व्‍यंग : किसानों को आत्‍महत्‍योपरांत सम्‍मानित किया जाए

अविनाश वाचस्‍पति

किसान परेशान होकर आत्‍महत्‍या कर रहा है। नेता बेईमान काले धन से लिपट रहा है। मेरा देश महान फिर भी महान है। किसान आत्‍महत्‍या कर रहे हैं, यह उनका दोष है। खेती करो, फिर खेती में नुकसान हो तो किसने कहा है कि आत्‍महत्‍या करो। जैसे खेती आपने किसी से पूछ कर नहीं की, वैसे ही आपको किसी ने आत्‍महत्‍या करने के लिए भी तो अनुरोध नहीं किया है। धंधा कोई भी हो उसमें नफा नुकसान तो चलता रहता है। किसानों के आत्‍महत्‍या करने से तो इस धारणा को बल मिलता है कि खेती करना इस देश में सबसे नुकसानदेह धंधा है बल्कि इसे धंधा मानकर तो किया ही नहीं जा सकता है। अगर खेती का धंधा नुकसानदेह होता तो भारत जो आज कृषिप्रधान होने से गौरवान्वित महसूस कर रहा है, वो न कर रहा होता। समय परिवर्तनशील है इसलिए कृषि में न सही, परंतु इससे जुड़े दलाली के धंधे में तो चमक आई ही है। वैसे भी संपूर्ण देश में आजकल दलालों का बोलबाला है। कोई भी क्षेत्र इससे बचा नहीं है इसलिए असल धंधेबाज तो आज दलाली में मशगूल रहते हैं और सबकी बत्‍ती गुल करते देते हैं। उनका कुछ इंवेस्‍ट नहीं होता फिर भी मोटी मलाई और चिकनाई उनके हिस्‍से में ही आती है और उनके ओठों पर अपनी ऊंगलियां फिराकर कभी भी जांच सकते हैं। आपकी ऊंगली न फिसल जाए तो कहना। इसमें न तो जोखिम होता है और न आय में ही कमी आती है। आता है सिर्फ धन ही धन। वही धन धन्‍नासेठ बनाता है, फिर चाहे उस धन से धान खरीदो अथवा उसी के बल पर वोट खरीदकर राजनीति में घुस जाओ और नोट ही बिछाओ, नोट ही खाओ और नोट ही लहराओ। यहां नोट से तात्‍पर्य करेंसी नोटों से है। किसी सरकारी बाबू की फाईल पर टिप्‍पणी से नहीं। क्‍योंकि अगर आपने विवेक से काम नहीं लिया और अपना और अपने जानवरों का पेट भरने के जुगाड़ में खेती में सुनहरा भविष्‍य जानकर किस्‍मत आजमाई तो इस बात की पूरी गारंटी है कि इसकी परिणति आत्‍महत्‍या में ही होगी।

वैसे भी समझदार सरकार की समझ में यह नहीं आ पा रहा है कि अगर कोई किसान आत्‍महत्‍या करता है तो इसके लिए सरकार जिम्‍मेदार कैसे हो जाती है। जैसे सड़क पर वाहनों के जलने की घटनाओं के लिए सरकार की जिम्‍मेदारी नहीं बनती है, उसी प्रकार किसानों के आत्‍महत्‍या करने की जिम्‍मेदारी सरकार की तो कतई नहीं हो सकती। किसी को किसी के चांटा मारने की जिम्‍मेदारी भी सरकार नहीं लेती है। इसी प्रकार जूते-चप्‍पलों के मरने-मारने की जिम्‍मेदारी सरकार लेने लगी तो सरकार तो मर ही जाएगी। सरकार तो सोते हुए नागरिकों पर डंडे चलवाकर भी जिम्‍मेदारी लेने से किनारा कर लेती है। फिर इस प्रकार की आत्‍महत्‍याओं से तो सरकार का न सीधा और न टेढ़ा ही संबंध है, इसलिए इसकी जिम्‍मेदारी सरकार पर डालना, सरकार के साथ घोर अत्‍याचार है।

सरकार आखिर सरकार है, कोई अभियुक्‍त या आम नागरिक नहीं है कि जिसे पकड़ा और ठूंस दिया जेल में और उस पर मड़ दिया आरोप। इसे ही कहा जाता है पुलिसिया प्रकोप। यह किसी पर भी किसी भी समय बरस सकता है बेमौसम की बारिश की मानिंद।

अब अगर किसानों को मरने में ही आनंद मिल रहा है तो सरकार उनके आनंद लेने के उपक्रम में आड़े कैसे आ सकती है। अधिक समझदार नागरिक मेट्रो के आगे मरने के लिए कूद जाते हैं, उसके लिए जिम्‍मेदार भी मेट्रो को बतलाते हैं। मेट्रो सरकारी मशीनरी है इसलिए जिम्‍मेदार सरकार हो गई। जबकि प्रबुद्ध समुदाय का यह मानना है कि आत्‍महत्‍या करना बढ़ती आबादी से निजात पाना ही है और इससे सरकार के द्रुत विकास में योगदान देना ही साबित होता है। जितनी आबादी कम होगी, देश का उतनी तेजी से विकास होगा, इस सच को मानने से भला किसे इंकार होगा। सरकार तो आत्‍महत्‍या कर चुके किसानों को मरणोपरांत सम्‍मानित करने की योजना भी लागू करने वाली है जिससे इस प्रकार के देश विकास के कार्यों को अन्‍य क्षेत्रों में भी भरपूर प्रोत्‍साहन मिल सके। जब एक किसान आत्‍महत्‍या करता है तो वह अकेला नहीं मरता, अपने पूरे परिवार को साथ लेकर मरता है। इससे उसके देशप्रेम के पारिवारिक जज्‍बे के बारे में मालूम चलता है। आखिर अकेला मरकर वह सरकार का कितना धन बचा पाता, इसलिए अंत समय में शर्मिन्‍दा होने से बचने के लिए वह संपूर्ण योगदान करता है।

