते हालात पर चर्चा के दौरान ठोस कदम उठाने की पुरजोर वकालत की जा रही थी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार में मंत्री डॉ.फारुख अब्दुल्ला ने फरमाया कि ऐसे वक्त जब भारत सरकार दुनिया की एक बड़ी ताकत है और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख की ओर चीन बढ़ने के प्रयास में है, क्या जम्मू-कश्मीर की आजादी की मांग मुनासिफ कही जा सकती नहीं। उनका इशारा आल पार्टी हुर्रियत की ओर था। इसके पहले वरिष्ठ नेता डा.मुरली मनोहर जोशी ने बड़े साफ शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता अथवा आजादी दिये जाने का कोई प्रश्न नहीं उठता। यदि स्वायतत्ता दिये जाने पर विचार किया गया तो पिंडोरा वाक्स खुल जाएगा जिसका कोई अंत नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की अपनी दीर्घकालिक कूटनीति है. वे पाकिस्तान के जरिये चीन, दक्षिणी एशिया और खाडी के मुल्कों की चौकसी करना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर के कथित अवाम को उकसाने और अलगाववादियों के भारत विरोध की प्रायोजित योजना का रहस्य समझा जाना चाहिए। फिर जम्मू कश्मीर का असली आवाम तो वे पांच लाख कश्मीरी पंडित हैं जिन्हें जम्मू कश्मीर से खदेड़कर शरणार्थी बना दिया गया है। सियासत के मजहबीकरण के कारण बहकावे अथवा विदेशी दबाव में आकर जम्मू-कश्मीर के बारे में अपनी नीति में तनिक भी नरमी लाने का मतलब लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पायी होगा। भारतीय जनता पार्टी ने देश की राष्ट्रीय अखण्डता, सार्वभौम सत्ता और भारतीय अस्मिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए कहा कि यही समय है, जब भारत को स्पष्ट संदेश देकर अलगाववादियों, पाकिस्तान और अमेरिका से साफ सपाट शब्दों में कह देना चाहिए कि जम्मू -कश्मीर के मामले में कोई भी दबाव अथवा वार्ता कबूल नहीं है। पाकिस्तान से डायलाग का जहां तक सरोकार है, उसे पाक अधिकृत कश्मीर को खाली कर उसे मुक्त करने पर विचार करना चाहिए।

लेकिन विडंबना यह है कि केन्द्र में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार देश की अखण्डता, सुरक्षा को दोयम दर्जे की प्राथमिकता मान चुकी है। जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों के नरम और गरम जो दो धड़े विपरीत ध्रुव हुआ करते थे यूपीए सरकार की नरम नीतियों को भारत की कमजोरी समझ बैठे है और जो पांच सूत्रीय कार्यक्रम उन्होंने केन्द्र सरकार से बातचीत का आधार बनाया है खुल्लम खुल्ला भारत की अखण्डता को चुनौती और संविधान के प्रति खुलाद्रोह है। आल पार्टी हुर्रियत काँफ्रेंस के हार्ड लाइनर सैयद अली शाह जिलानी जम्मू कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय विवाद बताकर क्षेत्र का विसैन्यीकरण, अपराधिक मामलों में निरुद्ध, कश्मीरियों, आतंकवादियों की रिहायी, फौजी कर्मियों के मानवाधिकार उल्लंघन मामले में जांच, कार्यवाही और सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून की

