मधुमेह रोगी देर रात तक जगने से बचें

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सरफ़राज़ ख़ान

ऐसे युवा वयस्क जो रात में गहरी नींद नहीं लेते, उनमें टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है] यह बात नेषनल अकेडमी ऑफ साइंसेज की प्रोसीडिंग्स में प्रकाषित एक अध्ययन में कही गई है।

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ महज तीन रातों तक लगातार आप गहरी नींद लेने से अगर वंचित रहते हैं तो इसका उल्टा असर शरीर पर उतना ही पड़ता है जितना कि 20 से 30 पाउंड वजन बढ़ाने से। 20 से 30 साल की उम्र के दौरान लगातार तीन रातों तक नींद में व्यवधान होने से ग्लूकोज और इंसुलिन मेटाबॉलिज्म उनसे तीन गुना अधिक उम्र वाले लोगों के बराबर हो जाता है। इसकी स्पश्ट वजह यह है कि सोने के दौरान नॉर्मल ग्लूकोल कन्ट्रोल में स्लो वेव स्लीप की भूमिका अहम होती है। बढते उम्र के व मोटापे के षिकार लोग अगर बेहतर नींद लेने लगते हैं तो वह टाइप 2 डायबिटीज होने पर काबू पा सकते है।

षोधकर्ताओं ने पांच पुरुशों और चार महिलाओं को लिया जो दुबले और स्वस्थ थे और इनकी उम्र 20 से 31 के बीच थी। षोधकर्ताओं ने इन्हें दो रातों को भरपूर नींद लेने दिया (8.5 घंटे)। फिर इन्हीं लोगों को तीन रातों तक लगातार ठीक से सोने नही दिया गया। भरपूर नींद न लेने से स्लो वेव स्लीप के लक्ष्ण नजर आने लगे।

युवा वयस्क हर रात 80 मिनट से लेकर 100 मिनट तक स्लो वेव स्लीप की स्थिति में होते हैं जबकि 60 से अधिक उम्र वालों में सामान्यत: यह 20 मिनट से भी कम होती है। दोनों अध्ययनों के बाद शोधकर्ताओं ने ग्लूकोज और इंसुलिन मापने के लिए हर एक को इन्ट्रावीनस ग्लूकोज दिया, फिर उनका कुछ मिनटों के अंतराल में ब्लड सैम्पल लिया। जब शोधकर्ताओं ने आंकड़ों का विश्लेषण किया तो उन्होंने जाना कि हिस्सा लेने वालों में से जो पूरी नींद नही ले पाए थे उनमें इंसुलिन सेंसटिविटी 25 प्रतिशत तक कम थी। जैसे जैसे सेंसटिविटी कम होती गई वैसे वैसे उनमें इंसुलिन की जरूरत बढ़ती गई। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

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सरफराज़ ख़ान
सरफराज़ ख़ान युवा पत्रकार और कवि हैं। दैनिक भास्कर, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक ट्रिब्यून, पंजाब केसरी सहित देश के तमाम राष्ट्रीय समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में समय-समय पर इनके लेख और अन्य काव्य रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। अमर उजाला में करीब तीन साल तक संवाददाता के तौर पर काम के बाद अब स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। हिन्दी के अलावा उर्दू और पंजाबी भाषाएं जानते हैं। कवि सम्मेलनों में शिरकत और सिटी केबल के कार्यक्रमों में भी इन्हें देखा जा सकता है।

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