सिर्फ मीडिया ही इस प्रकार के कार्यों को सही प्रकार से पेश नहीं कर रहा है जिससे इस प्रकार की गतिविधियों से नकारात्‍मक संदेश समाज में जा रहा है। आप उस समाचार में छिपे शुभ विकास संदेश को ग्रहण कीजिए। किसान शब्‍द का शाब्दिक अर्थ तो आन (प्रतिष्‍ठा) के लिए किस (चुंबन) करना है। किस के प्रयोग से आपके मन में डर्टी पिक्‍चर का ख्‍याल तो नहीं कुलांचे मारने लगा। भला मिट्टी लपेटकर डर्टीत्‍व को प्राप्‍त हुआ किसान मिट्टी के सिवाय किस को किस करने की कोशिश कर सकता है, अब वह किसी आइटम गर्ल को किस करने की तो सोचने से रहा। आखिर वह भूमिपुत्र है। उसका प्रत्‍येक किस धरती मां के लिए है। अगर कोई पुत्र अपनी मां को किस कर रहा है तो इसमें गलत क्‍या है। इससे चाहे उसके मुंह में मिट्टी ही क्‍यों न भर जाए ?

आप अपनी भावनाओं को दूषित होने से बचाइये। किसान के आत्‍महत्‍या के योगदान को स्‍वीकारिए, सराहिये। जिससे सचमुच देश का चहुंमुखी विकास हो रहा है। इसे चाहे आप आज नहीं स्‍वीकार रहे हैं, परंतु कल अवश्‍य स्‍वीकारेंगे और इसमें कोई अड़चन आड़े नहीं आएगी।

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अविनाश वाचस्‍पति
14 दिसंबर 1958 को जन्‍म। शिक्षा- दिल्ली विश्वविद्यालय से कला स्नातक। भारतीय जन संचार संस्थान से 'संचार परिचय', तथा हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम। सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन, परंतु व्यंग्य, कविता एवं फ़िल्म पत्रकारिता प्रमुख उपलब्धियाँ सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। जिनमें नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता अनेक चर्चित काव्य संकलनों में कविताएँ संकलित। हरियाणवी फ़ीचर फ़िल्मों 'गुलाबो', 'छोटी साली' और 'ज़र, जोरू और ज़मीन' में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिंदी टेली फ़िल्म 'ज्योति संकल्प' में सहायक निर्देशक। राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद और हरियाणवी फ़िल्म विकास परिषद के संस्थापकों में से एक। सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला भारती, दिल्ली में उपाध्यक्ष। केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के शाखा मंत्री रहे, वर्तमान में आजीवन सदस्य। 'साहित्यालंकार' , 'साहित्य दीप' उपाधियों और राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान' से सम्मानित। काव्य संकलन 'तेताला' तथा 'नवें दशक के प्रगतिशील कवि कविता संकलन का संपादन। 'हिंदी हीरक' व 'झकाझक देहलवी' उपनामों से भी लिखते-छपते रहे हैं। संप्रति- फ़िल्म समारोह निदेशालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली से संबद्ध।

1 COMMENT

  1. जिस देश में दारू पी कर मरने वालो को अनुदान व सम्मान मिलता हो वहा का ” किसान” मूर्ख है जो बगैर अनुदान वा वाजिब सम्मान के बिना मर रहा है .
    (मरने के बाद अनुदान लेना तो अधिकार है )

    सर्कार को पता है की किसान केवल मुफ्त का साथी है जबकि दारू पीने वाला टैक्सपेयर ३६% ड्यूटी चूका कर शान से पौवा खरीदता है .

    जबकि किसान राशन की दुकान पर घंटो लाइन में खड़ा रहता है बेवकूफ २ पैसा बचने के चक्कर में

    किसानो को किसानी छोड़ कर जो मुफ्त का सामान मिलरहा है (भोंदू युवराज के सौजन्य से लेकर केवल वोट देना चाहिए ) ३५ किलो मोटा अनाज उसी से संतोष करना चाहिए बिना वजह सरकार का मूड नहीं आफ करना चाहिए .

    अन्यथा सरकार सारी जमीनों को ले कर अंतिम संस्कार तक के लिए किसानो को तरसा सकती है

    (नोट :- मुशलमान भाई अन्यथा न ले क्योकि सरकार तो धर्मनिरपेक्ष है आप लोगो के सर्वाधिकार सदर सुरक्षित है )

    ये बात मीडिया व किसानो को अच्छी तरह से समझाना चाहिए आखिर सरकार सरकार होती है

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