समाप्ति पर अड़े थे। नरम धड़ा मीर वाइज फारुख जो बातचीत के लिए आगे आ रहे थे, ने अब पैतरा बदल लिया है और वे गिलानी के एजेंडा को कबूल करते हुए आत्म निर्णय आजादी की भी फरमाइश करने लगे हैं। यह परिवर्तन आने की बजह यह मानी जा रही है कि पिछले तीन माह में आईएसआई ने अपनी रणनीति बदलकर सुरक्षा बलों को उकसाने के लिए पथराव करने वाला फोर्स बना डाला है। जिसे कलेंडर के मुताबिक ट्रकलोड पत्थर उपलब्ध रहते हैं। स्कूल जाने वाले छात्रों के बस्तों में किताबों की जगह पत्थर रखवाये जाते हैं, बुर्काधारी महिलाएं भी पत्थराव में शामिल होती है। सुरक्षा बल निशाना बन रहे हैं। भीड़ में आतंकवादी गोली चलाकर भी सुरक्षा जवानों को मौत की नींद सुला रहे हैं। पैंसठ के करीब किशोर उकसावे की कार्यवाही के बाद सुरक्षा बलों के गोली चालन का शिकार हुए हैं और इसने सुरक्षा बल विरोधी माहौल बनाने की रणनीति कामयाब हुई है। इसे पाकिस्तान और अलगाववादी अपनी सफलता मान रहे हैं। उमर अब्दुल्ला अब तक के सबसे निकम्मे मुख्यमंत्री सिद्ध हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर के अवाम और सरकार के बीच विश्वास का सेतु बनाने में उनकी विफलता का खमियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। ऐेसे में भले ही जम्मू-कश्मीर की निर्वाचित सरकार को भंग न किया जाए। लेकिन विधायक दल में बदलाव कर सत्ता नेतृत्व सामने लाना समय की मांग है, वहां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की गठबंधन सरकार है और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के सखा होने का दावा करने वाले उमर अब्दुल्ला केंद्रीय मंत्रियों, प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी के आंख का तारा बने हुए हैं। जब जम्मू-कश्मीर में हालात काबू से बाहर हो रहे हैं, जम्मू कश्मीर सरकार और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तुष्टीकरण और सियासत के मजहबीकरण की हीलिंग टच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर की संवेदनशील विस्फोटक स्थिति के प्रति गंभीर होते तो वे कदापि ईद के तोहफे के रूप में राजनीतिक पैकेज स्वायतत्ता की मांग नहीं करते। ईद को ईद ही रखा जाना था। सियासत नहीं की जाना थी। और न वे सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून में संशोधन और उसे उठाने की मांग भी नहीं करते। उन्हें अहसास होता कि सशस्त्र बलों की तैनाती और विशेष अधिकार कानून पर अमल परिस्थितिवश किया गया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृहमंत्री के रूप में निभाया। स्वतंत्र चिंतकों और सुरक्षा विशेषज्ञों का मत है कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ दो आवश्यकता अहंम हैं, पहले तो हिंसा समाप्त हो। दूसरे मजहबीकरण की बात बिल्कुल बंद हो। लेकिन डॉ.मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस को ये दोनों बातें गवारा होगी, इस बात का इत्मीनान नहीं किया जा सकता है। इस बात को इशारे में समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त होगा। संसद पर आतंकवादी हमले के प्रमुख अभियुक्त अफजल गुरु को जब सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा दी इसे तामील नहीं होने देने में कांग्रेस की भूमिका प्रमुख थी। तब जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ही सबसे पहले केन्द्र से नरमी बरतने की दरखास्त की थी। इससे भी खतरनाक बात यह हुई कि जब अफजल गुरु को फांसी की सजा के विरोध में जम्मू कश्मीर में

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विरोध प्रदर्शन में जुलूस निकले उसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता भी प्रचुर संख्या में शरीक हुए। बात यही समाप्त नहीं होती। तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने पुरजोर कोशिश की कि अफजल गुरु की फांसी के मामले में फाइल दिल्ली सरकार के पास अटकी रहे। राष्ट्रपति निरीह बने रहे और इरादतन यही हुआ। बाद में पी.चिदम्बरम भी अफजल गुरु को फांसी की सजा पर अमल करा पाने में निरीह साबित हुए। आतंकवाद से लड़ने राष्ट्रीय अखण्डता की सुरक्षा के लिए यदि कांग्रेस का यह आगाज है, तो अंजाम का अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

दरअसल जम्मू-कश्मीर में अवाम के लिए राजनीतिक, आर्थिक कोई समस्या नहीं है। देश के 28 सूबों से सबसे अधिक अधिकार यहां प्राप्त है। अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर को विशिष्ठ राज्‍य का दर्जा दिया हुआ है। दो निशान, दो प्रधान की व्यवस्था नहीं है। फिर भी दो विधान है। यही कारण है कि राजनेता वोट पालिटिक्स करके जनता को गुमराह करते हैं। स्वायत्तता का एजेंडा जनता का नहीं है। यह पाकिस्तान के विफल हुक्मरानों का है, जो अलगाववादियों के जरिए पराजय बोध व्यक्त कर भारत को तोड़ने का दंभ भरते हैं। पाकिस्तान ने भारत पर 1948, 1965, 1971 के युद्ध थोपे, बाद में कारगिल पर हमला कर भारत की पीठ में छुरा झोंका और मुंह की खायी। अटल बिहारी वाजपेयी अमन का पैगाम लेकर बस से लाहौर गये लेकिन पाकिस्तान जो मंसूबा युद्ध के मैदान में पूरा नहीं कर पाया, वह आतंकवाद, अलगाववाद के जरिये पूरा करना चाहता है। इसका माकूल जवाब देने के बजाय डा.मनमोहन सिंह सरकार विदेशी दबाव में थ्रेड वेयर बातचीत करने, हीलिंग टच भरने पर राजी होकर अपनी दुर्बलता उजागर कर रहे हैं।

पिछले तीन माह से अलगाववादियों, सुरक्षा बलों पर किसके इशारे पर हमला बोल रहे हैं। सुरक्षा बलों की जांच का आदेश देकर उमर अब्दुल्ला सरकार ने पुलिस, अर्धसैनिक बल और फौज का मनोबल खंडित कर दिया है। पुलिस यूनिफार्म लगाकर शहर में निकल नहीं सकती। पथराव करना कुटीर उघोग बन गया है। राज्‍य सरकार मजबूर है। विरोध प्रदर्शन ने उधोग धंधे चौपट कर दिये हैं। पर्यटन उघोग बदहाली की कगार पर है। कालेज स्कल बंद है। छात्रों को पेड स्टोन पेल्टर बना दिया है। इस समस्या की सारी जिम्मेदारी अलगाववादी, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस केंद्र या भारत सरकार पर कैसे डाल सकते हैं। फिर समझने की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर की आबादी देश की एक प्रतिशत है और यहां भारत सरकार देश का 11 प्रतिशत बजट खर्च करती है। स्वायतत्ता की मांग जम्मू-कश्मीर को बदहाली, गुलामी की ओर धकेल रही है। भारत की जनता, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी से इसे किसी भी हालत में कबूल नहीं कर सकती। जम्मू-कश्मीर अवाम की कोई आर्थिक राजनीतिक समस्या नहीं है। यह भारत के विरुद्ध प्रायोजित षडयंत्र है। इसका सीधा और सपाट समाधान यही है कि देश की हर जवान पर भारत प्रथम नेशन फर्स्ट का नारा और हौंसला हो।

3 COMMENTS

  1. कश्मीर की लड़ाई एक सशक्त विचारधारा के द्वारा ही जीती जा सकती है . अलगाव की विचारधारा के विरुद्ध हमें भारत की एकता की विचारधारा को आगे बढ़ा कर लड़ना होगा . अभी यह लड़ाई अलगाववादियों और सरकार के बीच है . इस में सरकार एक शोषक और अत्याचारी के रूप में रंगी जा रही है और देश देखता जा रहा है . दुनिया भर में शोर मच रहा है . हमें यह बदलना होगा . भारत की एक अरब से ऊपर जनता को एक विचारधारा और जन आन्दोलन खड़ा करना होगा . हमें “दो धर्म और दो राष्ट्र” के सिद्धांत और “कश्मीर की अलग पहचान” के दावे को चुनौती देनी होगी . अलगाववादियों का यही सहारा है और हमें इसी पर वार करना होगा . हमारे पास १५ करोड़ से ऊपर मुस्लिम भाई और देश की ऐतिहासिक विरासत की ताकत है . हम यह लड़ाई जीत सकते हैं .

  2. देश की सर्वोच्च शक्ति -संसद की ओर से नियुक्त सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कश्मीर से खाली हाथ नहीं लौटा ,हथेली पर आम उगने और पका हुआ आम प्राप्त करने की उम्मीद जादूगर लोग ही कर सकते हैं .अभी तो ये अंगडाई है .आगे और लड़ाई है ..हम विश्व विरादरी को विश्वाश में लेकर आगे बढ़ रहे हैं .इसी वजह से हमारे सम्माननीय सर्व दलीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल ने कश्मीर में विभिन्न अलगाववादी ग्रुपों और भारत समर्थकों से भी बात की है .कुछ अलगाव वादी पाकिस्तान परस्त हैं .कुछ स्वतंत्र कश्मीर के पक्षधर हैं किन्तु बहुत सारे कश्मीरी -जम्मू लद्दाख घाटी और अंदरूनी जनजातीय क्षेत्रों में विना किसी लाग लपेट के अपना हित भारत से जोड़कर देखते हैं .
    इस प्रकार की विचित्र तीन विचारधाराओं में बंटे कश्मीरियों में से कौन गद्दार और कौन देशभक्त है पता करना जरूरी है तभी तो यह तय हो पायेगा की लड़ना किससे है /पूरे कश्मीर को पहले से ही दुसरे पाले में मान लेने वाले नादाँ लोगों को मालूम हो की उनकी इस नादानी से गद्दारी की बू आती है .

  3. भरतजी, वास्तव में आपने बड़ा सटीक खाका सभी पाठकों के सामने खींचा है इसके लिए आपकों साधुवाद। आज केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत सरकार वास्तव में इतनी दिग्भ्रमित हो चुकी है कि उसे दलगत हितों के सिवा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा। भारत की सरकार को अब कल्पना लोक में अठखेलियां करना छोडक़र वास्तविकता के धरातल पर उतरना चाहिए। जो लोग भारत के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाए हुए हैं उनके सामने वार्ता की मेज पर गिड़गिड़ाने की कायरता का प्रदर्शन देश की एकता-अखंडता के लिए घातक साबित हो रहा है। जम्मू-कश्मीर का पूर्ण विलय भारत में हो चुका है। प्रदेश की जनता द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने इस पर सर्वसम्मत मोहर लगाई है। भारत का अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर भारतीय संविधान, संसद और सर्वोच्च न्यायालय की परिधि में है। इसलिए जम्मू-कश्मीर पर होने वाली कोई भी वार्ता भारत के संविधान के अंतर्गत ही होनी चाहिए। अगर अलगाववादी नेता भारत के संविधान के तहत बात नहीं करते तो उन्हें देशद्रोही घोषित करके उनके साथ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। जिस दिन भारत की सरकार अपने दलगत स्वार्थों से ऊपर उठकर अलगाववादियों के साथ सख्ती से पेश आएगी उसी दिन से कश्मीर समस्या के समाधान के रास्ते खुल जाएंगे, कश्मीर में तैनात भारतीय सेना का सम्मान होगा, हिन्दू कश्मीर में सुरक्षित रह सकेंगे और पाकिस्तान और उसके इशारे पर खूनी कहर बरपा रहे आतंकवादी भी सीधे रास्ते पर आ जाएंगे।

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